दिल्ली में पली बढ़ी ऋचा ने जहां एक तरफ ‘तमंचे’, ‘कैबरेट’ जैसी कमर्शियल फिल्में की हैं तो वहीं दूसरी तरफ ‘मसान’, ‘सरबजीत’ जैसी जीवंत अभिनय वाली फिल्म कर अपने अभिनय की छाप छोड़ी है. ऋचा को एक किरदार में बंधना पसंद नहीं है.
वे कहती हैं, ‘मसान’, ‘सरबजीत’ जैसी फिल्मों में मेरे काम की बहुत तारीफ हुई, लेकिन ऐसे ही रोल मैं दोबारा नहीं करना चाहती, क्योंकि मुझे वैराइटी पसंद है, फिर चाहे वह लाइफ में हो या एक्टिंग में. मेरे बारे में कोई यह धारणा बना ले कि मैं अब ऐसे ही रोल करूंगी तो मैं उसे आउटडेटेड मानसिकता वाला कहूंगी.
मैं यंग हूं और हर तरह के प्रयोग में विश्वास रखती हूं. मैं किरदार को वैल्यू देती हूं बैनर और बजट को नहीं.’’ ऋचा का यह भी कहना है, ‘‘अगर मैं भी किसी स्टार फैमिली से होती तो यहां तक पहुंचने के लिए इतने पापड़ नहीं बेलने पड़ते. हमारे यहां तो स्टार किड्स के डेब्यू करने से पहले ही मीडिया उसे स्टार बना देता है. इन लोगों को हमेशा काम मिलता है, लेकिन सफल नहीं होते. हम जैसे कलाकारों को सक्सैस तो मिलती है, लेकिन हमेशा स्ट्रगल करना पड़ता है.’’ कोई कलाकार कम नहीं.
आइटम नंबर और सैक्सी आइटम जैसे शब्दों पर आपत्ति जताते हुए ऋचा कहती हैं, ‘‘ये शब्द मीडिया द्वारा गढ़े गए हैं. कंगना, ऐश्वर्या के बारे में भी पहले यही कहा जाता था कि ये सब ग्लैमर के बल पर इंडस्ट्री में टिकी हुई हैं. लेकिन जब उन्हें अच्छी कहानियों और अच्छे निर्देशकों की फिल्मों में खुल कर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला तो उन्होंने बता दिया कि वे भी किसी से कम नहीं हैं.
मेरा मानना है कि अगर स्पेस मिले तो कोई भी कलाकार कम नहीं है. किसी को खूबसूरत या बदसूरत घोषित करने का अधिकार किसी को नहीं है.’’ जब आलोचकों ने की तारीफ ऋचा बताती हैं, ‘‘जब अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स औफ वासेपुर 2’ में मुझे 34 की उम्र के नवाजुद्दीन की मां बनना था तब मैं बहुत प्रैशर में थी, क्योंकि मैं उस समय 23 साल की थी और मुझे 45 साल की महिला का किरदार निभाना था. उस समय मैं ने अपने आप को गांव की अनपढ़ महिला जैसा दिखाना शुरू कर दिया. मेरी मां बिहार की हैं, इसलिए भाषा की कोई समस्या नहीं हुई. जब नगमा खातून का रोल किया तो सब को बहुत पसंद आया. जो अब तक मेरी आलोचना करते थे उन्होंने भी मेरी तारीफ की.
VIDEO : कलर स्प्लैश नेल आर्ट
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