फिल्म ‘परिणीता’से एक्टिंग के क्षेत्र में चर्चित होने वाली अभिनेत्री ‘विद्या बालन ने इंडस्ट्री में अपनी एक अलग छवि बनाई है. उन्होंने इंडस्ट्री में अभिनेता और अभिनेत्री के बीच पारिश्रमिक और सुविधाओं की असमानता को कम किया है और सिद्ध कर दिया है कि अभिनेत्रियाँ भी फिल्म को लीड कर सकती है. यही वजह है कि आज कई निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना पसंद करते है. उनकी प्रसिद्ध फिल्में‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘द डर्टी पिक्चर’ ‘कहानी’ आदि कई है. विद्या स्वभाव से हँसमुख, विनम्र और स्पष्ट भाषी है. फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ उसके करियर की टर्निंग पॉइंट थी, जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उन्होंने बेहतरीन परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते और साल 2014 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया. विद्या तमिल, मलयालम, हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला अच्छा बोल लेती है. विद्या की फिल्म ‘शेरनी’रिलीज हो चुकी है, जिसमें उन्होंने शेरनी की मुख्य भूमिका निभाकर मानव और जंगली जानवरों के बीच एक तालमेल के बारे में बताई है, जो इस धरती के लिए जरुरी है. फिल्म की सफलता पर खुश विद्या ने बात की. पेश है कुछ अंश.
सवाल-फिल्म की सफलता आपके लिए क्या माइने रखती है?
इस सफलता से मुझे बहुत ख़ुशी है, क्योंकि ये एक अलग तरीके की फिल्म है. इसे दर्शक कितना पसंद करेंगे, ये पता नहीं चल पा रहा था, लेकिन एक लालच थी कि 240 देशों के लोग इसे देख सकेंगे. अच्छी बात अभी ये भी है कि ओटीटी पर रिलीज होने की वजह से दर्शक जब चाहे इसे देख सकता है. दर्शकों ने फिल्म देखी और मुझे अच्छे-अच्छे मेसेज भेजे, इस बार शर्मीला टैगोर ने भी फिल्म की तारीफ की.
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सवाल-आपने हमेशा अलग-अलग विषयों पर काम किया है, इस दौरान कई उतर-चढ़ाव आये, किसने साथ दिया?
मेरे जीवन की सबसे स्ट्रोंग पर्सन मेरी माँ सरस्वती बालन है, जो मुश्किल घड़ी में शांत रहकर आसानी से उसे पार कर लेती है. उन्होंने हम दोनों बहनों को खुद की ड्रीम पूरा करने का साहस दिया है. फिल्म इश्कियां से पहले मैं बहुत कन्फ्यूज्ड रहा करती थी. मैं हिंदी फिल्मों के लिए बनी हूं या नहीं. ये सोचती रहती थी, लेकिन इश्कियां के लिए मैं फिट बैठ गयी. आगे भी मैंने अलग विषयों पर काम किया है. मेरे लिए हीरो ओल्ड है या जवान कुछ फर्क नहीं पड़ता. मैंने रिस्क लिया और कामयाब रही. अभी जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं, तो लगता है कि मैंने जो ड्रीम अपने जीवन में देखी थी, वह धीरे-धीरे पूरी हो रही है. मैं एक विषय से ऊब जाती हूं, इसलिए अलग-अलग विषयों पर काम करती हूं, इससे मेरे अंदर काम करने की इच्छा बनी रहती है.
सवाल-आजकल की महिलाएं बहुत मजबूती से आगे बढ़ रही है, लेकिन एक सीमा तक पहुँचने के बाद उन्हें मंजिल तक जाने से रोका जाता है, इसकी वजह आप क्या मानती है?
फारेस्टलाइफ में शेरनी चुपचाप शिकार की तलाश में शांत बैठी रहती है और शिकार को देखते ही उसपर छलांग मारकर उसे झपट लेती है, लेकिन रियल लाइफ में ऐसा नहीं हो सकता, लेकिन औरतों को जब भी ताने सुनने को मिले या लोग उनके सपनों को समझ नहीं रहे है,तो चुपचाप उसे सुने या अनसुना कर दें और समय आने पर उसका जवाब दें, क्योंकि जिंदगी एक है और हर महिलाको अपनी ड्रीम पूरा करने का हक है.
सवाल-कई बार उच्च प्रशासनिक पद पर कार्यरत महिलाएं एक मुकाम तक पहुंचकर आगे नहीं बढ़ पाती, क्योंकि उस स्थान से वापस आना ही भलाई समझती है, ऐसे महिलाओं के लिए आपकी मेसेज क्या है?
ये सही है कि लड़कियों की परवरिश इसी तरह से की जाती है, उन्हें किसी प्रकार की चुनौतियों से आगे बढ़ने की सलाह नहीं दी जाती, बल्कि पीछे हटने के लिए कह दिया जाता है. डर पर काबू पाना जरुरी है और सभी महिलाओं में ताकत होती है, उन्हें सिर्फ समझना पड़ता है, तभी हम आगे बढ़ सकते है.
सवाल-महिलाओं को कमतर समझने की वजह क्या है? क्या आपको कभी इसका सामना करना पड़ा?
महिलाएं खुद को ही कमतर समझती है, उन्हें खुद की काबिलियत पर संदेह होने लगता है. ये उनके दिमाग में चलता रहता है. असल में महिलाओं ने काफी सालों बाद बहुत सारे क्षेत्रों में काम करना शुरू किया है. उसमें एडजस्ट होने में समय लगेगा. हर महिला अपनी बात तेज आवाज में नहीं रख पाती. चुप रहकर भी कुछ महिलाएं अपना काम निकाल लेती है. कैरियर की शुरू में बहुत बार ऐसा हुआ है, जब सबने मुझे कमतर समझा. जब मैंने फिल्म कहानी की, तो सबको लग रहा था कि ये फिल्म नहीं चलेगी, जबकि ‘ द डर्टी पिक्चर’ को सबने सही कहा, क्योंकि ये मसाला और सेक्सी फिल्म है. एक प्रेग्नेंट महिला, जो अपने खोये हुए पति की खोज में है, उस पिक्चर को कौन देखना चाहेगा? इसकी वजह केवल मैं नहीं, बल्कि सब्जेक्ट, फिल्म की टीम सभी को कम समझा गया, लेकिन कहानी इतनी चली कि सबकी बोलती बंद हो गयी.
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सवाल-फिल्म इंडस्ट्री में क्या आपको लैंगिक असामनता का सामना करना पड़ा? उसे कैसे लिया?
बहुत बार सामना करना पड़ा, क्योंकि आसपास के लोगों में ये धारणा रहती है कि लड़की और लड़के की काम में अंतर है. जब लड़की इसे तोड़ कर आगे बढती है, सब उन्हें रोकते है. जब मैं इश्कियां कर रही थी तो सबका कहना था कि बड़ी मुश्किल से एक फिल्म महिला प्रधान बनती है, लेकिन मैंने इन 13 वर्षों में उनके इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है. इसके अलावा शुरूआती दौर में एक्टर के हिसाब से डेट देने पड़ते थे, एक्टर के लिए बड़ा कमरा, बड़ा वैन होता था. ये सीनियर कलाकारों को ही नहीं, बल्कि नए चेहरे को भी ऐसी सहूलियत मिलती थी. वह सही नहीं लगता था. इसके अलावा एक्टर समय से 3 या 4 घंटे लेट आता था. मुझे अच्छा नहीं लगता था और सोचती थी कि ये कब बदलेगा. अभी बदला है, मुझे किसी का अब इंतज़ार नहीं करना पड़ता.