Alankrita Sahai : मौडलिंग से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाली खूबसूरत, सौम्य, शांत और मृदुभाषी मिस इंडिया अर्थ 2014 अलंकृता सहाय का शुरुआती दौर भले ही आसान रहा हो, लेकिन उन्हें एक अच्छी भूमिका के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. दिल्ली की अलंकृता कहती हैं कि बिना गौडफादर के बौलीवुड में कदम रखना आसान नहीं होता. हर दिन खुद को प्रूव करना पड़ता है कि आप एक अच्छे कलाकार हो. इस के अलावा एक मौडल की छवि से बाहर निकल कर अभिनेत्री के रूप में स्थापित करना, उस से भी अधिक मुश्किल होता है.

उन के कैरियर में उन के पेरैंट्स और दोस्तों ने उन का हमेशा साथ दिया है. अलंकृता को सपनों का राजकुमार मिल चुका है, जो कारपोरेट वर्ल्ड से हैं. वे बहुत सहयोगी, हंसमुख, शांत स्वभाव के हैं और कनाडा में रहते हैं, जिन के साथ अलंकृता अपना जीवन बिताना चाहती हैं.

इन दिनों अलंकृता एक गाने की वीडियो और एक पौलिटिकल थ्रिलर ड्रामे की सीरीज की शूटिंग पूरी की है और आगे भी कई प्रोजैक्ट पर काम करने की तैयारी में हैं। काम भले ही धीमा हो, लेकिन वे इस से संतुष्ट हैं.

वे कहती हैं कि इस नई सीरीज में मैं ने एक पौलिटिशियन की पत्नी की भूमिका निभाई है, जिस के लिए मैं ने कई वर्कशौप निर्देशक के साथ किए हैं, जिस से अभिनय करना आसान हुआ है, लेकिन एक इमोशनल सीन को करना मुश्किल रहा, जिस में मुझे रोने के साथ गुस्से को भी दिखाना था। साथ में दर्शकों की सिंपैथी भी चाहिए थी। ऐसे दृश्य को फिल्माना आसान नहीं होता.

इंडस्ट्री आसान नहीं

मिस इंडिया बनने के बाद अलंकृता को ऐक्टिंग क्षेत्र में आने का फायदा मिला है, लेकिन इस में कठिनाई भी कम नहीं थी. वे कहती हैं कि मिस इंडिया का मंच काफी अवसर ले कर आता है, क्योंकि आप पूरे विश्व में सब की नजर में आते हैं, जिस से मैं कई सारे ब्रैंड और लोगों से मिल पाई, बहुत कुछ सीखा. इस में मुझे मैनेजमेंट को सीखने में करीब 5 साल लगे, जिस में डिप्लोमैसी, पौलिटिक्स, रिलेशनशिप हैंडलिंग, हेयर, मेकअप आदि सब इंडस्ट्री के अनुसार सीखना पड़ा, क्योंकि मैं इंडस्ट्री से हूं नहीं, इसलिए शुरू से ही मुझे इस सब चीजों पर ध्यान देना पड़ा, जिस के लिए मुझे काफी समय लगा. मैं इस बात से खुश हूं कि खुद की जर्नी खुद तय करना सब से अधिक अच्छा होता है, क्योंकि इस से व्यक्ति अपने विचार, मेहनत, लगन सब अपने हिसाब से कर सकता है. 2 साल पहले जब मैं ने अपने पिता को खोया, तो मुझे काम करने की इच्छा नहीं हुई, लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल गया. मैं स्ट्रौंग बनी, आगे काम करने के बारे में सोचा. इस तरह से मैं ने जो कुछ भी किया है, हमेशा अच्छा किया और आगे भी अच्छा करने की कोशिश करती रहूंगी.

मिली प्रेरणा

अलंकृता कहती हैं कि मैं ने बचपन से ऐक्स्ट्रा ऐक्टिविटीज करती रहती थी, जैसेकि नुक्कड़ नाटकों में अभिनय करना, भरतनाट्यम डांस सीखना आदि. इस के अलावा मैं एक बार मिस नोएडा भी बनी थी। इस तरह स्कूल से अभिनय शुरू कर आगे बढ़ती गई और इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली.

