गुजराती भाषा के नाटकों की बदौलत बौलीवुड में ‘आंखे’ और ‘‘ओह माई गौड’’ सहित कई बेहतरीन व अति उत्कृष्ट फिल्में आयी हैं, मगर सौम्या जोशी लिखित गुजराती भाषा के नाटक ‘‘102 नौट आउट’’ पर बनी फिल्म ‘‘102 नौट आउट’’ को उत्कृष्ट फिल्म नहीं कहा जा सकता.
मूर्खतापूर्ण हंसाने वाले दृश्यों के साथ रुलाने वाली इस फिल्म के बाक्स आफिस पर कमाल दिखाने की बहुत ज्यादा उम्मीद नजर नहीं आती है. जबकि तीन किरदारों वाली इस फिल्म में अमिताभ बच्चन व ऋषि कपूर जैसे महान कलाकारों के संग जिमित त्रिवेदी हैं.
फिल्म की कहानी मुंबई के एक गुजराती परिवार की है. यह कहानी है 102 वर्षीय दत्तात्रय वखारिया (अमिताभ बच्चन) और उनके 75 वर्षीय बेटे बाबूलाल वखारिया (ऋषि कपूर) की. इनके साथ एक दवा की दुकान पर काम करने वाला युवक धीरु (जिमित त्रिवेदी) भी जुड़ा हुआ है,जो कि हर दिन इन्हे दवा आदि देने आता रहता है. दत्तात्रय ने छह माह के लिए धीरु की विशेष सेवाएं ले रखी हैं.
फिल्म शुरू होती है सूत्रधार से, जो कि फिल्म के किरदारों का परिचय करवाता है. बाबूलाल वखारिया उर्फ बाबू 75 वर्ष के हैं और उन्होंने मान लिया है कि वह बूढे़ हो गए हैं. जिसके चलते बुढ़ापा उन पर झलकने लगा है. अब वह कंधा सीधा करके खडे़ भी नहीं होते हैं. दवाओं पर चल रहे हैं. हर दिन डाक्टर मेहता के पास अपना चेकअप कराने जाते हैं. बहुत कम बोलते हैं. गुपचुप रहते हैं. उनकी जिंदगी में खुशी का कोई नामोनिशान नहीं है. उन्हे लगता है कि वह बहुत जल्द सब कुछ भूल जाते हैं. इसलिए हर जगह उन्होंने लिख रखा है कि क्या करना है. मसलन – बाथरूम में लिखा है – गीजर बंद करें.’ पत्नी चंद्रिका की मौत हो चुकी है. अब बाबू इस उम्मीद में जी रहे हैं कि 21 वर्ष से विदेश में बसा, वहीं शादी कर चुका उनका बेटा अमोल एक न एक दिन अपनी पत्नी व बच्चों को लेकर उनके पास आएगा.
बाबूलाल वखारिया को अपने पोते पोती का चेहरा देखने की हसरत है. इसी हसरत के चलते वह अपने नालायक बेटे अमोल की हर बात को भुला चुके हैं. वह यह भी याद नहीं करना चाहते कि उनकी पत्नी चंद्रिका पूरे 28 दिन तक बीमार रहीं और बेटे अमोल को याद करती रही,पर अमोल छुट्टी न मिलने की बात कर भारत नहीं आया.
अपने बेटे बाबूलाल वखारिया की इस आदत व स्वभाव से दत्तात्रय परेशान हैं. वह 102 की उम्र में छब्बीस वर्ष के युवक की तरह जिंदगी जीते हैं और वह चाहते हैं कि उनका बेटा बाबू लाल भी अपने नालायक बेटे को भुलाकर अपनी जिंदगी जिए. दतात्रय हमेशा खुश रहते हैं,फन करते रहते हैं. एक दिन दत्तात्रय को अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा सच पता चलता है, तब वह एक बूढ़े चीनी का कटआउट लेकर घर पहुंचते है और बताते हैं कि यह चीनी 114 वर्ष तक जिंदा रहा, तो अब दत्तात्रय इसका रिकार्ड तोड़ेंगे.
उसके बाद वह बाबूलाल को बदलने के लिए एक एक कर छह शर्त रखते हैं. शर्त न मानने पर उसे वृद्धाश्रम भेजने की धमकी देते हैं. अब यह छह शर्ते क्या हैं और बाबू लाल में बदलाव आता है या नहीं, इसके लिए फिल्म देखनी पड़ेगी.
