टीवी के रियालिटी शो का हिस्सा बनने के बाद संगीत जगत में कई प्रतिभाएं अच्छा काम कर रही हैं. उन्ही में से एक हैं- भूमि त्रिवेदी. भूमि त्रिवेदी फिल्म ‘‘रामलीलाः गोलियों की रासलीला’’ का गीत ‘‘राम चाहे लीला’’ व ‘‘रईस’’ का गीत ‘‘उड़ी उड़ी जाए..’’ सहित कई हिट गीत गा चुकी है. इन दिनों वह रिमिक्स गीत ‘‘बिन तेरे सनम’’ को लेकर चर्चा में हैं. कई वर्ष पहले फिल्म ‘‘यारा दिलदारा’’ के इस गीत को कविता कृष्णमूर्ति और उदित नारायण ने गाया था. अब उसी के रीमेक गीत को भूमि त्रिवेदी व बिलाल ने गाया है. भूमि त्रिवेदी सिर्फ गायक नहीं बल्कि गीतकार भी हैं. संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘रामलीलाः गोलियों की रास लीला’ के गीत में अपने हिस्से के गीत को उन्होंने खुद लिखा था.

प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के खास अंश..

आप अपनी अब तक की संगीत यात्रा को लेकर कुछ कहना चाहेंगी?

मैं 2010 से मुबई में हूं. 2010 में मैं टीवी के रियालिटी शो इंडियल आयडल की रनरअप थी. वैसे तो मैंने सबसे पहले 2005 में इंडियन आयडल के लिए आडीशन दिया था. लेकिन कुछ घरेलू समस्याओं के चलते उस वक्त इंडियन आयडल का हिस्सा नहीं बन पायी थी. पर 2005 से 2010 तक मैंने काफी संघर्ष किया. 2010 में इंडियन आयडल के समय में मुझे बहुत कुछ सीखने व समझने का मौका मिला.

आपको पहली बार कब इस बात का अहसास हुआ कि आपको संगीत के क्षेत्र में ही करियर बनाना चाहिए?

-देखिए, मेरी परवरिश संगीत के माहौल में हुई है. मेरी मम्मी मशहूर फोक गायिका हैं. उनका अपना एक बैंड भी है. मेरे पिता रेलवे में नौकरी करने के साथ संगीत के शौकीन हैं. मैंने ढाई साल की उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था. लेकिन मेरी परवरिश अनुशासित परिवार में हुई है. इसलिए हमें पढ़ाई पर ध्यान देना पड़ा. शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण होती है, तो पढ़ाई के साथ साथ मैं संगीत की भी शिक्षा लेती रही. मैंने स्कूल व कालेज में कई संगीत की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया.

आपके माता पिता ने किस तरह की शिक्षा दी?

उन्होंने तो जिंदगी जीना सिखाया. उन्होंने हमें सिखाया कि जिंदगी में कई तरह के लोगों से सामना होगा, तो उनसे कैसे निपटा जाए. मेरे माता पिता ने मुझे सिखाया कि हर समस्या का मुकाबला करो, मेहनत करो, विजय जरूर मिलेगी. उन्होंने हमें सिखाया कि हार कभी नहीं माननी चाहिए.

आप अपना गुरू किसे मानती हैं?

देखिए, मेरे पहले गुरू तो मेरे माता पिता हैं. जिंदगी में जो सिच्युएशन आती है, उनको भी मैं अपना गुरू मानती हूं, क्योंकि यह सिच्युएशन भी बहुत कुछ सिखाती है, इसके अलावा बौलीवुड में तमाम दिग्गज गायक व संगीतकार हैं, जिनके काम को देखकर सीखती रहती हूं. जब भी मैं किसी से मिलती हूं, तो उससे मैं कुछ न कुछ सीखती जरूर हूं.

क्या आपके सपनों के साथ आपके माता पिता का भी कोई सपना जुड़ा हुआ है?

मेरे माता पिता स्वयं परोक्ष या अपरोक्ष रूप से संगीत से जुड़े हुए हैं. पर उन्होंने अपने किसी सपने को मेरे उपर लादा नहीं है. जिस तरह एक पौधे को पानी से सींच कर बड़ा किया जाता है, उसी तरह उन्होंने भी हमें अच्छे संस्कारों से सींचते हुए बड़ा किया है. उन्होंने हमसे कभी कोई उम्मीद नहीं रखी. पर अब हमारी बारी है कि हम खुद आगे बढ़कर उन्होंने जो कुछ भी हमें दिया, उसके बदले में हम उन्हें दे सकें. जब भी हमारा कोई गाना हिट होता है, तो उन्हें बहुत खुशी होती है.

