रेटिंग : 5 में से 2 स्टार
निर्माता : गौरी खान
लेखक : एटली और एस रामागिरीवासन
निर्देशक : एटली कुमार
कलाकार : शाहरुख खान, विजय सेतुपती, दीपिका पादुकोण, नयनतारा, प्रियामणि, सान्या मल्होत्रा, संजीता भट्टाचार्य, गिरिजा ओक
अवधि : 2 घंटे 50 मिनट
प्रदर्शन : 7 सितंबर से सिनेमाघरों में
भ्रष्ट सिस्टम से प्रतिशोध की कहानियों पर कई फिल्में बन चुकी हैं. मगर भ्रष्ट सिस्टम की बात करते हुए यह फिल्म जिस संघर्ष को जन्म देती है, उस में कुछ भी नवीनता नहीं है. यदि हम कला सिनेमा को नजरअंदाज कर दें, तो भी राकेश ओम प्रकाश मेहरा (फिल्म ‘रंग दे बसंती’) या रेंसिल डिसिल्वा (फिल्म ‘उंगली’) से ले कर अब तक कई फिल्मकार इस तरह की कहानियां सशक्त तरीके से पेश करते आए हैं. एटली उसी ढर्रे पर चलते हुए भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ संघर्ष के साथ ही चुनाव में वोट देने से पहले नेताओं से सवाल करने की बात करने वाली 2 घंटे 50 मिनट लंबी अवधि की फिल्म ‘जवान’ ले कर आए हैं. मगर अफसोस निर्देशक एटली, निर्माता गौरी खान और मुख्य अभिनेता शाहरुख खान इस बात को उतने सशक्त व मनोरंजक तरीके से नहीं कह पाए, जो राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने 2006 में प्रदर्शित अपनी फिल्म ‘रंग दे बसंती’ में कही थी.
फिल्म 'जवान’ कहीं न कहीं कान फोङू संगीत व ऐक्शन दृश्यों से भरपूर प्रतिशोध की सतही कहानी बन कर रह गई है. एटली जितने मसाले डाल सकते थे, डाल दिए. मगर फिल्म के कथानक के साथ दर्शक जुड़ नहीं पाता.
कहानी : नदी किनारे बसे एक आदिवासी कबीले के कुछ लोग नदी से एक गंभीर रूप से घायल इंसान को अपनी बस्ती में ले जाते हैं। कबीले के वैद्य उस के शरीर के अंदर से गोलियों को निकाल कर इलाज करता है. यह शख्स (शाहरुख खान) अपनी याददाश्त खो चुका है. पर जब कुछ लोग इस कबीले को तबाह करने पहुंचते हैं, तब अचानक यह इंसान उन सब को मौत की नींद सुला देता है. तब कबीले का एक बच्चा उस शख्स से कहता है कि बड़ा हो कर मैं पता कर के बताउंगा कि आप कौन हैं? फिर कहानी 30 साल आगे बढ़ जाती है. अब आजाद (शाहरुख खान) सामने आता है जो एक महिला जेल का जेलर है. पर उस ने अपनी ही महिला जेल की 6 महिला कैदियों (प्रियामणि, सान्या मल्होत्रा, संजीता भट्टाचार्य, रिद्धि डोगरा) संग एक टीम बना रखी है. हर महिला किसी न किसी कृत्य में माहिर है.
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