Arati Kadav : किसी भी फिल्म का निर्देशन हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है. सही निर्देशन फिल्म को बड़ी सफलता तक ले जाता है, वहीं गलत निर्देशन से फिल्म ठंडे बस्ते में चली जाती है और निर्देशक को फिर से एक नई फिल्म बनाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है.
आरती कदव उन्हीं फिल्म निर्देशकों में से हैं, जो निर्देशन की बारीकियां जानती हैं.
महाराष्ट्र के नागपुर की आरती ने आईआईटी कानपुर से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की है और अमेरिका नौकरी करने चली गईं. वहां जा कर भी उन का जनून औफिस नहीं, फिल्म निर्माण का था. ऐसे में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और इस क्षेत्र में चली आईं और छोटीछोटी फिल्मों का निर्माण करने लगीं.
आरती को हमेशा से साइंस फिक्शन पसंद रहा, लेकिन इन फिल्मों को पसंद करने वाले बौलीवुड में कम लोग हैं, पर आरती ने चुनौती ली और साइंस फिक्शन फिल्म कार्गो बनाई जिसे दर्शकों ने पसंद किया.
आज आरती हर तरीके की कहानी से दर्शकों को परिचय करवाना चाहती हैं. यही वजह है कि पिछले दिनों आरती ने फिल्म मिसेज (Mrs) बनाई है, जो एक आम स्त्री की जिंदगी से प्रेरित कहानी है. यह कहानी एक महिला के उद्देश्य और उन की इच्छा को शादी के बाद दबा देना और परिवार की सेवा में खुद को लगा देना कितना तनावपूर्ण होता है, उसे दिखाया गया है, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.
आरती ने अपनी जर्नी के बारे में गृहशोभा से खास बात की. आइए, जानते हैं उन की कहानी उन की ही जबानी :
रिलेटेबल कहानी
फिल्म ‘मिसेज’ के बाद अभी आरती एक साइंस फिक्शन पर काम कर रही हैं, जो उन्हें हमेशा से प्रेरित करती है. उन का सपना साइंस फिक्शन को इंडिया में मैन स्ट्रीम में लाने का है, जो यहां नहीं है. वे कहती हैं कि मेरी फिल्म ‘मिसेज’ दर्शकों को काफी पसंद आई है, जो मुझे अच्छा लग रहा है. इस कहानी को कहने के पीछे मेरी इच्छा आज की महिलाओं को जागरूक करना था. आज की मौडर्न पढ़ीलिखी स्त्री ऐसी समस्याओं से काफी परेशान होती है और यह आज की कहानी है। इसे करने के लिए फिल्म मेकर हरमन बवेजा ने बुलाया था। उन्होंने कहा था कि उन्होंने एक मलयालम फिल्म देखी है, जो आज की परिवेश के अनुसार है.
जागरूक होना जरूरी
आरती आगे कहती हैं कि इस की कहानी आज की दुनिया में एक नारी की घुटन को बताती है, जिसे सब को देखना चाहिए। ये बातें मुझे अच्छी लगीं और मैं ने इस फिल्म को बनाई. पहले तो मुझे लगा था कि एक बनी हुई फिल्म को फिर से बनाने का कोई अर्थ नहीं होता, लेकिन अभिनेत्री सानिया मल्होत्रा ने मुझे ऐसी कई महिलाओं से मिलवाया, जो ऐसी ही समस्याओं से ग्रसित थीं.
एक लड़की जो छोटी उम्र की थी, उस की शादी हो जाने के बाद उस की सारी इच्छाएं ससुराल जा कर मर चुकी थी। वह अपनी कहानी कहती हुई रोने लगी थी। उस की कहानी ने मुझे अंदर से झकझोर दिया था. इस तरह फिल्म ‘मिसेज’ की कहानी रियल है और मुझे इसे डाइरैक्ट करने के लिए एक बार भी सोचना नहीं पड़ा.
इस के अलावा अभिनेत्री सानिया मल्होत्रा के साथ इस फिल्म को बनाना मेरी लिए अच्छी बात रही, क्योंकि सानिया से लड़कियां रिलेट कर पाती हैं और उस की सहज ऐक्टिंग दर्शकों को पसंद आती है.
