‘‘थ्री इडियट्स’’ में कैमियो करने के बाद ‘फुकरे, ‘फुकरे रिर्टन, ‘हैप्पी भाग जाएगी’, ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ सहित कई फिल्मों और वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ में अभिनय कर शोहरत बटोर चुके अभिनेता अली फजल इन दिनों तिग्मांशु धूलिया निर्देशित फिल्म ‘‘मिलन टौकिज’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि 15 मार्च को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.
फिल्म ‘‘मिलन टौकीज’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?
मैंने इस फिल्म में इलहाबाद में रह रहे एक उभरते हुए फिल्म निर्देशक का किरदार निभाया है. जिसकी तमन्ना मुंबई जाकर बौलीवुड में बहुत बड़ा फिल्म निर्देशक बनने की है.
तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन में ‘‘मिलन टौकीज’’ करने के अनुभव क्या रहे?
काफी कुछ सीखने को मिला. वह जीनियस हैं. उनके पास कहानियों का जखीरा है. उनका दिमाग बहुत तेज गति से चलता है. वह किसी सिस्टम मे बंधकर काम करने में यकीन नहीं करते. वह तो सेट पर भी स्क्रिप्ट पढ़कर उसके संवाद बदल देते थे. वह स्पाटेनिटी के साथ काम करने में यकीन करते हैं और वह चाहते हैं कि उनका कलाकार भी सेट पर स्पाटेनियस हो. वह ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्हें पहले से प्रिडिक्ट करना मुश्किल है. मुझे उनकी इस खूबी ने काफी कुछ सिखा दिया.
आप फिल्मों के साथ साथ डिजिटल प्लेटफार्म पर भी कार्यरत हैं?
जी हां! मैं हर प्लेटफार्म पर काम करन चाहता हूं. मेरे लिए कंटेंट और पटकथा मायने रखती है. पटकथा पढ़ते समय यदि कहानी मुझे उत्साहित करती है, तो मैं उसे करने के लिए हामी भर देता हूं. सिनेमा के बदलते हुए दौर में फिल्मकार दुविधा में नेजर आ रहे हैं. मेरी हर फिल्म को दर्शक और फिल्म आलोचकों द्वारा सराहा जाता है, मगर इससे फिल्मकारों की सोच नही बदल रही है. मेरी फिल्मों को मिल रही सफलता के बावजूद मेरे पास उतने बेहतरीन किरदार व फिल्म के आफर नही आ रहे हैं, जितने आने चाहिए. पर मैं खुश किस्मत हूं कि मुझे ‘मिर्जापुर’ जैसी वेब सीरीज में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने के अवसर मिल रहे हैं. वेब सीरीज विश्व स्तर पर उन दर्शकों तक पहुंच रही है, जिन तक फिल्में भी नहीं पहुंच पा रही हैं. वेब सीरीज में मुझे जिस तरह की लोकप्रियता मिल रही है, उससे फिल्मकार मेरे संबंध में सोचने पर मजबूर हो रहे हैं.
आपकी बढ़ी हुई इस लोकप्रियता की वजह आपकी अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ है या वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ है?
मुझे लगता है कि काफी कुछ वेब सीरीज ‘मिर्जापुर’ का योगदान है. क्योंकि इस वेब सीरीज में गुड्डू के किरदार से मेरी ईमेज बदली है. शायद मैं निर्माता होता, तो गुड्डू के किरदार के लिए अली फजल को न लेता. अब तक अली फजल यानी कि मेरी ईमेज बहुत अलग रही है. अली फजल एक डिसेंट, गउ किस्म का साधारण कलाकार है. जिन लोगों ने फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ देखी है, उन्होंने भी अब्दुल के किरदार में अली फजल को एकदम अलग रूप में देखा है. ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ विश्व स्तर पर, यूरोप व इंग्लैड में बहुत बड़ी सफल व चर्चित फिल्म है, पर भारत में इस फिल्म को सही ढंग से लोगों तक नहीं पहुंचाया गया. तो भारतीय दर्शक ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ से उतना परिचित नही हैं, जिन लोगो ने देखी, उन्हें यह फिल्म और मेरा काम पसंद आया. मगर ‘मिर्जापुर’ में लोगों को मेरा एक नया रूप नजर आया. हम कलाकारों का काम ही है, हर तरह के किरदार को निभाना.
