सिनेमा के परदे पर निरंतर जमीन से जुड़े और सशक्त नारी की तस्वीर पेश करने वाले किरदारों को निभाती आ रही नारीवादी और दिल से अति भावुक अदाकारा श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने महज अपने आठ वर्ष के कैरियर में काफी उपलब्धियां हासिल कर ली हैं. श्वेता त्रिपाठी शर्मा एकमात्र वह अदाकारा हैं, जो अपने कैरियर की पहली ही फिल्म ‘‘मसान’’ से कांस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में दस्तक देने में कामयाब हो गयी थी. जब उनका कैरियर सरपट भाग रहा था, तभी उन्होंने रैपर व म्यूजीशियन चैतन्य शर्मा उर्फ चीता के साथ 2018 में विवाह रचा लिया था. तब लोगों ने कहा था कि श्वेता ने अपने कैरियर पर कुल्हाड़ी मारी.
मगर श्वेता त्रिपाठी का कैरियर निरंतर उंचाई की ओर जा रहा है. उन्हे वेब सीरीज ‘मिर्जापुर सीजन दो’ में गोलू के किरदार में जबरदस्त शोहरत मिली. इसमें श्वेता त्रिपाठी शर्मा का गोलू का किरदार कालेज चुनाव जीतने से लेकर आत्म सुख व यौन सुख के लिए ‘मास्टर बैशन’ करते हुए नजर आता है. इन दिनों वह 24 मार्च से ‘जी 5’ पर स्ट्रीम हो रही फिल्म ‘‘कंजूस मक्खीचूस’’को लेकर उत्साहित हैं, जो कि उनके कैरियर की पहली कौमेडी फिल्म है.
प्रस्तुत है श्वेता त्रिपाठी शर्मा से हुई बातचीत के अंश…..
आपको अभिनय का चस्का कैसे लगा?
-अभिनय का कीड़ा जब किसी इंसान को काट लेता है, तो जब तक वह उसे पूरा नहीं करता, तब तक वह इंसान को तंग करता रहता है. मुझे अभिनय का कीड़ा बचपन से रहा है. मैं केजी से मैं स्टेज पर रही हॅूं. बचपन में स्टेज पर अलग अलग किरदार बनने में व करने में जो मजा आता था, उतना ही मजा मुझे अभी भी आता है. इसलिए यह तो होना ही था. फिर जैसे एसआरके कहते हैं- ‘जिस चीज को मांगो, उस पूरा करने में पूरी कायनात मदद करती है. ’तो मुझे लगता है कि मेरे साथ बिलकुल वैसा ही हुआ है.
पर आपको यह अभिनय का कीड़ा लगा कहां से?
-मुझे टीवी देखने का शौक रहा है. और टीवी पर जो विज्ञापन आते थे, वह मुझे बहुत फैशिनेट करते थे. कई एड देखकर मुझे लगता था कि मुझे भी उसमें होना है. जब बड़ी हुई और नाटक देखना शुरू किया, तो उस वक्त भी ‘पृथ्वी थिएटर फेस्टिवल’ हुआ करते थे. तब तक मुझे नहीं पता था कि पृथ्वी थिएटर क्या है, किसने कब शुरू किया. लेकिन मेरे मम्मी पापा ने कल्चर और कल्चर से जुड़ी चीजों को बहुत महत्व दिया.
सभी जानते है कि मरे पापा आईएएस आफिसर रहे हैं और मेरी मां अवकाश प्राप्त शिक्षक हैं. तो दिल्ली में रहते हुए हम अपने मम्मी पापा के साथ हेमा मालिनी की डांस परफार्मेंस और एनएसडी में नाटक देखने जाया करते थे. मुंबई आने पर इसी तरह से मैने ‘पृथ्वी फेस्टिवल’ में विश्वास जी का एक नाटक देखा था. उस नाटक को देखते हुए मैं उसी दुनिया में खो गयी थी. तो मुझे लगा कि यह तो मेरे साथ जादू हो गया. तब मैने सोचा कि इस नाटक ने जो जादू मेरे साथ किया है, मैं खुद जादूगर बन लोगों के साथ वैसा ही जादू करना चाहती हूं.
जबकि मैने कभी यह नही सोचा था कि मैं बड़ी होकर अभिनेत्री बनूंगी. मैने इस बात को गंभीरता से लिया ही नही था. मैं खुद को भाग्यशाली मानती हॅूं कि मेरे अंदर अभिनय का कीड़ा पैदा हुआ और मैं कलाकार बनी. अब मैं इस कीड़े को कहीं नही जाने दूंगी.
