एक जमाना था जब महिलाओं के सजनेसंवरने पर कोई पाबंदी नहीं होती थी. अपने सौंदर्य को बेहतरीन दिखाने के लिए वे अपने मन की करती थीं. पर फिर समय के साथ समाज उन से सब कुछ छीनता चला गया. उन की चाहतें चारदीवारी में दफन होने लगीं. मगर अब फिर जमाना एक सीमा तक बदल गया है और महिलाएं अपने मन की करने लगी हैं.
नई सोच के साथसाथ समाज को भी अपना नजरिया बदलने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. फैशन ने हर उम्र की दहलीज पर एक बड़ी क्रांति ला दी है. सड़ीगली मानसिकता के साथ 7 परदों में तन को ढक कर रखने की प्रथा को तोड़ने के लिए महिलाएं तत्पर हो गई हैं. कोई क्या सोचेगा, क्या कहेगा इन बातों की अब उन्हें परवाह नहीं है.
आज आकर्षक पहनावा आकर्षक व्यक्तित्व और आकर्षक सोच का पर्याय बन गया है. ‘जीवन मेरा, तनमन मेरा तो फिर इसे फैशन के बदलते मौसम के अनुसार क्यों न सजाऊं.’ आज हर महिला की जबान पर यही उद्गार है. धर्म, समाज, परिवार, मुल्लेमौलवी चाहे जितने फतवे जारी कर लें, कोई परवाह नहीं. आज के भागमभाग वाले दौर में कोई भला 9 गज की साड़ी क्यों पहनना चाहे? हलके फुलके कपड़ों में ही अनेकानेक जिम्मेदारियों को निभाया जा सकता है.
जब हर क्षेत्र में लड़कियों ने, महिलाओं ने अपना आकाश ढूंढ़ लिया है, अपने हिस्से की धूप तलाश कर ली है तो मन का पहनावा तो बहुत मामूली बात है. अवसर के अनुसार पहनावा पहनने में रोकटोक करने का कोई औचित्य नहीं है. जींस, टौप, स्कर्ट, छोटी फ्रौक, शर्ट में सजे तन न जाने उम्र के कितने साल चुरा कर मन को युवा होने की अनुभूति देते हैं.
घरबाहर की दोहरी जिम्मेदारियों को निभाने में पहनावे का बहुत महत्त्व रहता है. वाहन संचालन पर आधिपत्य रखने वाली लड़कियां हों या युवतियां, अधेड़ावस्था की हों या वृद्ध पहनावे को आधुनिकता के सांचे में ढालना ही पड़ता है. शादीविवाह और त्योहारों के मौसम में जरी, मोतियों और सितारों से सजी साडि़यां, लांचा, लहंगे के साथ भारी जेवरात पहनने के अंदाज गजब ढाने के साथ बड़े लुभावने भी लगते हैं. लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में इन्हें पहनना आसान नहीं है.
आज 60 क्या 70 से ज्यादा उम्र की भी भारतीय महिलाएं विदेशों में ही नहीं, बल्कि अपने देश में भी जींस, पैंट, स्कर्ट, टौप जैसी पोशाकों में नजर आती हैं, तो आंखों को बड़ा सुकून मिलता है. प्राचीन और आधुनिक फैशन की पोशाकों की सम्मिलित डिजाइनें नयनाभिराम होने के साथसाथ बजट के अंदर भी आती हैं.
एक से बढ़ कर एक डिजाइनर ड्रैसेज फैशन की दुनिया में शोहरत बटोर रही हैं. इन डिजाइनर कपड़ों के प्रचार के लिए फैशन परेडों का आयोजन भी किया जाता है. अब तो औनलाइन भी खूब बिक्री हो रही है. सब धड़ल्ले से खरीदारी कर रहे हैं.
फैशन पर लड़कियों एवं महिलाओं के विचार
24 वर्षीय सौफ्टवेयर इंजीनियर दिव्या दत्ता कहती हैं कि सलवार कमीज से ज्यादा अच्छा उन्हें जींस, पैंट, फुल स्कर्ट, टौप, शर्ट पहनना लगता है. इन ड्रैसेज में चुस्तदुरुस्त स्मार्ट तो लगती ही हैं, हलकाफुलका होने के एहसास के साथ साथ हर वर्ग के साथ काम करने में भी सहजता महसूस होती है.
अनारकली पहनावे की दीवानी बैंक में कार्यरत 28 वर्षीय पूजा सभी आधुनिक परिधान पहनती हैं पर सलीके से. पहनावे के साथ वे स्थान और मिलने वालों को भी अहमियत देती हैं. भारी बदन की महिलाओं को तंग परिधानों के बजाय ढीलेढाले परिधानों में देखना पसंद करती हैं. वे कहती हैं कि फैशन के साथ शालीनता भी होनी चाहिए.
37 वर्षीय डैंटिस्ट सृजा ने भी दिव्या की ही बातें दोहराईं. पर उन्हें विशेष अवसरों पर पारंपरिक और आधुनिक फ्यूजन के परिधान बहुत भाते हैं. घरबाहर कैपरी पहनना उन्हें आरामदायक लगता है.
कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राएं रश्मि, सपना, मेघा, नमिता ने बताया कि उन्हें नए फैशन के कपड़े सुंदर, टिकाऊ होने के साथसाथ आरामदायक भी लगते हैं. कपड़ों का मैटीरियल इतना अच्छा होता है कि घर पर ही धो लेती हैं. ड्राई वाश की कोई जरूरत नहीं होती है. रखरखाव में भी कोई झंझट नहीं होता है. फिर आकर्षक डिजाइनर ड्रैसों की औनलाइन शौपिंग भी कर लेती हैं.
45 वर्षीय अंजू लाल खास मौके पर ही बनारसी डिजाइनर साड़ी पहनती हैं. उन्हें आधुनिक और पारंपरिक सलवारकमीज ही पहनना ज्यादा अच्छा लगता है.
पटना वूमंस कालेज में अंगरेजी की व्याख्याता, 50 वर्षीय स्तुति प्रसाद का कहना है कि उन्हें सलवारकमीज पहनना बहुत अच्छा लगता है. चूंकि वे एक व्याख्याता हैं, इसलिए पहनावे की शालीनता का ध्यान रखना पड़ता है.
60 वर्षीय गृहिणी सुनीता जब से लंदन आनेजाने लगी हैं हमेशा जींस, टौप, शर्ट ही पहनती हैं. आकर्षक साड़ी किसी विशेष अवसर पर ही पहनती हैं.
75 वर्षीय मीनाजी को रंगबिरंगा गाउन पहनना बहुत अच्छा लगता है. जब भी वे अमेरिका जाती हैं वहां के मौल्स से एक से बढ़ कर एक फैशन के परिधान खरीद लाती हैं.
वास्तव में अपनी मनपसंद के परिधानों के साथ जीने का अंदाज ही निराला होता है. मन सदा उत्साहउमंग से भरा रहता है. थकान, अवसाद जीवन में नहीं झांकते.