90 के दशक में हिट एक्शन फिल्मों, जिसमें खासकर ‘खिलाडी श्रृंखला’ के लिए फेमस एक्टर अक्षय कुमार आज नंबर वन के हीरो हैं. उनका शुरूआती लाइफ में स्ट्रगल था,लेकिन फिल्म ‘खिलाडी’ ने उनकी जिंदगी बदल दी और वे एक के बाद एक कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते गए. वे एक अनुशासन पसंद एक्टर हैं और इसके लिए वे इंडस्ट्री में अपनी एक अलग छवि रखते है. वे हमेशा अलग और अट्रेक्टिव कैरेक्टर निभाना पसंद करते है और इसमें साथ देती है उनकी वाइफ और एक्ट्रेस ट्विंकल खन्ना. अक्षय कुमार की फिल्म एंटरटेनमेंट के साथ खास मैसेज भी औडियंस को देती है, जिससे वे खुश होते है. यही वजह है कि उन्होंने टौयलेट एक प्रेम कथा और पैडमैन जैसी फिल्में बनायी. उनकी फिल्म ‘मिशन मंगल’ रिलीज पर है, पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.
सवाल- आजकल आप मेसेज देने वाली फिल्मों में काम कर रहे है, इसे चुनना कितना मुश्किल होता है और इसमें कुछ गलती न हो, इसका ध्यान कैसे रखते है?
ये सही है कि आजकल मैं अलग तरीके की फिल्मों में काम करना पसंद कर रहा हूं और इस दौरान मैंने गलती से कई बार कुछ अच्छी फिल्मों को रिजेक्ट भी किया है. सोच के साथ लक का होना बहुत जरुरी है. ‘टौयलेट एक प्रेम कथा’ मेरे पास आने से पहले 4 साल तक इधर-उधर घूमती रही. किसी को समझ में नहीं आया,लेकिन मुझे समझ में फिल्म आयी और मैंने कर डाली. इसी तरह पैडमैन, एयरलिफ्ट, रुस्तम आदि भी ऐसी ही फिल्में है. ये फिल्म भी बिल्कुल अलग है. मैंने पहली बार फॉक्स स्टार स्टूडियोज के साथ मिलकर अन्तरिक्ष पर ड्रामा और कॉमेडी फिल्म बनायी है.
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सवाल- अंतरिक्ष के बारें में जब भी बात की जाती है,पुरुषों का नाम आता है, लेकिन आपने इस फिल्म में महिला वैज्ञानिकों की भूमिका को अंतरिक्ष के क्षेत्र में दिखाने की कोशिश की है, क्या ये फिल्म महिलाओं को प्रेरित करेगी? क्या वाकई महिला वैज्ञानिकों की भूमिका रिसर्च में है?आपकी सोच क्या है?
बचपन से हम सभी ने देखा है कि कुछ माता-पिता अपनी बेटी को इंजीनियर बनने से मना कर देते है. उनका कहना होता था कि ये सब लडको का काम है. वैज्ञानिक बनना भी लड़कियों के लिए नहीं होता. उन्हें डौक्टर, नर्स या टीचर बनने की सलाह दी जाती रही है. इसके अलावा हमारे टेक्स्ट बुक में कही भी किसी महिला वैज्ञानिक की कहानी पढ़ने को नहीं मिलता. अब समय काफी बदला है और भी बदलने की जरुरत है. इस फिल्म की कहानी में मैं बताना चाहता हूं कि इस तरह के भेदभाव को तोडना बहुत जरुरी है, क्योंकि अंतरिक्ष में जाति, धर्म या लिंग कोई माईने नहीं रखती. मुझे इस बात से बहुत चिढ़ होती है, जब कोई वुमन ओरिएंटेड फिल्म कहता है, क्योंकि जब पुरुष और महिला समान है, तो इसे सिर्फ एक फिल्म ही कही जानी चाहिए.
सवाल- इस फिल्म को करना आपके लिए कितना मुश्किल था? क्या आप किसी वैज्ञानिक से मिले है?
ये एक चुनौतीपूर्ण फिल्म है और इसे जितना भी अच्छा बना सकता हूं, मैंने बनाया है. असल में इस फिल्म को मैंने बच्चों के लिए बनायी है, ताकि आज के माता-पिता अधिक से अधिक अपने बच्चे को वैज्ञानिक बनाने के बारें में सोचे, क्योंकि देश को आगे बढ़ने में रिसर्च का होना बहुत जरुरी है. चन्द्रयान 2 के प्रक्षेपण के बाद अब लोग इस बारें में सोच रहे है. एक वैज्ञानिक बनना वाकई सबसे अच्छा प्रोफेशन है. मैं दो वैज्ञानिकों से मिला हूं. मुझे ये कहते हुए खुशी हो रही है कि भारत के वैज्ञानिक काफी प्रतिभावान है और नासा में भी कई भारतीय वैज्ञानिक काम कर रहे है.
सवाल- आप स्कूल में विज्ञान में कितना रूचि रखते थे? क्या आपने कभी कोई एक्सपेरिमेंट किया है?
मैं विज्ञान से अधिक अंकगणित में रूचि रखता था. मैंने बचपन में एक एक्सपेरिमेंट किया था. मेरे पिता ने एक ट्रांस्जिस्टर 175 रुपये का लाकर मुझे दिया था. मुझे बहुत पसंद था, लेकिन एक दिन मैंने उसका चुम्बक निकालकर उसे लोहे की कबर्ड पर जोर से दे मारा. मेरे लिए वह एक बड़ा एक्सपेरिमेंट था. उस दिन मेरे पिता ने मुझे बहुत डांट लगायी थी, क्योंकि मैंने उस ट्रांजिस्टर को तोड़ दिया था.
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सवाल- आपकी जिंदगी में माता-पिता ने बहुत गहरा प्रभाव डाला है, उनकी वजह से आप अनुशासित जीवन व्यतीत करते है, आपके जीवन में माँ के साथ बिताया कोई पल, जिसे आप मिस करते है?
मेरे माता –पिता ने हमेशा मुझे एक अच्छी जिंदगी दी है. मैं हमेशा उसे याद रखता हूं और मैं कभी उन्हें मिस नहीं करता, क्योंकि मैं महसूस करता हूं कि वे हमेशा मेरे हर काम में साथ रहते है. मेरे फ़ोन पर भी उनकी ही तस्वीर है.
सवाल- आपने अभी काफी वजन घटाया है, क्या इसका कोई गलत प्रभाव हेल्थ पर नहीं पड़ता?
फिल्म ‘सूर्यवंशी’ और ‘बच्चन पांडे’ के लिए मुझे 5 से 6 किलो वजन घटाया है, लेकिन मैं प्राकृतिक तरीके से अपना वजन घटाता हूं, डाइट नहीं करता. इसमें वर्कआउट थोडा बढ़ा देता हूं. अभी भी पराठे खाता हूं.
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