फिटनेस के क्षेत्र में आने की इच्छा मध्यमवर्गीय संदीप रामचंद्र वालावलकर को बचपन से ही था, क्योंकि उनकी माँ ने उन्हें केवल पढाई नहीं, बल्कि हेल्थ पर फोकस करने को कहा था. वह मानती थी कि स्वास्थ्य स्ट्रोंग रहने पर पढ़ाई में अधिक अच्छा नहीं भी कर पाने पर व्यक्ति बॉडी बिल्डिंग में कैरियर बना सकता है. उनकी पहली प्रेरणा उनकी माँ है, जिससे उनका मन एक्सरसाइज की ओर बढ़ा और उनकी सफलता का श्रेय वे अपनी माँ को देते है. अभी वे फिटनेस के क्षेत्र में जागरूकता फ़ैलाने का काम कर रहे है. महाराष्ट्र के चैम्पियन बॉडी बिल्डर संदीप ने खास गृहशोभा के लिए बात की. आइये जाने, उनकी कहानी उनकी जुबानी.
मिली प्रेरणा
संदीप कहते है कि शुरुआत पहले मैं घर में दंड-बैठक किया करता था, बाद में साइकिलिंग, रनिंग, स्विमिंग आदि करने लगा. इससे आसपास के लोग मुझे मेरी हाइट, शोल्डर, बॉडी शेप आदि को देखकर तारीफ करते थे और बॉडी बिल्डिंग की ओर जाने की सलाह देने लगे. इससे मेरी इच्छा जिम की तरफ जाने को हुई , ताकि मैं खुद को और अधिक मजबूत कर सकूँ.
तब मेरी उम्र 20 साल की थी और मुंबई की पाटकर कॉलेज की बॉडी बिल्डिंग की एक कम्पटीशन में ‘मिस्टर पाटकर’ की एक प्रतियोगिता में, मेरे सभी दोस्तों के खाने पर भाग लिया, जबकि तब मुझे बॉडी बिल्डिंग की कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन मैं टाइटल जीत गया. इससे मेरे अंदर आत्मविश्वास बढ़ा. मैंने इसे प्रोफेशन के रूप में लिया और ओपन कम्पटीशन में भाग लेने और उसकी तैयारी में जुट गया. मैंने एक ही साल में मिस्टर मुंबई, मिस्टर महाराष्ट्र और मिस्टर इंडिया बन गया. उसके बाद से मैंने साल 2000 से बॉडी बिल्डिंग के क्षेत्र में स्टेट लेवल और नेशनल लेवल पर भाग लेता रहा और जीतता गया.
था मुश्किल दौर
संदीप का कहना है कि तकरीबन 10 साल की मेहनत के बाद मैं बॉडी बिल्डिंग की एक मुकाम पर पहुँच पाया. बॉडी बिल्डिंग स्पोर्ट्स में व्यक्ति को 20 से 25 साल होने तक वेट करना पड़ता है, ताकि बॉडी मैच्योर हो. अगर व्यक्ति 16 से 17 साल में बॉडी बिल्डिंग शुरू करता है, तो मैच्योर बॉडी उसे 26 से 27 साल में मिलता है, जबकि 20 साल में शुरू करने पर 30 साल की उम्र ही मैच्योर बॉडी मिल पाता है. इसमें बाकी स्पोर्ट्स की तरह कम समय में कुछ नहीं किया जा सकता. धीरज और लगन इस स्पोर्ट में बहुत रखने की जरुरत होती है.
धीरज जरुरी
वे आगे कहते है कि मैंने शुरुआत एक छोटे से कमरे की जिम से की थी, लेकिन जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ता गया, कॉम्पिटिशन का पता लगता गया और मैं खुद को अपग्रेड करता गया. डिस्ट्रिक्ट लेवल पर जाने में मुझे 5 साल का एक्सरसाइज लगा. स्टेट लेवल पर 7 साल और नेशनल लेवल पर 10 साल का समय लगा. मेरी अभ्यास ही मुझे बताती है कि मैं किस लेवल पर हूँ. लगातार जीत को बनाए रखना एक बड़ी बात होती है, एक स्तर के बाद गोल्ड भले ही न मिले , लेकिन अभ्यास जारी रखते जाना पड़ता है.
सही डाइट पर दे ध्यान
डाइट पर इस खेल में बहुत ध्यान देना पड़ता है. संदीप कहते है कि जैसे – जैसे मैं इस प्रोफेशन की ओर मुड़ा, मुझे सीनियर बॉडी बिल्डर से इस स्पोर्ट्स के बारें में काफी जानकारी मिलती रही. इसमें केवल बॉडी और एक्सरसाइज ही नहीं बल्कि प्रॉपर डाइट की बहुत जरुरत होती है. 40 प्रतिशत एक्सरसाइज के साथ 40 प्रतिशत डाइट भी जरुरी है. 20 प्रतिशत में मेडिटेशन, योगा, रेस्ट, सोचने का तरीका आदि सब मिलकर एक 100 प्रतिशत होता है. सभी का संतुलन बहुत जरुरी होता है, इससे बॉडी मैच्योर होता है.