पहले मैं आईएएस औफिसर बनना चाहती थी, लेकिन कला में भी मेरी रुचि थी, लेकिन यह मेरे जीवन का कैरियर बन जाएगा, ऐसा मैं ने नहीं सोचा था. पढ़ाई पूरी कर मैं मुंबई आई, जौब किया फिर अचानक मेरा मिस इंडिया में ऐंट्री हुई और मेरी जिंदगी बदल गई. धीरेधीरे मैं आगे बढ़ती गई और मेरे सपने पूरे होते गए। इस में मेरे पेरैंट्स मेरी बहन और सभी ने पूरी तरह से सहयोग दिया.

संघर्ष हासिल करना

अलंकृता आगे कहती है कि मैं अकेले कुछ नहीं कर सकती थी। मेरे परिवार वालों का बहुत सहयोग रहा है. शुरू में मेरे पिता मेरे साथ मुंबई में रहते थे. मैं ने भी चुनौतियां ली हैं, क्योंकि हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में सफलता के लिए संघर्ष करता है. मैं संघर्ष को नकारात्मक रूप में नहीं हासिल करने के रूप में देखती हूं. मेरी चुनौतियां मुझे किसी मंजिल तक पहुंचाने के लिए ही होती हैं. उदाहरणस्वरूप मेरी मां ने मुझे इस धरती पर लाने के लिए काफी पुश और दम लगाया होगा, तब जा कर मैं ने इस धरती पर कदम रखा है। इस लिहाज से मेरी संघर्ष कुछ भी नहीं है. किसी भी रिजैक्शन या दुख को केवल 15 मिनट तक दुख समझ कर फिर आगे बढ़ जाना चाहिए.

पहला ब्रेक

मिस इंडिया के बाद एक म्यूजिक अलबम की लौंच से मैं हर जगह पहचानी गई, जिसे गायक हिमेश रेशमिया, अभिनेता अमिताभ बच्चन और अभिनेता सलमान खान ने मुझे लौंच किया था. लोगों ने इसे बहुत पसंद किया था.

नहीं पड़ता रिजैक्शन का असर

किसी भी रिजैक्शन को अलंकृता सहजता से लेती हैं। वे कहती हैं कि किसी भी रिजैक्शन को मैं ने सकारात्मक रूप में लिया और खुद को समझाया कि मैं उस की हकदार नहीं हूं, इसलिए मुझे नहीं मिला. पहले खराब लगता था कि मैं सुंदर नहीं, ऐक्टिंग नहीं आती या औडिशन वालों को मैं पसंद नहीं आदि कई खयाल आते थे। ऐसे में, मैंटल हैल्थ को सही रखने के लिए पेरैंट्स, भाईबहन या दोस्त होते हैं, क्योंकि इंडस्ट्री की रिजैक्शन को स्कूल या कालेज में नहीं सिखाया जाता है, इसे व्यक्ति जीवन के अनुभवों से ही सीखता है. मैं ने अभिनय की कला, अभिनय कर और वर्कशौप से ही सीखा है. इंडस्ट्री के साथ डील को भी काम करते हुए ही सीखा है.

स्पष्टभाषी होना पड़ा भारी

अलंकृता स्पष्टभाषी हैं, इस का खामियाजा उन्हें कई बार भुगतना भी पड़ता है। वे कहती हैं कि लोग मुझे ब्लंट, बिगड़ी हुई परिवार से, रूड या एरोगेनट समझते हैं, क्योंकि मुझे काम में हमेशा क्लीयरिटी पसंद है, जो पसंद नहीं उसे साफसाफ कह देती हूं. आप ने अगर कोई बाउंड्री काम की नहीं बनाई है, तो कोई भी टैकन फोर ग्रांटेड ले लेता है.

