‘‘गैंग्स आफ वासेपुर’’ से लेकर ‘‘थ्री स्टोरीज’’तक अलग अलग जौनर की फिल्मों में अभिनय कर अपने अभिनय के नित नए रंग दिखाती आ रही अदाकारा रिचा चड्ढा इन दिनों काफी खुश हैं. उनकी खुशी की सबसे बड़ी वजह यह है कि पिछले चार वर्ष से जिस फिल्म के प्रदर्शन का इंतजार कर रही थीं, वह अब 20 अप्रैल को प्रदर्शित होने जा रही है. जी हां, रिचा चड्ढा की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘‘दास देव’’ 20 अप्रैल को सिनेमाघरों में पहुंच रही है. शरत चंद्र के उपन्यास ‘देवदास’ के आधुनिक रूप वाली फिल्म ‘‘दास देव’’ के निर्देशक सुधीर मिश्रा हैं.

फिल्म ‘‘दास देव’’ को आप आधुनिक किस हिसाब से मानती है?

सुधीर मिश्रा को इंसानी मनोविज्ञान, समाज व राजनीति की अच्छी समझ है. उनकी यह फिल्म आज की औरत की बात करती है. इसलिए इस फिल्म को ‘देवदास’ का आधुनिक संस्करण कहा जाना चाहिए. इस फिल्म में महिला पात्र पुरुषों पर निर्भर नहीं हैं, वह पुरुषों की बेवफाई पर रोते हुए नजर नहीं आती, बल्कि पुरुषों को चुनौती देती हुई नजर आती हैं. यहां तक कि अपने फायदे के लिए पुरुषों का उपयोग करते हुए भी नजर आती हैं. मसलन, अदिति राव हैदरी का किरदार एक वेश्या का है, वह पोलीटीशियन के साथ जुड़ी हुई है और कई तरह की डील करवाती रहती है. अपने काम के लिए पुरुषों का बखूबी इस्तेमाल करती है.

अपने किरदार को कैसे परिभाषित करेंगी?

मैंने इसमें पारो का किरदार निभाया है, जो कि आधुनिक नारी है. पारो की अपनी एक डिग्निटी है. वह देव से प्यार करती है, पर उसके सामने घुटने नहीं टेकती. वैसे भी यह फिल्म औकात और क्लास की कहानी है. हमारी फिल्म में जब देव, पारो को उससे उसकी औकात की बात करता है, तब वह देव के धुर विरोधी, काफी ओहदेदार और उम्र में काफी बड़े इंसान से शादी करके चुनाव में देव के सामने खड़ी हो जाती है. पारो आपको पूरी फिल्म में कहीं भी रोती बिलखती नजर नहीं आएगी. उसे किसी बात का गम या दुःख नहीं है. जब इस बार देव पारो को छोड़ता है, तो पारो उसे चुनौती देने के लिए खड़ी होती है.

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