सिनेमा राष्ट् का ऐसा सांस्कृतिक राजदूत होता है कि सिनेमा जिस देश भी पहुंचता है, उस राष्ट् के लोगों को अपने राष्ट् की संस्कृति, गीत व संगीत से जोड़ ही लेता है. तभी तो पोलैंड के निवासी इन दिनों भारतीय खानपान व गीत संगीत के न सिर्फ दीवाने बन चुके हैं, बल्कि अब हजारों लोग हिंदी भाषा भी सीख रहे हैं. हम सभी जानते हैं कि पोलैंड एक ऐसा यूरोपीय देश है, जहां के लोग केवल पोलिश भाषा ही जानते और बोलते हैं. पोलैंड के लोग हिंदी तो क्या अंग्रेजी भाषा के भी जानकार नही है. मगर पोलैंड जैसे राष्ट् के निवासियों के बीच भारतीय संगीत, व भारतीय भोजन व हिंदी के प्रति लालायित करने का श्रेय सिक्यूरिटी गार्ड की एजंसी चलाते हुए फिल्म निर्माता व निर्देशक बनने वाले विकाश वर्मा को जाता है, जो कि पहली इंडो पोलिश फिल्म ‘‘नो मींस नो’’ लेकर आ रहे हैं. हिंदी, अंग्रेजी और पोलिश भाषाओं में एक साथ बनी फिल्म ‘‘नो मींस नो’’ का निर्माण भारत व पोलैंड के बीच सामाजिक व सांस्कृति द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के साथ ही महिलाओं को उनकी शक्ति का अहसास दिलाने के साथ ही उनके अंदर उनकी आंतरिक ताकत को लेकर जागरूकता लाना मकसद है.
विकाश वर्मा के पिता और पूर्व फौजी ने 1969 में ‘सिक्यूरिटी एजंसी की शुरूआत की थी, उससे पहले सिक्यूरिटी एजंसी का कोई कॉसेप्ट नहीं था. मशहूर फिल्म निर्देशक राज कुमार कोहली के संग बतौर सहायक काम कर रहे विकाश वर्मा ने अपने पिता के देहंात के बाद पिता की सिक्यूरिटी एजंसी को संभाला और पिछले पच्चीस तीस वर्षों में उन्होने इस क्षेत्र में कमाल का काम किया. अमरीकी प्रेसीडेट व बिल गेट्स, वार्नर ब्रदर्स, कोलंबिया पिक्चर्स, सेेबी से लेकर विश्व की कई हस्तियों की सिक्यूरिटी संभाल चुके विकाश वर्मा ने देश के कई खंूखार अपराधियों को पकड़वाने में भी अहम भूमिका निभा चुके हैं. तो वहीं हॉलीवुड के एक्शन सुपर स्टार स्टीवन को अपना गुरू मानने वाले विकाश वर्मा ‘लगान’, ‘दीवानगी’, ‘भूमि’, ‘पद्मश्री लालू प्रसाद यादव जैसी कई फिल्मों के साथ भी सहायक या एसोसिएट निर्देशक के रूप में जुड़े रहे.
फिल्म ‘‘नो मींस नो’’ की कहानी पोलैंड की एक लड़की के जीवन की सत्य घटना पर चेक गणराज्य की भाषा में लिखी गयी किताब का भारतीय करण है. फिल्म की कहानी कें कंेद्र में स्कीइंग खेल, प्रेम कहानी, पिता व पुत्री का रिश्ता के साथ नारी सशक्तिकरण है. यह कहानी एक भारतीय लड़के राज वर्मा(ध्रुव वर्मा )की है, जो कि बेहतरीन स्कीइंग खिलाड़ी है. एक स्कीइंग प्रतियोगिता में वह पोलैंड की स्कीइंग खिलाड़ी लड़की कासिया(नतालिया बाक )को अपना दिल दे बैठता है और फिर उस लड़की के पीछे पीछे पोलैंड पहुॅकर वहां अंतरराष्ट्ीय स्कीइंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के साथ ही उस लड़की का भी दिल जीत लेता है. इस पर फिल्म के निर्देशक विकाश वर्मा कहते हैं-‘‘मैने एक प्रेम कहानी के माध्यम से भारत व पोलैंड, दोनों देशों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक और द्विपक्षीय रिश्ते बनाने की कोशिश की है. हमने इसे बर्फीले पहाड़ों और बेहद खूबसूरत स्थलों पर किया, जिससे पोलैंड में जन-जीवन की झलक भी नजर आती है. इससे देश के पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा. ’’
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फिल्म का नाम ‘‘ नो मींस नो ’’ है, जिससे यह अनुमान गलत होगा कि इसमें भारतीय नारी अपने शरीर के हक या सेक्स को लेकर अपनी राय की बात कर रही है. इस संबंध में खुद निर्देशक विकाश वर्मा कहते हैं-‘‘मेरी फिल्म देखकर लोगों की समझ में आएगा कि हर औरत कुछ भी कर सकती है. उसकी ताकत को कम आंकना मूर्खता है. जिसके पास विनाश करने की ताकत हो, उससे कोई नही जीत सकता. हमने इसमें नारी स्वतंत्रता और नारी सशक्तिकरण की बात की है. ’’
