‘दस’, ‘तथास्तु’, ‘रा वन’’, ‘तुम बिन’ जैसी फिल्मों के सर्जक अनुभव सिन्हा की नई फिल्म ‘‘मुल्क’’ सत्य घटनाक्रमों पर आधारित पूर्णरूपेण एजेंडे वाली फिल्म है. फिल्म ‘‘मुल्क’’, मुल्क की बजाय महजब पर बात करती है. यह फिल्म हम (हिंदू) और वो (मुसलमान) के विभाजन की बात करते हुए वर्तमान समय की देश की सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों पर करारा प्रहार भी करती है. पर फिल्म के अंत में जिस तरह से जज अपना निर्णय सुनाते हुए उपदेशात्मक भाषण बाजी करता है, उससे फिल्म कमजोर हो जाती है.
फिल्म की कहानी बनारस के एक मोहल्ले से शुरू होती है. जहां हिंदू व मुस्लिम परिवार एक दूसरे के साथ बिना धर्म के भेदभाव के प्रेम पूर्वक रहते हैं. यहीं एक मुस्लिम परिवार है – वकील मुराद अली मोहम्मद (रिषि कपूर ) का. इस परिवार में उनकी पत्नी तबस्सुम (नीना गुप्ता), छोटा भाई बिलाल (मनोज पाहवा), बिलाल की पत्नी (प्राची शाह पंड्या), बेटा शाहिद (प्रतीक बब्बर), बेटी आयत हैं. बड़ा बेटा अल्ताफ लंदन में रहता है, जिसने एक हिंदू लड़की आरती मोहम्मद (तापसी पन्नू) सेशादी की है. आरती मोहम्मद वकील भी हैं. आरती का अपने पति अल्ताफ से मतभेद हो गया है और दोनों अलग होने की सोच रहे हैं. क्योंकि अल्ताफ चाहता है कि आरती मां बनने से पहले तय करके बताए कि उनका होने वाला बच्चा किस धर्म को मानेगा.
बहरहाल, मुराद अली के जन्मदिन के जश्न का हिस्सा बनने के लिए आरती मोहम्मद लंदन से बनारस आती है. पर रात में हीशाहिद क्रिकेट मैच देखने कानपुर जाने की बात करके चला जाता है. पर पता चलता है कि वह कानपुर की बजाय इलाहाबाद गया था और इलाहाबाद के बस अड्डे पर हुए बम विस्फोट में 16 निर्दोष मारे जाते हैं. इस आतंकवादी हमले के तीन आरोपियों की पहचान होती है, जिनमें से एक शाहिद मोहम्मद है. दो आरोपी मारे जाते हैं. तीसरे आरोपी शाहिद मोहम्मद काएनकाउंटर एटीएस प्रमुख दानिश जावेद (रजत कपूर) कर देते हैं.
इसी के साथ अब मुराद अली मोहम्मद के पूरे परिवार को आतंकवादी मान लिया जाता है. पूरे परिवार की जिंदगी रातों रात बदल जाती है. मोहल्ले के सभी हिंदू इस परिवार से खुद को दूर कर लेते हैं. मुराद अली मोहम्मद के घर की दीवार पर लिख दिया जाता है कि ‘पाकिस्तान जाओ’.
उधर पुलिस शाहिद मोहम्मद के पिता और मुराद अली के छोटे भाई बिलाल को साजिशकर्ता मानकर गिरफ्तार कर लेती है. अब तक इलाके के सम्मानित वकील माने जाते रहे मुराद अली मोहम्मद को भी आरोपी बनाया जाता है. इस परिवार को आंतकवादी साबित करने के लिए एटीएस अफसर दानिश जावेद और सरकारी वकील संतोष आनंद (आशुतोष राणा) कमर कस लेते हैं.
अब मुराद अली मोहम्मद व उनके परिवार के सामने खुद को निर्दोष साबित करने व अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को पुनः अर्जित करने के लिए अदालती लड़ाई लड़ने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं रह जाता. मुराद अली अदालत में खुद अपनी लड़ाई लड़ना चाहते हैं, मगर अदालत के अंदर उनकी देशभक्ति व मुस्लिम होने को लेकर जिस तरह के सवाल उठाए जाते हैं, उससे विचलित होकर वह मुकदमा लड़ने की जिम्मेदारी आरती मोहम्मद को दे देते हैं. उसके बाद बहस आतंकवाद या शाहिद को किस तरह फुसला कर इस तरफ ले जाया गया, उस पर नहीं होती है. बल्कि पूरी बहस मुस्लिम धर्म व मुराद अली के परिवार ने शाहिद को आतंकवादी बनाकर पैसा कमाने का व्यापार चला रखा था, इसी के इर्द गिर्द होती है.
धीरे धीरे बहस हम (हिंदू) और वो (मुसलमान) के विभाजन के साथ वर्तमान समय की सामाजिक व राजनीतिक परिस्थितियों की तरफ जाती है. अदालत के अंदर अंततः आरती मोहम्मद कटघरे में खड़े मुराद अली से सवाल करती है कि आप देशभक्त हैं,यह कैसे साबित करेंगे? आप जैसी दाढ़ी वाले मुसलमान और एक दाढ़ी वाले आतंकवादी के फर्क को कैसे साबित करेंगे? फिल्म के अंत में जज कुछ सोचने पर विवश करने वाले सवालों के साथ लंबा भाषण देते हैं.