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लेकिन आपने मुंबई में अपने कैरियर की शुरूआत एक अंग्रेजी पत्रिका की फोटो एडीटर के रूप में किया था?
-देखिए, मुझे फोटोग्राफी का शौक रहा है. हकीकत में मेरी दीदी को सबसे अधिक फोटोग्राफी का शौक रहा है. मैं छोटी बहन होने के नाते अक्सर दीदी को छेड़ती रहती थी कि वह क्या फोटोग्राफी करती है? हमेशा उसके काम में नुक्स निकालती थी. जब मैं कालेज में पहुंची और मैने कैमरा उठाया तो मैने महसूस किया कि यह भी कहानी कहने का एक तरीका है. उसके बाद मैं भी फाटोग्राफी करने लगी. फिर इंटर्नशिप करने के लिए मैं मुंबई आयी. मतलब मुझे फोटो एडीटर की नौकरी के लिए मुंबई आने का मौका मिला, जिसने मेरे अंदर पुनः अभिनय का कीड़ा जगाया.
जब आप कैमरे के सामने होती हैं, तब कैमरे की समझ कितनी मदद करता है?
-बहुत ज्यादा मदद मिलती है. अब मुझे अच्छी तरह से समझ में आ गया कि है कि किसी भी चीज के बारे में ज्ञान कभी भी जाया नही जाता. जो भी जानकारी होती है, वह कहीं न कहीं मदद कर देती है. इतना ही नही मेरे अंदर हर दिन कुछ नया सीखने की ललक रहती है. मैं कल पालनपुर जा रही हूं पॉटरी कला को सीखने के लिए. जबकि इसके पीछे पॉटरी के क्षेत्र में प्रोफेशनली कुछ करने की मंशा नही है. पर सीखने का कोई मौका नहीं छोड़ती. फोटोग्राफी की वजह से मुझे कैमरा एंगल की समझ विकसित हुई.
हर कलाकार के लिए कैमरे के एंगल की जानकारी होना आवश्यक है. फोटोग्राफी की समझ के चलते हमारे लिए खुद को कैमरे के सामने पेश करना आसान होता है. मैगजीन में नौकरी करते हुए मैं अक्सर सेलीब्रिटी को फोन कर एक सवाल पूछती थी, जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. आप भी जानते होंगे कि कैमरे के सामने किस तरह पेश आना है, यह सभी कलाकार जानते हैं, मगर कैमरे के पीछे कैसे पेश आना है, यह कम लोग जानते हैं. पर मेरे अंदर एक समझ विकसित हुई, क्योंकिं मैं पत्रकारों के बीच रही.
आपका अपना ‘आल माई टी प्रोडक्षन’ नामक नाट्य ग्रुप रहा है. इसे शुरू करने के पीछे कोई वजह थी?
-जब मैं मैगजीन में नौकरी कर रही थी, तब इसे शुरू किया था. मैं दूसरे नाट्यकर्मियों को उनके नाटक में अभिनय करने के लिए फोन करती थी, तो समय की गड़बड़ी हो रही थी. तब मैने सोचा कि जब रास्ता नही दिख रहा है, तो क्यों न मैं अपना रास्ता बना लूं. तब मैंने कुछ लोगों के साथ इस नाट्य ग्रुप की शुरूआत की.
हम सभी अलग अलग जगहों पर नौकरी करते थे, शाम को एक जगह मिलकर नाटक की तैयारी करते थे. स्क्रिप्ट रीडिंग व रिहर्सल किया करते थे. मैं अपने इस ग्रुप में अभी भी नाटकों में अभिनय कर रही हूं. स्टेज पर अभिनय करने /लाइव परफार्म करने का जो मजा होता है, वह बहुत अलग होता है. मेरी राय में हर फिल्म कलाकार को प्रयोग करते रहना चाहिए. फिल्म के अलावा यदा कदा उसे थिएटर जरुर करना चाहिए. किसी एक प्लेटफार्म के साथ खुद को बांधकर नहीं रखना चाहिए. जितना आप अलग अलग माध्यम में काम करेंगे, आपकी प्रगति उनती तेज गति से होगी.
