मलयालम सिनेमा के सुपर स्टार और पूरे विश्व में अपनी फिल्मों व अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अभिनेता ममूटी के बेटे व मलयालम अभिनेता दुलकर सलमान को हमेशा लगता था कि वह अपने पिता व मलयालम सुपरस्टार ममूटी के जूते में पैर रखने के योग्य नही है. इसी के चलते दुलकर सलमान ने खुद को अभिनय व फिल्मों से दूर रखते हुए एमबीए की पढ़ाई कर दुबई में नौकरी करनी शुरू की. और लंबे समय तक फिल्मो से दूर रहे. पर यह नौकरी उन्हे रास नही आ रही थी. क्योकि उनाक मन कुछ रचनात्मक काम करने के लिए उकसा रहा था. अंततः 26 साल की उम्र यानी कि 2012 में मलयालम फिल्म ‘‘सेकेंड शो’’ में हरीलाल नामक गैंगस्टर का किरदार निभाते हुए अभिनय जगत में कदम रखा। और देखते ही देखते वह मलयालम सिनेमा में सुपरस्टार बन गए. पर उन्होने खुद को भाषा की सीमा में कैद नही किया. अब तक वह मलयालम के अलावा हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्मों में भी अभिनय कर चुके हैं. इतना ही नहीं दुलकर सलमान अब तक लगभग 35 फिल्मो में अभिनय, तेरह फिल्मों में गीत गाने के अतिरिक्त चार फिल्मों का निर्माण भी कर चुके हैं. बौलीवुड में इरफान खान के साथ फिल्म ‘कारवां’ से कदम रखा था. फिर वह सोनम कपूर के साथ फिल्म ‘‘द जोया फैक्टर’’में नजर आए थे. हाल ही में प्रदर्शित उनकी तेलुगू भाषा की हिंदी में डब फिल्म ‘‘सीता रामम’’ ने जबरदस्त सफलता हासिल की है. अब वह 23 सितंबर को प्रदर्शित होने वाली आर बालकी निर्देशित फिल्म ‘‘चुपः द रिवेंज आफ आर्टिस्ट’’ को लेकर उत्साहित हैं. , जिसमें उनके साथ श्रेया धंनवंतरी, सनी देओल, पूजा भट्ट भी हंै.
प्रस्तुत है दुलकर सलमान से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. .
आपकी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई. आपको अभिनेता ही बनना था. फिर भी एमबीए की पढ़ाई कर दुबई में नौकरी करने के पीछे कोई सोच थी?
-यह सच है कि मैने पहले अभिनय को कैरियर बनाने के बारे में नही सोचा था. इसके पीछे मूल वजह यह थी कि मेरे पिता मलयालम सिनेमा के महान अभिनेता हैं. मैं जानता था कि मेरे अभिनेता बनने पर लोग मेरी तुलना उनसे करेंगें, जो कि मैं नहीं चाहता था. मैं अपने पिता के जूतांे मंे पैर डालने की हिमाकत कर ही नही सकता. उनकी बराबरी करना नामुमकीन है. दूसरी बात उन दिनों मलयालम सिनेमा में दूसरी पीढ़ी का कोई भी कलाकार कार्यरत नहीं था. इसलिए मेरे मन मंे विचार आया था कि लोग मुझे अभिनेता के तौर पर स्वीकार नहीं करेंगे. इसके अलावा उन दिनों मेरे सभी सहपाठी व मित्र बिजनेस फैमिली से थे. वह सभी एमबीए की पढ़ाई करने गए, तो मैं भी चला गया. मतलब यह कि मेरे सहपाठी व मित्र जो कर रहे थे, वही मैने भी किया. फिर नौकरी की. मगर नौकरी करते समय अहसास हुआ कि इसमें कुछ भी रचनात्मकता नही है. और