अकसर दो ढाई साल में होने वाले तबादलों के कारण सीमा इतने सारे शहरों प्रदेशों से गुजरी है कि हर बार कपड़ों को ले कर नई उलझन में पड़ जाती है कि क्या पहने और क्या नहीं? क्या आप के साथ भी ऐसा ही होता है? अगर महानगर में हैं तब तो आप बेहिचक जो चाहे पहन सकती हैं, मगर छोटे शहरों में यह देखना पड़ता है कि वहां का माहौल कैसा है. क्या अब भी घूंघट प्रथा चल रही है या महिलाओं का पल्ला सिर तक सीमित रह गया है? उसी माहौल के अनुसार अपने वार्डरोब को तैयार करना होता है वरना आप अपनेआप को सब के बीच सहज नहीं महसूस कर पातीं.
2004 में सीमा जब तबादला होने पर हरदोई, उत्तर प्रदेश पहुंची थी तब वहां सभी महिलाएं साड़ी पहने सिर ढके होती थीं व लड़कियां सूट पहनती थीं. बहुत कम किशोरियां जींस पहनती थीं और वह भी कभीकभी. आज इतने सालों में अब बहुत अंतर आ गया है.
अब वही महिलाएं लैगिंग्स और कुरतियां पहनने लगी हैं और लड़कियां जींसटौप. आज यही हाल अनूपपुर, मध्य प्रदेश का है. अब कोई हरदोई से फोन कर यहां के हालचाल पूछता है तो सीमा यही कहती है कि बिलकुल वैसा ही है जैसा 12 वर्ष पहले हरदोई था, तो पूछने वाला भी हंस पड़ता है.
क्या पहनें
यह तो सच है कि जैसा देश वैसा भेष. जब पूरे शहर में सभी महिलाएं साड़ी पहने रहती हैं, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप भी साड़ी के अलावा कुछ नहीं पहन सकतीं, बल्कि ऐसे में साड़ी के अतिरिक्त सलवारकमीज, चूड़ीदार, लैगिंग, पैरलर आदि पहनने में झिझक न करें. एकदूसरे को देख कर इस तरह के कपड़े पहनने का जल्द ही आसपास की महिलाओं का मन भी मचलने लगता है.
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