प्रोफेशनल बॉडी बिल्डर की डाइट में प्रोटीन की मात्रा उनके बॉडी वेट की डबल होने चाहिए, मसलन 70 किलोग्राम के व्यक्ति को प्रोटीन 140 की जरुरत होती है. डाइट में प्रोटीन के साथ कार्बोहाइड्रेट और फाइबर्स की मात्रा का पूरा संतुलन होने की आवश्यकता है. इसमें सलाद और फ्रूट्स होने जरुरी है. ऑयली, स्पाइसी और स्वीट को अपने रूटीन से निकाल दें. फॅमिली पार्टी, जन्मदिन, लेटनाईट डिनर आदि को पूरी तरह से अवॉयड करना पड़ता है.
मिला परिवार का सहयोग
संदीप मध्यमवर्गीय परिवार से है, आर्थिक अवस्था सामान्य रही है, लेकिन जैसे -जैसे वे आगे बढ़ते और जीतते गये, काफी लोग उनसे जुड़ गए और घर वालों का भी हौसला बढ़ता गया. वे कहते है कि मैं जब बॉडी बिल्डर बना तब सप्लीमेंट का प्रयोग कम था, धीरे-धीरे इसका प्रचलन काफी बढ़ गया है, इससे बॉडी बिल्डिंग आज महंगी होती जा रही है और कॉम्पिटिशन भी अधिक बढ़ गयी है, लेकिन मध्यमवर्गीय के काफी लोग इस क्षेत्र में आ रहे है और मैं नए बॉडी बिल्डर को कहना चाहता हूँ कि वे स्पोंसर के बारें में न सोचकर अपनी बॉडी और परफोर्मेंस पर ध्यान दे और एक्सरसाइज करें. लोग खुद आप से जुड़ जाते है. मैं अभी बी एम् सी में डिप्टी चीफ सिक्यूरिटी की पोस्ट पर काम कर रहा हूँ.
बॉडी को पहचाने
अधिक एक्सरसाइज न हो, जिससे किसी प्रकार की शारीरिक क्षति न हो, इस बात का ध्यान कैसे ध्यान रखते है? पूछने पर वे कहते है कि इस खेल में इंज्यूरी, एक्सरसाइज का एक पार्ट हुआ करती है. इससे बचना संभव नहीं, इसमें केवल रेस्ट की जरुरत होती है. बीच – बीच में ब्रेक लेकर उसे ठीक करना पड़ता है और अधिक इंज्यूरी होने पर डॉक्टर की सलाह भी लेने की आवश्यकता पड़ती है. साथ ही वर्कआउट की प्लान तैयार करनी पड़ती है. इंज्यूरी की डर से व्यायाम को रोकना संभव नहीं होता, क्योंकि किसी भी व्यायाम को एक्सट्रीम करने पर इंज्यूरी होती है, लेकिन वह एक्सीडेंट के रूप में न हो, इसे देखना पड़ता है. कई बार स्लिप डिस्क, मसल्स में क्षति हो जाती है, लेकिन इसमें खुद को ही अपनी लिमिट समझने की जरुरत होती है.
इसमें कोच की भूमिका बड़ी होती है, जो लगातार गाइड करते रहते है. मेरे कोच शैलेश परुलेकर रहे है, उन्होंने मेरे लिए ऑस्ट्रेलिया जाकर खुद मेरे लिए ट्रेनिंग ली थी. उन्होंने मेरी पूरी विकास का ध्यान रखा है, जिससे मुझे काफी सहयोग मिला. अधिक वर्क लोड, स्ट्रेस, कम रेस्ट आदि होने पर व्यक्ति को समझदारी से वर्कआउट करना पड़ता है. उन्हें कहाँ खुद को रोकना है इसकी जानकारी न होने पर कई प्रकार के हादसे हो जाया करते है. जिम में कुछ होने पर जिम समस्या नहीं होती, बल्कि उनकी आगे – पीछे लाइफस्टाइल को देखना जरुरी है.
दिनचर्या में फिटनेस को करें शामिल
अभी संदीप फिटनेस को लोगों तक फ़ैलाने की कोशिश करता है, क्योंकि फिटनेस की कोई जाति, धर्म, पुरुष या महिला नहीं होती, हर व्यक्ति को इसे किसी न किसी रूप में करना चाहिए. वे लोगों में जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश कर रहे है. अभी वे प्रोफेशनल बॉडी बिल्डिंग में नहीं, फिटनेस की फील्ड में काम कर रहे है.
एक्सरसाइज है स्टाइल स्टेटमेंट
एक्सरसाइज आजकल एक स्टाइल स्टेटमेंट बन चुका है, ऐसे में हर कोई जिम जाना पसंद करता है. संदीप कहते है कि जिम जाने से पहले कुछ बातों की जानकारी अवश्य लें. मसलन वहां ट्रेंड कोच डायटीशियन, डॉक्टर, फिजियोथेरेपिस्ट आदि होने चाहिए. जिम की एरिया कोई मैटर नहीं करता, क्वालिटी को देखना आवश्यक है. बीच में वर्क आउट को छोड़ने की कोशिश न करें. सीढी चढ़ना, वाक करना आदि नियमित तौर पर 30 मिनट करें. सप्ताह में 3 घंटे व्यायाम अवश्य रखें. मोटापे को कम करने की हड़बड़ी न करें, ढाई से तीन किलों हर महीने वजन कम हो, तो सही रहता है, इसे मेन्टेन करने की कोशिश करते रहे.