वेब फिल्म ‘ढीठ पतंगे’ से डेब्यू करने वाले निर्माता,निर्देशक रवि अधिकारी मुंबई के है. इससे पहले वे कई शो के लिए क्रिएटिव प्रोड्यूसर रह चुके है. कला के माहौल में पैदा हुए रवि को हमेशा क्रिएटिव वर्क करना पसंद है. वे किसी भी काम को करते वक़्त उसकी गहनता को बारीकी से जांचते है और आगे बढ़ते है. उन्हें नयी कहानियां और रियल फैक्ट्स आकर्षित करती है. वे गौतम अधिकारी और अंजना अधिकारी के बेटे है. वे मानते है कि एक निर्देशक किसी फिल्म को सही दिशा देता है और इसके लिए उसे फिल्म की छोटी से छोटी बारीकियों पर ध्यान देना पड़ता है. रवि अधिकारी इन दिनों अगली फिल्म की तैयारी पर है और कोरोना संक्रमण के बाद सब कुछ फिर से नार्मल हो जाय, इसकी कामना करते है. उनसे बात हुई, पेश है कुछ अंश.
सवाल-अभी ओटीटी प्लेटफॉर्म काफी आगे बढ़ रहा है, क्या आपको अंदेशा था?
ओटीटी कई सालों से थिएटर के साथ चल रहा था, लेकिन लॉक डाउन की वजह से लोग थिएटर में जा नहीं पा रहे थे,ऐसे में लोगों ने डिजिटल मीडियम का सहारा लिया. ये तो होना ही था, क्योंकि घर पर रहकर मनोरंजन का ये एक अच्छा साधन है.
सवाल-क्या ओटीटी की वजह से थिएटर हॉल के व्यवसाय को समस्या आएगी?
ये अभी कहना मुश्किल है, क्योंकि हर फिल्म अलग ढंग से व्यवसाय करती है. छोटी फिल्में डिजिटल पर आने से भी कॉस्ट कवर हो जाता है, क्योंकि ऐसी फिल्में थिएटर से अधिक ओटीटी पर व्यवसाय कर लेती है. सेटेलाइट के अलावा डिजिटल का मार्किट भी पहले से ही खुल गया था. थिएटर के व्यवसाय को पहले से आंकना मुश्किल होता है, कभी कोई साधारण फिल्में भी चल जाती है, तो कभी कोई फिल्म अच्छा व्यवसाय नहीं कर पाती. डिजिटल में लॉस की संभावना नहीं ,लेकिन प्रॉफिट में लॉस होती है. थिएटर में जाकर अब फिल्में देखना दर्शकों के लिए थोड़ी मुश्किल होगी, क्योंकि जिस फिल्म को वे डिजिटल पर देख पा रहे है उसके लिए वे थिएटर में जाकर देखना कम पसंद करेंगे, लेकिन बड़ी और लार्जर देन लाइफ फिल्म का मजा जो थिएटर में है, वह डिजिटल पर नहीं. इसके लिए फिल्म मेकर को आज चुनौती है कि वे ऐसी फिल्म बनाएं, जिसका मज़ा केवल थिएटर में ही मिल सकें.
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