मुझे थिएटर से ही सब कुछ मिला है. मेरे पति, दोस्त, परिवार व काम सब कुछ मुझे थिएटर से ही मिला. वास्तव में आकर्ष खुराना एक नाटक निर्देशित कर रहे थे, जिसका शो दिल्ली में होना था और दो कलाकार मिले नही थे. उस नाटक से हम दोनो जुड़े और हमारी पहली मुलाकात हुई थी. इसलिए स्टेज मेरे लिए हमेशा बहुत महत्वपूर्ण रहेगा. मैं नाटकों में अभिनय करने के अलावा उनका निर्माण व लाइटिंग भी करती हूं. तो जिसने मुझे इतना कुछ दिया है, उसे मैं अपनी तरफ से हमेशा कुछ न कुछ देते रहना चाहती हूं.
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किन नाटकों से आप जुड़ी रहीं, कुछ बताना चाहेंगी?
-अंडर द सायनाक्शी, चश्मेंवाला , कॉक सहित कुछ नाटकों का निर्माण किया है. हमने एक बार अपने नाटक के साथ ‘पृथ्वी फेस्टीवल’ का समापन किया था. आकर्ष खुराना के कई नाटकों में अभिनय किया है. उनके नाटकों के लिए भी मैने लाइटिंग की है. थिएटर का मजा यह है कि यहां हर कोई हर काम या यूं कहें कि सब काम करता है. थिएटर से जुड़ा कलाकार सिर्फ अभिनय नही बल्कि कास्ट्यूम, प्रोडक्शन, लाइटिंग से लेकर हर विभाग को सीखता है.
आपके कैरियर की पहली फिल्म ‘‘मसान’’ थी, जिसने आपको कांन्स फिल्म फेस्टिवल तक पहुंचा दिया था. तब से अब तक के अपने आठ वर्ष के कैरियर को किस तरह से देखती हैं?
-मेरा वर्क प्रोफाइल तो रिपोर्ट कार्ड का अहसास दिलाता है. मेरी कोशिश हर प्रोजेक्ट, हर किरदार के साथ न्याय करने की होती है. मुझे पंकज त्रिपाठी की यह बात हमेशा याद रहती है. उन्होने मुझसे कहा था-‘‘कलाकार का काम सेट पर होता है. प्रमोशन का मसला अलग है. पर कलाकार के तौर पर हमारा काम सेट पर ही खत्म हो जाता है. उसके बाद तो दर्शक तय करेगा कि उसे हमारा काम अच्छा लगा या बुरा लगा. ’’यह मेरे लिए सीखने वाली बात रही है.
मसलन- आप 24 मार्च को प्रदर्शित हो रही मेरी फिल्म ‘कंजूस मक्खीचूस’ को ही लीजिए. इस फिल्म के लिए मैं जो कर सकती थी, मैने अपनी तरफ से न्याय करने का पूरा प्रयास किया है. हो सकता है कि मैंने जो किया है, उससे बेहतर कर सकती थी. पर उस सिच्युएशन व माहौल मंे मेरे वश मंे जितना बेहतर करना संभव था, मैने किया है. और उससे मैं बहुत संतुष्ट हूूं. मेरी यह यात्रा काफी रोचक रही है. मुझे फिल्म इंडस्ट्ी में अच्छे लोगों के साथ काम करने का अवसर मिला. मैने काफी कुछ सीखा है.
आपके कैरियर पर नजर दौड़ाने पर यह बात साफ तौर पर उभर कर आती है कि आपने हर फिल्म के किरदार के लिए मेहनत की. आपके अभिनय की तारीफ भी हुई, मगर फिल्म की सफलता का सारा श्रेय आपके सह कलाकार बटौर ले गए? मसलन -‘मसान’का श्रेय विक्की कौशल व रिचा चड्ढा ले गए. तो ‘मिर्जापुर’ का श्रेय पंकज त्रिपाठी ले गए.
-देखिए, यह सभी बेहतरीन कलाकार व अच्छे इंसान हैं. मुझे लगता है कि हर इंसान को उसके हिस्से की मेहनत का फल अवश्य मिलता है. ‘मिर्जापुर’ में गोलू के किरदार में मुझे जो शोहरत मिली, उससे मैं खुश हूं. मैं कम या ज्यादा के बारे में नहीं सोचती. जो मेरे हाथ में है, उसे ही बेहतर करने की सोचती हूं. जो हमारे हाथ में नहीं है, वह दूसरे के हाथ में है. तो जब मुझे लोगों का प्यार मिलना होगा, तो जरुर मिलेगा. मैं जबरदस्ती कुछ भी पाने के लिए नहीं कर सकती. सब कुछ दर्शकों पर निर्भर करता है.
वैसे बौलीवुड में मुझे भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है. यहां लिंग भेद बहुत ज्यादा होता है. मगर मैं हमेशा अपने सम्मान के लिए लड़ती रहती हूं. मै हार मानने की बजाय अपने काम से उन्हे जवाब देती हॅूं.