जब आपको वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ का आफर मिला था, तो आपके दिमाग में सबसे पहले क्या आया था?
हकीकत यह है कि जब रितेश सिद्धवानी ने मुझे इस सीरीज के लिए बुलाया था, तो मैंने फिल्मों में व्यस्तता का बहाना करके इसे करने से मना कर दिया था. उस वक्त मुझे विलेन मुन्ना का किरदार आफर किया गया था. मेरी समझ में तो गुड्डू का ही किरदार आया था, पर कुछ समय बाद मुझसे गुड्डू के किरदार के लिए संपर्क किया गया, तो मेरे लिए यह एक नई चुनौती थी, मैंने स्वीकार किया. आज खुश हूं कि इससे मुझे एक नई पहचान मिली. रितेश सिद्धवानी ने मुझ पर यकीन किया.
क्या आपने ‘‘मिर्जापुर’’ में गुड्डू का किरदार निभाते हुए ईमेज बदलने का जो रिस्क लिया था, उस पर विचार किया था?
मैंने लाभ हानि के बारे में नहीं सोचा था, पर मुझे पता था कि मैं एक रिस्क उठा रहा हूं. कलाकार के तौर पर मैं सदैव रिस्क उठाना चाहता हूं. मेरे लिए रिस्क यह था कि यह वेब सीरीज है और पूरे चार पांच महिने इसके लिए गए. यानी कि लगातार दो फिल्मों की शूटिंग करना. फिर रोज एक ही तरह के किरदार को लंबे समय तक निभाना, इससे मुझे बोरियत भी होने लगती है. एक मुकाम पर थकावट भी होती है. क्योंकि हमें तो फिल्मों की आदत है. पर पूरी वेब सीरीज की शूटिंग खत्म होने के बाद जिस तरह से रिस्पांस मिला, उससे खुशी हुई. लेकिन बीच में लगा था कि मेरे करियर की गति धीमी हो गयी है.
यदि ‘‘मिर्जापुर’’ वेब सीरीज की बजाय फीचर फिल्म होती, तो?
यह इस बात पर निर्भर करता कि फिल्म कितने बड़े दर्शक वर्ग तक पहुंची. यह वेब सरीज 16 नवंबर 2018 को एक साथ सत्तर देशों में रिलीज हुई. मैं अभी दो तीन देशों में गया, तो वहां के लोग मुझे ‘मिर्जापुर’ के गुड्डू के नाम से पहचान रहे थे.
विदेशों में लोगों ने ‘मिर्जापुर’ इसलिए भी देखा होगा, क्योंकि वह इससे पहले ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ देखकर आपकी प्रतिभा का अहसास कर चुके थे?
आपने एकदम सही कहा..ऐसा भी हो सकता है. विदेशों में ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ मेरी सबसे बड़ी पहचान है. इंग्लैंड, अमरीका व यूरोप में यह फिल्म ही मेरी असली पहचान है. लेकिन ‘मिर्जापुर’ देखकर सभी को लगा कि उन्होंने अली फजल के अभिनय का एक नया पक्ष देखा लिया.
भारत में ‘‘मिर्जापुर’’ को किस तरह का रिस्पांस मिला?
‘‘मिर्जापुर’’ देखकर पूरा उत्तर भारत पगला गया है. दक्षिण से भी अच्छा रिस्पांस मिला. पर पहले मैं दिल्ली व लखनउ में आराम से बाहर घूमता था. पर अब नहीं घूम पाया. यदि आपकी एक फिल्म बहुत बड़ी हिट हो जाए, तो जो हालात होते हैं, वैसे हालात ‘मिर्जापुर’ के बाद हो गए हैं. लोगों ने ‘मिर्जापुर’ को अपने एंड्रायड मोबाइल फोन या लैपटौप आदि पर भी देखा है. हर जगह अब भीड़ मुझे घेर लेती है. दो बड़ी सफल फिल्में करने के बाद मुझे जो मुकाम मिलता, उस तक इस एक वेब सीरीज ने पहुंचा दिया. यह एक रोचक अनुभव रहा.