आपने पहली बार 2012 में फिल्म प्रेम मई के लिए बहने दे..गीत गाकर पार्श्वगायन किया था. पिछले 6 वर्षो में आपने सिर्फ 5 फिल्मों के लिए ही पार्श्वगायन किया. इतना कम काम क्यों?

इसका सही जवाब तो मेरे पास भी नही है. सच यह है कि मैं काफी चूजी हूं. हमारे पास जिन गीतों को गाने का आफर आता है, उन्ही में से चुनकर गीत गाने का प्रयास करती हूं. मेरे पास बहुत कम आफर आए. जबकि मैंने जितनी फिल्मों के लिए गाया, वह फिल्में व मेरे द्वारा स्वर बद्ध गीत सुपर हिट हुए. मैं गीत बटोरने के पीछे भागती भी नहीं हूं. क्योंकि मैं संख्या गिनाने की बजाय गुणवत्ता का काम करती हूं. मैंने तो संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘रामलीला’’ में ‘राम चाहे लीला..’ व  राहुल ढोलकिया की फिल्म ‘‘रईस’’ में ‘उड़ी उड़ी जाए..’ जैसे सुपर हिट गाने गाए हैं. मैं लोगों को गिनाने तो नही बैठूंगी, पर मेरे गाए गीतों को हमेशा पसंद किया गया.

एक गाना हिट होने पर गायक के पास अचानक तमाम गीतों को गाने के आफरों की कतार लग जाती है. पर आपके साथ ऐसा क्यों नहीं हुआ?

इसका जवाब तो मेरे पास भी नही है. शायद यह सब मेरी तकदीर का खेल है. यहां हर कोई अपना नसीब लेकर आता है, पर साथ में मेहनत भी होती है. माना कि मैं बहुत अच्छा गाती हूं, मगर जिस संगीतकार को मुझसे गवाना है, उसे भी तो मेरी आवाज पसंद आनी चाहिए. एक इंसान को मेरी आवाज बहुत पसंद है, इसके यह मायने नहीं कि सभी को पसंद है. एक फिल्म के सफल होने पर उस फिल्म के कलाकार को बहुत से लोग पसंद करते हैं, पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि उन्हें नहीं पसंद करते. मैं तो सिर्फ यही मानती हूं कि हर काम अच्छा होना चाहिए. मुझे जो गीत गाने का मौका मिले, उसे मैं बेहतर तरीके से गाउं और लोगों को पसंद आए. देखिए, यहां महज लोगों को दिखाने के लिए बहुत से लोग काम करते है. यहां दिखावा करने वालों की कमी नहीं है. पर मुझे दिखावा पसंद ही नही है. मैं चाहती हूं कि मेरा काम लोगों के सिर चढ़कर बोले. मैंने अब तक जितने भी गाने गाए, उनकी धुन, उनकी लय, उनका सुर अलग है.

आपके पापा को अब तक आपका गाया हुआ कौन सा गीत सबसे ज्यादा पसंद आया?

मेरे डैडी को मेरे द्वारा स्वरबद्ध सभी गाने पसंद आए, क्योंकि वह इस बात को भी समझते हैं कि बौलीवुड में कितना संघर्ष और कितनी मेहनत लगती है. पर वह मेरी कमियों की तरफ इशारा कर उसे सुधारने की सलाह देते हैं. मैं उस गलती को सुधारती भी हूं. जब बाद में किसी शो में मुझे वही गीत गाना पड़ता है, तो मैं गलती को सुधार कर गाती हूं. मेरे डैडी को यह नया गीत ‘तेरे बिन सनम..’ बहुत पसंद आया. उन्होंने मेरी तारीफ की ही, साथ में सह गायक बिलाल को भी फोन करके बधाई दी. उसकी तारीफ की. उन्हें वाइस टेक्स्चर काफी पसंद आया.

गीत ‘‘बिन तेरे सनम’’तो रीमिक्स गाना है?

