1971 के भारत पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने भारतीय युद्ध विमान ‘आई एनएस विराट’ को जलसमाधि देने की पूरी योजना बना ली थी, लेकिन एक भारतीय महिला जासूस द्वारा पाकिस्तान से भेजे गए संदेश की वजह से भारतीय सेना न सिर्फ अपने विमान ‘आईएनएस विराट’ को बचाने में सफल हुई थी, बल्कि पाकिस्तान पर विजय हासिल करने में भी कामयाब हुई थी. उसी महिला जासूस के जीवन पर हरिंदर सिंह सिक्का ने एक किताब ‘कौलिंग सहमत’ लिखी है, उसी किताब पर आधारित फिल्म ‘‘राजी’’ ग्यारह मई को सिनेमाघरों में पहुंचने वाली है.

‘जंगली पिक्चर्स’ और ‘धर्मा प्रोडक्शंस’ द्वारा निर्मित इस फिल्म का निर्देशन मेघना गुलजार ने किया है. जबकि फिल्म में सहमत खान की मुख्य भूमिका आलिया भट्ट ने निभायी है. सहमत खान कौलेज में पढ़ने वाली कश्मीरी लड़की, फिर पत्नी व भारतीय जासूस है. आलिया भट्ट के लिए सहमत का किरदार निभाना चुनौतीपूर्ण रहा.

आलिया भट्ट से हुई ‘एक्सक्लूसिव’ बातचीत इस प्रकार रही.

आप यथार्थपरक सिनेमा ही ज्यादा कर रही हैं. क्या इसकी वजह आपके ऊपर पड़ा आपके पिता का प्रभाव है?

भावनात्मक स्तर पर मेरे पिता का मुझ पर प्रभाव रहा है. उन्होंने हमेशा साहसिक विषयों पर फिल्में बनायी. घर पर सिनेमा की चर्चाएं हुआ करती थी. इनसे मेरी समझ यह विकसित हुई कि चुनौतपूर्ण सिनेमा से ही कलात्मक व रचनात्मक संतुष्टि मिलती है. पर मैं हमेशा अपनी पसंद का ही सिनेमा कर रही हूं. मैंने ‘उड़ता पंजाब’ की, तो मैंने ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ भी की. मैंने ‘राजी’ की तो वहीं मै ‘सुपर नेच्युरल पावर वाली फिल्म ‘ब्रम्हास्त्र’ भी की है. अब एक और पीरियड फिल्म ‘‘कलंक’’ कर रही हूं. मेरी कोशिश सदैव विविधतापूर्ण किरदारों को परदे पर जीवंत करने की रहती है.

लेकिन आप वास्तविक यानी कि यथार्थपरक किरदादों को ही प्राथमिकता दे रही हैं?

मैं उन्हे किरदार समझकर परदे पर साकार करती हूं. हर फिल्म हकीकत का विस्तार होती है. कई बार यह विस्तार इतना खूबसूरत व यथार्थ परक हो जाता है कि हम खुद आश्चर्यचकित रह जाते हैं. फिल्म ‘राजी’ के घटनाक्रम वास्तव में घटित हुए थे. हमने तो उन्हे पुनः गढ़ने का प्रयास किया है. फिल्म ‘गली ब्वाय’ मे रणवीर सिंह का किरदार भी असली घटनाक्रम से प्रेरित है. मगर ‘ब्रम्हास्त्र’ में तो लार्जर देन लाइफ वाली बात है.

Alia Bhatt interview on Raazi

फिल्म ‘‘राजी’’ को लेकर क्या कहेंगी?

यह देशप्रेम की बात करने वाली फिल्म है. इस फिल्म में एक संवाद है-‘‘वतन के आगे कुछ नहीं.’’ फिल्म एक सत्य कथा है. जिसमें मैने सहमत खान नामक एक मुस्लिम किरदार निभाया है. यह फिल्म पूर्व नेवी आफिसर हरिंदर सिंह सिक्का की किताब ‘‘कौलिंग सहमत’’ पर आधारित है. मगर हरिंदर सिंह सिक्का ने ही बताया कि उन्होंने अपनी किताब में एक सत्य कथा व घटनाक्रम को पेश करते समय लड़की की असली पहचान को छिपाते हुए उसे काल्पनिक नाम सहमत दिया है. इसके पीछे उनकी मंशा यह रही है कि सहमत के परिवार के लोगों के साथ अब कोई घटना न घटे. इस फिल्म को करने का मुझ पर दबाव था. क्योंकि यह पूर्णरूपेण सच्ची कथा पर आधारित है. पहली बार मैंने किसी सच्ची कहानी के रीयल किरदार को अपने अभिनय से परदे पर संवारा है. इसमें कई तरह के इमोशंस हैं. फिल्म देखते समय लोगों को अहसास होगा कि वह अपने आस पास के किसी जीवित किरदार को ही देख रहे हैं.