मेरा मन बार बार क्रिएटिब काम करने के लिए उकसा रहा था. वैसे भी क्रिएटिब काम करने में जो आनंद मिलता है, जो मजा आता है, वह आफिस जॉब में नहीं मिलता. तो मैं अपने दोस्तों के साथ समय मिलने पर लघु फिल्में बनाने लगा. तब मुझे अहसास हुआ कि इसी में आनंद है. जब हम लघु फिल्म बना रहे थे, तो यह पूरा प्रोसेस क्रिएटिब और डायनामिक लग रहा था. फिल्म मेकिंग एक टीम वर्क है. हम एक सोच के साथ फिल्म बना सकते हैं. अपनी बात लोगांे तक पहुॅचा सकते हैं. इस बात ने मुझे काफी प्रेरित किया कि नौकरी छोड़कर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा जाए. फिर एक दिन निर्णय लिया कि अब मुझे अभिनय करना है और नौकरी छोड़कर भारत वापस आ गया. मैने सबसे पहले मंुबई आकर बैरी जॉन सर के एक्टिंग स्कूल से अभिनय की ट्ेनिंग हासिल की. अभिनय की ट्ेनिंग लेने के पीछे मेरा मकसद कुछ अनुभव लेना और खुद को अभिनय में निपुण करना था. इस एक्टिंग स्कूल मंे हमारे साथ करीबन 24 विद्यार्थी थे. हम सभी ने कई प्रोजेक्ट किए. काफी प्रैक्टिकल अनुभव मिला. मेरी ही तरह कई लड़के अभिनेता बनना चाहते थे. तो उनके साथ वार्तालाप करते हुए मैने काफी इंज्वॉय किया. जब मैं बिजनेस स्कूल में था, उस वक्त मुझे सिनेमा का शौक था और मेरे कुछ सहपाठियों को सिनेमा देखने का शौक था. पर उनसे फिल्म कैसे बनाते हैं या किसी किरदार को निभाते समय किस बात का ख्याल रखा जाए, इन बातों पर कोई विचार विमर्श बिजनेस स्कूल मेंनहीं होता था, पर हमने बैरी जॉन के एक्टिंग स्कूल में यह सारा विचार विमर्श आपस मंे भी काफी किया.
आप गायक भी हैं. संगीत कहां से सीखा?
-मैं खुद को बहुत बुरा गायक मानता हूं. शुरू में तो मुझे फिल्म प्रमोशन करने में भी बहुत डर लगता था. कैरियर की शुरूआत में हर पत्रकार मुझसे मेेरे पिता जी के संदर्भ में ही सवाल करता था. इसलिए भी मैं अपनी फिल्म के प्रमोशन से दूर भागता था. तभी एक मार्केटिंग हेड ने मुझसे सवाल किया कि, ‘ क्या आप गा सकते हो?हमारी फिल्म में गाना गाओगे?’ तब मैने ‘ऑटो ट्यून’ और कम्प्यूटर की मदद से एक गाना गाया था. यदि आपने मुझसे स्टेज पर गाने के लिए कहेंगें, तो मेरे लिए बहुत मुश्किल है. लेकिन मुझे संगीत सुनने का शौक जरुर है. इसलिए मुझे इस बात की थोड़ी समझ है कि कौन सा या किस तरह का गाना दर्शकों को पसंद आ सकता है.
आप किस तरह के गाने सुनना पसंद करते हैं?
-मैं ज्यादातर फिल्म के गाने ही सुनता हूं. कभी कभी मूड़ होने पर कुछ दूसरे तरह का संगीत भी सुन लेता हूं. मैं तमिल व मलयालम के अलावा कभी कभी हिंदी व पंजाबी गाने भी सुनता हूं. एक ही तरह का संगीत नही सुनता. मुझे एक ही जॉनर का संगीत सुनने का शौक नही है. मैं अलग अलग तरह का संगीत सुनता रहता हूं.
बैरी जॉन से अभिनय की ट्रेनिंग लेने के बाद आपने अपने अंदर क्या बदलाव महसूस किया?
