रेटिंग: दो स्टार

‘फिल्मिस्तान’और ‘‘मित्रों’’ जैसी फिल्मों के सर्जक नितिन कक्कड़ इस बार प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘नोटबुक’’ में अपना जादू जगाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. अफसोस की बात यह है कि 2014 में औस्कर तक पहुंची थाई फिल्म ‘‘टीचर्स डायरी’’ का सही ढंग से भारतीयकरण नहीं कर पाए.

फिल्म ‘‘नोटबुक’’की कहानी शुरू होती है दिल्ली में अपने घर के अंदर नींद में सपना देख रहे कश्मीरी पंडित कबीर(जहीर इकबाल) से. सपने में कबीर एक सैनिक की पोशाक में है, सीमा पार से आया एक मासूम बालक उसे देखकर भागता है और जमीन पर पडे एक बम पर उसके पैर के पड़ने से वह मारा जाता है. तभी श्रीनगर से आए फोन की घंटी से कबीर की नींद टूटती है. फोन पर बात करने के बाद वह श्रीनगर के लिए रवाना होता है. श्रीनगर में वह अपने पुश्तैनी मकान पर पहुंचता है, जिसकी देखभाल एक मुस्लिम शख्स कर रहा है. कई साल पहले कुछ कश्मीरी मुस्लिमों ने ही उसके परिवार को श्रीनगर छोड़ने पर मजबूर किया था. अब एक मुस्लिम ही उसके मकान को सुरक्षित रखे हुए हैं. श्रीनगर की एक झील के बीचो बीच कबीर के पिता का ‘वूलर स्कूल’ है,जिसमें सात बच्चे नाव से पढ़ने आते जाते हैं. लेकिन जुनैद सेश्शादी तय होने पर स्कूल की शिक्षक फिरदौस (प्रनूतन बहल) ने वूलर स्कूल छोड़कर अपने होने वाले शौहर जुनैद के डीपीएस स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया है.वूलर स्कूल में कोई शिक्षक नही है. यूं तो स्कूल अब सरकार के कब्जे में है, मगर कबीर के घर की सुरक्षा कर रहे शख्स की इच्छा है कि कबीर वूलर स्कूल के बच्चों को पढ़ाए, जिससे बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो. कबीर प्रयास करता है और उसे वूलर स्कूल में नौकरी मिल जाती है. स्कूल के बच्चे फिरदौस शिक्षक को भूले नहीं हैं, इसलिए वह कबीर को स्वीकार करने को तैयार नही है. कबीर को कक्षा में फिरदौस की नोटबुक मिलती है, जिसमें फिरदौस ने हर दिन की कथा व अपने मन के विचार लिख रखे हैं. इस नोटबुक को पढ़कर कबीर उसी तरह बच्चों के साथ व्यवहार कर बच्चों का दिल जीत लेता है. इतना ही नही वह फिरदौस से प्यार कर बैठता है और फिरदौस का पता लगाकर उससे मिलने का असफल प्रयास करता है.

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