भारत केप्राख्यात पद्मविभूषण, संगीतकार और संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में कार्डियक अरेस्ट के कारण निधन हो गया, वे 84 वर्ष के थे. पिछले छह महीने से किडनी संबंधी समस्याओं से पीड़ित पंडित जी डायलिसिस पर थे.पंडित शिवकुमार शर्मा का निधन 10 मईसुबह 8 से 8.30 बजे के करीब हुआ. उनका अंतिम संस्कार उनके आवास राजीव आप्स, जिग जैग रोड, पाली हिल, बांद्रा से किया जायेगा. पंडित शिव कुमार शर्मा का सिनेमा जगत में अहम योगदान रहा. बॉलीवुड में ‘शिव-हरी’ नाम से मशहूर शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया की जोड़ी ने कई सुपरहिट गानों में संगीत दिया था. इसमें से सबसे प्रसिद्ध गाना फिल्म ‘चांदनी’ का ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां’ रहा, जो दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी पर फिल्माया गया था.15 मई को शिव-हरि दोनों की जुगलबंदी एक बार फिर होने वाली थी. जिसका इंतज़ार दर्शक कोविड के बाद उत्सुकता से कर रहे थे.
प्रतिभामयी व्यक्तित्त्व
एक साधारण व्यक्तित्व, शांत, मृदुभाषी और हंसमुख स्वभाव के पंडित शिव कुमार शर्मा का चले जाना शास्त्रीय संगीत जगत में बहुत बड़ी क्षति है. उन्होंने हमेशा समाज से जो मिला, उसे वापस देना पसंद करते थे और संगीत की परंपरा सालों तक बने रहने के लिए गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करने थे, जिसमें शिष्य को मुफ्त में संतूर बजाना सिखाया जाता है. उनका कहना था कि मेरी तीन पीढ़ी इस वाद्ययंत्र की परंपरा को बनाये रखने की कोशिश कर रही है और इसमें सभी का योगदान आपेक्षित है. इसके अलावा मैं एक कलाकार सिर्फ तब होता हूँ, जब मैं बजाता हूँ, इसके अलावा घर में रास्ते-चौराहे पर लोगों से सलाम दुआ करते हुए जाता हूँ. मैं संतूर वादक होने के साथ-साथ एक पति, पिता, दादा और एक जिम्मेदार नागरिक भी हूँ. मेरे कुछ सामाजिक और पारिवारिक दायित्व भी है, उन्हें मैं कैसे भूल सकता हूँ.
संघर्ष से किया दो चार
कश्मीर से सिर्फ 500 रूपये लेकर पंडित शिवकुमार शर्मा मुंबई अपने एक मित्र के पास आये थे और एकदिन आल इंडिया रेडियो से निकलकर घर पहुंचने पर उनका सामान बाहर फेका हुआ देखते है, बाद में पता चला कि दोस्त ने कमरे का किराया नहीं चुकाया है, इसलिए मकान मालिक ने उसे घर से निकाल दिया था, जिसमें उनके समान भी बाहर थे. उन्हें उस दिन बाहर बेंच पर रात गुजारनी पड़ी थी.
संगीत रही जीवन
कश्मीर की घाटी की संगीतज्ञ परिवार में जन्मे पंडित शिवकुमार शर्मा ने बचपन से ही संगीत सुना और वही उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गया था, जिसमें हमेशा साथ दिया उनकी पत्नी मनोरमा ने.उनके छोटे बेटे राहुल को वे अपना शिष्य मानते थे और आज वह भी अपने पिता की तरह संतूर बजाता है. उनका दूसरा पुत्र रोहित भी संगीत के क्षेत्र से जुड़ा है.
जब भी पंडित शिव कुमार शर्मा से मिलना हुआ हमेशा एक संगीत की प्रतिमूर्ति नजर आती थी. यही वजह थी कि संगीत उनके परिवार और मुंबई की पाली हिल की घर में रची-बसी है. कालिंग बेल से लेकर हर जगह संतूर की मधुर आवाज अनायास ही सबका मन मोह लेती है.
संतूर को मिली पहचान
पंडित शिव कुमार शर्मा अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे, पर उन्होंने संगीत के साथ-साथ अर्थशास्त्र में पढाई भी पूरी की है. उनके पिता पंडित उमादत्त शर्मा से उन्होंने पांच वर्ष की उम्र से गायन और तबला वादन की शिक्षा शुरू की थी.पंडित शिव कुमार शर्मा संतूर को शास्त्रीय संगीत में प्रयोग करने वाले पहले व्यक्ति है, क्योंकि इससे पहले संतूर केवल सूफी संगीत में होता था.
पंडितजी जब भी संतूर बजाते थे उनके दाई हाथ की अनामिका में नीले रंग की अंगूठी बहुत ही खूबसूरत लगती थी, उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि ये अंगूठी उन्हें प्रेरणा देती है, इसलिए इसे वे हमेशा पहनते है. संतूर पंडित शिव कुमार शर्मा के हाथों में आते ही ऐसा जादुई वाद्य यंत्र हो गया कि ना केवल ये यंत्र शास्त्रीय संगीत का हिस्सा बना, बल्कि इसकी जादुई आवाज भारत से निकल कर विश्व के हर देश में जा पहुंची.उनके हाथों का कमाल था कि संतूर पर काफी काम हुआ और विश्व पटल पर अब संतूर को फ्यूजन में भी शामिल करके नई संगीत दिए जाने पर काम हो रहा है. आज वे नहीं रहे लेकिन इस मनमोहक व्यक्ति की संगीत और संतूर वादन को हमेशा याद किया जाएगा.