बचपन से ही अभिनेत्री बनने का सपना देखती आ रही निधि सिंह को अपने परिवार के सदस्यों को यह बात समझाने में काफी लंबा समय लग गया. परिणामतः उन्होने 25 वर्ष की उम्र में अभिनेत्री बनने के लिए औडीशन देने शुरू किए. 2014 में वेब सीरीज‘परमानेंट रूममेट’में तान्या नागपाल का किरदार निभाकर वह चर्चा में आ गयीं. उसके बाद निधि सिंह ने तकरीबन 14 वेब सीरीज के अलावा ‘दिल जंगली’, ‘ब्रजमोहन अमर रहे’और ‘बहुत हुआ सम्मान’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया. इन दिनों ‘आल्ट बालाजी’ और ‘जी 5’पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज ‘डार्क 7 व्हाइट’ में मुख्यमंत्री की बेटी देविना चैधरी उर्फ डेजी के किरदार में नजर आ रही हैं, जो एक कुशल राजनेता की भांति शतरंज की चाल चलते हुए मुख्यमंत्री बनती है. .
प्रस्तुत है निधि सिंह से हुर्ई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .
अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय काफी देर में लेने के पीछे कोई वजह रही?
-सच कहूं तो मैं हमेशा अभिनेत्री ही बनना चाहती थी. मुझे शुरू से ही पता था कि मुझे अभिनय ही करना है. लेकिन मेरी परवरिश गैर फिल्मी माहौल, प्रयागराज , इलहाबाद के एक अकादमिक परिवार में हुई है. तो समझ में नही आ रहा था कि मैं कैसे मुंबई पहुॅचकर अभिनेत्री बनूंगी. जब आप छोटे होते हैं, तो आप अपने माता पिता को समझा भी नहीं पाते कि आप अभिनय को लेकर कितना गंभीर हैं. मैंने विज्ञान से 12 वीं पास की, फिर सब चाहते थे कि मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई करुं, पर मैने मास मीडिया की पढ़ाई करने की जिद पकड़ी , जिससे मुंबई आने का अवसर मिल जाए. मैं मास मीडिया में स्नातक की डिग्री की पढ़ाई करने के लिए मुंबई आयी. मुंबई पहुंचने के बाद मैने पाया कि यहां हर दूसरा इंसान फिल्मों में अभिनय करना चाहता है. स्नातक तक की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैं एक विज्ञापन एजंसी में नौकरी करने लगी. पर मेरा मन मुझे लगातार अभिनय के लिए उकसा रहा था. अंततः मैंने एक दिन दिल की सुुनकर सहायक निर्देशक के तौर पर काम करने लगी. इसके अलावा थिएटर से जुड़ गयी. मेरा मकसद फिल्म माध्यम व अभिनय की बारीकियों को समझना था. क्योंकि मैने अभिनय की कोई ट्रेनिंग हासिल नहीं की थी. जबकि मैं देख रही थी कि लोग अभिनय में प्रशिक्षण हासिल करके आ रहे हैं. मुझे अच्छे लोग मिले, जिन्होने मुझे काम करने के अवसर प्रदान किए. लोगों ने मुझे कुछ नाटकों में अभिनय करने का अवसर प्रदान किया. हम बाहर से मुंबई आए थे. तो दो वक्त की रोटी के अलावा मकान का किराया सहित कई चीजों के लिए पैसे का दबाव था. जब मैंने वास्तव में औडीशन देने शुरू किए, उस वक्त मेरी उम्र 25 वर्ष थी. जब मेरी उम्र 27 वर्ष थी, तब मेरे हाथ वेब सीरीज ‘‘परमानेंट रूम’’लगी. उससे पहले भी मैने कुछ एड, वेब सीरीज, म्यूजिक वीडियो किए थे, पर उनसे कोई पहचान नही बनी. मगर ‘परमानेंट रूममेंट्स’ को मिली सफलता से लोगों ने मुझे भी बतौर कलाकार पहचाना.
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आपने किनके साथ बतौर सहायक निर्देशक काम किया?
-मैने विज्ञापन कंपनी में नौकरी के दौरान ही कुछ एड मेकरों के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम किया. फिर मैं थिएटर में व्यस्त रही. मैने जेमिनी पाठक और चंदन रॉय सान्याल की थिएटर कंपनी के साथ नाटकों में अभिनय किया. जेमिनी पाठक के साथ मैने बच्चों के शो ‘वंस अपॉन ए टाइगर’ किया. फिर डिजनी के लिए मैंने कई सीरियल किए. मॉल में वह क्रिसमस व न्यूईअर के मौके पर छोटे नाटकों का मंचन करते थे, तो वह किया. अभी पूर्वा नरेश और आकाश खुराना के साथ काम करने का अवसर मिला. आकश खुराना के साथ मैंने ‘कान’ नाटक किया.
छह वर्ष के कैरियर को किस तरह से देखती हैं और टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?
