भ्रष्टाचार को खत्म करने तथा ईमानदार पिता के माथे पर लगे कलंक को मिटाने के लिए सभी भ्रष्ट पुलिस अफसरों को मौत के घाट उतारने की कहानी है फिल्मकार मिलाप मिलन झवेरी की एक्शन व रोमांचक फिल्म ‘‘सत्यमेव जयते.’’ अतिनाटकीय घटनाक्रमों, अति रक्त रंजित दृश्यों से युक्त फिल्म ‘‘सत्यमेव जयते’’ में नएपन का घोर अभाव है. फिल्म देशभक्ति के साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ संदेश देने में भी पूरी तरह से विफल है. फिल्म देखते समय दर्शक को सत्तर व अस्सी के दशक में बनी इंतकाम व अच्छाई बनाम बुराई की कहानी वाली सैकड़ों ‘बी’ ग्रेड फिल्में याद आ जाती है.
फिल्म की कहानी शुरू होती है एक भ्रष्ट पुलिस अफसर को वीर (जौन अब्राहम) के द्वारा आग में जिंदा जलाने से. जब तीन पुलिस अफसर इस तरह जलाकर मौत के घाट उतार दिए जाते हैं, तब अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस कमिश्नर (मनीष चौधरी), डीसीपी शिवांष (मनोज बाजपेयी) को जिम्मेदारी दी जाती है. डीसीपी शिवांष का हर कदम उन्हे अपराधी से दूर ही ले जाता है और भ्रष्ट पुलिस अधिकारी मारे जाते रहते हैं. इंटरवल तक पता चल जाता है कि वीर व शिवांष भाई हैं. जब यह बच्चे थे, तब इनके पिता और ईमानदार पुलिस अफसर शिवा को उनके दोस्त व पुलिस अफसर (मनीष चौधरी) ने ही साजिष रचकर ड्रग्स की तस्करी करने व घूस लेने के आरोप में पुलिस की नौकरी से निकलवाया था, जिसके बाद शिवा ने खुद को आग लगा ली थी.
बाद में बड़े होकर शिवांष पुलिस की नौकरी करने लगे और वीर एक चित्रकार बन गए. पर वीर ने भ्रष्ट पुलिस अफसरों की पहचान कर उनकी हत्या करने का सिलसिला जारी रखा. अंत में अपने पिता के अपराधी को वीर सजा देता है, मगर ईमानदार पुलिस अफसर शिवांष के हाथों गोली चलती है और वीर मारा जाता है.
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