पर क्या वेब सीरीज ‘‘मिर्जापुर’’ के हर दृश्य को मोबाइल पर देखकर इंज्वाय किया जा सकता है?
संभव ही नही है. इसे कम से कम टीवी पर या बड़ी स्क्रीन पर देखें, तो ही ज्यादा मजा आएगा. इस दृष्टिकोण से मैं आपसे सहमत हूं कि यदि ‘‘मिर्जापुर’’ फिल्म के रूप में बनती और थिएटर में बड़े स्तर पर रिलीज होती, तो ज्यादा जबरदस्त रिस्पांस मिलता. मगर फिल्म बनाने पर सेंसर बोर्ड के कुछ निर्देषों का पालन करना पड़ता, तो फिर जिस बेल्ट की कहानी है, उस बेल्ट के माहौल को तथ्यपरक ढंग से हम फिल्म में न पेश कर पाते. मिर्जापुर इलाके में लोग आम जीवन जीते हुए गाली देते हैं. वह किसी को गाली गाली देने के लिए नहीं, बल्कि दोस्ती व प्यार में देते हैं. यह सब फिल्म में न दिखा पाते.
वेब सीरीज के चलते कुछ फिल्में अमेजन व नेटफ्लिक्स पर भी जा रही हैं?
जी हां!! मौलिक कंटेंट के रूप में कुछ फिल्में अब डिजिटल प्लेटफार्म पर जा रही हैं. जो फिल्मकार बजट की कमी के चलते मार्केटिंग व फिल्म के रिलीज पर लगने वाला पैसा खर्च नहीं कर पाते हैं, उनके लिए अब नेटफ्लिक्स, अमेजन या ‘जी फाइव’जैसे डिजिटल प्लेटफार्म एक नई आशा की किरण बनकर आए हैं. मैं खुद भी एक दो ओरिजनल कंटेंट वाली फिल्में डिजिटल प्लेटफार्म के लिए करने वाला हूं.
इससे फिल्म के निर्माता का नुकसान नहीं हो पाता. मगर कलाकार के तौर पर ..?
थोड़ा सा अफसोस लगता है कि हमने तो यह सोचकर इस फिल्म के लिए मेहनत की थी कि थिएटर पर रिलीज होगी, पर यह तो डिजिटल प्लेटफार्म पर चली गयी. मगर ‘जी 5’, ‘अमेजन’और ‘नेटफिल्क्स’ की पहुंच काफी अलग है. तो हम दर्शक नहीं खोते हैं, पर थिएटर में फिल्म रिलीज का जो अनुभव होता है, वह नही मिलता. हां! शुरू शुरू में डिजिटल पर फिल्म के रिलीज से कलाकार को फायदा नहीं मिलता.
आपकी फिल्म ‘‘तड़का’’ का क्या हो रहा है?
प्रकाश राज निर्देशित फिल्म ‘‘तड़का’’ 2018 में रिलीज होने वाली थी, मगर शायद अभी यह फिल्म कानूनी पचड़े में फंसी हुई है.
‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ से आपको जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत मिली, उसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई दूसरी फिल्म कर रहे हैं?
काफी फायदा हुआ. मैं दो इंटरनेशनल फिल्में करने वाला हूं, जिनकी शूटिंग बहुत जल्द शुरू होगी. इसमें से एक बायोपिक फिल्म है, जिसमें मैं किसी अन्य देश के नागरिक का किरदार निभा रहा हूं. यह कहानी 2003 के इराक युद्ध पर होगी. अभी इन फिल्मों को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दे सकता. इसके अलावा मैं औस्कर की ज्यूरी का सदस्य भी बन चुका हूं.
