विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘‘पटाखा’’ में चंपा का किरदार निभाकर चर्चा के केंद्र में बनी हुई अभिनेत्री राधिका मदान ने टीवी सीरियलों में अभिनय कर करियर शुरू किया था. फिर उन्होंने भाग्यश्री के बेटे अभिमन्यू दसानी के संग फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’ में अभिनय किया, जो कि बीच में बंद हो गयी थी, पर अब जल्द प्रदर्शित होगी. लेकिन इस फिल्म ने प्रदर्शन से पहले ही हाल ही में ‘‘टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’’ में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीतकर हंगामा मचा दिया है. फिल्म ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ को ‘टोरंटोअंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव’ के ‘मिडनाइट मैडनेस’ खंड के तहत प्रदर्शित किया गया और इसे ‘पीपुल्स च्वाइस मिडनाइट मैडनेस अवार्ड’ से सम्मानित किया गया. इससे अति उत्साहित राधिका मदान के करियर की दूसरी फिल्म ‘‘पटाखा’’ 28 सितंबर को प्रदर्शित होने जा रही है.

राजस्थान के लेखक चरन सिंह पथिक की कहानी ‘दो बहनों’ पर आधारित विशाल भारद्वाज निर्देशित फिल्म ‘‘पटाखा’’ में चंपा उर्फ बड़की और गेंदा उर्फ छुटकी के बीच हर दिन होने वाली लड़ाई की कहानी है. जिसमें चंपा का किरदार राधिका मदान और गेंदा का किरदार सान्या मल्होत्रा ने निभाया है. दोनों बहनें एक दूसरे को फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करती.

bollywood talk with radhika madan over patakha and her cinematic life

क्या आपके परिवार में कला का माहौल रहा है? और क्या आपने बचपन से ही अभिनेत्री बनने का सपना देखना शुरू  कर दिया था?

जी नहीं..सच यह है कि मेरी परवरिश दिल्ली के गैर फिल्मी माहौल में हुई है. पर मेरी मां नीरू मदान मशहूर पेंटर हैं. मैंने अभिनेत्री बनने का सपना नहीं देखा था. सच यही है कि अभिनय में मेरी कभी कोई रूचि नहीं थी. मेरी रूचि तो नृत्य में थी. मेरा इरादा ब्राडवे जाकर नृत्य सीखने का था. मैं आठवीं कक्षा से नृत्य सीख रही थी. हाई स्कूल के बाद नृत्य सीखने के अलावा बच्चों को नृत्य सिखाती भी थी.

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तो फिर आप अभिनेत्री कैसे बनी?

यह नियति का खेल है. जब मैं बीए आनर्स के पहले साल की पढ़ाई कर रही थी, उसी वक्त किसी ने मुझे फेसबुक पर देखा और सीरियल के आडीशन के लिए बुला लिया. मैंने सोचा कि यह ठग हैं, तो अपने भाईयों के साथ उन्हे सबक सिखाने पहुंच गयी. पर वहां तो सब कुछ सही था. और मुझे जबरन आडीशन देना पड़ा. फिर मुंबई में आडीशन देने के लिए बुलाया गया. मैं आ गयी. और मुझे सीरियल ‘‘मेरी आशिकी तुम से ही’’ में इशानी का किरदार निभाने को मिल गया. मुझे लगा कि मैं अभिनय कैसे करुंगी, क्योंकि मुझे अभिनय तो आता ही नहीं था. लेकिन सेट पर निर्देशक की बातों को समझकर काम करती चली गयी. चार पांच माह बाद मेरे अभिनय में निखार आया. उससे पहले के एपीसोडों में मैंने क्या किया, मुझे ही समझ में नहीं आया. मेरी समझ में नहीं आता था कि मैं कर क्या रही हूं. पर अब तो अभिनय मेरा करियर ही नहीं पैशन हो गया है.

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एक प्रशिक्षित डांसर होने से अभिनय में मदद मिलती है?