-बैरी जॉन सर के पास जाने से पहले मेरे अंदर डर व असुरक्षा की भावना बहुत ज्यादा थी. जैसा कि मैने पहले ही कहा कि मेरे पिता जी महान कलाकार व स्टार हैं, तो उनके साथ मेरी तुलना का डर भी था. पहली फिल्म से ही लोग मुझसे मेरे पिताजी की ही तरह बेहतरीन परफार्मेंंस की आपेक्षा करेंगें. तो यह एक्स्ट्रा दबाव मैं स्वयं अपने आप पर डालता था. बैरी जॉन के एक्टिंग स्कूल में भी मैने महसूस किया कि मैं खुद से अपने उपर दबाव डाल रहा हूं. जब वहां लोगो के सामने परफार्म करना होता था, तो मेरे अंदर डर रहता था. वहां पर हमारे एक्टिंग स्कूल के शिक्षकों ने इस बात को पहचान लिया. मेरे इस डर को खत्म करने के लिए उन्होने कई सलाह दी और मेरी काफी मदद की, जिससे मैं इस डर से उबर सका. इसके बावजूद पहली फिल्म में अभिनय करना मेरे लिए काफी मुश्किल और काफी चुनौतीपूर्ण रहा. उस वक्त भी मैं बहुत ‘ओवर थिकिंग’ करता था. अब काफी सहज हो गया हूं. लेकिन आज भी यदि कोई बड़ा दृश्य है, जिसे तमाम लोगो के सामने करना हो, तो मेरे अंदर का डर उभर जाता है. लेकिन यदि मैने अपना होमवर्क सही ढंग से किया है, संवाद ठीक से याद किए हैं, तो अब सहजता से अभिनय कर लेता हूं.
अक्सर देखा गया है कि हर नया कलाकार अपने कैरियर की शुरूआत रोमांटिक फिल्म में रोमांटिक किरदार निभाते हुए करता है, मगर आपने तो अपनी पहली ही फिल्म ‘सेकंड शो ’ में हरीलाल नामक गैंगस्टर का किरदार निभाकर किया. बाद में इस फिल्म को सफलता भी नहीं मिली?क्या अलग राह पर चलने के मकसद से आपने ऐसा किया था?
-ऐसी कोई सोच नहीं थी. मुझे पहले फिल्म की कहानी पसंद आयी थी. दूसरी बात जब यह फिल्म मेरे पास आयी, उस वक्त फिल्म में सभी नए कलाकार थे. यह बात मुझे ज्यादा अच्छी लगी थी. क्योंकि यह मेरे कैरियर की पहली फिल्म थी. मेरे दिमाग में आया कि जो भी गलती होगी, हम सभी एक साथ करेंगें. और एक साथ ही सीखेंगें भी. मुझे लगा था कि मैं एक बहुत बड़ी फिल्म से कैरियर की शुरूआत को डिजर्ब नहीं करता हूं. सिर्फ इसलिए मैं बड़ी फिल्म नहीं करना चाहता था कि मैं महान कलाकार ममूटी का बेटा हूं. इसलिए मैने तय किया था कि मैं एक नए कलाकार की ही तरह छोटे बजट की फिल्म के साथ ही शुरूआत करुंगा. फिल्म की कहानी व मेरे किरदार की लोगो ने प्रश्ंासा की थी. आज भी लोगों को यह फिल्म पसंद है. गैंगस्टर का किरदार करने की वजह यही थी कि मेरे मन में खुद को लेकर कोई पोजीशनिंग नहीं थी. सच तो यह है कि उस वक्त ही नही आज भी मेरे दिमाग में यह बात नही है कि मुझे इस तरह का किरदार नहीं करना है. मुझे हर वह किरदार करना है, जो मेरे अभिनेता को चुनौती दे.
अपने अब तक के कैरियर में टर्निंग प्वाइंट्स किसे मानते हंै?
-मेरी राय में मेरे कैरियर की दूसरी मलयालम फिल्म ‘‘उस्ताद होटल’’ थी. आज भी जब यह फिल्म केरला में टीवी पर आती है, तो लोग देखना पसंद करते हैं. इस फिल्म की वजह से केरला में लोग मुझे अपने घर का सदस्य मानते हैं. इसके बाद फिल्म ‘चार्ली’ भी टर्निंग प्वाइंट्स थी. इस फिल्म से मुझे परफार्मर के तौर पर काफी अच्छी पहचान मिली. इस फिल्म के ही चलते मुझे तेलगू फिल्म महानटी’ और हिंदी फिल्म ‘कारवां’ में अभिनय करने का अवसर मिला. तो ‘चार्ली’ देखने के बाद निर्देशकों ने मुझे दूसरी भाषाओं की फिल्मों के लिए बुलाना शुरू किया. इसके बाद मेेरे कैरियर में टर्निंग प्वाइंट्स मणि रत्नम की फिल्में रहीं. मुझे नए दर्शकों का साथ मिला.
