लॉकडाउन‌‌ की खामोशी के लम्हों में नेचर की गुनगुनाहट को ध्यान से सुनो... फिर फील करो कि -- लौकडाउन मुसीबत है या सेहत के लिए तोहफा.

घर में लोग परिवार के साथ समय बिता रहे हैं. हां,  कुछ लोग जरूर घर परिवार से दूर हैं. ऐसा भी लॉकडाउन की वजह से ही है. जो जहां था उसे वही ठहरना पड़ा .

भारत, इंडिया, हिंदुस्तान नाम से मशहूर हमारे देश के प्रधानमंत्री की 21 दिनों की लॉकडाउन कॉल पर देशवासी सरकार के साथ हैं. राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन ने कुछ शहरों में कर्फ्यू भी लगा दिया है.

लॉकडाउन के दौरान जिंदगी का एक हफ्ते का समय गुजर गया. चेहरों पर चिंताएं हैं . देश की सड़कों पर जिंदगी बसर करने वाला कहां जाए, रैनबसेरा हर शहर में नहीं. रेहड़ी पटरी वाले 21 दिनों तक कैसे गुजर करें, हर गरीब तक मदद नहीं पहुंच रही. जरूरी चीजों के अलावा दूसरे सामानों के छोटे दुकानदारों की स्थिति भी रोज कुआं खोदने जैसी है. निचले स्तर के कर्मचारी के पास पैसा नहीं, घर में राशन नहीं. मध्यवर्ग की आय के स्रोत बंद है. वेतनभोगी वेतन पर निर्भर हैं.

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दिल्ली में मेरे निवास के करीबी इलाकों कृष्णानगर, चंद्रनगर, खुरेजी, जगतपुरी में हर कैटेगरी के लोग रहते हैं. लोग व्यक्तिगत तौर पर तो कुछ कमेटियां और क्षेत्र के विधायक जरूरतमंदों को खाना राशन, दाल, सब्जी मुहैया कराने के साथ नकद रुपए भी दे रहे हैं. ऐसा इन इलाकों में ही नहीं, बल्कि पूरी दिल्ली में और देश की हर बस्ती के सभी इलाकों में हो रहा होगा.

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