‘इश्क विश्क’, ‘कमीने’, ‘हैदर’, ‘जब वी मेट’, ‘उड़ता पंजाब, ‘पद्मावत’ जैसी कई फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा को साबित कर चुके अभिनेता शाहिद कपूर सदैव अपनी ईमेज को तोड़ते नजर आए हैं. इस बार श्रीनारायण सिंह की फिल्म ‘‘बत्ती गुल मीटर चालू’ में वह वकील के किरदार में एक नए रंग में नजर आएंगे.
आप 15 वर्षों से बौलीवुड में कार्यरत हैं.अपने करियर को किस तरह से देखते हैं?
मैं दिमागी रूप से परिपक्व हुआ. मेरा विकास हुआ. शारीरिक रूप से मेरा लुक भी बदला. मुझे जिस तरह की फिल्में मिली, मैंने जिस तरह से काम किया, उससे यह जाहिर होता है कि लोग मेरे बारे में क्या धारणाएं बनाते रहे. मैने कभी अपने आपको किसी ईमेज में बंधने नहीं दिया. बार बार अपने अभिनय को लेकर लोगों को आष्चर्य चकित करता रहा हूं. फिर चाहे वह फिल्म ‘कमीने’ हो, ‘हैदर हो, ‘उड़ता पंजाब’ हो या ‘पद्मावत’ हो. मैं पूरी ईमानदारी व गंभीरता के साथ अपने काम को लेकर प्रयोग करता आया हूं.
फिल्म ‘कमीने’ से आपकी ईमेज एकदम बदली थी. पर जब आप यह फिल्म करने जा रहे थे, तो आपको डर नहीं लगा था कि यह फिल्म तो आपकी ईमेज के विपरीत है. उस वक्त कलाकार की ईमेज बहुत मायने रखा करती थी?
हंसते हुए… सच कहूं, तो उस वक्त मेरे अंदर बहुत ज्यादा एक्साइटमेंट था. मैं तड़प रहा था ऐसे अवसर के लिए जिसमें मुझे मेरी टिपिकल रोमांटिक ईमेज वाला किरदार न निभाना पड़े. मेरे अंदर हमेशा ही इच्छा रही है कि मैं कलाकार के तौर पर खुद को एक्सप्लोर करुं. मेरे दिमाग में यह बात कभी नहीं आयी थी कि बार बार एक ही किरदार करने से, खुद को बार बार परदे पर दोहराते रहने से कोई भी इंसान बहुत बड़ा कलाकार बन सकता है. इस तरह का मेरा नजरिया नहीं था. जबकि उस वक्त दुनिया भर में कलाकारों का यही नजरिया था. बॉलीवुड में तो बहुत ज्यादा था. अब तो काफी बदलाव आ गया है,जो कि बहुत अच्छी बात है. पर जिस वक्त मैं बॉलीवुड से जुड़ा था ,उस वक्त का माहौल अलग था. उस वक्त कहा जाता था कि कलाकार के तौर पर आपका एक परसोना होना चाहिए और उसी परसोना को आपको बेचना है. शायद मैंने उस वक्त ऐसा कुछ किया भी होगा, पर अंततः मुझे लगा कि यह मेरा जोन नहीं है. मुझे तो अलग अलग किस्म के किरदार ही निभाने हैं. जबकि उन दिनों विविधतापूर्ण किरदार व पटकथाएं लिखी नही जा रही थी. नए नए फिल्मकार नहीं आ रहे थे. कुछ तयशुदा लोग थे,जो कि तयशुदा काम दे रहे थे. कलाकार के तौर पर बहुत सीमाएं भी थीं. सच यही है कि कलाकार के तौर पर शुरूआत के 6-7 वर्ष मेरे बहुत मुश्कील दौर से गुजरे. पर मैं अपने आपको भाग्यशाली समझता हूं कि मैं उस फेज से गुजर पाया और उस फेज से गुजरते हुए वास्तव में मैं जो करना चाहता था, वह किया.
लोगों ने भी मेरे काम को पसंद किया.अब मैं अपने मन का काम ज्यादा से ज्यादा कर पा रहा हूं. जबकि ऐसा कर पाना आसान नही होता है. आप भी अच्छी तरह से समझते हैं कि कलाकार के पास जो अवसर आते हैं, उसी में से उसे चुनना होता है. जब मैंने अपने करियर की शुरूआत की थी, उस समय अलग तरह का काम करने के अवसर बहुत कम थे. ऐसे में मेरे लिए फिल्म ‘कमीने’ बहुत महत्वपूर्ण थी. क्योंकि वह मौका मेरे पास आया, तो मेरे लिए वह मौका बहुत मूल्यवान था.
हर कलाकार हर किरदार में अपने परसोना को पेश करते हुए अलग तरह के किरदार नहीं गढ़ पाता?