फिल्म की पटकथा में कुछ कमियां हैं, मगर बेहतरीन संवादों के चलते वह कमी दर्शक की नजरों से ओझल हो जाती है. फिल्म के संवाद हर इंसान को सोचने पर विवश करते हैं. पटकथा लेखक ने फिल्म में कई सवाल उठाए, पर उन पर बाद में कोई बात ही नहीं की. मसलन-आयत ने जब अपने प्रेमी व अपने भाई शाहिद मोहम्मद को बंद कमरे में हाथ में बंदूक लिए व किसी से बात करते हुए सुना, तो फिर वह चुप क्यों रही? उसने इसकी जानकारी पूरे परिवार को क्यों नहीं दी?
मोबाइल के 14 सिम को लेकर वकील संतोष आनंद ने कई बार सवाल उठाए, पर उस पर फिल्म अंत तक कुछ नही कहती?इंटरवल से पहले फिल्म की गति न सिर्फ धीमी है, बल्कि एक ही जगह घूमती रहती है, पर इंटरवल के बाद फिल्म में तेजी आती है. कोर्ट के दृश्य अच्छे बन पड़े हैं. फिल्म में लेखक व निर्देशक ने नौकरी से लेकर प्रशासनिक स्तर पर सरकार मुस्लिमों के मुकाबले हिंदुओं को ज्यादा तरजीह देने का आरोप भी सरकार पर लगाया है.
इतना ही नहीं लेखक व निर्देशक अनुभव सिन्हा की इस फिल्म में काफी विरोधाभास है. एक तरफ वह सरकार व हिंदुओं पर हम (हिंदू) और वो (मुसलमान) के विभाजन की बात करते हैं, तो वहीं वह मुस्लिम पुलिस अफसर दानिश जावेद को मुस्लिमों को आतंकवादी मानने के पूर्वाग्रह से ग्रसित बताते हुए आरोप लगाया है कि दानिश अली ने पूर्वाग्रह के ही चलते शाहिद मोहम्म्द को जिंदा गिरफ्तार करने की बजाय उसका एनकाउंटर कर पूरे मुस्लिम परिवार को आतंकवादी साबित करने का प्रयास किया.
अनुभव सिन्हा ने ‘‘मुल्क’’ में सेक्यूलरिजम की बात करते हुए आतंकवाद, आतंकवादी और जिहाद की परिभाषा भी बतायी है. पर वह फिल्म के अंत में सौहाद्र या प्रेम या दो धर्मावलंबियों के बीच भाईचारा दिखाने की बजाय दिखाते हैं कि अदालत मे सारी बहस व जज का उपदेशात्मक निर्णय सुनने के बावजूद फिल्म के अंत में जब चौबे (अशोक तिवारी), मुराद अली के नजदीक आकर उनसे गले मिलना चाहते हैं, तो मुराद अली उनकी जानबूझकर अनदेखी कर अपनी बहू आरती के पास चले जाते हैं.
कई कमियों के बावजूद अनुभव सिन्हा इस बात के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने ऐसे विषय पर फिल्म बनायी है, जिससे अमूमन फिल्मकार दूरी बनाकर रखते हैं. निर्देशक के तौर पर वह साधुवाद के पात्र हैं. उनकी पिछली सभी फिल्मों के मुकाबले‘मुल्क’ बेहतर फिल्म है.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो मुराद अली मोहम्मद के किरदार में रिषि कपूर ने अति शानदार अभिनय किया है. उम्र के साथ उनके अभिनय की धार तेज होती जा रही है. वकील संतोष आनंद के किरदार में आशुतोष राणा काफी समय बाद अच्छा अभिनय करते हुए नजर आए हैं. पिछली कुछ फिल्मों में उनके अभिनय से धार गायब हो चुकी थी. प्रतीक बब्बर के किरदार की लंबाई काफी छोटी है और उनके हिस्से करने के लिए कुछ खास रहा नहीं. प्रतीक बब्बर के अभिनय में निखार नहीं आया. उन्हे काफी मेहनत करने की जरुरत है.
यूं तो तापसी पन्नू एक बेहतरीन अदाकारा हैं, मगर इस फिल्म में ‘पिंक’ के मुकाबले उनकी अदाकारी उन्नीस ही रही. पर क्लायमेक्स में तापसी पन्नू की जानदार अदाकारी उभर कर आती है. जज के किरदार में कुमुद मिश्रा व एटीएस अफसर दानिश जावेद के किरदार में रजत कपूर ठीक ठाक रहे.
फिल्म का गीत संगीत प्रभावशाली नहीं है. फिल्म की शुरुआत में ही मुराद अली के घर पर रखी गयी गीत संगीत वाली पार्टी जबरन ठूंसी हुई लगती है.
दो घंटे बीस मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘मुल्क’’ का निर्माण दीपक मुकुट और अनुभव सिन्हा ने किया है. फिल्म के लेखक व निर्देशक अनुभव सिन्हा, संगीतकार प्रसाद सशते, अनुराग सैकिया, कैमरामैन ईवान मुलिगन तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं – रिषि कपूर, रजत कपूर, तापसी पन्नू, मनोज पाहवा, नीना गुप्ता, प्रतीक बब्बर, आशुतोष राणा,अशोक तिवारी, अश्रुत जैन, वर्तिका सिंह, प्राची शाह पंड्या, इंद्रनील सेन गुप्ता, अब्दुल कादिर अमीन व अन्य.