क्या आपने हरिंदर सिक्का की किताब ‘कौलिंग सहमत’ पढ़ी है. क्या लेखक से मुलाकात हुई है?

नहीं! हरिंदर सिक्का की किताब को इसे प्रकाशित होते ही बाजार से हटा दिया गया था. मगर मैं लेखक हरिंदर सिंह सिक्का से मिली हूं. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने यह किताब लिखी थी, उस वक्त उनसे कई फिल्मकारों ने उनकी किताब पर फिल्म बनाने के लिए संपर्क किया था. पर तब वह नर्वस हो गए थे. कश्मीरी लड़की सहमत की यह कहानी उनके दिल के काफी करीब है. जब उन्हे पता चला कि मैं सहमत का किरदार निभा रही हूं, तो वह बहुत खुश हुए और मुझसे मिले. मुझे अपना आशीर्वाद दिया. हरिंदर सिंह सिक्का ने मुझे अपनी यह किताब उपहार में दी.

हरिंदर सिंह सिक्का ने आपसे सहमत के बारे में काफी बातें की होंगी?

जी हां! हमारी मुलाकात चंद पलों की नहीं रही. काफी लंबी मुलाकात रही और इस फिल्म के निर्माण में हमें उनका काफी सहयोग मिला. हमें समझ में आया कि वह इस विषय को लेकर काफी संजीदा हैं. सहमत काफी यंग व साधारण लड़की है. वह अपने देश के लिए जासूसी करती है, पर इसका यह मतलब नहीं है कि उसकी नारी सुलभ नाजुकता खत्म हो गयी है. वह हमेशा नाजुक नारी ही है. मेघना भी चाहती थी कि इस किरदार को नारी सुलभ नाजुकता को कायम रखते हुए परदे पर चित्रित किया जाए.

फिल्म ‘‘राजी’’ के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगी?

1971 के भारत पाक युद्ध के समय की यह कहानी है. मैंने इसमें सहमत नामक कश्मीरी लड़की का किरदार निभाया है, जो कि एकदम सीधी सादी कालेज में पढ़ने वाली लड़की है. जिसे जासूस बनने की प्रेरणा अपने पिता हिदायत खान (रजित कपूर) से मिली. वैसे उसके पिता हिदायत खान कश्मीर के बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं और उनमें वतन प्रेम कूटकूट कर भरा है और यही शिक्षा वह अपनी बेटी को भी देते हैं. सहमत की मां तेजी (सोनी राजदान) उससे बहुत प्यार करती हैं. सहमत खान के पिता उसकी परवरिश काफी सोच समझकर करते हैं.

इतना ही नहीं सहमत खान को ‘रॉ’ की तरफ से औफिसर खालिद मीर (जयदीप अहलावत) ट्रेनिंग भी देते हैं. उसके बाद हिदायत खान अपनी बेटी सहमत को इस बात के लिए राजी करते हैं कि वह भारत के लिए पाकिस्तान की जासूसी करने के मकसद से एक पाकिस्तानी आर्मी के ब्रिगेडियर सयद (शिशिर शर्मा) के बेटे व पाकिस्तानी आर्मी में कैप्टन इकबाल (विक्की कौशल) से शादी करे. सहमत शादी करके पाकिस्तान चली जाती है. वह वहां भारत की आंख व कान बनकर जाती है. सहमत कसम खाती है कि वह अपने वतन हिंदुस्तान के लिए सब कुछ कुर्बान करने को तैयार है. यहां तक कि अपनी जान भी दे देगी. वह अपने रिश्तों और अपने वतन के फर्ज के बीच फंसी हुई है. उसे अपने ही पति की जासूसी करनी है.