आपने जो सवाल मुझसे पूछा है, यही सवाल हर दर्शक हर कलाकार से पूछने लगा है. शायद आज का दर्शक ज्यादा इवॉल्व हो गया है. अब दर्शक के पास मनोरंजन के बहुत साधन हो गए हैं. फिल्में देखने के बहुत मीडियम हो गए हैं. वेबसीरीज हैं. नेटफिल्क्स व अमेजान जैसे इंटरनेट माध्यम हैं. तो दर्शक का अपना एक्सेस बहुत बढ़ गया है. इसलिए उनकी समझ विकसित हुई है.अब वह भी कलाकार से सवाल करने लगे हैं कि वह हर फिल्म में एक ही परसोना में क्यों नजर आते हैं? अब भारतीय सिनेमा उद्योग भी इस बात का अहसास करते हुए खुद को बदलने के प्रयास में लगा हुआ है. मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छी बात है.
पिछले दिनों आपकी पहली फिल्म ‘इश्क विश्क’ के निर्देशक अमित रॉय से मुलाकात हुई थी. उनका आकलन है कि आपके अंदर जो अभिनय क्षमता है, उसका आप पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाए हैं. यानी कि अब तक आपको ऐसा निर्देशक नही मिला, जो आपकी प्रतिभा को पूरी तरह से बाहर निकाल सके?
ऐसा मुझसे कई लोग कहते हैं और यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है.मुझे यह बात बहुत अच्छी लगती है कि लोगों को इस बात का अहसास है कि मेरे अंदर बहुत कुछ कहने की क्षमता है,जो कि अभी तक बाहर नहीं आ पाया. कई फिल्मकार मुझसे यह बात कह चुके हैं. इस बात को अहसास करते हुए कई फिल्मकारों ने मेरे अंदर से कुछ अलग निकालने की कोशिश की. मेरे लिए यह बहुत बड़ा कौम्पलीमेंट है कि मेरे अंदर अभी भी बहुत कुछ है, जो बाहर नहीं आ पाया. लोगों की यह सोच मुझे गर्व का अहसास करवाती है कि मेरे अंदर कुछ और बेहतर करने की क्षमता है.
आपने कभी सोचा कि आपके अंदर ऐसा क्या है,जो आप नही कर पाए? क्या अभी तक ऐसे निर्देशक नही मिले, जो आपकी क्षमता का उपयोग कर सके?
सच कहूं तो मुझे लगता है कि मुझे बहुत अच्छे मौके मिले हैं. ऐसे बहुत कम कलाकार होंगे,जिन्हें मेरी तरह विविधतापूर्ण किरदार निभाने के मौके मिले हों. फिर भी अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. उम्मीद है कि मैं आगे करूंगा, मौका मिलेगा.
अब तक कोई ऐसा किरदार रहा जिसने आपकी जिंदगी बदल दी हो?
एक नही कई किरदार हैं, जो मेरे साथ काफी लंबे समय तक टिके रहे. फिर चाहे वह ‘हैदर’ का हैदर हो या ‘उड़ता पंजाब’ का टौमी सिंह हो या ‘जब वी मेट’ का कश्यप हो. इस तरह के कई किरदार मैंने निभाए, जिन्होने मुझे प्रभावित किया. मुझे बहुत कुछ सिखाया. इन किरदारों ने मुझे मेरे बारे में व मेरी जिंदगी के बारे में भी शिक्षा दी .‘उड़ता पंजाब’ में टौमी सिंह का जो किरदार था, उसने मुझे सिखाया कि इंसान अच्छा या बुरा नहीं होता है. इंसान की अच्छी और बुरी आदतें उसे बदल देती हैं. इसलिए जरूरी हैं कि हर इंसान को अपने जीवन में कुछ अनुशासन बना कर रखना चाहिए. दूसरी बात मैंने सीखी कि सफलता मिलने पर इंसान अंधा हो जाता है. उसे अपनी खामियां नजर नहीं आतीं. टौमी सिंह का किरदार निभाते हुए मुझे लगा कि कलाकार के तौर पर मेरे साथ भी ऐसा हो सकता है कि मैं अपनी खामियों को ना देख पाऊं.
आपकी फिल्म ‘‘पद्मावत’’ को लेकर कई विवाद हुए. कभी लग रहा था कि फिल्म रिलीज ना हो पाए.उस वक्त कलाकार के तौर पर आप क्या महसूस कर रहे थे?
मुझे सिर्फ यह लग रहा था कि लोग फिल्म देखने के बाद अपनी राय देते तो ज्यादा अच्छा होता. फिल्म देखने के बाद यदि आप विरोध प्रकट करते हैं, तो बात समझ में आती है कि लोगों के व आपके नजरिए में फर्क हो सकता है. पर बिना फिल्म देखे विरोध करना समझ से परे था .मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि हम ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां बिना देखे विरोध किया जाता है. फिल्म देखने के बाद लोगों की राय में भिन्नता हो सकती है. हर इंसान की अपनी राय हो सकती है. हमारा देश बहुत बड़ा है. हमारे यहां तमाम भाषाएं हैं. रेगिस्तान, पहाड़, समुद्र, नदियॉं सब कुछ हमारे यहां हैं. ऐसे में हम यदि खुले विचारों के नहीं रहेंगे, तो परिणाम खतरनाक होंगे.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ इस तरह के विरोध कला को नुकसान पहुंचाते हैं?
