बाल कलाकार, हिरोइन, खलनायिका और चरित्र अभिनेत्री के रूप में फिल्म इंडस्ट्री पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाली अरुणा ईरानी की शख्सियत अनूठी है. उन्होंने साल 1961 में फिल्म ‘गंगा जमुना’ में बाल कलाकार के रूप में अभिनय शुरू किया था. उस समय वह केवल 9 साल की थी. उन्होंने बचपन से कला का माहौल देखा है, क्योंकि उनके पिता की भी एक थिएटर कंपनी थी, जिसमें वे थिएटर करते थे.

स्वभाव से विनम्र और हंसमुख अरुणा ने कई बड़े-बड़े अभिनेताओं के साथ अलग-अलग भूमिका निभाई, पर उनकी और महमूद की जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया. उनके जीवन की सबसे सफल फिल्म ‘कारवां’ थी, जिसमें उन्होंने एक तेज- तर्रार बंजारन की भूमिका निभाई थी. अरुणा ईरानी केवल फिल्मों में ही नहीं, टीवी पर भी एक सफल आर्टिस्ट रही हैं. इन दिनों वे स्टार प्लस की धारावाहिक ‘दिल तो हैप्पी है जी’ में दादी की भूमिका निभा रही हैं. उनसे मिलकर बातचीत हुई, पेश है अंश.

इस शो को साईन करने की खास वजह क्या है?

यह एक पंजाबी शो है और मुझे हिंदी पंजाबी बोलना है. जिसमें सिर्फ लहजा पंजाबी का होगा. ये मुझे मजेदार और अलग लगा. इसका शीर्षक ही मुझे बहुत अच्छा लगा था.

टीवी में कितना बदलाव आप देखती हैं?

टीवी में बहुत बदलाव आ गया है. मेकिंग बहुत बदल चुकी है. फिल्मों के स्तर पर अब टीवी धारावाहिक बन रहे हैं, जो अच्छी बात है.

आज की धारावाहिकें अधिकतर अंधविश्वास पर बन रही है, इसे आप कितना सही मानती हैं?

ये सही है कि जो बिकता है उसे ही लोग बनाते है, क्योंकि हर कोई यहां व्यवसाय कर रहा है. ऐसे में उन्हें ऐसा करना पड़ता है. वे अगर कुछ अलग बनाते हैं, तो उसमें रिस्क रहता है. मैं टीवी कम देखती हूं. मुझे शेयर मर्केट में अधिक रूचि है और समय मिलने पर उसमें ही व्यस्त हो जाती हूं. प्रोडक्शन हाउस बंद करने के बाद से ये शौक लगा है. घर पर भी इसे लेकर काफी बवाल मचता है, पर मुझे यही काम पसंद है.

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