2014 में प्रदर्शित तमिल फिल्म ‘‘पिसासु’’ के हिंदी रीमेक वाली फिल्म ‘‘नानू की जानू’’ इस कदर घटिया है कि इसे देखना पैसा व समय बर्बाद करने के साथ ही सिरदर्द है. इस फिल्म से दूर रहने में ही हर तरह की भलाई है. फिल्म में एक दृश्य है, जहां नानू की मां (हिमानी शिवपुरी) एक फिल्म देख रही हैं. जब नानू पूछता है कि फिल्म कैसी है, तो नानू की मां कहती है-‘‘बहुत बकवास’’. तो लेखक ने अपनी फिल्म की सच्चाई खुद ही इस दृश्य में व्यक्त कर दी है.
फिल्म ‘‘नानू की जानू’’ की कहानी एक भूत की प्रेम कहानी है. आनंद उर्फ नानू (अभय देओल) दिल्ली शहर का गुंडा है. वह लोगों से उनका मकान किराए पर लेता है और फिर उसे हड़प लेता है. इसमें उसका दोस्त डब्बू (मनु रिषि) मदद करता है. एक दिन जब नानू अपनी कार से घर की तरफ वापस लौट रहा होता है, तभी उसकी मां का फोन आ जाता है, मां से मोबाइल फोन पर बात करते हुए वह गाड़ी को किनारे लगाने की कोशिशकरता है, तो उसकी कार से स्कूटी की टक्कर हो जाती है और स्कूटी पर सवार लड़की सिद्धि उर्फ जानू (पत्रलेखा) की मौत हो जाती है. पर नानू को इस बात का अहसास ही नहीं है. मगर सिद्धि यानी कि जानू का भूत उसके पल्ले पड़ जाता है.
भूतनी जानू अब नानू के घर में ही रहने लगती है. और नानू के साथ कई बड़ी अजीब सी चीजें होने लगती है. नानू इनसे निजात पाने का असफल प्रयास करता है. नानू अपने दोस्त डब्बू के साथ पता लगाना शुरू करता है कि किस लड़की की मौत हुई है, जो कि भूतनी बनकर उसके साथ रह रही है. तो पता चलता है कि उस रात सड़क पर सिद्धि की मौत हुई थी. नानू, सिद्धि के पिता से मिलते हैं. सिद्धि के पिता ने सिद्धि का अंतिम संस्कार नहीं किया है. बल्कि उसके मृत शरीर को अपनी फैक्टरी में बर्फ के बीच सुरक्षित रखा है. क्योंकि वह मानते हैं कि वह जिंदा है.
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