सिर्फ कला को नहीं हमारे समाज को नुकसान पहुंचाते हैं. यदि कलाकार अपने आपको एक्सप्रेस नहीं कर पाएगा, तो समाज अपना प्रतिनिधित्व कैसे करेगा?
फिल्म‘‘बत्ती गुल मीटर चालू’’करने की कोई खास वजह?
मुझे इस फिल्म का मुद्दा बहुत सही और जेन्युइन लगा. मुझे लगा कि इस विषय पर फिल्म बननी चाहिए और यह बात लोगों तक पहुंचनी चाहिए. इलेक्ट्रिसिटी एक ऐसा मुद्दा है, जिससे हर आम इंसान जूझ रहा है. दूसरी बात सामाजिक मुद्दे पर बात करने के बावजूद यह बोरिंग नही है. मेरा किरदार बहुत मजेदार है. इसके अलावा फिल्म में उतराखंड का जो हिस्सा चुना गया, वह बहुत खूबसूरत व ताजगी भरा है. हमने गुजराती, एमपी एसेंट वाली फिल्में ही देखीं. अब उत्तराखंड यानी कि कुमायूंनी भाषा की एसेंट वाली फिल्म भी देखनी चाहिए.
फिल्म‘‘बत्ती गुल मीटर चालू’’के किरदार को लेकर क्या कहेंगे?
मैंने इसमें एक कमीने व टुच्चा किस्म के वकील संतोष बल्लभ पंटोला का किरदार निभाया है, जो कि लोगों का डरा धमकाकर उन्हे जेल भिजवाने की धमकियां देकर पैसा ऐंठता रहता है. मगर जब उसके दोस्त के साथ कुछ घटित होता है, तो वह अंदर से हिल जाता है. उसे अहसास होता है कि इलेक्ट्रीसिटी ऐसी समस्या है, जिससे हर इंसान पीड़ित है. इसके लिए कुछ किया जाना चाहिए. तब पहली बार अपने दोस्त को न्याय दिलाने के लिए वह अदालत के अंदर मुकदमा लड़ने के लिए पहुंचता है.
इसमें आपके संवाद कुमायूंनी भाषा में हैं?
देखिए, इस फिल्म में अभिनय करना मेरे लिए सीखने जैसा रहा. मैने उत्तराखंड के न्यू टेहरी की आंचलिक भाषा कुमायूंनी सीखी. मुझे ईलेक्ट्रीसिटी की समस्या को बेहतर ढंग से समझने का भी अवसर मिला.
सोशल मीडिया पर आप बहुत सक्रिय हैं?
जी हां !सोशल मीडिया महत्वपूर्ण मीडियम है. हर इंसान की जरूरत बनता जा रहा है. मैं खुद इंस्टाग्राम पर बहुत सारी फोटो पोस्ट करता रहता हूं. जब मुझे कुछ कहने की जरूरत होती है, तब सोशल मीडिया पर कह देता हूं. पर मैं लिखता कम हूं, तस्वीरें ज्यादा पोस्ट करता हूं. मैं अपने अनुभवों को दोस्तों के बीच बांटता हूं. पर पब्लिक प्लेटमफार्म पर अपनी राय देना मेरी आदत नहीं है.
रिजेक्षन..?
हर कलाकार को रिजेक्षन झेलने पड़ते हैं. जो कलाकार डेढ़ दो सौ रिजेक्षन ना झेले,उसे मौका कहां मिलेगा? उन दिनों बहुत अच्छा होता था, कलाकार को बहुत रगड़ना पड़ता था. हर कलाकार को यह समझ लेना चाहिए कि मुझे बार बार रिजेक्ट किया जाएगा, मुझमें तमाम खामियां निकाली जाएंगी. मुझे रिजेक्षन पर कभी तकलीफ नहीं होती. सोशल मीडिया पर भी मेरे बारे में बहुत कुछ पोस्ट किया जाता है. पर मैं चुप रहता हूं. प्रतिक्रिया देने का अर्थ होता है किसी इंसान को बेवजह महत्व देना. मैं ऐसा कोई काम नही करता. हां, जब मेरे परिवार के सदस्य मेरे खिलाफ कोई बात कहेंगे, तो मैं उसे गंभीरता से लूंगा.
इसके बाद कौन सी फिल्म आएगी?
तेलगू फिल्म ‘‘अर्जुन रेड्डी’’ की हिंदी रीमेक वाली फिल्म की शूटिंग अक्टूबर माह से शुरू करने वाला हूं. फिलहाल इस फिल्म के किरदार में खुद को ढालने के लिए बाल और दाढ़ी बढ़ा रहा हूं. मैं दूसरे कलाकारों की भांति विग लगाने में यकीन नहीं करता. इसके अलावा राजा कृष्णन मेनन के निर्देशन में एशियन खेलों में गोल्ड मैडलिस्ट व पद्मश्री विजेता बाक्सर डिंग्को सिंह की बायोपिक फिल्म में डिंग्को सिंह का किरदार निभाने वाला हूं. इसकी शूटिंग अप्रैल 2019 में शूरू होगी.