-सच यही है कि मैं अभी सीख रही हूं. और मुझे नही लगता कि मैं कभी सब कुछ सीख पाउंगी. यह मेरा एटीट्यूड है कि मुझे कभी नहीं लगता कि मुझे सब कुछ आता है. पर मेरे अंदर सीखने की लगन बहुत ज्यादा है. मैं सीखूंगी और काम करती रहूंगी. इन सात वर्षों मंे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. बहुत प्यार मिला. मेरे काम को सराहा गया. मैं इन सब को जोड़कर अपने अंदर एक सकारात्मक सोच को बनाना चाहती हूं और बहुत अमैंजिंग काम करना चाहती हूं. मैं खुद को लक्की और मोटीवेटिब मानती हॅूं. मेरे परिवार वालों को मेरे नाम व शोहरत से कोई लेना देना नही है. वह सिर्फ इतना चाहते हैं कि उनकी बेटी खुश रहे. यह मेरी खुशनसीबी ही है कि मुझे इस जिंदगी को अनुभव करने का अवसर मिला. मुझे जिस तरह का प्यार मिल रहा है, उसके भरोसे मै रूकने वाली नही हॅूं. निरंतर प्रगति की राह पर आगे बढ़ती रहॅंूगी. हरं इंसान की जिंदगी की तरह मेरी जिंदगी में भी काफी उतार चढ़ाव रहे हैं. छोटे शहर से बड़े शहर आकर काम को लेकर आने वाली चुनौतियों का सामना तो, हर किसी को करना पड़ता है. हमें भी करना पड़ा. किरदार को यथार्थ परक बनाने की चुनौती होती है. यह आज की चुनौती नही है, बल्कि यह चुनौती रोजमर्रा की है. रोजमर्रा नई चुनौती सामने आकर खड़ी हो जाती है. मगर मैं बहुत सकारात्मक सोच वाली इंसान हॅूं. इसलिए मुझे लगता है कि चाहे जितना बुरा हो, बुरा होने के बाद अच्छा ही होता है. मेेरे कैरियर में काफी उतार चढ़ाव रहे, मगर मुझे हमेशा अंदर से उम्मीद रहती है कि कुछ अच्छा ही होगा. मैं भले ही अंदर से टूट रही होती हूं, अंदर से रोना आ रहा होता है, पर मैं खुद को संभाले रहती हॅूं. मैं हमेशा यही सोचती हॅूं कि जो बुरा होना था, वह हो गया. अब कुछ अच्छा ही होगा. मुझे उम्मीद है कि 2020 भी रहा है, अब अच्छा ही होगा.
आपकी दो वेब सीरीज ‘परमानेंट रूममेट’और ‘पिच्चर’यह दोनों यूट्यूब पर आए थे, जबकि ‘वकालत फ्राम होम’ और ‘डार्क 7 व्हाइट’ओटीटी के बड़े प्लेटफार्म पर हैं. कलाकार के तौर पर किस तरह का फर्क महसूस हुआ?
-देखिए, ‘परमानेंट रूममेट’का रिस्पांस अभी भी मिल रहा है. मगर बड़े प्लेटफार्म पर वेब सीरीज के आने के बाद फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का ध्यान हमारी तरफ गया. लोगों को लगा कि काम में कुछ दम है. जब आपको बड़े लोग पहचानने लगते हैं, तो आपको खुशी होती है. यह खुशनसीबी की बात है. इसके अलावा खुद का हौसलाआफजाई भी होता है. इसका मतलब यही हुआ कि हम कुछ अच्छा कर रहे हैं. देखिए, दर्शक आपको तब भी प्यार देते हैं, जब आप यूट्यूब पर कुछ लेकर आते हैं, मगर इंडस्ट्री के अंदर बड़े प्लेटफार्म का अलग प्रभाव पड़ता है. मैं खुद मार्केटिंग का हिस्सा रह चुकी हंू, इसलिए मार्केटिंग प्वाइंट आफ व्यू से देखा जाए, तो जैसे ही कोई प्रोडक्ट अच्छी जगह दिखने लगता है, लोग मान लेते हैं कि यह प्रोडक्ट अच्छा है. यह ‘गिव एंड टेक’ और बिजनेस का मामला है. पर हमें तो लगातार काम करते रहना ही पड़ेगा.
वेब सीरीज ‘डार्क 7 व्हाइट’के संदर्भ में क्या कहना चाहेंगी?
-यह राजस्थान की पृष्ठभूमि में पोलीअिकल थ्रिलर है. जिसमें एक तरफ एक प्रिंस मुख्यमंत्री बनना चाहता है, जिसके लिए वह मुख्यमंत्री की बेटी देविना चैधरी उर्फ डेजी को अपने प्रेम जाल में फांसकर मुख्यमंत्री की हत्या कर उसे हृदयाघाट का अमली जामा पहना देता है. डेजी सब कुछ जानकर चुप रहते हुए शतरंजी चाल चलती है. अंततः देविना चैधरी उर्फ डेजी ही मुख्यमंत्री बनती है.
