‘आमिर’ और ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी फिल्मों के सर्जक राज कुमार गुप्ता इस बार 1980 के लखनऊ के हाई प्रोफाइल इनकम टैक्स छापे पर आधारित फिल्म ‘‘रेड’’ लेकर आए हैं. फिल्म को यथार्थ परक बनाते समय फिल्मकार यह भूल गए कि फिल्म में मनोरंजन भी चाहिए. फिल्म‘‘रेड’’ देखकर इस बात का अहसास होता है कि यह फिल्म एक अतीत की सत्य कथा को पेश करने के नाम पर सरकारी एजेंडे का प्रचार करने के साथ ही खास सरकार को खुश करने का भी प्रयास है. परिणामतः फिल्म नीरस व शुष्क हो गयी है.
फिल्म की कहानी 1981 के लखनऊ में पड़े हाई प्रोफाइल इनकम टैक्स छापे पर सच्ची कथा है, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी. आयकर विभाग में कार्यरत औफिसर अमय पटनायक (अजय देवगन) का तबादला लखनऊ हो जाता है. अमय पटनायक ना सिर्फ ईमानदार बल्कि अति आदर्शवादी हैं. सुबह साढ़े चार बजे उठना, घड़ी देखकर हर काम को पूरी मुस्तैदी के साथ अंजाम देना. अब तक 49 बार उनका तबादला हो चुका है और अमय पटनायक को इसकी आदत पड़ चुकी है. लेकिन इससे उनकी पत्नी मालिनी (इलियाना डिक्रूज) कभी खुश नहीं होती.
मालिनी को बार बार सामान बांधकर एक शहर से दूसरे शहर में भटकना पसंद नहीं. मालिनी अपने पति को समझाती है कि बहुत ज्यादाईमानदार न बनो, पर अंत में वह एक आज्ञाकारी पत्नी की ही तरह काम करती है. लखनऊ पहुंचते ही अमय को जानकारी मिलती है कि एक सांसद रामेश्वर सिंह (सौरभ शुक्ला) ने जबरदस्त टैक्स चोरी की है. रामेश्वर सिंह के घर में उनकी मां, भाई, बहन, भाभी सहित परिवार का लंबाचौड़ा कुनबा है. रामेश्वर सिंह ताकतवर हैं. उन पर कोई हाथ नहीं डालता. पर अमय अपने सहयोगियों के साथ रामेश्वर सिंह के घर पर छापा मारते हैं.
रामेश्वर सिंह भी खुद को ईमानदार समझते हैं, इसलिए वह कहते है कि मैं एक ही जगह पर बैठा हूं, जाकर तलाशी ले लो. कुछ नहीं मिलेगा. पहले तो कुछ नहीं मिलता है. पर अचानक मकान की छत पर अमय के हाथ एक कागज आता है और उस कागज में बने नक्शे के आधार पर नए सिरे से तलाशी लेने पर 420 करोड़ की नकदी व जेवर आदि मिलते हैं. उसके बाद अमय पर कई तरह के दबाव आते हैं. यहां तक कि प्रधानमंत्री खुद अमय को फोन करके कहती हैं कि मामले को रफा दफा कर दें, पर अमय किसी की सुनते नहीं हैं.
अमय अपनी जांच जारी रखते हैं, पर अंत में जब सच सामने आता है, तो कुछ अलग ही होता है.
इनकम टैक्स औफिसर के किरदार में अजय देवगन के अभिनय में उनकी पिछली कई फिल्मों का दोहराव ही है. वह एक ही तरह के मैनेरिज्म के साथ परदे पर नजर आते हैं. अजय देवगन ‘गंगाजल’, ‘सिंघम’ सहित कई फिल्मों में सिस्टम के खिलाफ जाकर एक ईमानदार अफसर के किरदार निभा चुके हैं. ‘रेड’ में कुछ भी नया नहीं कर पाए. हर सीन में वह महज फिल्मी हीरो के रूप में ही नजर आते हैं. उनका किरदार स्थिर सा लगता है.
इलियाना डिक्रूज के हिस्से करने को कुछ है ही नहीं. निर्देशक ने उनकी प्रतिभा का बेजा इस्तेमाल किया है. कथानक मे इलियाना डिकूजा के किरदार की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. सौरभ शुक्ला ने साबित कर दिखाया कि उनके अभिनय का कोई सानी नहीं है. अमित सयाल, गायत्री अय्यर सहित बाकी सभी कलाकारों की प्रतिभा का दुरुपयोग ही किया गया है.
पटकथा व निर्देशन के स्तर पर भी काफी कमियां हैं. एक सत्य कथा को भी नाटकीय ढंग से पेश नहीं कर पाए राज कुमार गुप्ता. फिल्म बेवजह लंबी, रबर की तह खींची गयी है. फिल्म की कहानी लखनऊ शहर की है, मगर फिल्म से लखनऊ गायब है. चंद पुरानी इमारतें दिखाकर यह कहना कि यह लखनऊ शहर है, अजीब सा लगता है. लखनऊ की संस्कृति तहजीब कुछ भी फिल्म का हिस्सा नहीं है. ‘आमिर’ व ‘नो वन किल्ड जेसिका’ जैसी धारदार फिल्में बना चुके राज कुमार गुप्ता की इस फिल्म में कोई धार नहीं है. यह फिल्म मनोरंजन के नाम पर भी शून्य है. राज कुमार गुप्ता को नहीं भूलना चाहिए कि इनकम टैक्स रेड पर ही बनी फिल्म ‘स्पेशल 26’ में नाटकीयता के साथ साथ रोमांच व मनोरंजन भी था.
फिल्म का गीत संगीत भी कमजोर है. यहां तक कि फिल्म का पार्श्व संगीत भी फिल्म को नाटकीय नहीं बना पाता.
119 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘रेड’’ का निर्माण अभिषेक पाठक, कुमार मंगत पाठक, भूषण कुमार, किशन कुमार ने किया है. निर्देशक राज कुमार गुप्ता, कहानीकार रितेश शाह, पटकथा लेखक राज कुमार गुप्ता व रितेश शाह, संगीतकार अमित त्रिवेदी, कैमरामैन अल्फांसो राय तथा कलाकार हैं – अजय देवगन, इलियाना डिक्रूज, सौरभ शुक्ला, गायत्री अय्यर, अमित सयाल, अक्षय वर्मा, अमित बिमोरेट व अन्य.
VIDEO : आप भी बना सकती हैं अपने होठों को ज्यूसी
ऐसे ही वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक कर SUBSCRIBE करें गृहशोभा का YouTube चैनल.