खुद को संभालना जरूरी

कास्टिंग काउच का सामना करने को ले कर अलंकृता का कहना है कि इस में सब से जरूरी है कि आप किस तरह के लोगों से मिलते हैं। मेरे साथ जितने भी जुड़े थे, सभी सही थे, लेकिन मुझे याद आता है कि पंजाब इंडस्ट्री में पहली बार फिल्म प्रोड्यूस करने वाला सैकंड लाइन प्रोड्यूसर का स्वभाव गैर पेशेवर और अनैतिक था। मैं ने पहले ही उन के गलत प्रपोजल को मना किया, क्योंकि मैं सेट पर तंग नहीं होना चाहती, सब को इज्जत देती हूं और रात को चैन की नींद सोना पसंद करती हूं. उन्होंने मुझे बहुत भलाबुरा कहा, पर मैं अडिग रही और उस फिल्म को छोड़ दी. बौलीवुड में ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि लोग मेरी पर्सनैलिटी से घबरा जाते हैं, जो मुझे अच्छा लगता है क्योंकि मैं बाहर से स्ट्रौंग दिखती हूं. रियल में मैं एक नारियल की तरह हूं, जो बाहर से कठोर और अंदर से मुलायम है, जिसे मेरे नजदीक रहने वाले परिवार और दोस्त ही जानते हैं. साथ ही मैं एक इमोशनल लड़की भी हूं, लेकिन काम पर बैलैंस, डिग्निटी और रिस्पैक्ट को हमेशा बनाए रखने में विश्वास रखती हूं.

सोशल मीडिया पर भरोसा ठीक नहीं

सोशल मीडिया को ले कर अलंकृता का कहना है कि आज सोशल मीडिया से ब्लौगर, इंस्टाग्रामर एक ऐक्टर से अधिक काफी पैसा कमा रहे हैं, ऐसा मैं ने सुना है, लेकिन यह बहुत हेकटिक है, आसान नहीं है. मैं कैमरे के अलावा कुछ नहीं जानती। यह सही है कि सोशल मीडिया की इन्फ्लूऐंस पर कास्टिंग निर्भर करती है. टेलैंट का फौलोवर्स कैसे बढ़ेगा, जब तक उसे मौका न मिले. लाइक्स और फौलोवर्स के अनुसार कास्टिंग करना गलत है, क्योंकि इस से कोई अच्छा कलाकार हो, यह गारंटी नहीं. इसलिए कुछ ऐसे भी हैं, जो टेलैंट को ही सबकुछ मानते हैं और उन्हें मौका मिलता है.

टेलैंट को नंबर से जोड़ना मेरे लिए परेशानी है, क्योंकि टेलैंट को नंबर देना संभव नहीं. जब टेलैंट आगे बढ़ेगा, तो नंबर अपनेआप ही बढ़ता चला जाएगा.

जिम्मेदारी सब की

वूमन ऐंपावरमैंट को ले कर अलंकृता कहती हैं कि आज भी महिलाएं सड़कों पर डरडर कर चलती हैं। उन्हें अपने तरीके से रहने, पोशाक पहनने और काम करने की आजादी नहीं है. इतना ही नहीं, कई शहरों में सुरक्षा के सही इंतजाम नहीं हैं, कई जगह स्ट्रीट लाइट नहीं, लड़कियों को अंधेरे में चलना पड़ता है. मेरे हिसाब से सब से पहले सामाजिक और आर्थिक स्टैटस में बदलाव होने की जरूरत है, सैनीटेशन और हैल्थ केयर सिस्टम में सुधार होने की जरूरत है.

यह काम कलाकार से ले कर ऐंन्फ्लुऐंसर सभी को अपने हिसाब से करना पड़ेगा. अगर हम मुड़ कर एक लड़की को ‘बिच’ कहते हैं, तो समाज कैसे आगे बढ़ेगा. महिला और पुरुष का एकदूसरे को सम्मान देने से ही महिला ऐंपावर हो सकती है.

सुपर पावर मिलने पर अलंकृता हर व्यक्ति के मन की बात समझना चाहती हैं, ताकि कुछ गलत होने से पहले उसे रोक लिया जाय.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...