आपकी हिंदी भाषा की फिल्म ‘‘चुप’’ 23 सितंबर को प्रदर्शित होने जा रही है. इसमें आपको क्या खास बात नजर आयी?
-इसका कॉसेप्ट बहुत युनिक है. इसका ट्ेलर देखकर आपको भी इस बात का अहसास हुआ होगा. अब तक किसी ने भी इस विषय पर फिल्म नहीं बनायी है. पहली बार आर बाल्की सर ने यह हिम्मत दिखायी है. जब मेरे पास आर बाल्की सर की तरफ से फोन आया तो मुझे लगा कि उन्होने अब तक जिस तरह की फिल्में बनायी हैं, उसी तरह की यह भी एक फिल्म होगी. यह भी एक कलरफुल और हैप्पी फिल्म होगी. पर जब उन्होने मुझे ‘चुप’ का विषय बताया, तो मैने उनसे कहा, -‘सर, आप इस तरह की फिल्म बनाने वाले हो. ’जब कोई फिल्मकार अपना ट्ैक बदलकर कोई प्रयोगात्मक फिल्म बनाना चाहता है, तो मेरा उत्साह बढ़ जाता है. मुझे ेयह बात उत्साहित करती है कि हम अपने दर्शकों को आश्चर्य चकित करने वाले हैं. मुझे इसका टॉपिक और पटकथा दोनों बहुत ही ज्यादा रोचक लगी. मैने पटकथा पढ़ते हुए पाया कि शुरू से अंत तक एक अच्छी सोच है. कहीं कोई भटकाव नही है. आर बाल्की सर के लिए यह एक पैशन प्रोजेक्ट है.
फिल्म ‘‘चुप’’ का रिफ्रेंस प्वाइंट गुरूदत्त और उनकी फिल्म ‘‘कागज के फूल’’ है. आपने ‘कागज के फूल’ देखी है या नहीं और गुरूदत्त को लेकर आपके दिमाग में पहले से क्या छवि रही है?
-मैने ‘कागज के फूल’ देखी है. फिल्म ‘चुप’ की शूटिंग के दौरान दोबारा देखी. इसके अलावा ‘चुप’ में गुरूदत्त की फिल्म व उनके गानों के कई रिफ्रेंसेस हैं. सच तो यही है कि मुझे गुरूदत्त की फिल्मों के बारे में ज्यादा जानकारी नही थी. पर मुझे पता है कि नई पीढ़ी के कलाकार गुरूदत्त के बहुत बड़े फैन हैं. जब हम लोगो ने ‘चुप’ का फस्ट लुक शेअर किया, जिसमें गुरूदत्त की फिल्म की झलकी है, तो लोग व युवा कलाकार काफी उत्साहित हुए. यह बात मुझे भी अच्छी लगी. यह जानकर मुझे अपार खुशी मिली कि वर्तमान पीढ़ी में भी गुरूदत्त साहब के प्रशंसकों की कमी नही है. लोग उनकी फिल्में देखना चाहते हैं. पर मुझे गुरुदत्त की फिल्मों के गानों के बारे में पता था. क्योंकि मेरे पिता जी व माता जी दोनो ही पुराने गीत , खासकर गुरूदत्त की फिल्मों के गीत काफी सुनते थे. हम बचपन में जब ड्ाइव पर जाते थे, तो गाड़ी में यही पुराने गाने बजते थे. मैं गुरूदत्त की दूसरी फिल्में भी देखना चाहता हूं. मगर सच यह है कि अभिनेता बनने के बाद हमें फिल्में देखने का समय कम मिलता है. इसके अलावा जब से मैं बेटी का पिता बना हूं, तब से तो और कम समय मिलता है. घर पहुॅचते ही मेरी पांच वर्ष की बेटी ही तय करती है कि अब मुझे क्या करना है या टीवी पर मुझे क्या देखना है. पर ‘कागज के फूल ’ देखकर मैने काफी इंज्वॉय किया. वैसे फिल्म ‘चुप’ में भी एक दृश्य है, जिसमें मेरा किरदार फिल्म ‘कागज के फूल’ देख रहा है.
फिल्म में आपका अपना किरदार क्या है?
-विस्तार से बता पाना मुश्किल है. पर मैने इसमें ऐसे युवक का किरदार निभाया है, जिसकी अपनी फूल की दुकान है.