आपने फिल्मों के अलावा वेब सीरीज में भी अभिनय किया है. दोनों अलग अलग माध्यम है. आप दोनों प्लेटफार्म में से किसे प्राथमिकता देना चाहेंगी?
-मुझे हर प्लेटफार्म पर काम करना है. पर मेरी पहली प्राथमिकता अच्छी कहानी च अच्छा किरदार होता है. मुझे उन किरदारों को निभाना है, जिनसे मैं अपने दर्शकों को कुछ अहसास करा सकॅूं. मैं बहुत लालची व भूखी कलाकार हूं. मैं चाहती हूं कि मैं अपने दर्शकों को बार बार कुछ नया व बेहतरीन दूं. मैं अलग अलग तेवर दिखा सकूं, फिर चाहे वह बड़ा परदा हो या छोटा परदा हो.
ओटीटी का फायदा यह है कि बिहार या बोस्टन में बैठा हुआ दर्शक अपने घर पर हमारी फिल्म या वेब सीरीज आराम से देख सकता है. ओटीटी का दूसरा फायदा यह है कि फिल्म या वेब सीरीज हमेशा जिंदा रहेगी. सिनेमाघर से तो कुछ हफ्ते में गायब हो जाती हैं. अगर दर्शक उतने समय में फिल्म नही देख पाया, तो फिर वह नही देख पाता था. पर ओटीटी पर वह जब चाहे कार, घर या आफिस कहीं भी बैठे बैठे अपने मोबाइल पर देख सकता है.
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आपको नहीं लगता कि ओटीटी पर कलाकार का स्टारडम खत्म हो गया है?
-मुझे ऐसा नही लगता. मुझे लगता है कि कलाकार का स्टार पॉवर आज भी है. अब लोग डेमोक्रेसी के तहत ही लाइक करते हैं. अब व्यू देना, लाइक करना या फिल्म की टिकट खरीदना पूरी तरह से वोट देने जैसा हो गया है.
आपने पहली बार कौमेडी फिल्म ‘‘कंजूस मक्खीचूस’’की है. कहीं यह अपनी इमेज को बदलने का मसला तो नही है?
-मैं किसी की जान लेने के लिए भाग नहीं रही थी. और न ही कोई मेरी जान लेने के लिए भाग रहा था. मेरे पास काम की कमी नही है. ‘मिर्जापुर सीजन 3’ व ‘कालकूट’ सहित काफी कुछ है. मैने अब तक ड्रामा ही ज्यादा किया है. तो मैं अपने दर्शकों को कुछ अलग देना चाहती थी. इसीलिए कौमेडी फिल्म ‘‘कंजूस मक्खीचूस’’की है. मैने यह फिल्म जान बूझकर की है. मगर इसकी वजह ईमेज बदलना नही है. मैने इससे पहले कौमेडी नहीं की थी, तो जब तक नही करेंगे, तब तक कैसे पता चलेगा कि क्या कठिन है.
फिल्म ‘‘कंजूस मक्खीचूस’’ के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगी?
-मैने इसमें माधुरी पांडे का किरदार निभाया है. जिनके पति एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस हैं. लेकिन खामियां तो हर इंसान में होती हैं. पर दोस्त, परिवार और जो रिश्ते होते हैं, वहां अनकंडीशनल प्यार की ही जरुरत होती है. तो पूरा पांडे परिवार बहुत प्यार से रहता है. बहुत सारी मस्ती करते हैं. हम सभी एक दूसरे के साथ प्यार से रहते हैं.
आप कंजूसी को अच्छा मानती हैं या नहीं?
-मुझे लगता है कि कंजूसी कोई बुरी चीज नही है. पर यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप कहां किस तरह से कंजूसी कर रहे हो. अगर आप किसी को पैसा देने में या प्यार जताने मंे कंजूसी कर रहे हो बहुत गलत बात है. ज्ञान बटोरने में कंजूसी गलत बात है. अगर आप पानी बर्बाद नही कर रहे हैं अथवा आप इलेक्ट्सिटी बचाने के लिए कंजूसी कर रहे हंै, तो अच्छी बात है. यहां कंजूस होना बहुत जरुरी है. दुनिया को बचाने के लिए की गयी कंजूसी अच्छी बात है.
