कोरोना संक्रमण के डर से 2-3 माह सिनेमाघर खुले रहे पर उन के अंदर देखने के लिए दर्शक नहीं आ रहे थे. उम्मीद थी कि ‘राधे,’ ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के प्रदर्शन से दर्शक सिनेमाघर की तरफ लौटेंगे और इस से सिनेमाघर की रौनक लौटने के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री को भी कुछ राहत मिलेगी, मगर कोरोना की नई लहर के चलते महाराष्ट्र सहित कई राज्यों के सिनेमाघर 25 मार्च से बंद कर दिए गए. परिणामत: अब ‘चेहरे,’ ‘सूर्यवंशी,’ ‘थलाइवी’ जैसी बड़े बजट की फिल्मों का प्रदर्शन अनिश्चित काल के लिए टल गया है.
सिर्फ हिंदी ही नहीं बल्कि मराठी भाषा की ‘जोंमीवली,’ ‘फ्री हिट डंका,’ ‘झिम्मा,’ ‘बली,’ ‘गोदावरी’ फिल्मों का प्रदर्शन भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया.
सलमान खान ने अपनी फिल्म ‘राधे’ को ले कर यहां तक कह दिया है कि इस ईद पर हालात बेहतर नहीं रहे तो इसे अगली ईद पर सिनेमाघरों में ही रिलीज किया जाएगा. ‘सूर्यवंशी’ और ‘चेहरे’ के निर्माता भी कह रहे हैं कि मई से हालात बेहतर हो जाएंगे तब फिल्में सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करेंगे.
यों तो ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म इन बड़े बजट वाली फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म पर प्रदर्शित करने का अपने हिसाब से निर्माताओं पर जोरदार दबाव बना रहे हैं. मगर एक कड़वा सच यह है कि ओटीटी पर बड़े बजट की फिल्म के आने से फिल्म इंडस्ट्री का भला कदापि नहीं हो सकता.
फिल्म इंडस्ट्री को खत्म करने की साजिश
वास्तव में इस वक्त बरबादी के कगार पर पहुंच चुकी फिल्म इंडस्ट्री को हमेशा के लिए खत्म करने की साजिश के तहत कुछ लोगों द्वारा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का एक खतरनाक प्रयास किया जा रहा है. यह फिल्म इंडस्ट्री के लिए अति नाजुक मोड़ है.
निर्माता को यकीनन अपनी फिल्म को बड़े परदे यानी सिनेमाघरों में प्रदर्शन पर ही दांव लगाना चाहिए. अगर बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए नहीं बचीं तो सिंगल थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स को तबाह होने से कोई नहीं बचा पाएगा. यदि थिएटर्स और मल्टीप्लैक्स खत्म होना शुरू हुए तो फिल्म उद्योग की कमर टूटने से कोई नहीं बचा सकता. इस से फिल्म इंडस्ट्री हमेशा के लिए तबाह हो जाएगी और इस का पुन: उठना शायद संभव न हो पाए. ओटीटी प्लेटफौर्म का मकसद फिल्म इंडस्ट्री को बचाना कदापि नहीं है. इन्हें भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से कोई सराकोर ही नहीं है. ये तो हौलीवुड के नक्शेकदम पर काम कर रहे हैं. हौलीवुड ने अपनी कार्यशैली से पूरे यूरोप के सिनेमा को खत्म कर हर जगह अपनी पैठ बना ली.
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एक कड़वा सच
यह एक कड़वा सच है. फिल्मों के ओटीटी पर आने से निर्माता को भी कोई खास लाभ नहीं मिल रहा है. अब तक अपनी फिल्मों को ओटीटी प्लेटफौर्म ‘हौटस्टार प्लस डिजनी’ पर आनंद पंडित की फिल्म ‘बिग बुल’ आई थी. मगर अब आनंद पंडित अपनी अमिताभ बच्चन व इमरान हाशमी के अभिनय से सजी फिल्म ‘चेहरे’ को किसी भी सूरत में ओटीटी प्लेटफौर्म को देने को तैयार नहीं हैं, जबकि ओटीटी प्लेटफौर्म की तरफ से उन पर काफी दबाव बनाया जा रहा है.