देखिए, नृत्य में भी हमें भाव पेश करने होते हैं और अभिनय में भी भी. इस हिसाब से डांस हमारी काफी मदद करता है. बिना अभिनय की ट्रेनिंग लिए मुझे कम समय में अभिनय करना आ गया, इसके पीछे मेरी डांस की ट्रेनिंग की मदद रही है. वैसे भी हर कला एक दूसरे से मिलती जुलती ही है. सच कहूं तो डांस की ट्रेनिंग ने ही मेरे अंदर आत्मविश्वास पैदा किया. अन्यथा मैं स्कूल में सबसे ज्यादा डरपोक, संकोची किस्म की लड़की हुआ करती थी. कक्षा में हमेशा सबसे पीछे वाली सीट पर बैठती थी. डांस की ट्रेनिंग के दौरान मैंने सपना देखना शुरू किया और सपना देखने की वजह से शायद मैं अभिनेत्री बनी.

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टीवी से फिल्मों की तरफ कैसे मुड़ी?

मैं ने टीवी पर एक ही सीरियल ‘‘मेरी आशिकी तुम से ही’’ के अलावा रियलिटी शे ‘झलक दिखला जा’ किया था. पहले सीरियल का प्रसारण खत्म होते ही मैंने टीवी ब्रेक लेकर फिल्मों के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए थे. उस वक्त मेरी उम्र भी महज इक्कीस वर्ष ही थी. मैंने आडीशन देना शुरू किया. मुझे पहली फिल्म मिली ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’.मगर कुछ समय बाद यह फिल्म बीच में ही बंद हो गयी. पर फिर से वह शुरू हुई. उसके बाद मैंने ‘पटाखा’ के लिए आडीशन दिया. यह फिल्म मिल गयी. अब फिल्म ‘पटाखा’ 28 सितंबर को रिलीज होने वाली है.

फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’’ को लेकर क्या कहेंगी?

यह मेरे करियर की पहली फिल्म है. कुछ वजहों से यह फिल्म बीच में बंद हो गयी थी. पर बाद में पूरी हुई और अब तो इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा जगत में हंगामा मचा रखा है. कुछ दिन पहले ही इसे ‘टोरंटो अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह’’ में पुरस्कृत किया गया. इस फिल्म में मेरे हीरो अभिमन्यू दसानी है. तो मैंने सबसे पहले फिल्म ‘‘मर्द को दर्द नहीं होता’ की शूटिंग की थी, पर सबसे पहले सिनेमाघरों में मेरी फिल्म ‘‘पटाखा’’ पहुंच रही है, इसलिए अब मेरे करियर की पहली फिल्म ‘‘पटाखा’’ ही मानी जाएगी.

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आपने तो बिना कुछ सोचे समझे ‘पटाखा’ कर ली होगी?

जी हां! ऐसा ही कह सकते हैं. मैं क्या कोई भी अदाकारा विशाल भारद्वाज के साथ काम करने से इंकार नही कर सकती. मैं तो विशाल भारद्वाज सर की बहुत बड़ी फैन हूं. मैंने उनकी ‘ओंकारा’, ‘मकबूल’ सहित हर फिल्म देखी है. मैं तो उनके संगीत की भी फैन हूं. वह ब्रीलिएंट फिल्ममेकर हैं. मुझे तो विशाल भारद्वाज के साथ कोई भी फिल्म, किसी भी तरह का किरदार निभाने का मौका मिलता, तो मैं आंख मूंद कर कर लेती. पर मुझे विशाल भारद्वाज के साथ ही एक बेहतरीन, दमदार पटकथा व कहानी वाली फिल्म भी मिल गयी. सच यह है कि फिल्म ‘पटाखा’ के लिए चयन होने के बाद विशाल सर ने मुझे पटकथा देते हुए कहा कि जाकर पढ़ लो. फिल्म की पटकथा पढ़ने के बाद मुझे लगा कि कितनी खतरनाक पटकथा है, इसे तो मुझे हर हाल में करना है.

फिल्म ‘‘पटाखा’’ करने के बाद आपको किस बात से लगा कि अच्छा हुआ आपने यह फिल्म कर ली?

