रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता: शोभा कपूर और एकता कपूर

लेखक और निर्देशक: अलंकृता श्रीवास्तव

कलाकार: कोंकणा सेन शर्मा, भूमि पेडणेकर, विक्रांत मेस्सी, आमिर बशीर, अमोल पाराशर, नीलिमा अजीम, कुबरा सेट , करण कुंद्रा व अन्य

अवधि: 2 घंटे

ओ टीटी प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स

फिल्म”लिपस्टिक अंडर माय बुर्का ” से जबरदस्त शोहरत बटोरने वाली लेखक और निर्देशक अलंकृता श्रीवास्तव एक बार फिर औरतों की यौन स्वच्छदता /स्वतंत्रता को लेकर एक अति बोल्ड फिल्म “डॉली किट्टी और वह चमकते सितारे” लेकर आई है, जिसमें उन्होंने जबरन सेक्स परोसने की पूरी कोशिश की है. इसमें मध्यम वर्गीय नारी के यौन सुख संतुष्टि/  चाहत के साथ-साथ बेडरूम की समस्याओं का चित्रण है. तो वही अलंकृता ने इस फिल्म में कामी-लंपट पुरुष की तस्वीर को भी उकेरा है.

कहानी:

यह कहानी नोएडा में रह रही डाली उर्फ राधा यादव(कोंकणा सेन शर्मा) की है, जो कि अपने दो बच्चों भरत व पप्पू तथा पति अमित(आमिर बशीर) के साथ रहती है. डाली एक कंपनी में नौकरी करते हुए नए मकान की किस्त भरने के लिए रकम भी जमा कर रही है. एक दिन दरभंगा, बिहार से उसकी चचेरी बहन काजल (भूमि पेडणेकर)  अपने माता पिता  से झगड़ कर उसके पास रहने आ जाती है. फिल्म की शुरुआत  पार्क से होती है, जहां पर काजल अपनी बहन डाली से उसके पति की शिकायत करती है कि जीजू उसके साथ गलत ढंग से पेश आ रहे हैं. इस पर डाली हंसते हुए कहती है कि,वह खुद  अपने जीजा पर लाइन मार रही है. उस वक्त काजल एक जूता फैक्ट्री में काम कर रही थी, पर वह नौकरी छोड़ देती है. उसके बाद वह अलग रहने चली जाती है और एक कॉल सेंटर “रेड रोज रोमांस ऐप “में किट्टी के नाम से नौकरी करने लगती है. यह ऐप पुरुषों के अकेलेपन को फोन पर दूर करने का प्रयास करता है. इसी के चलते किट्टी को भी प्रदीप(विक्रांत मेस्सी) से प्यार भरी बातें करनी पड़ती हैं, और उसकी दोस्ती  शाजिया(कुबरा सेट) नामक दूसरी सहकर्मी से हो जाती है. शाजिया पैसे के लिए अपना जिस्म भी बेचती है. एक  तरफ वह डीजे (करण कुंद्रा) के संग प्यार का नाटक कर रही है, तो वही वह एक भवन निर्माता का भी बिस्तर गर्म करती रहती है. शाजिया अपने साथ किट्टी को भी इस धंधे में व्यस्त करना चाहती है. पर किट्टी मना कर देती है .लेकिन किट्टी, प्रदीप को अपना दिल दे बैठी है. और जब आगरा का ताजमहल देखने जाती है, तो वहां प्रदीप से मुलाकात होती है .दोनों के बीच यौन संबंध स्थापित होते हैं. उसके बाद नोएडा आने पर भी प्रदीप और किट्टी के बीच यौन संबंध बनते हैं. पर एक दिन ऐसा आता है, जब पुलिस इन दोनों को पकड़ लेती है. तब प्रदीप, किट्टी को  धोखा देकर खुद को छुड़ाकर चला जाता है. खुद को छुड़ाने के लिए काजल, डॉली को फोन करती है. डॉली गुस्साती है और दरभंगा से चाचा चाची को बुला लेती है.