खुद आनंद पंडित कहते हैं, ‘‘यह सच है कि हम पर फिल्म ‘चेहरे’ को ओटीटी पर लाने का जबरदस्त दबाव है. इस की मूल वजह यह है कि हमारे देश मे 5-6 बड़ी ओटीटी कंपनियां हैं. इन्हें बड़ी फिल्में ही चाहिए. खासकर रोमांच थ्रिलर की और जिन में उत्तर भारत की पहाडि़यों का एहसास हो.
मगर ‘द बिग बुल’ से हमें कटु अनुभव हुए. फिल्म ‘बिग बुल’ से हमें टेबल प्रौफिट हुआ है, मगर इस का उतना फायदा नहीं हुआ जितना सिनेमाघर के बौक्स औफिस से मिल सकता था. इसलिए हम ने ‘चेहरे’ को सिनेमाघरों में ही प्रदर्शित करने के लिए रोका है. वैसे हमें भरोसा है कि मई के अंतिम सप्ताह तक सिनेमाघर खुल जाएंगे तो हम जून या जुलाई तक फिल्म को सिनेमाघर में ले कर जाएंगे.’’
आनंद पंडित की बातों में काफी सचाई है. माना कि ओटीटी प्लेटफौर्म पर फिल्म को देने से निर्माता को तुरंत लाभ मिल जाता है, मगर किसी भी फिल्म के लिए ओटीटी प्लेटफौर्म उतना लाभ नहीं दे सकता जितना सिनेमाघरों के बौक्स औफिस से मिल सकता है.
इस का सब से बड़ा उदाहरण राजकुमार राव की फिल्म ‘स्त्री’ है. इस फिल्म की निर्माण लागत 2 करोड़ रुपए थी और इस ने सिनेमाघर के बौक्स औफिस पर 150 करोड़ रुपए कमाए थे. जबकि ओटीटी पर इसे अधिकाधिक 15 करोड़ रुपए ही मिलते. सूत्रों के अनुसार फिल्म इंडस्ट्री के अंदरूनी सूत्र यह मान कर चल रहे हैं कि
यदि ‘सूर्यवंशी’ ओटीटी पर आई तो 50 करोड़ रुपए और अगर सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई तो 100 करोड़ रुपए का फायदा होगा.
हमें यहां यह भी याद रखना होगा कि फिल्म इंडस्ट्री को बंद होने के खतरे से बचाने के लिए आवश्यक है कि फिल्में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हों और अपनी गुणवत्ता के आधार पर अधिकाधिक कमाई करें.
बेदम फिल्म इंडस्ट्री
यों तो कोरोना की वजह से पिछले 1 साल से जिस तरह के हालात बने हुए हैं उन्हें देखते हुए इस बात की कल्पना करना कि 2021 में फिल्मों को बौक्स औफिस पर बड़ी सफलता मिलेगी सपने देखने के समान ही है. ‘राधे’ या ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्मों के सिनेमाघरों में प्रदर्शन की खबरों से कुछ उम्मीदें जरूर बंधी थीं पर उस पर कोरोना की नई लहर ने कुठाराघात कर दिया.
सिनेमाघर भी तबाह
कोरोना महामारी के चलते 17 मार्च से पूरी तरह से बंद हो चुके मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर के मालिकों व इन से जुड़े कर्मचारियों पर दोहरी मार पड़ी है. मल्टीप्लैक्स चला रहे लोगों की कमाई व इन के कर्मचारियों के वेतन ठप्प हुए और ऊपर से कर्ज भी हो गया.
