सौंदर्य और छवि के प्रति सजगता और रुझान कोई पाश्चात्य सभ्यता की देन नहीं है. इतिहास गवाह है कि हमारे यहां हर युग में इन के प्रति लोगों का रुझान रहा है. हां, सौंदर्य के मापदंड जरूर अलगअलग रहे हैं और आज के युग में तो डाइट और व्यायाम शारीरिक सौंदर्य को बरकरार रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
अपने शारीरिक सौंदर्य को देखने के लिए आईने का प्रयोग सभी करते हैं, लेकिन आईने में स्वयं को देखने का सब का अपनाअपना नजरिया होता है. कई बार सुंदर लोगों में भी असुरक्षा की भावना जन्म ले लेती है. वे तनाव में रहते हैं कि कैसे अपने सौंदर्य की देखभाल करें? कहीं वे पहले से कम सुंदर तो नहीं हो गए? वगैरहवगैरह.
अलग अलग सोच
आईने में अपने प्रतिबिंब को ले कर हर आयु के लोग अलगअलग तरह से सोचते हैं. उस समय आईना एक दोस्त की तरह होता है, जिस में न जाने कितने अक्स उभरते हैं. तमाम सर्वे से यह तो तय है कि महिलाएं अपने प्रतिबिंब को ले कर ज्यादा आलोचनात्मक रवैया अपनाती हैं. मोटेतौर पर 10 में से 8 महिलाएं अपने रिफ्लैक्शन से असंतुष्ट ही रहती हैं.
पुरुष अपने आईने के प्रतिबिंब से या तो खुश ही रहते हैं या उस पर खास ध्यान नहीं देते. एक शोध के अनुसार पुरुष अपनी बौडी इमेज के प्रति महिलाओं की तुलना में ज्यादा पौजिटिव होते हैं. कुछ पुरुष आईना देखते समय अपने व्यक्तित्व में कमी की बात सोचते ही नहीं.
यहां एक उत्सुकता का प्रश्न यह है कि महिलाएं क्यों स्वयं को ले कर ऊहापोह के दौर से गुजरती हैं? शायद इसलिए क्योंकि महिलाएं अपने व्यक्तित्व से ज्यादा पहचानी जाती हैं और उन के सौंदर्य को नापने का पैमाना भी कुछ ज्यादा ही बड़ा है, क्योंकि उन्हें सुंदर चेहरे और आकर्षक फिगर के लिए शुरू से ही सचेत किया जाता है.