इस कहानी के जरीए मैं ने लोगों को बताया कि घर संभालने वाली एक स्त्री बहुत काम करती है। उसे न तो पैसे मिलते हैं और न ही इज्जत. मैं खुद भी सोचती हूं कि मैं ने मां की इच्छाओं को कभी देखा नहीं है। उन के सपने, पैशन के बारे में कभी सोचा भी नहीं है. मैं ने हमेशा उन से खुद की डिमांड पूरी की है.
हमारे परिवार और समाज में कुछ लोग एक स्त्री की इच्छा को जाने बिना होममेकर की काम की तारीफें करते हैं. कई ऐक्ट्रैस के साथ भी ऐसा हुआ है कि शादी के बाद वे काम छोड़ कर परिवार देखती हैं और इस की तारीफ मीडिया और आसपास के लोग करते हैं. मेरे हिसाब से यह तारीफ की बात नहीं है. बच्चे होने पर आप सब छोड़ कर परिवार संभालें, यह किसी भी प्रकार से एक स्त्री के लिए उचित नहीं होता। समाज चाहे जो भी कह ले, मैं मान नहीं सकती. अभी थोड़े बदलाव हुए हैं, लेकिन और अधिक होना बाकी है.
नए कौंसेप्ट से परिचय करवाना नहीं आसान
निर्देशक आरती कहती हैं कि नए कौंसेप्ट को दर्शकों से परिचय करवाना हमेशा कठिन होता है, लेकिन प्रोड्यूसर हरमन बवेजा की वजह से समस्या नहीं आई, क्योंकि यह उन की कहानी थी, लेकिन उस कहानी को अपना बनाने में समय लगा है. अभी आगे भी मेरी हर कहानी नई होगी और इसे मैं आम जनजीवन से जोड़ कर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती रहूंगी.
आज कोई भी फिल्ममेकर नई कहानी कहने से डरते हैं. आज केवल 2 तरह की फिल्में बन रही हैं, कुछ मसाला टाइप, जो इधरउधर से बोरो कर मिल रहे हैं, कुछ ओटीटी वालों की एक फिक्स्ड फौर्मूला होता है.
मेरे हिसाब से अच्छी फिल्म बनाने पर दर्शक उसे हमेशा पसंद करते हैं. इस के अलावा आज एक नया नाम क्रिएटिव प्रोड्यूसर सब की जबान पर है, जो काफी प्रचलित है, जो न तो निर्माता, निर्देशक है और न ही लेखक. वे इधरउधर की चीजों को जोड़ कर कुछ भी बना देते हैं और फिल्में फ्लौप होती हैं. पुराने समय के निर्माता, निर्देशक, लेखक अब नहीं रहे, जिन का पैशन एक अच्छी कहानी को सच्चे दिल से कहना हुआ करता था.
मिली प्रेरणा
इस क्षेत्र में आने के बारे में पूछने पर आरती कहती हैं कि मुझे बचपन से स्टोरी टेलिंग का बहुत शौक था और मैं एक मध्यवर्गीय परिवार में पलीबड़ी हुई हूं। ऐसे में स्टोरी टेलिंग की बात बहुत दूर की थी, क्योंकि इसे कोई प्रोफेशन मान नहीं सकता था. इसलिए मैं ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और जौब करने लगी। थोड़ी वित्तीय रूप से मजबूत होने पर मैं ने खुद के लिए कैमरा खरीदा और छोटीछोटी फिल्में बनाने लगी। ऐसा करतेकरते मैं सीरियस हुई, फिल्म स्कूल गई और डाइरैक्शन सीखा, फिर आगे बढ़ी. मेरी पहली साइंस फिक्शन फिल्म ‘कार्गो’ को काफी अच्छा रिस्पांस मिला है.
परिवार का सहयोग
पहली बार परिवार को अपनी इच्छा जाहिर करने पर उन के पिता राजी नहीं हुए थे, क्योंकि इस क्षेत्र में आगे बढ़ना आसान नहीं होता.