यह गाना है ‘बिन तेरे सनम..’ जो कि, एक पुराने क्लासिक/आयकानिक गीत का रीमेक है. कई वर्ष पहले फिल्म ‘‘यारा दिलदारा’’ के इस गीत को कविता कृष्णमूर्ति और उदित नारायण ने गाया था. अब उसी के रीमेक गीत को मैने व बिलाल ने गाया है. यह गाना मेरे दिल के काफी करीब है.

इस गीत के रीमेक को अपनी आवाज देने का निर्णय क्यों किया?

‘तेरे बिन सनम’ गीत का रीमेक बनाने का निर्णय तो वीनस संगीत कंपनी के चंपक जैन जी का है. इस पुराने गाने की चार लाइनें रखने के बाद बाकी गाने की लाइनें बदली गयी हैं. पुराने गीत का सिर्फ मुखड़ा लिया गया है, बाकी गीत नए सिरे से लिखा गया है. इसके पीछे हम सभी का मकसद पुराने आयकानिक गीत को नए अंदाज में नई पीढ़ी तक पहुंचाना है.

आपने पहली बार इस गाने को कब सुना था?

मैं तो बचपन से ही इस गाने को सुनती व गुनगुनाती आयी हूं. जब मैं 3-4 साल की थी, तब मैंने पहली बार इस गाने को सुना था. मुझे बहुत अच्छा लगा था. मौलिक संगीतकार और गायकों ने जिस तरह से इस गाने को बनाया था, वह कमाल का है. अब हमने इसका रीमेक करते समय पूरी कोशिश की है कि इसका सुर न बदले, लोगों को वही अनुभूति मिले. यह मेरा पसंदीदा गाना है. इसलिए मैं अपने आपको खुशनसीब मानती हूं कि मुझे यह गीत गाने का मौका मिला.

क्या आप किसी ऐसी सिच्युएशन के बारे में बताएंगी, जिसने आपकी पूरी जिंदगी बदल दी हो?

-कोई एक सिच्युएशन नहीं, बल्कि हर सिच्युएशन, हर पल, हर उपलब्धि ने मेरी जिंदगी को बदला है. जब मैं ‘इंडियन आयडल’ से जुड़ी, तब भी मेरी जिंदगी बदली. 2013 में जब मुझे संजय लीला भंसाली ने फिल्म ‘रामलीला’ में पार्श्वगायन का मौका दिया, तब भी मेरी जिंदगी बदली. जब मुझे ‘उड़ी उड़ी जाए..’ गाना मिला, तब भी मेरी जिंदगी बदली. हर गाना मेरी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट रहा.

आप गीतकार भी हैं?

छोटी उम्र से लिखती आ रही हूं. मैंने फिल्म ‘रामलीला’ का जो गीत अपनी आवाज में गाया था, उस गीत कि लाइनें मैंने खुद लिखी और उसे लिखने में मुझे 4 5 दिन का समय लगा था. यदि मैं अकेली हूं और अपने विचारों में खोयी हुई हूं, तो एक घंटे में भी कुछ भी लिख सकती हूं. पर निर्देशक या संगीतकार कोई सिच्युएशन दें, तो उस पर गीत लिखने में मुझे 4-5 दिन का समय लगता है. मुझे लिखना पसंद है. जबकि मैं पूर्णकालि गायक नही हूं. अब तक मैंने 12 गाने लिखे हैं. मैंने गुजराती फिल्मों के लिए भी लिखा व गाया है. कुछ गाने ऐसे हैं, जिनके धुनें गवाकर मैं उसे गाना भी चाहूंगी.

आपने पहली बार कब लिखा था?

जब मैं 11 वी कक्षा में पढ़ रही थी. तब मैने पहली बार कविता लिखी थी. वह मेरी कविता संगीत पर थी. उस वक्त मैंने जो संगीत पर कविता लिखी थी, उसकी हर एक लाइन मेरे जीवन पर ज्यों का त्यों उतर रही है.

जब आप अपने दिमाग में आए विचारों पर लिखती हैं, तो फिर उसका फिल्म के गाने से संबंध कैसे जुड़ पाता है?

अब तक मैंने जो 3-4 गीत फिल्म के लिए लिखे हैं, वह सिच्युएशन दिए जाने पर लिखे थे. पर मैंने जो रोमाटिक गाने लिखे थे, उनमें से तीन गाने फिल्म में फिट बैठ गए, रोमांटिक गाना तो हर फिल्म में होता ही होता है. जब कोई संगीतकार मुझसे कहता है कि उसे इस फिल्म के लिए कोई रोमांटिक गाना चाहिए, तो अपने पास के लिखे गानों में से एक गाना सुना देती हूं, उन्हें पसंद आ जाता है.