नवंबर माह से सरकार द्वारा सब कुछ खोल देने व सिनेमाघरों में 50% दर्शकों की उपस्थिति की शर्त से सिनेमाघर मालिकों की कमाई बढ़ने के बजाय उन का संकट बढ़ गया. ऐसे में कोई भी सिनेमाघरों के हालात पूरी तरह से सुधरने तक उन्हें नहीं खोलना चाहता था. कई शहरों के कई मल्टीप्लैक्स व सिंगल थिएटर नवंबर या फरवरी 2021 में भी नहीं खुले.
तो फिर सवाल उठता है कि जो मल्टीप्लैक्स खुले हैं वे क्यों खुले हैं और इन की स्थिति क्या है? देखिए, पूरे देश में पीवीआर के सर्वाधिक मल्टीप्लैक्स हैं और ये मल्टीप्लैक्स किसी न किसी शौपिंग मौल में हैं और किराए पर लिए गए हैं. जब शौपिंग मौल्स खुल गए तो इन पर मल्टीप्लैक्स खोलने का दबाव बढ़ा.
शौपिंग मौल के मालिक को किराया चाहिए. अब पूरे माह मल्टीप्लैक्स में भले ही 1-2 शो हो रहे हों पर उन्हें कोरोना की एसओपी के तहत सैनीटाइजर से ले कर साफसफाई पर पैसा खर्च करना पड़ रहा है. कर्मचारियों को पूरे माह की तनख्वाह देनी पड़ रही है.
बिजली का लंबाचौड़ा बिल भरना पड़ रहा है, जबकि हर शो में 3-4 ज्यादा दर्शक नहीं आ रहे हैं. परिणामत: सिनेमाघर वालों को अपनी जेब से सारे खर्च वहन करने पड़ रहे हैं. तो यह इन के लिए पूर्णरूपेण का सौदा है. इस का असर फिल्म इंडस्ट्री पर भी पड़ रहा है. सिनेमाघर फायदे में तब होंगे जब उन के सभी शो चलें और हर शो में काफी दर्शक हों.
सिनेमाघर में इन दिनों दर्शक न पहुंचने की कई वजहें हैं. पहली वजह तो दर्शक के मन में कोरोना का डार. दूसरी वजह कोरोना महामारी व लौकडाउन के चलते सभी की आर्थिक हालत का खराब होना है. ऐसे में दर्शक सिनेमाघर जा कर फिल्म देखने के लिए पैसे खर्च करने से पहले दस बार सोचता है. तीसरी वजह अच्छी फिल्मों का अभाव.
कुछ फिल्में लौकडाउन के वक्त निर्माताओं की जल्दबाजी के चलते पहले ही ओटीटी पर आ गईं. ‘राधे,’ ‘सूर्यवंशी’ जैसी फिल्में सिनेमाघर में आने से पहले हालात बेहतर होने का इंतजार कर रही थीं, तो वहीं पूरे 6 माह तक एक भी शूटिंग न हो पाने के चलते भी फिल्मों का अभाव हो गया है.
कुछ फिल्मों की शूटिंग चल रही थी तो अनुमान था कि ‘राधे’ व ‘सूर्यवंशी’ के प्रदर्शन से एक माहौल बनेगा, दर्शक सिनेमाघरों की तरफ मुड़ेंगे और फिर जूनजुलाई 2021 से नई फिल्में प्रदर्शन के लिए तैयार हो जाएंगी. मगर अब यह उम्मीद भी खत्म हो चुकी है, क्योंकि कोरोना की नई लहर के चलते फिल्मों की शूटिंग में काफी बड़ा अड़ंगा लग चुका है.
अब तो कुछ जगह सिनेमाघर पूर्णरूपेण बंद हो चुके हैं. कुछ जगह पर नाइट कर्फ्यू है तो दिन में मुश्किल से ही 2 शो हो सकते हैं पर उन शो के लिए फिल्में नहीं हैं.
