मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री डायना पेंटी ने फिल्म ‘कौकटेल’ से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा. हालांकि विज्ञापनों से उन्होंने काफी नाम कमाया और कई ब्रांड की ब्रांड अम्बेसेडर भी रहीं, लेकिन फिल्मों में काम करना भी उनका शौक था. उनकी पहली फिल्म ‘कौकटेल’ थी, जिसमें उन्होंने अभिनेता सैफ अली खान के साथ अभिनय किया और आलोचकों की तारीफे बटोरी. उन्हें कई पुरस्कार भी मिले. इसके बाद उनकी फिल्म ‘हैप्पी भाग जाएगी’ और ‘लखनऊ सेंट्रल’ को भी लोगों ने काफी पसंद किया.
छरहरी काया की धनी डायना स्वभाव से हंसमुख हैं और हर बात का जवाब हंसकर ही देती हैं. वह कभी तनाव नहीं लेती और जो मिला उसी में खुश रहने की कोशिश करती हैं. अभी उनकी फिल्म ‘परमाणु’ रिलीज पर है, उनसे बात हुई, पेश है कुछ अंश.
इस फिल्म को लेकर आप कितनी खुश हैं?
मैं बहुत खुश हूं, लेकिन इसे रिलीज होने में थोड़ी देर हुई. ये विषय भी बहुत खास है. ये कहानी लोगों को पता होनी चाहिए. ये एक ऐसी कहानी है, जिसकी वजह से हमारे देश का नक्शा ही बदल गया था. ऐसी फिल्म को करने में मैं गर्व महसूस करती हूं. ये कहानी फैक्ट पर आधारित है, पर निर्देशक ने चरित्र को काल्पनिक बनाया है. इसमें मसाला और ड्रामा नहीं है.
इस फिल्म को करने से पहले आपको पोखरण के बारें में कितनी जानकारी थी?
मैं सिर्फ जानती थी कि साल 1998 में भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट किये थे वह सफल रहा, जिसने इतिहास को बदल दिया था. इसके अलावा अधिक जानकारी नहीं थी, लेकिन फिल्म के दौरान काफी चीजे शोध के बाद पता चली. मेरे हिसाब से आम आदमी को भी अधिक जानकारी नहीं है. ये फिल्म उन्हें जानकारी देगी.
आप फिल्में बहुत कम करती हैं, इसकी वजह क्या है?
मैं जो चाहती हूं वैसी फिल्में नहीं मिलती. इसकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगी और मैंने किया. चरित्र अधिक हो या कम इस पर मैं अधिक ध्यान नहीं देती. जरुरी है कि मेरा काम कितना प्रभावशाली है, उसे ही मैं देखती हूं. इस फिल्म में मैं ही एक महिला चरित्र हूं, जिसकी इसमें जरुरत है.
आप एक मौडल हैं फिल्मों के साथ अबतक आपने कितना ग्रो किया है, जबकि ये माना जाता है कि एक मौडल एक्टर नहीं बन सकती, आप इस बात से कितनी सहमत हैं?
हर फिल्म के साथ मैंने ग्रो किया है, जितना मैं कैमरे के सामने होती हूं, उतना ही नया सीखती हूं. इससे मेरी शायनेस कम हो गयी है, आत्मविश्वास बढ़ा है. ये एक प्रकार की प्रैक्टिस है, जो समय के साथ अच्छी होती जाती है. ये गलत है कि मौडल अच्छी एक्ट्रेस नहीं बन पाती, कई उदाहरण है, जहां मौडल भी अच्छी एक्ट्रेस बनी. सभी एक्टिंग एक तरह की ही होती है. सभी में कैमरा फेस करना पड़ता है.
5 साल की जर्नी को कैसे देखती हैं?
मैंने काम के बीच में ब्रेक भी लिया था, क्योंकि मैं समझना चाहती थी कि मुझे करना क्या है. फिल्मों में काम करना सही है या गलत, इसे परखना चाहती थी जो अब मुझे समझ में आया. मुझे इंडस्ट्री से कोई सहयोग नहीं था, ऐसे में किस तरह की स्क्रिप्ट चुनू, इसमें भी मुझे समय लगा और अब मुझे लगता है कि मैं भी इंडस्ट्री का एक पार्ट हूं. आज सबके साथ मेरा अच्छा सम्बन्ध है.
गौड फादर न होने के बाद भी आपने अच्छी फिल्में की, इसकी वजह क्या रही?
ये सही है कि मेरे पास अच्छी फिल्में आई, फिर चाहे वह ‘कौकटेल’ हो या ‘हैप्पी भाग जाएगी’ या ‘लखनऊ सेंट्रल’ सभी में चुनौती थी और मैंने मेहनत किया और सबका विश्वास जीता. अगर आप जल्दी-जल्दी फिल्में करना चाहते हैं, तो कोम्प्रोमाईज करना पड़ता है, लेकिन अगर अच्छी फिल्में करने की इच्छा रखते हैं, तो प्रतीक्षा करनी पड़ती है और वह मैंने किया.
इंडस्ट्री में असुरक्षा बहुत है, आप इससे कितनी सहमत हैं?
असुरक्षा अपने आप में होती है कि मैं ये अभिनय कर पाऊंगी या नहीं. खुद पर जब विश्वास नहीं होता, तब मुश्किलें आती हैं. आपको अपनी तुलना किसी से न कर, खुद से करनी चाहिए ताकि आपको उसका परिणाम अच्छा मिले. इसके अलावा सही समय में सही कहानी और सही निर्देशक का मिलना भी आवश्यक है. कई बार मेरे दिमाग में ही चलता रहता है कि मैं इस फिल्म को करूं या न करूं और यही बातें असुरक्षा की भावना को जगाती है.
इतने सालों में आप अपने अंदर कितना बदलाव महसूस करती हैं?
पहले मैं फिल्म ‘कौकटेल’ में मीरा की तरह शाय थी, पर अब मैं काफी बदल चुकी हूं. मैं ‘लाउड’ नहीं, सौफ्ट स्पोकेन हूं.
किसी कंट्रोवर्सी को कैसे लेती हैं?
मैं उसे पढ़ती हूं और देखती हूं कि लोगों की राय मेरे बारें में क्या है, लेकिन कई बार अजीब बातें भी लिखी जाती है. मैं उस पर अधिक ध्यान नहीं देती.
क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?
मैं पीरियोडिक ड्रामा करने की इच्छा रखती हूं. जिसमें आलीशान कपड़े, खूबसूरत मेकअप करने का मौका मिले. साथ ही निर्देशक भी संजय लीला भंसाली होना चाहिए.
बौलीवुड की सबसे अधिक स्टाइलिस्ट किसे मानती हैं?
सोनम कपूर, अनुष्का शर्मा और कंगना रनौत.