18 मई को शाम के तकरीबन 5 बजे वर्षा तोमर (इंटरनैशनल मैडलिस्ट शूटर) का व्हाट्सअप कौल जब मेरे पास आया तो मुझे लगा कि वे मऊ से वापस फरीदाबाद आ गई हैं और हालचाल जानने के लिए बात करना चाहती हैं. लेकिन आपसी बातचीत में उन्होंने बताया कि अहमद बिलाल ने उन पर एक शौर्ट डौक्यूमैंट्री मूवी 'बागपत के बागी' बनाई है जिस की एक स्पैशल स्क्रीनिंग उन के घर पर रविवार, 19 मई को रात 9 बजे होगी. उन्होंने मुझे भी परिवार के साथ आमंत्रित किया.
रविवार को तय समय से पहले मैं उन के घर पहुंच गया. उन की हाउसिंग सोसाइटी के कम्युनिटी हाल में फिल्म दिखाने का पूरा इंतजाम किया गया था. उन के बहुत से दोस्त, रिश्तेदार और पड़ोसी भी वहां जमा थे. कुलमिला कर एक उत्सव का सा माहौल था.
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प्रोजैक्टर लगा, अंधेरा हुआ और 'बागपत के बागी' अपनी बगावत पर उतर आए. तकरीबन आधा घंटे की इस शॉर्ट मूवी में दिखाया गया था कि उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के गांव जोहड़ी में खोली गई एक निजी शूटिंग रेंज में किस तरह बच्चों को शूटिंग यानी निशानेबाजी की ट्रेनिंग दी जाती है. इतना ही नहीं, कैसे वहां की लड़कियों ने समाज और परिवार के उलाहनों की परवाह किए बिना वहां इस खेल को सीखा और देशविदेश में अपना नाम कमाया.
इस शौर्ट मूवी की 2 अहम पात्र थीं, वर्षा प्रताप तोमर और डॉली जाटव. वर्षा तोमर ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि जब वे इस खेल से जुड़ी थीं तब किस तरह उन की जानपहचान के लोग ही ताने देदे कर उन की राह में रोड़े अटकाते थे कि लड़की हो कर लड़कों के खेल में जाएगी, बाहर लड़कों में रह कर बिगड़ जाएगी, पिस्तौल चला कर कौन सा तीर मार लेगी. और भी न जाने क्याक्या...