हिंदी फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ की सीरीज बनाकर चर्चित हुए निर्माता, निर्देशक आनंद एल राय दिल्ली के हैं, उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक इंजिनियर के रूप में की, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और वे मुंबई आकर टीवी निर्देशक अपने बड़े भाई रवि राय को एसिस्ट करने लगें. कुछ दिनों के संघर्ष के बाद उन्हें फिल्म ‘रांझणा’ मिली, जो कमोवेश सफल रही. इसके बाद उन्होंने कंगना रनौत को लेकर फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ बनायीं, जो बौक्स आफिस पर कामयाब फिल्म रही. आनंद रोमांटिक कौमेडी फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं और हर तरह की फिल्में उन्हें आकर्षित करती है, जो उन्हें चुनौतीपूर्ण लगती है. फिल्म ‘जीरो’ भी ऐसी ही एक नयी कांसेप्ट पर आधारित फिल्म है, उनसे मुलाकात हुई, पेश है कुछ अंश.
कितने सालों से इस फिल्म को बनाने की तैयारियां चल रहीं थी?
मेरे हिसाब से एक निर्देशक को तब कहानी कहनी चाहिए, जब उसे कहने की कोई वजह हो. मैं कहानी में इन्वेस्ट होता हूं. उसे कहने के लिए 3 से 4 साल चला जाता है. इसलिए अगर किसी कहानी को कहने में उतना वक्त चला जाता है, जिसे मैं अपनी बेटी और परिवार के साथ बिता सकता था और उन्हें समय न देकर अगर मैं कुछ कहने की कोशिश कर रहा हूं तो उसकी वजह का होना बहुत जरुरी है. ये कहानी मेरे लिए बहुत अलग है. इससे पहले जो फिल्में बनायीं उससे दर्शकों में ये धारणा हो गयी कि मैं छोटे शहर और उनसे जुड़े लोगों को ही पर्दे पर दिखाना पसंद करता हूं. ऐसे में मुझे इस दायरे में बंध जाना पसंद नहीं. इसलिए मैंने अलग तरह की फिल्म बनाने की सोची. इसमें मैंने वी एफ एक्स को एक इमोशन का रूप देने की कोशिश की है.
बौनों पर फिल्म बनाने की इच्छा कहां से आई?
कुछ साल पहले हम सब सुपर हिरोस की तरफ जा रहे थे, लोगों को वैसी फिल्में पसंद भी आ रही थी, पर मैं उससे जुड़ नहीं पाया. मुझे फिल्में अच्छी लग रही थी, पर लगता था कि ऐसा सुपर हीरो हमारे बीच का कोई व्यक्ति नहीं हो सकता. वो उधार लिया हुआ चरित्र है और ऐसा फिल्म मैं नहीं बना सकता, क्योंकि हम कद में छोटे हैं. यही कद छोटे होने की बात ने मुझे इस फिल्म को बनाने के लिए प्रेरित किया.
रियल लाइफ में कभी बौनों से मिलना हुआ?
मैंने शोध किया है और मैं यह सोचता हूं कि हमें अपनी लाइफ को हर कमजोरी के साथ सेलिब्रेट करनी चाहिए. आप कैसे भी खुश रह सकते हैं. इस फिल्म को बनाने की एक वजह ये भी है कि हम अपने लाइफ को कैसे भी सेलिब्रेट करें. मैं मिला नहीं, पर उनके लाइफ के बारें में जानने और समझने की कोशिश की है.
इस फिल्म को बनाने में चुनौतियां कहां आई?
मेरी हौबी आज मेरा प्रोफेशन बन चुकी है और मैं खुश हूं कि दर्शक मेरा साथ दे रहे हैं. इस फिल्म को बनाना कठिन था, पर चुनौतियां अधिक नहीं आई, क्योंकि मुझे इसे बनाने में मजा आ रहा था.
क्या बड़े स्टार को फिल्म में काम करवाना मुश्किल होता है?
ऐसा नहीं है, हर किसी का हर किसी के साथ जुड़ाव अलग-अलग होता है और अगर मैं ऐसा ही सोचता रहूं, तो मैं कभी भी फिल्म बना नहीं सकता, क्योंकि हर व्यक्ति में मुझे कमियां ही दिखेंगी.
जब फिल्में नहीं चलती तो उसका जिम्मेदार निर्देशक को ठहराया जाता है, इस फिल्म के लिए आप पर किस तरह का प्रेशर है?
निर्देशक ही जिम्मेदार है और इसे मैं सही मानता हूं. इसमें भी उतना ही प्रेशर है, जितना हर फिल्म के लिए होता है. मैं इस बात से सहमत हूं कि फिल्म चलने या न चलने दोनों में निर्देशक की जिम्मेदारी होनी चाहिए, क्योंकि वह उसका सपना होता है. ये उसकी जिद होती है कि वह अपनी कहानी दर्शकों के सामने लायें.
ऐसी फिल्में पहले भी बनी है ऐसे में आपकी फिल्म किसी फिल्म का दोहराव तो नहीं?
अप्पु राजा ऐसी फिल्म थी, पर इसकी कहानी अलग है. इसमें एक बौना जो अपनी जिंदगी से बहुत खुश है और उसने कभी अपने आपको किसी साधारण इंसान से कम नहीं समझा.
आगे की योजनाये क्या है?
अभी कुछ सोचा नहीं हूं. मैं अपनी लाइफ में हमेशा नयी कहानी सुनाने की इच्छा रखता हूं. ये मेरी भूख है, जो थोड़े दिनों बाद मुझे लगती है और मैं फिर से कुछ नयी कहानी के बारें में सोचने लगता हूं. मैं कहानी का गुलाम हूं.
समय मिले तो क्या करना पसंद करते हैं?
मैं अभी ये समझ पाया हूं कि मैंने परिवार के साथ बैठकर फिल्मों के अलावा कोई बात नहीं की. मैं अपनी लाइफ में अनुसाशन को लाने की कोशिश करूंगा और थोडा समय परिवार के साथ बिताने की कोशिश करूंगा.