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सहमत के किरदार को निभाने के लिए किस तरह की तैयारियां की?

1971 में गुप्त संदेश भेजने की पद्धति ‘मोर्स कोड’ थी, उसे सीखा. मैंने जेनरिक कोड को ट्रांसमीट करना सीखा. यदि मैं ‘मोर्स कोड़’ याद न करती, तो भी काम चल सकता था, क्योंकि दर्शकों की समझ में नहीं आएगा कि मैं क्या कर रही हूं, पर फिर दृश्य में बनावटीपन लगता, जबकि मेघना गुलजार जी व मैं, सब कुछ यथार्थ परक करना चाहते थे. फिर मुझे बहुत बड़ा ट्रक ‘जोंगा’ चलाना था, जिसे आर्मी के लोग चलाते हैं. यह मेरे लिए आसान नहीं था. मैंने औटोमैटिक कार चलायी है. पर ट्रक नहीं. तो मुझे ‘जोंगा’ चलाने की एक माह तक ट्रेनिंग लेनी पड़ी. बंदूक चलाना सीखा. फिल्म में मेरा डर भी दिखेगा. सहमत को बंदूक चलाने का शौक नहीं है. बंदूक चलाते समय मेरा हाथ भी कटा.

सहमत को दोहरा व्यक्तित्व जीना पड़ता है. पति के सामने कुछ और पेशे से जासूस..ऐसे में आप क्या मैथड अपनाती थीं?

आपने एकदम सही पकड़ा. यही बात मैं बार बार मेघना से पूछती थी कि वह पति के सामने क्या करेगी? मान लीजिए सहमत को कोई जानकारी  पति व पूरे परिवार के सामने मिलती है तो वह कैसे प्रतिक्रिया देगी, कि उसे जानकारी मिल गयी. सभी लोग सामने हैं, तो सहमत रिएक्ट नहीं कर सकती. पर दर्शकों को तो देखना है. मैंने फिल्म में रिएक्ट किया है. तो जैसे आलिया भट्ट ने सहमत का किरदार निभाया है, उसी तरह सहमत पत्नी का किरदार निभाती है. सहमत भी अभिनय कर रही है. मेरे लिए सहमत का किरदार निभाना बहुत कठिन रहा. मुझे उस वक्त मजा आया जब वह जासूसी कर रही होती है. मोर्स कोड़ में बात कर रही होती है.

फिल्म के अपने लुक को लेकर क्या कहेंगी?

मैंने इसमें बुरखा भी पहना है. बुरखा पहनने के बाद बुरखा पहनने वाली औरतों के प्रति मेरा सम्मान बढ़ गया. मैंने डिग्लैमरस किरदार भी निभाया है. कम से कम मेकअप किया है.

फिल्म ‘‘राजी’’ आज की पीढ़ी को क्या संदेश देगी?

मुझे नहीं पता. पर एक समझदारी आएगी. लोगों को कुर्बानी का संदेश तो जरुर मिलेगा. वतन परस्ती/देशभक्ति का संदेश मिलेगा. वर्तमान में हम सभी बहुत ही ज्यादा स्वार्थी और अपने आप तक सीमित होकर रह गए हैं. मैं कुछ दिन पहले एक लेख पढ़ रही थी. जिसमें एक लड़की कह रही थी कि मुझे प्यार में नहीं पड़ना है. मैं किसी को प्यार क्यों दूं? मेरी समझ में यह बात नहीं आयी. मेरी नजर में दूसरों को प्यार देना सबसे ज्यादा खूबसूरत चीज है. मेरी बातें सुनकर कई बार लोग कहते हैं कि, ‘तुम बूढ़ी हो गयी हो, जो इतनी बातें करती हो. पर हकीकत यह है कि मैं अपने पिता से बहुत बात करती हूं. मेरे पिता काफी स्प्रिच्युअल व फिलोसाफिकल इंसान हैं. तो उनसे मुझे काफी कुछ सीखने व समझने का अवसर मिलता है. उनसे पता चलता है कि हम किस तरह की जिंदगी जी रहे हैं.

कश्मीर में आप तीसरी बार शूटिंग करने गयीं. क्या अनुभव रहे?