पहली बात तो विशाल भारद्वाज कमाल के निर्देशक हैं. इसके अलावा मेरे किरदार की यात्रा काफी रोचक है. पहले कुंवारी लड़की के रूप में उसकी यात्रा, फिर शादी के बाद की उसकी यात्रा कमाल की है. मैं तो अपने किरदार की यात्रा की कायल हो गयी. मुझे अहसास हुआ कि मुझे एक नई तरह की जिंदगी जीनी है. सच कहूं तो अब मुझे लग रहा है कि अच्छा हुआ, जो मैंने इस फिल्म को करने का अवसर नहीं खोया.

 

फिल्म के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगी?

फिल्म ‘पटाखा’ राजस्थान के लेखक चरन सिंह पथिक की कहानी ‘दो बहनों’ पर आधारित है. तो यह फिल्म राजस्थानी गांव की दो बहनों की कहानी है, जिसमें से बड़ी बहन का किरदार मैंने व छोटी बहन का किरदार सान्या मल्होत्रा ने निभाया है. मेरे किरदार का नाम चंपा कुमारी उर्फ बड़की है. वह हर किसी पर हुक्म चलाना जानती है. उसे लगता है कि वह बड़ी है, तो हर चीज पर उसी का हक है. उसे लगता है कि छोटी बहन के पास न अक्ल है और न किसी चीज या बात की समझ है. सब कुछ सिर्फ उसी के पास है. उसके अनुसार छोटी बहन तो उसका हक छीने वाली बोझ है, पता नहीं मां बाप ने छुटकी को क्यों पैदा कर दिया. उसे अपनी छोटी बहन उर्फ छुटकी से नफरत है. तो दोनों के बीच पूरी फिल्म में नोक झोंक चलती रहती है. दोनों बहनों की शादी भी दो सगे भाईयों के साथ हो जाती है. इनके बीच बहुत कुछ घटित होता है.

क्या आप निजी जिंदगी में भी बड़की जैसी हैं?

निजी जिंदगी में मैं अपने पूरे परिवार में सबसे छोटी हूं. मेरे दो बडे भाई हैं, पर वह मुझे मार नहीं सकते. मुझे परेशान नहीं कर सकते. इसलिए मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि बड़ी बहन का किरदार कैसे निभाउं. पर किरदार को निभाते हुए मैने अपने बड़े भाईयों को याद किया. मेरे सभी बडे़ भाईयों लगता है कि वह बड़े हैं, वही सब कुछ जानते हैं और वही मैच्योर हैं. मुझे तो कुछ समझ नहीं है. जबकि मेरा बड़ा भाई मुझसे सिर्फ चार वर्ष  ही बड़ा है. बचपन में मैं अपने बड़े भाई को बहुत मारती थी. मेरी मां कहती थी कि छोटी बहन की पिटाई नहीं करते हैं. मैं इसका फायदा उठाती थी. तो शूटिंग के दौरान वह सब याद कर मैं कैमरे के सामने छुटकी की पिटाई करती थी. यानी कि मैंने अपने बचपने को फिर से जिया है.

फिल्म ‘‘पटाखा’’ में तो आपका डिग्लैमरस किरदार है?

मेरे लिए कहानी व किरदार अहमियत रखता है. जब कोई पटकथा या किरदार मुझे मोटीवेट करता है, तो मैं यह नहीं देखती कि वह ग्लैमरस है या नहीं. यदि फिल्म ‘‘पटाखा’’ केट्रेलर से लोगों ने मुझे नहीं पहचाना, तो कलाकार के तौर पर यह मेरी उपलब्धि है.

आप काफी सुंदर हैं, पर फिल्म में काफी सांवली हैं?

