‘‘लैला मजनूं’’ की प्रेम कहानी सदियों पुरानी है, मगर फिल्मकार इम्तियाज अली और साजिद अली ने उसे आधुनिक जामा पहनाते हुए बंटाधार करके रख दिया है.

फिल्म की कहानी कश्मीर में रह रहे मसूद की लड़की लैला (तृप्ति डिमरी) से शुरू होती है, जो कि कौलेज में पढ़ती है. वह कौलेज पढ़ने नहीं बल्कि लड़कों के साथ फ्लर्ट करने, उन्हे अपने पीछे दीवाना बनाने के लिए जाती है. उसे इसी में आनंद की अनुभूति होती है. इसी दौरान लैला की मुलाकात कैस बट (अविनाश तिवारी) से होती है. दोनों के पिता शहर के अति अमीर व्यक्ति हैं. मसूद का आरोप है कि कैस बट के पिता ने वर्तमान सरकार की मदद से उनकी जमीन पर कब्जा कर शालीमार नामक बड़ा होटल बना लिया है.

जबकि बट का कहना है कि वह व्यापारी हैं और उन्होने सरकार से जमीन खरीदी है. मसूद का झगड़ा सरकार से है, उनसे नहीं. पर एक नेता के बहकावे में आकर मसूद ने कैस के परिवार को अपना दुश्मन मान लिया है. अब लैला व कैस का प्यार परवान चढ़ता है. कैस, लैला को खुश करने के लिए पूरे कश्मीर में लैला के जन्मदिन के नाम पर उपहार बांटता है. पूरे कश्मीर में इसकी चर्चा शुरू हो जाती है. उधर इस आग में घी डालने का काम लैला का फुफेरा भाई इबान (सुमित कौल) करता रहता है. इबान को नेता ने आश्वासन दिया है कि वह लैला के पति को एमएलए बनवा देगा.

बहरहाल, इबान व लैला की शादी हो जाती है. लैला, इबान व दूसरों की बातों में आकर कैस बट को घर से बेइज्जत कर भगा देती है. फिर कहानी चार वर्ष बाद शुरू होती है, जब कैस के पिता की मौत हो जाती है. पता चलता है कि इबान एमएलए बन गया है. वह शराब में डूबा रहता है. अपनी सरकार के चलते इबान ने ही कैस के परिवार पर जुल्म ढाते हुए कैस के पिता की संपत्ति छीनकर उन पर कई मुकदमे चलवा रखे हैं. इसी वजह से चार साल से शालीमार होटल भी बंद पड़ा है.

पिता के जनाजे को कंधा देने कैस लंदन से वापस आता है. यह खबर पाते ही लैला को नई शक्ति मिल जाती है. पति के विरोध के बावजूद वह कैस से मिलती है और अपने प्यार का पुनः इजहार करती है. अब लैला अपने शराबी पति की चार वर्ष से सहन कर रही प्रताड़ना के खिलाफ विद्रोह कर देती है. उसे अदालत में जाने की धमकी के साथ जनता के सामने इबान को बेनकाब करने की बात करती है. इसी गम में ज्यादा शराब पीकर इबान मर जाता है. लैला के पिता को अपनी गलती का अहसास होता है. वह लैला से कहते हैं कि पति की मौत के बाद की रस्म पूरी होने के बाद कैस से धूमधाम के साथ शादी कर सकती है. लैला, कैस से तब तक इंतजार करने के लिए कहती है. पर इस इंतजार के ही दौरान मजनूं बने कैस पागल हो जाते हैं.

कैस की हालत जानकर लैला को सदमा लगता है और उसकी मौत हो जाती है. कैस कब्रिस्तान जाता है और लैला की कब्र पर लगे पत्थर से चोटिल होकर वहीं मौत के मुंह में समा जाता है.

कथानक व पटकथा के स्तर काफी कमियां है. यह न पूरी तरह से बौलीवुड फिल्म बन पायी और न ही क्लासिक प्रेम कहानी वाली फिल्म ही बन पायी. लैला व कैस के बीच जुनूनी प्यार की बजाय एकतरफा प्यार ही नजर आता है और यह एकतरफा प्यार भी महज उसी वक्त परदे पर उभरता है, जब लैला व कैस आमने सामने होते हैं. यह फिल्म की बजाय किसी सीरियल के कुछ एपीसोड नजर आते हैं. फिल्म कश्मीर में है, तो वहां पर बहुत कुछ कहानी का केंद्र बन सकता था. मगर फिल्मकार ने राजनीतिक दुश्मनी को ही चुना और उसे भी ठीक से पेश नहीं कर पाए.

फिल्म में उबाउपना ज्यादा है. फिल्म में जिस तरह से कैस व उनके पिता के बीच के रिश्ते दिखाए गए हैं और जिस तरह से कैस अपने पिता को मूर्ख बनाकर उन्हे लैला के पिता के पास गिड़गिड़ाने के लिए राजी करता है, वह सब अस्वाभाविक व अति नकली नजर आता है. इस सीन को देखकर लेखक की दिमागी सोच पर हंसी आती है. इतना ही नहीं कई जगह इसे एडीटिंग टेबल पर ठीक किया जा सकता था, पर वह भी नहीं हुआ. फिल्म का गीत संगीत भी आकर्षित नहीं करता.

कश्मीर की खूबसूरत वादियों का नयनसुख लेने के लिए भले ही इस फिल्म को देखा जा सकता है. पूरी फिल्म में लैला भारी भरकम या यूं कहें कि अर्ध दुल्हन के मेकअप में ही नजर आती है. पर  कैस उर्फ मजनूं शानदार जैकेट पहने हुए नजर आते हैं. पर जहां तक अभिनय का सवाल है तो लैला के किरदार में तृप्ति डिमरी को अभी मेहनत करने की जरुरत है. कैस उर्फ मजनूं के किरदार में अविनाश तिवारी ने सहज अभिनय किया है. इस फिल्म से अविनाश तिवारी को अवश्य फायदा मिलेगा.

दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘लैला मजनूं’’ का निर्माण इम्तियाज अली व एकता कपूर ने किया है. फिल्म के लेखक इम्तियाज अली, गीतकार इरशाद कामिल, निर्देशक साजिद अली, कैमरामैन सयक भट्टाचार्य, संगीतकार  निलाद्री कुमार, जोई बरूआ व अलिफ तथा कलाकार हैं-अविनाश तिवारी, तृप्ति डिमरी, सुमित कौल, मीर सरवर, रूचिका कूपर , साहिबा बाली व अन्य.

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