जी हां! मैंने ‘स्टूडेंट औफ द ईयर’,  ‘हाईवे’ व ‘राजी’ सहित तीन फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में की है. तीनों बार मेरे अनुभव बहुत अच्छे रहे. पर इस बार मुझे तकलीफ हुई कि पिछली बार के विवाद के चलते पर्यटकों ने कश्मीर जाना बंद कर दिया है. लोग मानते हैं कि कश्मीर सुरक्षित जगह नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि कश्मीर सुरक्षित जगह है. इस बार मैंने कश्मीर में श्रीनगर, पहलगाम सहित कई जगहों पर शूटिंग की. मैंने लोगों से बात की. मैने डल झील में शिकारा चलाया. कश्मीर तो जन्नत जैसा है. मैंने तो हर किसी को ‘कश्मीर ट्यूरिजम’ के विज्ञापन का एक छोटा सा वीडियो भी भेजा था. सोशल मीडिया पर भी डाला. कश्मीर के लोग अपकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं. वह अपना दिल, दिमाग सब कुछ देते हैं.

पर कश्मीर के हालातों को लेकर जो खबरें आती रहती हैं?

यह सियासत व मीडिया का खेल है. अब इसके पीछे उनकी मंशा क्या है, मैं नहीं समझ सकती. किसका क्या टारगेट है, क्या मकसद है. क्या फायदा है. पर मैं दावा करती हूं कि वहां का माहौल बहुत सही है. फिर जब मौत आनी है, तो कहीं भी, किसी भी रूप में आ सकती है. हमने कश्मीर को बहुत गलत ढंग से पेश किया है. पर इससे कश्मीर का ट्यूरिजम घटा है, जिससे उनकी कमाई घटी है.

फिल्म ‘‘राजी’’ करने से पहले क्या आपने अपने पिता महेश भट्ट से सलाह ली थी?

नहीं..मगर फिल्म ‘‘राजी’’ के फाइनल एडिट में मेरे पिता का बहुत बड़ा हाथ है. उनका बहुत बड़ा योगदान है. मेरे पिता ने फिल्म का ‘रफ कट’ देखकर मेघना को बहुत सारे सजेशन दिए और मेघना ने मेरे पिता के सारे सजेशन मान लिए. वह मेरे पिता को बहुत मानती हैं. मेघना ने मेरे पिता की हर बात को बड़े ध्यान से सुना और मेरे पिता ने जो बदलाव कहे, वह सारे बदलाव भी किए. यानी कि फिल्म ‘‘राजी’’ मेघना का ही विजन नहीं है, बल्कि मेरे पिता का भी विजन, एक नजरिया है. मेरे पिता इस फिल्म के साथ वह बहुत ज्यादा जुडे़ रहे हैं.

आप डायरी लिखा करती थीं.क्या नया लिखा है?

पिछले अक्टूबर माह के बाद कुछ नहीं लिखा. अब मेडीटेशन करती हूं. मेडीटेशन से मुझे काफी फायदा मिल रह है. मेडीटेशन की वजह से समझने, संभलने व एनर्जी को संकलित करने में काफी मदद मिलती है. सोशल मीडिया के युग में हम मोबाइल फोन के एडिक्ट हो चुके हैं, तो मेडीटेशन की बहुत जरुरत पड़ती है.

पर आप तो सोशल मीडिया तथा  मोबाइल फोन पर ज्यादा बात करने के खिलाफ रही हैं. फिर आपको इसकी लत कैसे पड़ गयी?

मैं सोशल मीडिया के खिलाफ नहीं हूं. पर सोशल मीडिया के चक्कर में लोग एक दूसरे से व्यक्तिगत बातचीत व संपर्क करना छोड़ रहे हैं, मैं इस बात के खिलाफ हूं. पता चला कि हम दो लोग अगल बगल बैठे हैं, पर दोनों अपने अपने मोबाइल फोन पर व्यस्त हैं. आपस में हम कोई बात ही नहीं कर रहे, यह गलत है. तो फिर जिंदगी का मकसद क्या है? मैंने  अपने पिता पर भी मोबाइल फोन को लेकर पाबंदी लगाई है, उनके पास एक नहीं तीन तीन मोबाइल फोन हैं. तीनों पर वह चैट करते रहते हैं. जैसा बाप वैसी बेटी. अब मेरे डैड जब मेरे घर आते हैं, तो अपने मोबाइल फोन अपने घर पर छोड़कर आते हैं.

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