Sheena Chohan : मलयालम फिल्म से कैरियर की शुरुआत करने वाली खूबसूरत, सुंदर कदकाठी वाली ऐक्ट्रैस शीना चौहान ने हिंदी, तमिल, तेलुगू, हौलीवुड फिल्मों और वैब सीरीज में अभिनय किया है. उन्होंने मलयालम फिल्म ‘द ट्रेन’ में ममूटी के साथ अपनी शुरुआत की, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक जयराज ने निर्देशित किया था, लेकिन उन्हें बड़ी सफलता ओटीटी पर आई फिल्म ‘ऐंट स्टोरी’ से मिली, जिस से उन्हें कई पुरस्कार भी मिले. इस के अलावा उन्होंने बुद्धदेव दासगुप्ता द्वारा निर्देशित फिल्म ‘मुक्ति’ और ‘पत्रलेखा’ में मुख्य भूमिका निभाई है. इतना ही नहीं कोलकाता की शीना ‘मिस कोलकाता’ भी रहीं और यही उन्होंने मौडलिंग और थिएटर में काम करना शुरू कर दिया था.

अभिनय के अलावा शीना ह्यूमन राइट्स की ब्रैंड ऐंबेसडर हैं और पूरी दुनिया में इस दिशा पर काम कर रही हैं.

अभी शीना एक हिंदी मूवी ‘संत तुकाराम’ में काम कर रही हैं, जो रिलीज होने पर है. इस में उन्होंने अवली जीजाबाई की भूमिका निभाई है, जबकि तेलुगू फिल्म में पुलिस औफिसर, हौलीवुड और वैब सीरीज में भी काम कर रही हैं. ये सभी फिल्में इस साल रिलीज होने वाली हैं. उन्होंने खास गृहशोभा के साथ बात की. पेश हैं, कुछ खास अंश :

खुश हूं जर्नी से

फिल्मों और वैब सीरीज में एकसाथ काम कर शीना अपनी जर्नी से बहुत खुश हैं और कहती हैं कि हर भूमिका की डिमांड अलगअलग है और मेहनत भी, लेकिन मैं इस से बहुत खुश हूं, क्योंकि अभी मेरी जर्नी रियल में शुरू हुई है और मुझे बेहतर काम मिल रहा है. मैं ने हर क्षेत्रीय भाषाओं में काम किया है और हिंदी में छोटेछोटे रोल किए हैं, लेकिन एक बड़ी भूमिका हिंदी फिल्म में करना मेरे लिए बहुत संतुष्टि देता है.

इतना ही नहीं, अलगअलग क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों में काम करने पर ऐक्टिंग का अनुभव बहुत होता है और उसे मैं फिल्मों में प्रयोग कर पाऊंगी.

रिजनल फिल्मों और हिंदी फिल्मों में काम करने में अंतर को ले कर शीना कहती हैं कि अभिनय के इमोशंस एक जैसे होते हैं, लेकिन भाषा, कल्चर, कहानी कहने का अंदाज वगैरह में अंतर होता है. बंगाल और मलयालम में साहित्य को अच्छी तरह दिखाया जाता है. आने वाली हिंदी फिल्म में मैं ने महाराष्ट्रीयन कल्चर को देवनागरी में किया.

मिली प्रेरणा

अभिनय के क्षेत्र में आने की प्रेरणा के बारे में शीना का कहना है कि मेरी मां मेरी प्रेरणास्त्रोत हैं, क्योंकि उन्हें अभिनय का बहुत शौक था, लेकिन ट्रैडिशनल परिवार की होने की वजह से उन्हें यह मौका नहीं मिला. उन का सपना था कि वे हर चीज का अनुभव करें, इसलिए उन्होंने मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बेल्ट, ड्राइंग, कौन्टैंपररी और क्लासिकल डांस को सिखाया, जिस का फायदा अब मुझे मिल रहा है.

परिवार का सहयोग

शीना कहती हैं कि मां ने मुझे शुरू से थिएटर में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्हें लगता था कि मैं अधिक से अधिक अभिनय करूं और आगे फिल्म इंडस्ट्री में भी अभिनय करूं, इसलिए मना करने की कोई गुंजाइश नहीं रही.

पंजाब से मुंबई का सफर

शीना कहती हैं कि मैं पंजाब में पैदा हुई थी और स्कूल की पढ़ाई की. बाद में कोलकाता में मैं अपने परिवार के साथ शिफ्ट हुई और बाकी शिक्षा पूरी की. वहां पर मैं ने थिएटर और डांस सीखी, क्योंकि कोलकाता में आर्ट और कल्चर अधिक मात्रा में होता है, वहां हर परिवार में लोग डांस या संगीत को महत्त्व देते हैं. इस के बाद मैं दिल्ली में भारतीय रंगमंच निर्देशक, अरविंद गौड़ के पास गई और वहां पर थिएटर की बारीकियां सीखीं.