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उधर डॉली की जिंदगी भी अजीबोगरीब मोड़ से गुजर रही है. शादी की रात यानी की सुहागरात से लेकर अब तक उसे कभी भी अपने पति से यौन संतुष्टि नहीं मिली है. उसका पति  अमित हमेशा उस पर ठंडी होने का लांछन लगाते आया है .और पता चलता है कि अमित भी ‘रेड रोज  रोमांस ऐप”  की लड़कियों से फोन पर बात करता रहता है .

इधर डाली धीरे धीरे ऑनलाइन डिलीवरी करने आने वाले युवक उस्मान(अमोल पाराशर) के नजदीक पहुंच जाती है और एक दिन उस्मान को अपने घर बुलाती है. डॉली, उस्मान के साथ यौन संबंध स्थापित कर एहसास करती है कि  वह ठंडी नहीं है.

उसके बाद कई घटना का तेजी से बदलते हैं. काजल माता पिता के साथ जाने को जा अलग कहीं चली जाती है.एक घटनाक्रम में गुंडों की गोली से उस्मान भी मारा जाता है. डाली अपने छोटे बेटे  पप्पू के साथ पति का घर छोड़ देती है.

लेखन व निर्देशन:

अलंकृता श्रीवास्तव ने पितृ सत्तात्मक सोच का विरोध करते हुए नारी की स्वतंत्रता और यौन संतुष्टि को लेकर जो कहानी गढ़ी  है, उसका विरोध होना स्वाभाविक है. वास्तव में अलंकृता श्रीवास्तव ने हवस के  पुजारी पुरुष के साथ ही उन नारियों का भी चित्रण किया है जोके आदर्शवाद के खाते में फिट नहीं बैठती है. यह नारियां आदर्शवाद को धता बताकर अपने मन की सुनते हुए, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए हर तरह का काम और हर तरह के कदम को उठाने से हिचकती नहीं है. इसी के चलते एक तरफ डोली अपने बच्चों की बजाए डिलीवरी ब्वॉय उस्मान पर ज्यादा ध्यान देती हैं. जबकि शाजिया और किट्टी मंकी इच्छा अनुसार सिगरेट शराब पीने के साथ-साथ यौन सुख के लिए हवस की पुजारी पुरुषों के हाथ का खिलौना बनने से भी खुद को रोक नहीं पाती हैं.

फिल्म बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ती है. शुरुआत के एक घंटे के दौरान समझ में ही  नहीं आता कि कहानी क्या है? उसके बाद डाली, किट्टी और शाजिया यौन सुख पाने के  लिए जो खेल रचती है, वह वाहियात है. दो अर्थ वाले संवादों की भी भरमार है.नारी स्वतंत्रता व नारी के मन की इच्छाओं की पूर्ति तथा नारीवाद के नाम पर अश्लील यौन संबंध वाले दृश्य भर दिए गए हैं. यदि निर्देशक ने थोड़ी सी सूझबूझ से काम लिया होता, तो इन दृश्यों को कलात्मक ढंग से पेश किया जा सकता था. मगर लेखक व निर्देशक जिस तरह से सेक्स को परोसा है, उससे एक नारी प्रधान फिल्म बनाने का उनका पूरा मकसद ही विफल हो गया है.  सारे दृश्य बहुत ही बेहूदगी वाले हैं जिन्हें दर्शक भी नहीं देखना चाहेगा.

अभिनय:

कोंकणा सेन शर्मा एक बेहतरीन अदाकारा है, पर इस फिल्म में वह अपने अभिनय का जादू पूरी तरह से दिखाने में सफल नहीं हो पाई है. भूमि पेडणेकर को काजल या किट्टी जैसा किरदार निभाने की जरूरत क्यों पड़ी? यह तो वही जाने. इस फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता के बजाय लोगों की नजरों में उनकी सेक्स भरी बातें, सेक्सी अदाएं और यौन संबंध बनाने प्यास ही छाई रहती है. इसी तरह विक्रांत मैसे को भी प्रदीप के किरदार में में देखकर क्षोफ होता है. यह तीनों ही अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता के लिए पहचाने जाते हैं. पर कमजोर पटकथा और सतही निर्देशन के चलते इनकी अभिनय प्रतिभा उभर नहीं पाई.

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