साल 1981 में फिल्म ‘कलियुग’ में सपोर्टिंग एक्ट्रेस की भूमिका से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री और गुजरती थिएटर आर्टिस्ट सुप्रिया पाठक ने आजतक कई सफल फिल्में और टीवी धारावाहिक की हैं. सहज और स्वाभाविक अभिनय करने वाली सुप्रिया ने लीक से हटकर फिल्में की, उनकी कुछ खास फिल्में हैं, जिन्हें आज भी याद किया जाता है. मसलन बाजार, विजेता, मासूम, मिर्च-मसाला, राख आदि. हालांकि सुप्रिया का अभिनय अच्छा होने के बावजूद बड़े पर्दे पर उन्हें उतनी सफलता नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी, पर वह इससे अधिक प्रभावित नहीं हुई और जो काम जैसे आता गया, करती गयी.
काम के दौरान उन्होंने अभिनेता पंकज कपूर से शादी की और दो बच्चों की मां बनी. फलस्वरूप उन्होंने 11 साल का ब्रेक लिया और फिर फिल्म ‘सरकार’ से वापस इंडस्ट्री में आईं और फिल्म रामलीला- गोलियों की रासलीला में जबरदस्त भूमिका निभाकर बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के पुरस्कार की भी हकदार बनी. फिल्मों के साथ-साथ सुप्रिया ने छोटे पर्दे की तरफ भी रुख किया और कई टीवी शोज किये. धारावाहिक ‘खिचड़ी’ में उन्होंने हंसा की भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया और आज भी लोग उसे हंसा के नाम से बुलाते हैं. स्टार प्लस पर धारावाहिक ‘खिचड़ी’ के फिर से शुरू होने के उपलक्ष्य पर उनसे मुलाकात हुई, पेश है अंश.
आपकी फिटनेस का राज क्या है?
मुझे अब तक जो मिला है उसमें खुश रहती हूं और जो करना चाहा, उसे कर पायी. इसमें सबने मेरा साथ दिया, फिर चाहे वह परिवार हो दर्शक हो या इंडस्ट्री. मैं नकारात्मक सोच को अपने से दूर रखती हूं. यही मेरी फिटनेस का राज है.
इस शो में अलग क्या होगा?
इसमें भी मैं हंसा ही रहूंगी, क्योंकि हंसा एक एवरग्रीन करैक्टर है, उसे बदलना मुश्किल है. कोशिश की गयी, पर हो नहीं सका, लेकिन इस बार हंसा पहले से और अधिक खुश रहेगी.
आप का स्वभाव हंसा से कितना मेल खाता है?
हंसा और सुप्रिया में कोई मेल नहीं है. मैं घर पर खाना बहुत पकाती हूं, बच्चों पर हमेशा ध्यान देती हूं, मेरी शादी को 30 साल हो चुके हैं, लेकिन मैंने काम नहीं छोड़ा. मेरे पास कभी ऐसा समय नहीं था कि मैं कही बैठकर अपनी लाइफ हंसा की तरह एन्जाय करूं. मैं हर जगह की घटनाओं से हमेशा प्रभावित रहती हूं, जबकि हंसा ऐसा कुछ नहीं करती. सिर्फ एक समानता यह है कि हंसा हमेशा खुश रहती है और मैं खुश रहने की कोशिश करती हूं.
अब तक की सभी भूमिकाओं में किसे करना मुश्किल था और क्यों?
हर चरित्र कठिन होता है, आजतक जितनी भी भूमिका मैंने निभाई सब मुश्किल था. मैंने सबमें अपनी जान डाली है, इसलिए सारे चरित्र मेरे दिल के करीब हैं. मुझे याद आता है, शुरुआत में मैंने कुछ ऐसी फिल्में की थी जिसे करने में अच्छा नहीं लगा था. बाद में मैंने जितनी भी भूमिका निभाई सबको सोच समझ कर लिया और करने में मजा भी आया. मुझे खुशी अभिनय से ही मिलती है चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो. नए किरदार को मैं खुद क्रिएट करती हूं और जब वह बन जाती है तो बहुत आनंद आता है.
क्या दर्शकों को रुलाने से अधिक हंसाना मुश्किल होता है?
किसी को साथ में लेकर हंसाना बहुत कठिन है, किसी पर हंसना आसान है. कौमेडी में यही मुश्किल होता है.
यहां तक की जर्नी को आप कैसे देखती हैं?
मेरी जर्नी बहुत अच्छी रही है. मैंने बहुत काम किया है और जैसे चाहा वैसे ही किया.
इंडस्ट्री में कितना बदलाव पाती हैं?
जो ग्रोथ होनी चाहिए उतनी ही हुई है. रिश्ते अब कम हो गए हैं, आज लोग प्रोफेशनल अधिक हो गए हैं.
आपके बच्चे आपके काम से कितने प्रभावित हैं और क्या वे भी इस इंडस्ट्री का हिस्सा हैं?
मेरी बेटी सना कपूर और मेरा बेटा रूहान कपूर दोनों मेरे काम से बहुत खुश हैं. वे दोनों मेरे काम के आलोचक हैं. सना ने अभी एक फिल्म ‘शानदार’ की है दूसरी करने वाली है. बेटा लन्दन में एक्टिंग के क्षेत्र में पढ़ाई पूरी करने गया है.
क्या बचपन की कुछ यादें हैं जिसे आप अभी भी याद करती हैं?
मुझे याद आता है कि बचपन में मेरा घर क्रिएटिव लोगों से भरा रहता था, बहुत लोग आते-जाते रहते थे. मेरी मां पार्टी वर्कर भी थी. इस वजह से लेखक, कवि, एक्टर्स सभी मेरे घर में आते थे. घर का माहौल वैसा था, पर मैं बहुत इन्त्रोवर्ट थी, लाइट औफ कर अपने घर में तब तक बैठी रहती थी, जब तक कि वे लोग न जाएं. मुझे ये माहौल अधिक पसंद नहीं था, पर रहना था और धीरे-धीरे मुझे भी बाद में अच्छा लगने लगा था. मेरा और रत्ना का स्वभाव बहुत अलग है, पर हमारा रिश्ता बहुत गहरा है. आज भी जब भी समय मिलता हम दोनों साथ मिलते है.
क्या कुछ मलाल रह गया है?
मैंने बहुत काम किये हैं और अभी फिल्मों में भी अधिक काम कर रही हूं, लेकिन मैंने सोचा था कि मैं हमेशा शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करुंगी, पर कभी-कभी नहीं कर पायी. उसका दुःख है.
शाहिद के कैरियर को आप कैसे देखती हैं?
उसने बहुत अच्छा काम किया है. उसकी फिल्म ‘जब वी मेट’ और ‘पद्मावत’ मुझे बहुत पसंद है.
कोई सुपर पावर मिले तो क्या बदलना चाहती हैं?
इस देश में शांति लाना चाहती हूं.
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