जी हां! इसके लिए मैं हर दिन कई घंटों सूर्य की तेज किरणों के नीचे बैठकर खुद को काला किया है. इसके अलावा मुझे परदे पर सांवला दिखाने में मेकअप का भी योगदान है. इतना ही नहीं बीड़ी पीने वालों के दांतों में जिस तरह के दाग पड़ जाते हैं, वैसे दाग के लिए दांतों में भी मेकअप किया गया. उसके बाद हमने काफी वर्कशौप किया. चरन सिंह पथिक व विशाल भारद्वाज के साथ बैठकर कई बार पटकथा पढ़ी. इसके बाद मैं व सान्या दोनों राजस्थान में जयपुर से दो तीन घंटे की दूरी पर स्थित राक्सी गांव गए थे. वहां पर हम कुछ गांव वालों के साथ रहे. उनसे हमने गोबर उठाना, गोबर से उपले बनाना, कुंएं से पानी निकालना, गोबर से जमीन पर लीपना, चूल्हे पर रोटी पकाना वगैरह सब कुछ सीखा. मैंने लकड़ी की आंच पर खाना बनाना सीखा. जबकि अब तक मैं अपने घर के किचन में कभी गयी नहीं थी. गोल रोटियां बनाना सीखा.

इसीलिए फिल्म में गोबर के अंदर गोबर में सने लड़ने का सीन भी है?

जी हां! यह कहानी का हिस्सा है. विशाल सर ने हमसे पूछा था कि गोबर असली रखें या नकली. हम लोग गोबर उठाने से उपले बनाने तक में गोबर के अभ्यस्त हो चुके थे, तो हमने कह दिया कि असली रख लें. शूटिंग ठंडी के दिनों में हो रही थी. शूटिंग के दिन बारिश भी हो रही थी. जैसे मैं व सान्या गोबर के अंदर पहुंचे, तो गोबर की सीरत है कि वह गर्म होता है. हमें ठंड से राहत मिली, तो हमने गोबर के अंदर मुंह डुबाने से लेकर हर सीन करने में इंज्वाय किया.

आप तो मूलतः दिल्ली से हैं. शुद्ध हिंदी बोलती हैं. जबकि फिल्म में आपकी भाषा राजस्थानी व हरियाणवी है?

जी हां! हमने गांव में रहकर भाषा के एसेंट को पकड़ने का प्रयास किया.

विशाल भारद्वाज के साथ काम करने के अनुभव कैसे रहे?

मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं कि मुझे करियर के शुरुआती दौर में ही विशाल भारद्वाज के निर्देशन में फिल्म करने का अवसर मिल गया. मुझे लगा था कि वह बहुत कठोर निर्देशक होंगे,पर वह तो बहुत ही ज्यादा विनम्र हैं. वह तो हमारे विचार सुनने के लिए तैयार रहते थे.

सान्या मल्हात्रा के संग काम करने के अनुभव क्या रहे?

मुझे वह पहले दिन से ही अच्छी लगी. मैंने उसकी फिल्म ‘दंगल’ देख रखी थी. ‘दंगल’ में उसकी एक्टिंग मुझे कमाल की लगी थी. तो मैं उसके साथ काम करने को लेकर एक्साईटेड थी. हमने एक साथ वर्कशौप की. हम बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं.

फिल्म ‘पटाखा’ में जिस तरह से दो बहनें लड़ रही हैं, उससे आज की लड़कियां रिलेट कर पाएंगी?

जरुर. क्योंकि यह वास्तविक कहानी पर आधारित फिल्म है. हम जिस गांव में फिल्मा रहे थे, वहां की लड़कियां रिलेट कर रही थी. गांव में लड़कियां अपनी बहनों के संग इसी तरह अपनी बहनों से लड़ती हैं, बीड़ी पीती हैं. मैने कभी स्मोंकिंग नहीं की थी. मुझे तो वहां गांव की लड़कियों ने ही बीड़ी जलाना तक सिखाया.

अब किस तरह के किरदार निभाना चाहेंगी?

फिल्म ‘जब वी मेट’ में करीना कपूर ने गीत का किरदार निभाया था. मेरी तमन्ना है कि निर्देशक इम्तियाज अली इस फिल्म को पुनः मुझे गीत के किरदार में लेकर बनाएं.

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