फिल्म गुजराती नाटक पर आधारित है. और इंटरवल से पहले फिल्म जिस ढंग से आगे बढ़ती है, उसे देखते हुए दर्शक यही सोचता रहता है कि नाटक को फिल्म में बदलने की क्या जरुरत थी. इंटरवल से पहले फिल्म प्रभावित नहीं करती है. इंटरवल तक फिल्म मूर्खतापूर्ण हास्य चुटकलों के अलावा कुछ नहीं है. मगर इंटरवल के बाद फिल्म सही मायनों में न सिर्फ गति पकड़ती है, बल्कि अति संवेदनशील व भावुकता वाली फिल्म बन जाती है, जो कि हर इंसान को सिखाती है कि महज संपत्ति के लिए मां बाप से रिश्ता रखने वाले बच्चों को घर से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए.
इतना ही नहीं फिल्म में एक खूबसूरत संवाद है-‘‘औलाद नालायक निकले, तो उसे भूल जाना चाहिए. सिर्फ उसका बचपन याद रखना चाहिए.’’ फिल्म की कमजोर कड़ी है बेतुके दृश्यों से भरी पटकथा. फिल्म में एक सीन है, जहां दत्तात्रय अपने बेटे बाबू को हर दिन डाक्टर से मिलने पर रोक लगाने के लिए डाक्टर पर 250 रूपए से भरा बटुआ चुराने का आरोप लगाने की सलाह देता है. यह पटकथा लेखक के खाली दिमाग का परिचायक है. इसी तरह कई जगह पटकथा लेखक की कमजोरी उजागर होती है.
फिल्मकार उमेश शुक्ला यह साबित करने के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं कि तीन पुरुष पात्रों के साथ, बिना हीरोईन के भी बेहतर फिल्म बन सकती है. इंटरवल से पहले तो निर्देशक के तौर पर वह काफी निराश करते हैं, मगर इंटरवल के बाद वह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाने में कामयाब होते हैं. फिल्म में पिता पुत्र के बीच के आत्मीय व भावुक संबंध बड़ी खूबसूरती के साथ उकेरे गए हैं.
जहां तक अभिनय का सवाल है तो अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर दोनों ही अभिनय के महारथी हैं. अमिताभ बच्चन अपने अभिनय से भावनाओं का ऐसा सैलाब उकेरते हैं कि दर्शक हंसने के साथ साथ रोता भी है. मगर उनकी सभी धारणात्मक अति उत्साही प्रकृति एक सीमा के बाद असहनीय हो जाती हैं. इतना ही नहीं अमिताभ बच्चन इस फिल्म में खुद को बार बार दोहराते हुए नजर आए हैं. उन्हे देख दर्शकों को अमिताभ बच्चन की कुछ पुरानी फिल्मों की याद आती रहती है.
बाबूलाल के किरदार को निभाने में ऋषि कपूर को कड़ी मेहनत करने की जरुरत नहीं पड़ी. वह बिना संवादों के, महज अपने चेहरे के भाव से बहुत कुछ कह जाते हैं. अमिताभ बच्चन व ऋषि कपूर बड़ी सहजता से पिता पुत्र के किरदारों में लोगों के दिलों में समा जाते हैं. इन दो महान कलाकारों के साथ ही धीरू का किरदार निभाने वाले अभिनेता जिमित त्रिवेदी ने ठीक ठाक अभिनय किया है. फिल्म में यह तीसरा किरदार भी काफी अहम है, क्योंकि पिता पुत्र के किरदार और उनके बीच हो रही बातचीत को अंतःदृष्टि देने का काम तो धीरू ही करता है, पर जिमित त्रिवेदी घर की बैठक में नाटक करते हुए लगते हैं.
फिल्म में पुराने लोकप्रिय गीतों की कुछ पंक्तियों को नजरंदाज कर दें, तो फिल्म का गीत संगीत साधारण है. कैमरामैन लक्ष्मण उटेकर ने प्रशंसा बटोरने वाला काम किया है.
एक घंटा 42 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘102 नौट आउट’’ का निर्माण ट्रीटौप इंटरटेनमेंट, बेंचमार्क पिक्चर्स, सोनी पिक्चर्स इंटरटेनमेंट फिल्मस ने मिलकर किया है. फिल्म के निर्देशक उमेश शुक्ला, लेखक सौम्या जोशी, पटकथा लेखक विकास पाटिल, कैमरामैन लक्ष्मण उटेकर, संगीतकार सलीम सुलेमान और पार्श्व संगीतकार जौर्ज जोसेफ तथा फिल्म के कलाकार हैं – अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, जिमित त्रिवेदी, धर्मेंद्र गोहिल व अन्य.
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