फिल्म ‘चुप’ की कहानी के केंद्र में कलाकार के कैरियर का उतार चढ़ाव और फिल्म समीक्षक की समीक्षा को रखा गया है. आपकी फिल्में भी सफल व असफल हुई हैं. तब क्या आपको भी समीक्षक की लिखी समीक्षा पढ़कर गुस्सा आया था?
-जी हां! ऐसा स्वाभाविक तौर पर हुआ. हम भी इंसान हैं. हमारी अपनी भावनाएं हंै. हम कई माह तक काफी मेहनत कर फिल्म बनाते हैं और फिल्म समीक्षक महज डेढ़ दो घंटे की फिल्म देखकर एक सेकंड में पूरी फिल्म को खारिज कर देता है. कुछ तो फिल्म देखते हुए लाइव रिव्यू डालते हैं. ऐसे में कई बार हमें भी गुस्सा आता है. दुःख भी होता है. कई बार मैने अपनी प्रतिक्रिया लिखी , पर उसे सामने वाले पत्रकार तक भेजा नही. मैं हमेशा समीक्षक की समीक्षा पढ़ने के बाद लिखता हूं कि मैने ऐसा अभिनय किस सोच के साथ किया है?पर भेजता नही हूं. लेकिन मेरी समझ से समीक्षा पढ़कर जहां वास्तव में हमारी गलती हो, उसमें सुधार करते रहें, अपने काम से ही हम समीक्षक को जवाब देते रहें. अपनी प्रतिभा को लगातार साबित करते रहे. हम हमेशा अच्छी तथा चुनौतीपूर्ण किरदार निभाता रहूंगा. मैं अपने काम से आलोचक को गलत साबित करना चाहता हूं.
पर लोग यह मानते हैं कि आलोचना से इंसान को आगे बढ़ने में मदद मिलती है?
-यह एकदम सच है. मेरी फिल्मों के चयन में मेरे आलोचकों का बहुत बड़ा योगदान है. जब आलोचकों ने मेरे बारे में लिखा कि में सिर्फ रोमांटिककिरदार ही निभा सकता हूं, तो मैने कुछ अलग तरह के किरदार निभाए. सच कह रहा हूं मुझे जो आलोचनाएं मिलती हैं, उन्हीं से मैं अपनी फिल्मों के चयन को तय करता हूं. मैं तो आलोचनाओ को हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण से लेता हूं.
आलोचना पढ़ने के बाद कभी आपके अंदर कुछ बदलाव आया?
-जब परफार्मेंस को लेकर कोई कमेंट आता है, तब उस पर ध्यान देता हूं. इसी वजह से मैं परफार्मेंस वाले किरदार ही चुनता हूं. जब किसी को लगता है कि मैं अच्छा कलाकार नही हूं, तो मुझे खुद को अच्छा कलाकार साबित करना होता है. तो आलोचना पढ़ने के बाद अपनी परफार्मेंस को सुधारने के लिए काफी कोशिश करता हूं.
सभी जानते है कि मणि रत्नम की फिल्में पूरे देश व विदेशों में भी देखी जाती हैं. आपने हिंदी, मलयालम, तमिल व तेलुगू भाषा की फिल्मों में अभिनय कर लिया. पर आज की तारीख में कुछ दक्षिण भाषी कलाकार खुद को ‘पैन इंडिया’ कलाकार होने का ढिंढोरा पीट रहे हैं. यह क्या है?
