Anurag Basu : शांत, धैर्यवान और हंसमुख अनुराग बसु ने फिल्म इंडस्ट्री में एक लंबा सफर तय किया है. इसमें उन्होंने एक स्टोरीटेलर के रूप में क्रीएटिवटी, अडैप्टबिलटी और अथक परिश्रम से अपने आर्टिस्टिक हुनर को सबके सामने लाने की कोशिश की है. अनुराग एक अच्छे फ़िल्म, टीवी विज्ञापन, निर्माता, निर्देशक, अभिनेता और पटकथा लेखक के रूप में जाने जाते हैं उन्होंने कई बड़ी फिल्में और वेब सीरीज बनाई है.
अनुराग बसु का जन्म झारखंड के भिलाई क्षेत्र में एक आर्टिस्टिक बंगाली परिवार में हुआ है, जहां उनकी मां दीपशखा बसु और पिता सुब्रतो बसु दोनों ही उच्च श्रेणी के थिएटर आर्टिस्ट रहे, जिसका प्रभाव अनुराग के जीवन पर पड़ा. अनुराग ने अपनी शुरुआती पढ़ाई भिलाई से पूरी की. उसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई जबलपुर इंजीनियरिंग कौलेज से पूरा किया है. काम के दौरान उन्होंने तानी बसु से शादी किया और दो बेटियों के पिता बने.
कैरियर की शुरुआत
अनुराग का कैरियर टीवी धारावाहिकों से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने तारा, कोशिश.. एक आशा जैसी पौपुलर शोज बनाए. इसके बाद उन्होंने सांस भी कभी बहू थी, कहानी घरघर की, कसौटी जिंदगी की आदि कई धारावाहिकों के पायलट शो बनाए. इसके बाद उन्होंने खुद की कम्पनी शुरू की और कई धारावाहिकों का निर्माण किया, जिसमें मीत, मंजिले अपनी अपनी, एम आई आई टी, थ्रिलर एट 10, रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियां आदि कई थे. टीवी की जर्नी को वे चुनौतीपूर्ण और रिवार्डिंग मानते है. उनका कहना है कि टीवी में काम करना एक बवंडर में काम करने जैसा होता है, जिसमें लिमिटेड टाइम में हाई क्वालिटी कंटैन्ट का प्रेशर बना रहता है, इससे मुझे किसी भी बदलते परिस्थिति में मुझे कुछ अच्छा सोचने की सीख मिली. साथ ही दर्शकों की पसंद को जानने का मौका भी शो के जरिए मिलता रहा. टीवी में काम करना सभी कलाकारों के लिए भी बहुत जरूरी होता है, क्योंकि इससे कलाकार दर्शकों की पर्सनल लेवल से जुड़ जाता है और कलाकार के रोजरोज की कोशिश उन्हें एक अच्छा कलाकार बनाती है.
टीवी से फिल्मों का सफर
अनुराग ने टीवी धारावाहिकों के हजारों एपिसोड शूट करने के साथसाथ खुद को एक फिल्म मेकर के रूप में स्थापित किया है, जिसके लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि उनकी पहचान टीवी पर हो चुकी थी, लेकिन उनकी इच्छा थी कि वे एक बड़ी फिल्म का निर्देशन करें, ऐसे में छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर शिफ्ट करना उनके लिए एक बड़ा कदम था, जिसे उन्होंने सोच समझकर लिया, क्योंकि वे चाहते थे कि अब उन कहनियों को कही जाए, जिसे लोगों ने सालों से नहीं देखा है और ये कहनियां हमारे आसपास घट रही है, जिसमें जुनून, ईर्ष्या और व्यभिचार जैसे विषयों को लेना आवश्यक है. इसी श्रृंखला में उन्होंने मर्डर और बर्फ़ी जैसी फिल्में बनाकर एक चर्चित निर्देशक बने. उनका मानना है कि एक निर्देशक हर फिल्म से कुछ न कुछ सीखता है और मैंने भी सीखा है.