जो गाना आप खुद लिखती हैं, उसे गाना ज्यादा आसान होता है?

जी हां!! गुजराती फिल्मों में मेरे लिखे चार गाने ऐसे आए हैं, जिनमे एक भी शब्द बदला नहीं गया. मैंने गुजराती की एक सस्पेंस थ्रिलर फिल्म के लिए भी गीत लिखा था. जो गाना मैं लिखती हूं, उसका एहसास जी चुकी होती हूं, इसलिए उसे गाना आसान हो जाता है.

मैंने गुजराती फिल्मों के लिए चार गाने लिखे व गाए हैं, जिन्हें काफी पसंद किया गया. अभी भी मैंने बीस गाने गुजराती में लिखकर रखे हैं.

आगे चलकर संगीतकार बनने की योजना है?

देखिए, संगीत की धुन बनाना आसान हैं, पर उसे कंपोज करना लाइन में आना आसान नही है. उसे सीखना पड़ेगा. मैं संगीत रचना को बहुत गंभीरता से लेती हूं और मुझे पता है कि यह मुझे नहीं आता. तो मैं दूसरों से करवाना चाहूंगी. मुझे पता है कि यहां पर कुछ लोग संगीतकार के रूप में गाने में भी अपना नाम दे रहे हैं, जबकि वह उस गीत की संगीत रचना किसी अन्य संगीतकार से कराते हैं, पर उसका नाम नहीं लेते हैं. इस तरह से वह दूसरों के काम को अपना नाम दे देते हैं. मैं ऐसा कभी भी नही करूंगी. क्योंकि यह तो चोरी वाला काम हो गया. यह एक तरह से प्रतिभा का शोषण है. शोषण किसी का भी किसी भी स्तर पर हो, गलत बात है. मुझे अपना शोषण करवाना या किसी प्रतिभा का शोषण करना, दोनों पसंद नहीं है. आप चाहे जितना काम कर लें, पर लोग मुर्ख नहीं हैं. लोग समझ जाते हैं कि आप संगीतकार नहीं है, आपने दूसरे से अपना काम करवा कर अपना नाम दिया हैं.

पर यह संघर्ष की दुनिया है. तमाम प्रतिभाशाली लोग संघर्ष कर रहे हैं. सही मौका ना मिलने तक मजबूरन अपनी जिदंगी के आर्थिक संकट से उभरने के लिए वह अपने काम को पैसा लेकर दूसरों का नाम दे देते हैं. पर यह ऐसी प्रतिभाओं के साथ अन्याय है. इस तरह से हम प्रतिभाशाली गीतकारों व संगीतकारों को आगे बढ़ने का मौका देने की बजाय उनके साथ अन्याय कर रहे हैं, पर मैं ऐसा काम कभी नही करूंगी मेरे दो गानों के बीच पाच साल का गैप हो जाए, मंजूर है, पर जो भी करूंगी, अपने बल पर करूंगी अच्छा करूंगी.

देखिए, अपनी प्रोफाइल में गाना जुड़वाना बहुत आसान है. मैं देखती रहती हूं, कई गायक गा रहे हैं, उनका गाना फिल्म में होता भी है, पर फिल्म आती है, वह गाना आता है, चला जाता है, पर किसी को पता नहीं चलता है. तो इस तरह का काम करने के बजाए मैं गुणवत्ता वाला काम करूंगी.

किस तरह की चीजें पढ़ना पसंद करती है?

स्कूल व कालेज के दिनों में तो मैं बहुत पढ़ती थी, पर अब मुझसे पढ़ना हो नहीं पाता है. कई बार ऐसा होता है कि एअरपोर्ट पर किसी किताब पर मेरी नजर पड़ती है, मैं उसे खरीद लेती हूं. पर पांच दस पन्ने पढ़ने के बाद उसे बंद करके रख देती हूं. लेकिन यदि वही किताब कोई मुझे पढ़कर सुनाए तो मुझे सुनना पसंद है. पढ़ते हुए मुझे नींद आती है. लोगों को यकीन नहीं होगा, पर सच यह हैं कि कालेज की परीक्षा मैंने अपनी सहेलियों से सवाल जवाब सुनकर याद करके दिया था, किताबें नहीं पढ़ी थी.

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