विकाश वर्मा आगे कहते हैं-‘‘जब कोई परिस्थिति बनती है, तो एक औरत की कोख सबसे अधिक शक्तिशाली होती है. वह जननी है. वही इंसान को क्रिएट करती है, जन्म देती है. जिस इंसान को औरत खुद जन्म देती है, आज उसी इंसान सेऔरत डरती है. मेरी फिल्म हर नारी को यह संदेश देती है कि तुम्हे किसी भी इंसान से डरने की जरुरत नही है, तुम तो उसका विनाश कर सकती हो. घर में चूल्हे पर खाना बनता है, मगर वही अग्नि, दावानल भी है. औरत एक ऐसी शक्ति है कि यदि उस पर आपत्ति आ जाए, तो अपनी रक्षा के लिए उसने जिसे पैदा किया है, उसका विनाश भी कर सकती है. मैने अपनी फिल्म में सृष्टि को एक नारी का पेट कोख बताया है. उसे ही ब्रम्हांड बताया है. पुरूष कुछ भी पैदा नही कर सकता. जबकि पुरूष को जन्म देने वाली औरत में ऐसी शक्ति है. हमारी फिल्म का नाम ‘नो मींस नो’ जिसका अर्थ है कि नारी के आगे कुछ भी नहीं है. हमारी फिल्म की कहानी एक अबला नारी की नही है. इसमें हमने एक औरत की शक्ति को चित्रित किया है. ’’
फिल्म तो एक लड़की की सत्य कथा पर है, तो उसकी कहानी की किस बात ने आपको प्रभावित किया था?इस सवाल पर विकाश वर्मा ने कहा-‘‘मैं फिलहाल कहानी को पूरी तरह से उजागर नहीं कर सकता. भारत ही नही पूरे विश्व में पिता व बेटी के बीच जो इमोशनल संबंध होते हैं, वह है. इसी के साथ इसमें प्रकृति के खिलाफ इंसान का मुद्दा है. हम इंसान के तौर पर प्रकृति नेचर की चुनौतियों का सामना कर ही नही पाते हैं. हम बेवजह न्यूकलियर वार या अन्य युद्ध की बात करते हैं. पहले हमें प्रकृति से लड़ना सीखना होगा. अगर उस पर हमने विजय पा ली, तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं. दूसरे देशो में क्या है?बर्फ में लोग मर जाते थे, मगर यूरोपियन ने उसी बर्फ को खेल बना लिया. वह लोग बर्फ में स्केटिंग करते हैं. उन्होने ‘विंटर स्कीइंग’खेल को जन्म दिया. मैने भी सोचा कि हमारे देश में गुलमर्ग है, शिमला है, कुलू मनाली है. इन जगहों पर ‘स्कीइंग’को लाया जाना चाहिए. स्कीइंग एक अलग और अति खूबसूरत खेल है. इस पर खर्च नही है. मैं ‘स्कीइंग’के कॉसेप्ट को अपने देश में लाना चाहता हूं, मगर किसी ने भी इसे महत्व नहीं दिया. हमारे देश में केवल क्रिकेट को ही महत्व दिया गया. पोलैंड के दो साल के बच्चे भी स्कीइंग पहनकर बर्फ में घूमते रहते हैं. बचपन से ही बच्चों को खेलों से जोड़ना चाहिए. वहां के लोग इस बात की चिंता नही करते कि हमारा दो वर्ष का बच्चा गिर जाएगा, चोट लग गयी तो?जबकि हमारे यहां हर माता पिता बच्चे को चोट न लग जाए, इस भय से सायकल भी चलाने नहीं देता. ’’
‘‘नो मींस नो’’ की पोलैंड में शूटिंग करने का क्या प्रभाव नजर आया. इस पर विकाश वर्मा ने कहा-‘‘ हम जहां शूटिंग कर रहे थे, तो हमने वहां से तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित एक होटल से बात कर भारतीय भोजन यानी कि चावल, दाल व सब्जी वगैरह बनवाते थे, जिसे पोलैंड के कलाकार व वहां के तकनीशियन भी खाते थे, धीरे धीरे उनके परिवार भी सिर्फ भारतीय भोजन खाने आने लगे. बाद में पता चला कि वहां के लोग भारतीय भोजन के दीवाने हो गए हैं. इसके अलावा हमारी फिल्म में हरिहरण ने गीत गाए हैं. एक गीत के फिल्मांकन के वक्त लोगों को गीत बहुत पसंद आया. उसके बाद हमने रेडियो पर हरिहरण का स्वरबद्ध एक गाना चलवाया, तो उन्हे पॉंच हजार ईमेल आ गए कि यह कौन है?इस तरह पूरे यूरोप में हरिहरण मशहूर हो गए हैं. तो हमारी फिल्म की शूटिंग देखते हुए वहां के लोगो ने हिंदी भाषा सीखने की कोशिश की है. उन्हें हिंदी गानों के साथ अपनापन हो गया है. ’’
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फिल्म‘‘नो मींस नो’’ के अलावा विकाश वर्मा एक चार सौ करोड़ रूपए के बजट की फिल्म ‘‘गुड महाराजा’’ का भी निर्माण कर रहे हैं, जिसकी कुछ शूटिंग वह पोलैंड में कर चुके हैं. बाकी की शूटिंग जल्द पोलैंड में ही करेंगे. इस फिल्म में शीर्ष भूमिका संजय दत्त निभा रहे हैं. तो वहीं ध्रुव वर्मा की भी इसमें अहम भूमिका है. फिल्म की कहानी जाम साहिब के नाम से प्रसिद्ध नवानगर, गुजरात के महाराजा दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा पर आधारित है, जिन्होने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन बम विस्फोटों से बचने के लिए सोवियत रूस से निकाले गए लगभग एक हजार पोलिश बच्चों को आश्रय और शिक्षा प्रदान की थी.
फिल्म ‘‘नो मींस नो ’’में भारतीय कलाकारों गुलशन ग्रोवर, दीप राज राणा, शरद कपूर, नाजिया हसन, कैट क्रिस्टियन के साथ ही पोलैंड के नतालिया बाक, अन्ना गुजिक, सिल्विया चेक, पावेल चेक, जर्सी हैंडजलिक और अन्ना एडोर जैसे कलाकारो ने अभिनय किया है.