20 सालों का साथ
अनुराग बासु की कोर टीम पिछले 20 वर्षों से साथ काम कर रही है, प्रोडक्शन डिजाइन से लेकर सिनेमेटोग्राफर सभी आजतक साथ है. वे कहते है कि मेरी पहली फिल्म मेरे सारे ग्रुप की पहली फिल्म थी, सभी ने साथ मिलकर उस फिल्म को बनाई थी और आज भी साथ फिल्म्स बनाते हैं. उन्होंने फिल्म मेकिंग को खुद की उपलब्धि नहीं, बल्कि टीम की मेहनत को माना है, एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा है कि मैँ किसी स्क्रिप्ट को लिखने के बाद उसे शूट करते वक्त आर्टिस्ट को पूरी आजादी देता हूं ताकि वे उसे अपने तरीके से दृश्य को अच्छा बनाए, इसलिए कई बार स्क्रिप्ट मेरे पास होती है, लेकिन शूटिंग के दृश्य बदल जाते है और रिजल्ट अच्छा निकल कर आता है.
बसु ने हर तरह की कहानियों को कहने की कोशिश की है, जिसमें संगीत, रोमांस, थ्रिल आदि के सहारे उन्होंने दर्शकों को हमेशा कुछ नया दिया है. वे कहते है कि एक फिल्म मेकर होने के नाते मैं हमेशा पूरे विश्व से प्रभावित रहता हूं और किसी भी जोनर की संस्कृति और वहां के अनुभव को फिल्म की कहानी के जरिए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता रहता हूं. फिल्म जग्गा जासूस अधिक नहीं चली, लेकिन उसमें मैंने नए स्टाइल और एनिमेशन का प्रयोग किया है, क्योंकि आर्ट एक ईवोल्यूशन है, इसमें मैं नए प्रयोग करता रहता हूं, ताकि दर्शकों को कुछ नया देखने को मिले.
रहा संघर्ष
अनुराग के टीवी से फिल्मों के कैरियर की शुरुआत आसान नहीं था, उन्हें बहुत संघर्ष करने पड़े, क्योंकि उन्हे प्रूव करना पड़ा कि वह एक अच्छे फिल्म मेकर है, लेकिन इसके लिए किसी बड़े फिल्म मेकर के अंदर उन्हें काम करने की जरूरत थी, जिसका मौका उन्हे भट्ट कैम्प से मिला. हालांकि उनके कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में तुषार कपूर और ईशा देओल स्टारर फिल्म कुछ तो है से हुआ और इस फिल्म का निर्माण एकता कपूर ने किया गया था, लेकिन यह फिल्म बौक्सऔफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी. इसके बाद बासु ने महेश भट्ट के साथ मिलकर फिल्म साया का निर्देशन किया. इस फिल्म में जॉन अब्राहम और तारा शर्मा मुख्य भूमिका में नजर आये थे, लेकिन पहली फिल्म की तरह उनकी यह फिल्म भी दर्शकों को कुछ खास पसंद नहीं आई. अनुराग कहते है कि मुझे ये प्रूव करना मुश्किल हो रहा था कि मैं एक अच्छा फिल्म मेकर हूं, लेकिन एक दिन मुकेश भट्ट ने मुझे बुलाया और 7 लाख का ऑफर निर्देशन के लिए दिया, लेकिन तुरंत उन्होंने इसे दो फिल्मों की फीस बता दी, मैँ राजी हो गया, क्योंकि कोई काम मिल नहीं रहा था और तब फिल्म मर्डर बनी. ढाई करोड़ की फिल्म ने 80 करोड़ की कमाई की और मेरा निर्देशन सफल रहा. यह मेरी पहली हिट फिल्म साबित हुई.
फिल्म हिट तो डायरेक्टर हिट
इसके बाद अनुराग ने फिल्म गैंगस्टर और लाइफ इन ए मेट्रो जैसी फ़िल्में निर्देशित की, जिसे दर्शकों ने कुछ पसंद किया, लेकिन तभी उनके मस्तिष्क में बर्फी फिल्म की कहानी आई और बसु ने इसे रणबीर कपूर, प्रियंका चोपड़ा और इलियाना डीक्रूज के साथ बनाई, जो उनके कैरियर की सबसे बड़ी हिट फिल्म फिल्म साबित हुई, क्योंकि इस फिल्म में दार्जिलिंग के एक गूंगे और बहरे व्यक्ति मर्फी “बर्फी” जौनसन के जीवन और उसके दो महिलाओं श्रुति और झिलमिल के साथ सम्बन्धों को दर्शाती है, यह फिल्म दर्शकों और आलोचकों द्वारा हर जगह सराही गयी. इस फिल्म को कई पुरस्कार भी मिले.