वेब सीरीज ‘डार्क 7 हाइट’के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?
-मैं इसमें देविना चैधरी उर्फ डेजी के किरदार में नजर आ रही हॅूं. जो कि चार्मिंग है. साधारण है. जटिल किरदार नही है. उसके अंदर ठहराव है. उसको ज्यादा गुस्सा भी नहीं आता. पर उसके साथ कुछ ऐसा हो जाता है, जिसके बारे में वह सोच भी नहीं सकती. लेकिन इससे उसका पूरा व्यक्तित्व व उसके आस पास की हर चीज बदल जाती है.
कलाकार को आगे बढ़ाने में सोशल मीडिया कितना मददगार साबित होता है?
-मैं सोशल मीडिया को दो तरीकांे से देखती हॅूं. मुझे दोनो तरीके सही लगते हैं. एक तरीका यह है कि आपको मजा आता है, इंस्टाग्राम पर अपनी कहानियां बताने में , अपने दर्शकों को इंगेज करने में. आपको यह सारी चीजें नेचुरल तरीके सआती हैं और आपको भी इसमें मजा आता है. तो जो नेचुरल वाले लोग हैं, मुझे भी उन्हें फॉलो करने में बड़ा मजा आता है. जिनके अंदर यह सारी खूबी नेचुरल तरीके से होती है. दूसरा दबाव वाला कि ऐसा करो, दर्शकों को इंगेज करो, वह मुझे सही नहीं लगता है. वह अॉर्गेनिक प्रोसेस नहीं लगता. इसमें साफ दिखता है कि आप से नहीं हो रहा है. तो मैं सोशल मीडिया को ऐसे देखती हूं कि सोशल मीडिया अपनी बात कहने का एक बहुत ही ताकतवर जरिया है. अगर आप चाहते हैं, तो इसे अपने पक्ष में बहुत ही ज्यादा आसानी से उपयोग कर सकते हैं. मगर मुझे इसमें एक चीज यह लगती है कि अगर आप अपनी फिल्म, वेब सीरीज प्रमोट कर रहे हैं, कुछ भी कर रहे हो, पर औथैंटिक रहना बहुत ज्यादा जरूरी है. सोशल होने का मतलब क्या है?सोच सोशल होने का मतलब है दूसरे लोगों से जुड़ना. आप दूसरे लोगों से जुड़ने की कोशिश करेंगे, मगर गलत तरीके से कोशिश करेंगे, तो आप पकड़े जाएंगे. ऐसे में कभी न कभी आप खुद भी फंस जाएंगे. तो मेरे हिसाब से आप सोशल मीडिया को बहुत सारे तरीके से उपयोग कर सकते हैं और करना भी चाहिए. क्यों ना किया जाए. सोशल मीडिया के चलते कई लोगों के बिजनेस कहां से कहां पहुंच गए हैं.
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किस तरह के किरदार निभाना चाहेंगी?
-मैं सशक्त महिला प्रधान किरदार निभाना चाहूंगी. मेरे पास कुछ अच्छे चुनौतीपूर्ण किरदारों को निभाने के आफर भी हैं, मगर ‘कोविड 19’के चलते बात आगे नहीं बढ़ रही है.
आप प्रयाग इलाहाबाद जैसे छोटे शहर से आई हैं. तो आप छोटे शहरों से जो लड़कियां आ रही हैं, उन्हें क्या सलाह देना चाहेंगी?
-यही कहना चाहूंगी कि दिमागी रूप से यात्रा करना बहुत जरूरी है कि आप जो करना चाह रही है, वह क्यों करना चाह रही हैं?बहुत सी लड़कियां सिर्फ यह सोच कर आ जाती हैं कि फिल्मों में जाना है या पैसा मिल रहा है. तो यह बहुत ही गलत सोच है. अपनी जिंदगी में किसी भी चीज का चुनाव करने के लिए मैं हर लड़के और लड़की से यही कहना चाहूंगी कि आप अपने दिमाग में हर चीजों को क्लियर रखें कि आप क्या करना चाहती हैं और आपका सेंस अॉफ प्रोसेस बहुत तेज होना चाहिए.
आपका फिटनेस मंत्रा क्या है?
-लगातार कंसिस्टेंसी चाहिए. फिर खाने के मामले में हो या एक्सरसाइज के मामले में हो. अगर आप रोज एक्सरसाइज नहीं कर पा रहे हैं, तो जिस दिन आप एक्सरसाइज नहीं कर पा रहे हैं, उस दिन खाने पर ध्यान दें. जिस दिन खाने पर ध्यान नहीं दे पाए, उस दिन ज्यादा एक्सरसाइज करें. लेकिन हमेशा कंसिस्टेंसी होनी चाहिए.