आज की तारीख में हम सभी लोग ‘टिशू पेपर’ का दुरूपयोग सबसे ज्यादाक रहे हैं. आप जानते हैं कि टिशू पेपर बनाने के लिए ही इन दिनों सबसे अधिक पेड़ काटे जा रहे हैं. पेड़ों के काटे जाने से पर्यावरण पर बहुत खतरनाक असर हो रहा है. मेरा लोगों से कहना है कि कुछ आपको मुफ्त में मिल रहा है अथवा आप पैसा नहीं खर्च कर रहे है, पैसा किसी अन्य का लगा हुआ है, इसलिए आप उसे बेवजह बर्बाद करें, तो गलत है.
हर चीज की कद्र की जानी चाहिए. इमोशन की कद्र की जानी चाहिए. प्यार करने में कंजूसी नही होनी चाहिए. इस फिल्म में अभिनय करते हुए मैंने बहुत कुछ सीखा और अब फिल्म का प्रमोशन करते हुए भी सीख रही हूं.
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कभी किसी किरदार ने आपकी जिंदगी पर असर किया?
-ऐसा तब हुआ था, जब मैने फिल्म ‘‘हरामखोर’’ की थी. उस वक्त मुझे किरदार में डूबने के बाद उससे निकलना नहीं पता था. ऐसा ही ‘मिर्जापुर’ के सीजन दो में भी हुआ, तब भी मुझे समझ नही थी. मुझे और मेरे आस पास वालों को भी काफी समय तक समझ में नही आया था कि आखिर मुझे हुआ क्या है?
छह सात माह तक गोलू मेरे साथ थी. फिर जब मैने ‘मिर्जापुर सीजन 3’ की शूटिंग की, तो उस वक्त मुझे लग रहा था कि मैं अच्छे से तैयार हूं. पर सीजन 3 में भी वैसा ही हुआ. इस बार मुझे काउंसलर से मिलना पड़ा.
किरदार में घुसना तो मुझे अच्छी तरह से आता है, पर उस किरदार से खुद को अलग कैसे किया जाए, यह नहीं पता था. इसमें मुझे काउंसलर से मदद मिली. अब मैं दूसरे कलाकारों, लेखकों व निर्देशक को मदद करने को तैयार हूं.
आप सोशल मीडिया पर फिटनेस पर लिखने के अलावा कविताएं पोस्ट करती रहती हैं ?
-जी हां! मगर सच यह है कि मैं खुद कविताएं नहीं लिखती. बल्कि दूसरों की कवितांए पढ़ती हूं और उनकी कविताओं को मैं सोशल मीडिया पर पोस्ट करती रहती हूं. मुझे कविता से प्रेरणा मिलती है. कविताओं में हमारे समय का जिक्र होता है, जिसमें हम रहते हैं.
आपके शौक क्या हैं?
-मुझे यात्राएं करना और नई चीजें सीखना बहुत पसंद है. मसलन अभी मैं पॉटरी सीखने के लिए पालनपुर जा रही हूं. मुझे एडवेंचरस स्पोर्ट्स बहुत पंसद हैं. मैने स्काइब ड्यविंग की है. मैं एक प्रमाणपत्र धारी स्कूबा डायवर हूं. मुझे ओसियन से बहुत प्यार है. मुझे नई चीजें सीखना पसंद है.
सच यह है कि मैं खाना नहीं बना पाती. फिर भी बहुत कुछ सीखने की ललक मेरे अंदर है. जुलाई में मेरा जन्मदिन आता है. पानी के किनारे रहना पसंद है. मैं पांडीचेरी जाकर पानी के अंदर तैरने की कला सीखी. मैं परफ्यूम बनाने का वर्कशॉप भी करने वाली हूं.
आपके पति तो गायक व म्यूजीशियन हैं. आपको संगीत का कितना शौक है?
-मुझे संगीत सुनने का शौक है. मेरे पति म्यूजीशियन हैं. तो वह हमेशा संगीत की महत्ता की ही बात करते रहते हैं.
किसी किरदार को निभाने में संगीत कितनी भूमिका निभाता है?
-मेरे लिए संगीत अहम भूमिका निभाता है. क्योंकि मैं संगीत से इमोशन लेती हूं. मसलन-नैना गाना सुनकर में अभी भी रो सकती हूं. संगीत से कल्पना करना आसान हो जाता है. मेरे पति जो कुछ लिखते हैं और जिस तरह से लिखते हैं, वह मुझे बहुत अच्छा लगता है. मैं तो उनके गीत व गानों को पढ़ने के बाद उनसे समझती हूं कि वह क्या व किस तरह से लिखा है. मैं तो उनकी लेखनी व संगीत की बहुत बड़ी फैन हूं.