बचपन से अभिनय की इच्छा रखने वाली अभिनेत्री जोया हुसैन दिल्ली के मुस्लिम परिवार की हैं. उनके पिता एडवेंचर ट्रेवल एजेंसी चलाते हैं, जबकि उनकी मां पहले चाइल्ड साइकोलोजिस्ट थीं और अब वह हैदराबादी फूड की कैटरिंग करती हैं. जोया को हमेशा अपने परिवार से मन पसंद काम करने की आजादी मिली है. वह अभिनेत्री के अलावा एक स्पोर्ट पर्सन भी हैं. उन्हें खाना बनाना और लोगों को खिलाना बहुत पसंद है. खिचड़ी खाना उन्हें बहुत पसंद है.

जोया फैशनेबल एकदम नहीं है, उन्हें साधारण और आरामदायक कपड़े बहुत पसंद है. स्वभाव से नम्र और हंसमुख जोया अभी फिल्म ‘मुक्काबाज’ में मुख्य भूमिका निभा रही हैं उनसे मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.

प्र. आप इस क्षेत्र में कैसे आईं? प्रेरणा कैसे मिली?

मैंने बचपन से थिएटर किया है और मेरे माता-पिता मुझे और मेरी बहन को बचपन से ही पढाई से अलग कुछ हौबी जैसे पेंटिंग, स्पोर्ट, वाद्ययंत्र बजाना आदि करने की सलाह देते थे. उसमें मैंने धातु की बांसुरी बजाना सीखा था. एक फेस्टिवल के दौरान दिल्ली में मेरी बांसुरी चोरी हो गयी, ये महंगी होने की वजह से पिता ने फिर से नहीं खरीदा और मैं नाटकों की ओर मुड़ी. 17 साल की उम्र में यात्री थिएटर ग्रुप को ज्वाइन किया. उनके साथ 4 से 5 साल तक काम किया.

थिएटर की एक अलग लाइफ होती है जहां आप अभिनय तो कर सकते हो, पर उससे अपनी जीविका नहीं चला सकते. ऐसे में कौलेज खत्म होते ही मुंबई आने की इच्छा पैदा हुई, क्योंकि यहां मैं अभिनय से जुड़ सकती हूं. मैं मेरी कर्जिन के साथ साल 2012 में यहां आई. मुझे इंडस्ट्री में घुसना था, लेकिन मैं यहां किसी को जानती नहीं थी. दिल्ली में जो मेरी पहचान नाटकों के माध्यम से थी, उसी का सहारा लेकर सबसे मिलती रही. दो साल तक यही चलता रहा. औडिशन देती रही. इस दौरान मैंने एक शोर्ट फिल्म ‘तीन और आधा’ में अभिनय किया, जिसे अनुराग कश्यप ने ही प्रोड्यूस किया था. इससे मेरी जानकारी उनके साथ हुई और उन्होंने मिलकर कुछ काम करने की इच्छा जाहिर की. कुछ सालों बाद उन्होंने फिल्म ‘मुक्काबाज’ की स्क्रिप्ट भेजी, मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि वे मुझे अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं. मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी तो पसंद आया और मैंने हां कर दिया.

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