आरती कहती हैं कि मेरी मां बहुत सपोर्ट करती थीं, लेकिन मेरे पिता को डाऊट था कि मैं ठीक कर रही हूं या नहीं, क्योंकि उन के हिसाब से मैं एक अच्छी जौब छोड़ कर आर्ट्स के क्षेत्र में जा रही हूं, जहां संघर्ष बहुत अधिक है, लेकिन सफलता की गारंटी बहुत कम होती है.
यह सही है कि मैं ने 8 से 10 साल तक बहुत संघर्ष किए, लेकिन उसी संघर्ष ने मुझे हंबल और एक अच्छा फिल्म मेकर बनाया.
रहा संघर्ष
आरती का आगे कहना है कि मैं इंडस्ट्री से बाहर की हूं, मुझे कोई आसानी से फीचर फिल्म बनाने के लिए बुलाएगा नहीं, इसलिए मैं ने छोटीछोटी फिल्में बना कर अपने टेलैंट से सब को परिचय करवाया. इस के अलावा इन छोटीछोटी फिल्मों को बनाने से मेरी एक टीम बनी, जो अब मेरे साथ काम कर रही है. धीरेधीरे मैं मैनस्ट्रीम में घुस पाई. मुझे आगे बढ़ने में समय बहुत लगा है, क्योंकि शौर्ट फिल्मों का कोई मार्केट नहीं होता, इसे शूट करने में खर्चे भी आते थे, जिसे संभालना पड़ा, लेकिन इन फिल्मों के फैस्टिवल में जाने से मेरी पहचान बनती रही.
गौडफादर के बिना इंडस्ट्री में टिके रहना नहीं आसान
आज कोई भी मेरे पास आ कर अपनी पैशन फिल्म बनाने की कहता है तो मैं उसे सब से पहले इंडस्ट्री की चुनौतियों को बताती हूं, क्योंकि मेरे समय में मुझे इतना पता नहीं था और न ही बताने वाला कोई था। मैं बहुत संघर्ष कर यहां तक पहुंची हूं और आगे भी कई चुनौतियां हैं. आज यह अच्छी बात हुई है कि ओटीटी आ चुका है। इस से नए फिल्ममेकर को काम मिल रहा है, लेकिन आज से 10 साल पहले मैं जब फिल्म स्कूल से निकली थी, तब वैसा नहीं था. तब काम मिलना भी बहुत कठिन था.
पहला ब्रेक
मैं ने एक म्यूजिक वीडियो इंडियन ओशन के लिए बनाई थी, जिसे अनुराग कश्यप ने देखा और उन्हें अच्छा लगा था. उस दौरान फीचर फिल्म की एक स्क्रिप्ट लिख कर मैं ने कई बड़े फिल्म मेकर को दिखाई भी थी, हालांकि कुछ कारणों से वह फिल्म बनी नहीं, लेकिन मेरी अच्छी नेटवर्किंग हो गई थी. इस से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा। मैं पहली फिल्म कार्गो विक्रांत मासी को ले कर बना पाई, जिस में अनुराग कश्यप का सहयोग था. पहली फिल्म के बाद लोग मुझे जानने लगे थे, क्योंकि मैं ने विक्रांत मासी के साथ काम किया था. निर्माता, निर्देशक मुझ से मिलने आते थे, इस से मुझे ‘मिसेज’ फिल्म करने का मौका मिला.
महिला निर्देशक को लगता है अधिक समय
पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में एक महिला निर्देशक के लिए लोगों का अच्छा सोचना कठिन होता है, क्योंकि उन्हें विश्वास दिलाना मुश्किल होता है कि वह अच्छा काम कर सकती है.
आरती कहती हैं मुझे भी इस चीज का बहुत सामना करना पड़ा, लोगों ने पहले मुझे सीरियसली नहीं लिया। समय लगा है, इसलिए मैं ने शौर्ट फिल्में बनाई ताकि लोग मेरे काम को देख सकें.
इंडस्ट्री कठिन है और महिला निर्देशक को कामयाबी के लिए थोड़ा अधिक समय लगता है.