-सच तो यही है कि ‘पैन इंडिया सिनेमा’ या ‘पैन इंडिया कलाकार’ की बात मेरी समझ से भी परे हैं. क्यांेकि पिछले कई दशकों से हम सभी बड़े कलाकारों या स्टार कलाकारों की फिल्में पूरे देश में देखते आए हैं. अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, रजनीकांत, कमल हासन व मेरे पिता जी सहित कई कलाकारों की फिल्में पूरे विश्व में देखी जाती हैं. तो यह कोई नया कॉसेप्ट नही है. मगर आजकल कुछ लोग इसे ‘ओवर यूज’ कर रहे हैं. मेरे पास कई फोन आते है कि , ‘सर, आपके लिए मेरे पास ‘पैन इंडिया’ वाली स्क्रिप्ट है. ’’ तो मैं उनसे कहता हूं कि यह बात मुझे समझ में नही आती. मैं तो अच्छी स्क्रिप्ट व अच्छे किरदार वाली फिल्म करना चाहता हूं. ऐसा हो सकता है कि किसी फिल्म की कहानी बहुत ही ज्यादा भारतीय हो, किसी खास जगह पर केंद्रित हो. मसलन-हाल ही में मेरी एक फिल्म ‘‘सीता रामम’’ आयी थी, जिसे काफी सराहा गया. यह फिल्म एक आर्मी आफिसर की कहानी है. आर्मी आफिसर देश के किसी भी हिस्से का हो सकता है . इस तरह की फिल्म को हिंदी या किसी भी भाषा में डब करने की बात समझ में आती है. क्योंकि यह कहानी हर भाषा के दर्शकों को पसंद आ सकती है. यह भी जरुरी है कि आप जिस कहानी पर फिल्म बना रहे हैं, वह किसी एक जगह की जड़ांे से जुड़ी हुई हो, इस तरह की फिल्म को डब करके हम लोगों को दिखा सकते हैं. पर ‘पैन इंडिया’ क्या होता है, मुझे पता नहीं.
आपकी कई गतिविधियां हैं. आप अभिनेता, गायक, निर्माता, एक अस्पताल के निदेशक भी हैं. आपका अपना एनजीओ भी है. इतने अलग अलग कामों को किस तरह से हैंडल करते हैं?
-इस तरह के कामों को करने के लिए मैनें कुछ टीम बना रखी हैं. मेरे पास कई अच्छे लोग हैं. मैं प्रतिभाशाली, अच्छे, इमानदार, लॉयल लोगों की पहचान कर उन्हें अपने साथ जोड़ता हूं. मेरी फिल्म प्रोडक्शन की जो टीम है, वह सभी मेरे दोस्त हैं और इनमें से एक भी फिल्म इंडस्ट्री से नही है. एमबीए कर बिजनेस करने वाले लोग सब कुछ छोड़कर मेरे साथ फिल्मों से जुड़े हैं. दूसरे व्यवसायों में मैं शेअर होल्डर हूं. मैं अति महत्वाकांक्षी इंसान हूं. मुझे बहुत कुछ करने की इच्छा है.
बिजनेस या फिल्म निर्माण से आप धन कमाते हैं. पर सोशल वर्क करके आप क्या कमाते या सीखते हैं?
-देखिए, जब जिंदगी में हमें कोई सफलता मिलती है, तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम समाज को अपनी तरफ से कुछ वापस दें. हम अपने प्रोडक्शन हाउस में नए लोगों को काम करने का अवसर देकर भी अपरोक्ष रूप से समाज को कुछ देता ही हूं. मैं अपनी चैरिटी को लेकर चर्चा करना पसंद नहीं करता. वैसे मेरे परिवार में मेरे पिता जी, मेरी बहन व भाई सभी लोग चैरिटी करते हैं, पर कोई इसकी चर्चा नहीं करता. मैं खुद जरुरतमंद को ढूढ़ने नही जाता. मगर जब लोग अपनी जरुरत के लिए संपर्क करते हैं, तो मैं उनकी मदद करने की पूरी कोशिश करता हूं.
10 वर्ष के कैरियर में आपके द्वारा निभाए गए किरदारों में से किसी किरदार ने आपकी जिंदगी पर कोई असर किया?
-जी हॉ! अक्सर ऐसा हुआ है. जब भी हम कोई इंटेंस संजीदा किरदार निभाते हैं, तो मेरा व किरदार की सोच या जजमेंट अलग होता है. कई बार किरदार निभाते हुए हमें लगता है कि मैं ऐसा कभी नहीं करुंगा, पर यह किरदार तो करेगा. तो मुझे इसके मन व दिमाग से सोचना पड़ेगा. ऐसे किरदार को निभाते समय एक्शन व कट के बाद भी कुछ समय तक उसका असर हमारी जिंदगी पर रहता है. जब हम अपनी निजी जिंदगी केा भूलकर किरदार में बहुत ज्यादा इंवालब हो जाते हैं, तब भी किरदार का मूड़ हमारे साथ ही रह जाता है.