दिल्ली में मैं ने मौडलिंग शुरू की और साउथ के निर्देशक ने मुझे मामूटी के साथ फिल्म में काम करने
का मौका दिया. इस से मैं धीरेधीरे पौपुलर हुई और एक के बाद एक काम मिलता गया.

संघर्ष

शीना कहती हैं कि अच्छा काम मिलना एक चुनौती है और मैं ने भी बहुत संघर्ष किए हैं. कोई भी काम मेरे पास चल कर नहीं आया. इस में मैं जिन के साथ काम करना चाहती थी, उन के साथ काम मिलने में समय लगा. मैं ने यह सीखा है कि जीवन में 3 चीजें बहुत जरूरी हैं- दृढ़ विश्वास, पैशन और अटल रहना, ताकि आप मेहनत से आगे बढ़ सकें. कई लोग बहुत जल्दी निराश हो कर दूसरा रास्ता अपना लेते हैं, पर मुझे यह सही नहीं लगता, क्योंकि इस क्षेत्र में रिजैक्शन होता है और उस परिस्थिति में खुद को संभालना पड़ता है, जो पैशन के बिना संभव नहीं हो सकता. अब मैं हर पल को अच्छी तरह जीना पसंद करती हूं.

सोशल वर्क है पसंद

ह्यूमन राइट्स के क्षेत्र में शीना अच्छा काम कर रही हैं और वे इस की ब्रैंड ऐंबेसडर भी हैं. इस क्षेत्र में काम करने की वजह के बारे में उन का कहना है कि मुझे बचपन से इस क्षेत्र में काम करने की इच्छा रही है, क्योंकि मेरी मां जो करना चाहती थीं, उन्हें कभी करने को नहीं मिला. गांवदेहातों में तो आमतौर पर स्त्रियों को कोई सम्मान नहीं मिलता. मेरे अंदर ऐसे बहुत प्रश्न थे, जिन का हल मुझे चाहिए था, ऐसे में ह्यूमन राइट्स और्गेनाइजेशन में ब्रैंड ऐंबेसडर बनने का औफर मिला. मैं ने स्कूल में पढ़ते हुए ही यह काम शुरू कर दिया था, ताकि महिलाओं में जागरूकता बढ़े और उन के हक के बारे में उन्हें परिचित करा सकूं.
अगर किसी को खुद के हक के बारे में पता न हो, तो इसे रोकना संभव नहीं. ‘न’ बोलना तभी संभव होता है, जब आप अपनी सीमा से परिचित हो. मेरा यह पैशन है और इसे मैं फिल्मों, स्कूलों और कालेजों के जरीए करती रहती हूं. इस से ही एक नया समाज बनने का सपना पूरा हो सकेगा.

नारी शक्ति में कमी

स्त्रियों पर आज भी अधिक शोषण होने की वजह के बारे में शीना का कहना है कि अपने अंदर की कौन्फिडेंस को वे जुटा नहीं पातीं, क्योंकि समाज और परिवार के प्रेशर बहुत होते हैं और सहयोग बहुत कम मिलता है. एक औरत की सैल्फ रिस्पेक्ट और कौन्फिडेंस को पहले जगाने की जरूरत है, इस के बाद वे बाहर अपनी बाउंड्री तय कर सकती हैं, ताकि अगर कुछ गलत होता है, तो आप खड़े हो कर सही और गलत को बोल सकती हैं. यही समस्या हर जगह है. जहां की सोसाइटी पुरुषप्रधान है, महिलाओं को झेलना पड़ रहा है. अभी थोड़ा बदलाव दिख रहा है, लेकिन अभी भी फिल्मों में वूमन को ही आब्जेक्टिफाई किया जाता है. मैं इस दिशा में स्त्रियों की आवाज बन कर अधिक काम करना चाहती हूं, क्योंकि इस से मुझे खुशी मिलती है.

शीना आज की लड़कियों से गुजारिश करती हुई कहती हैं कि वे अपने अधिकारों के बारे में जानें. जहां कुछ गलत लग रहा हो, वहां न बोलना सीखें, खुद को हमेशा रिस्पैक्ट दें, अपने ऊपर विश्वास रखें. सफलता का मूलमंत्र यही है.

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