अनुराग बसु को हुआ था ब्लड कैंसर
अनुराग बसु को वर्ष 2004 में प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया नामक ब्लड कैंसर था. इस बीमारी में बोन मैरो में सफ़ेद रक्त कोशिकाओं का उत्पादन बढ़ जाता है. अनुराग बसु कीमोथेरेपी और लगातार इलाज के बाद इस बीमारी से उबर चुके है. अब वे खुद की नियमित देखभाल से ठीक है. उस घटना के बारें में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि उन्हें इस बीमारी का पता तब चला, जब उनके मुंह में बड़ेबड़े छाले निकलने लगे थे.
वह डौक्टर के पास तो गए, लेकिन वहां उनको कुछ मेडिकल टेस्ट के लिए एडमिट होने के लिए कहा गया था. अनुराग बिना टेस्ट कराए सेट पर वापस आ गए, लेकिन स्थिति ठीक न होने की वजह से उनको अस्पताल में भर्ती किया गया. इधर उनकी पत्नी दूसरी बार गर्भवती थी और डौक्टर ने उन्हे कहा कि उनके पास जीने के लिए केवल 2 सप्ताह है. अनुराग घबराये नहीं और उस परिस्थिति से निकलने की कोशिश में लगे रहे.
उनके इलाज के दौरान, टीवी और फ़िल्म इंडस्ट्री के कई लोगों ने रक्तदान किया था. उन्होंने कीमोथेरेपी के दौरान मास्क पहनकर फ़िल्म ‘गैंगस्टर’ की शूटिंग की थी. उन्हें परिवार, दोस्तों, और चाहने वालों का पूरा समर्थन मिला, जिससे वे इस बीमारी से उबर पाए. वे आगे कहते है कि कैंसर से लड़ाई के बाद मेरा जीवन के प्रति नजरिया ही बदल गया है.
रियलिटी शोज में जज अब और नहीं
अनुराग हंसते हुए कहते हैं कि एक घटना ने मुझे रियलिटी शोज में काम करने से रोक दिया है. मैंने कई डांस शोज जज किये है, एक दिन एक माल में मैं बच्चों सहित एक परिवार से मिला, बच्चों ने मेरे साथ पहले तो सेल्फी ली, लेकिन तभी उन बच्चों की मां ने मुझसे पूछा कि आपका डांस क्लास कहा है? उस दिन से मैंने सोच लिया है कि मैं अब डांस रियलिटी शोज की जजिंग नहीं करूंगा.
इंडियन फिल्म्स है ग्लोबल फिल्म
अनुराग मानते हैं कि इंडियन फिल्म्स ग्लोबल औडियंस को ध्यान में रख कर बनाई जाती है, लेकिन आज किसी को अधिक सफलता नहीं मिल रही है. आशा है, जिस तरह चिकन टिक्का का टेस्ट विदेशों में लोगों ने डेवलप कर लिया है, वैसे ही हमारी फिल्मों को भी वे पसंद करने लगेंगे. देखा जाय तो कोरीयन फिल्म इंडस्ट्री हमारे से काफी बाद में शुरू हुई है, लेकिन उनकी फिल्में और वेब सीरीज को पूरे विश्व में लोग पसंद कर रहे है. वे अधिक फिल्म्स बनाते भी नहीं अच्छा कमाते है, जबकि बॉलीवुड काफी फिल्में बनाकर भी उतना कमा नहीं पा रही है.
इस प्रकार अनुराग बसु की जर्नी डेली सोप ओपेरा से शुरू होकर सिनेमा और वेब सीरीज तक पहुंच चुकी है, जिसमें उनकी ग्रोथ, एडेप्टेशन, आर्टिस्टिक और समर्पण पूरी तरह से झलकता है. उन्होंने अलगअलग कहानी के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया है और आगे भी कुछ नई कहानियों से दर्शकों का मनोरंजन करवाना चाहते है. वे कहते हैं कि मास्टरी एक जर्नी है, डेस्टिनेशन नहीं और आज भी मुझे एक नई कहानी कहने की उत्सुकता है.