सिनेमाघरों की माली हालत तभी सुधरेगी और सभी सिनेमाघर तब खुल सकते हैं जब बड़े बजट या अच्छी कहानी वाली बेहतरीन फिल्में लगातार कई हफ्तों तक सिनेमाघरों मे प्रदर्शित होने के लिए उपलब्ध होंगी जोकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 2021 में तो नामुमकिन ही लग रहा है. इस से भी फिल्म इंडस्ट्री की नैया डूबी है.
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यहां इस बात पर भी विचार करना होगा कि जो सिनेमाघर बंद हैं क्या उन से फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान नहीं हो रहा है? ऐसा नहीं है. जो सिनेमाघर किराए पर नहीं हैं उन के मालिकों ने फिलहाल बंद रखा हुआ है, क्योंकि उन्हें किराया तो देना नहीं है.
सिनेमाघर जब तक बंद रहेंगे तब तक उन्हें बिजली का बिल भी न्यूनतम यानी यदि सिनेमाघर खुले रहने पर हजार रुपए देने पड़ते थे तो अब बंद रहने पर सिर्फ 100 रुपए देने पड़ते होंगे.
इस के अलावा इन्हें अपने कर्मचारियों को तनख्वाह भी नहीं देनी है. इस तरह ये खुद कम नुकसान में हैं, मगर इन की कमाई पूरी तरह बंद है. इस से फिल्म वितरक भी नुकसान में हैं. इस से घूमफिर कर फिल्म इंडस्ट्री को ही नुकसान पहुंच रहा है.
बड़े कलाकारों की भूमिका
कोरोना महामारी की वजह से फिल्मों व टीवी सीरियल के बजट में भी कटौती की गई है. जुलाई, 2020 माह में तय किया गया था कि कलाकार और वर्कर हर किसी की फीस में कटौती की जाएगी, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री के सूत्रों की मानें तो ऐसा सिर्फ वर्कर व तकनीशियन के साथ हुआ है.
फिल्म हो या टीवी सीरियल हर जगह कोरोना लहर की वापसी के बाद भी दिग्गज कलाकार अपनी मनमानी कीमत ही निर्माता से वसूल रहे हैं और निर्माता भी इन बड़े कलाकारों के सामने नतमस्तक हैं.
कोरोना लहर के दौरान फिल्मकार पहले की तरह अपनी फिल्म का प्रचार नहीं कर रहे हैं. फिल्म के विज्ञापन नहीं दे रहे हैं. मगर वे फिल्म के सिनेमाघर में प्रदर्शन के बाद अपने पीआरओ के माध्यम से जुटाए गए स्टार की सूची का विज्ञापन सोशल मीडिया के हर प्लेटफौर्म के अलावा चंद अंगरेजी के अखबारों में जरूर दे रहे हैं. जबकि दर्शक खुद को ठगा हुआ महसूस करता है.
हाल ही में जब हम ने एक ऐसे ही पत्रकार के यूट्यूब चैनल पर जा कर उस की फिल्म ‘बिग बुल’ की समीक्षा देखी जिसे उस ने साढ़े तीन स्टार दिए थे तो पाया कि कई दर्शकों ने उस के कमैंट बौक्स में सवाल पूछा था कि क्या आप बता सकते हैं कि आप ने किस फिल्म को तीन से कम स्टार दिए हैं? यानी खराब से खराब फिल्म की समीक्षा में अच्छे स्टार दिलाने का भी एक नया व्यापार शुरू हो गया है. मगर इस संस्कृति से भी फिल्म इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है.
फिल्म इंडस्ट्री तभी संकट से उबर सकेगी जब उस से जुड़े हर तबके, वर्कर, तकनीशियन, निर्माता, निर्देशक व कलाकार के साथसाथ फिल्म वितरक, ऐग्जिविटर व सिनेमाघर मालिकों के हितों का भी ध्यान रखा जाए. मगर कोरोना की नई लहर के साथ जिस तरह का माहौल बना है उस से यही आभास होता है कि शायद अब फिल्म इंडस्ट्री कभी उबर नहीं पाएगी.