कल औस्कर अवार्ड खत्म हुए. मैं इस अवार्ड को देख रहा था, क्योंकि ज्यूरी मेंबर होने की वजह से पहली बार मैंने वोट दिया है. मुझे बहुत खुशी हुई कि इस वर्ष पहली बार भारतीय फिल्म को भी पुरस्कार मिला. यह पुरस्कार गुनीत मोंगा ने ‘‘पीरियड्सः आफ एंड सेंटेंस’’ के लिए जीता है. वह भी इसी वर्ष मेंबर बनी. पहली बार किसी भारतीय फिल्म निर्माता को औस्कर अवार्ड मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि है. मैं बहुत खुश हूं. क्योंकि ग्लोबल स्तर पर हम जो कुछ कर रहे हैं, उसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं. मैं अपनी तरफ से भारतीय सिनेमा को विश्व स्तर पर उंचा उठाने के लिए जो कुछ कर सकता हूं, वह कर रहा हूं. मेरे साथ ही कई दूसरे भारतीय कलाकार भी ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं.
आज की तारीख में भारतीय सिनेमा का कंटेंट ग्लोबल हो गया है और लोग इसे देख भी रहे हैं. डिजिटल प्लेटफार्म पर पूरे विश्व के हर देश में ‘मिर्जापुर’ के साथ ही हौलीवुड शो भी देखे जा रहे हैं.
औस्कर की ज्यूरी में 2018 में भारतीय सिनेमा की कई हस्तियों को शामिल किया गया. इस बदलाव की वजह?
भारतीय सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ ही औस्कर में भी अब डायवर्सीफिकेशन हो रहा है. अब भारतीय सिनेमा छोटा नही रहा. अब भारतीय कलाकार इंटरनेशनल सिनेमा में अपना वर्चस्व बढ़ा रहे हैं, तो इसका भी असर पड़ रहा है. अकादमी में आने के बाद समझ में आया कि सिनेमा की अर्काइविंग बहुत जरुरी है. हमारे सिनेमा का कोई अर्काइव ही नही है. सिर्फ ‘पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट’ में ही यह सुविधा है.
मैं और मेरे दोस्त डेविड इस दिशा में एक बहुत बड़ा कदम उठा रहे हैं. वह अमरीका के एले से हैं. हम दोनों ने अपनी कंपनी बनायी है और हम आयकौनिक फिल्मों के प्रिंट इकट्ठा कर उन्हें सुरक्षित करने का काम कर रहे हैं. यह काफी खर्चीला है. क्योंकि फिल्म के प्रिंट को एक खास तापमान में रखने पर ही उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है. तो हम ऐसा काम कर रहे हैं. फिलहाल हम इन फिल्मों के नाम नहीं बता सकते.
आप व आपके मित्र डेविड फिल्मों के प्रिंट सुरक्षित रखने की इस शुरुआत को किस तरह आगे ले जाने की योजना बनायी है?
आप जानते होंगे कि जब सत्यजीत रे को औनररी औस्कर अवार्ड मिला था? तो औस्कर वालों के पास सत्यजीत रे की एक भी फिल्म दिखाने के लिए नहीं थी. तब डेविड पार्कर ने रित्विक घटक व सत्यजीत रे की फिल्मों को सुरक्षित रखने का प्रयास किया था. फिलहाल हमने जो कदम उठाया है, उसके लिए हम धन जुटाने का प्रयास कर रहे हैं.
औस्कर यानी कि अकादमी अवार्ड में अब तक अमरीकन ही हावी रहते थे. पुरस्कार भी अमरीकी फिल्मों को ही ज्यादा मिलता था?
बदलाव आया है. हमारी फिल्म ‘‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’’ तो इंग्लैंड की थी, जिसे पिछले वर्ष कास्ट्यूम एंड मेकअप कैटेगरी में नोमीनेट किया गया था. मुझे इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का रशियन अवार्ड मिला था. हौलीवुड सिनेमा तो अमरीका का ही है. अब हालीवुड सिनेमा भारत आकर बौलीवुड में अवार्ड तो नही ले सकता था. ऐसा ही कुछ औस्कर में हो रहा था. पर इस बार औस्कर में ‘नेटफ्लिक्स’ की फौरेन फिल्म ‘‘रोमा’’ ने सिर्फ फौरेन फिल्म कैटेगरी में नहीं, बल्कि जनरल कैटेगरी में हर क्षेत्र में नोमीनेट हुई और कड़ी टक्कर दी. यह नई बात हुई. इसका मतलब हुआ कि अब औस्कर पूरे विश्व के सिनेमा को पहचानने लगा है.