अब बौलीवुड का तरीका बदल गया है. अब हर कलाकार अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके ही बौलीवुड में कदम रखता है. तभी तो शिवालिका ओबेराय ने अभिनय की टेनिंग लेने के बाद बतौर सहायक निर्देशक काम करते हुए फिल्म माध्यम को अच्छी तरह से समझा. उसके बाद उन्होने फिल्म ‘साली ये आशिकी’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. यह फिल्म खास नही चली. लेकिन फिल्म‘खुदा हाफिज’से शिवालिका ओबेराय को अच्छी पहचान मिली और अब वह फिल्म ‘खुदा हाफिजः चैप्टर 2’ को लेकर एक्साइटेड हैं.
हाल ही में शिवालिका ओबेराय से लंबी बातचीत हुई. प्रस्तुत है उसका अंश. . .
आपके दादा जी फिल्म निर्माता थे. क्या इसी के चलते आपने भी फिल्मों से जुड़ने का फैसला लिया?
-पहली बात तो मैंने अपने दादाजी को देखा ही नही. सच यह है कि जब मेरे पिता जी सोलह वर्ष के थे, तभी मेरे दादा जी का देहांत हो गया था. मैने सिर्फ सुना है कि मेरे दादा जी ने एक फिल्म का निर्माण किया था. मेरे माता पिता फिल्म इंडस्ट्री से नहीं जुड़े हुए हैं. मेरी मां शिक्षक है. मेरी बहन कुछ और काम करती है. हुआ यह था कि स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही मेरी नजर एक्टिंग स्कूल पर पड़ गयी थी, जो कि मेरे स्कूल के पास में ही था. वहां से मैने मम्मी से कहना शुरू किया था कि मुझे एक्टिंग स्कूल में जाकर देखना है कि क्या सिखाया जाता है. फिर यह इच्छा कालेज पहुॅचते पहुॅचते बढ़ गयी. उस वक्त तक मुझे नही पता था कि मेरे दादाजी ने फिल्म बनायी थी. वैसे अलबम में मैने दादा जी निर्मित फिल्म ‘शीबा और हरक्यूलिस’ की फोटो एक बार देखी जरुर थी, जिस पर लिखा था निर्माता महावीर ओबेराय. कालेज में पहुॅचने के बाद मैने अपनी मम्मी से कहा कि जब मेरे दादा जी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे? तो फिर आप मुझे क्यों रोक रही हैं? तब मेरी मम्मी ने मुझे बैठकर समझाया था कि फिल्म इंडस्ट्री बहुत ही ज्यादा इनप्रैडिक्टेबल है. इंसान का कैरियर स्थायी होना चाहिए, जो कि फिल्म इंडस्ट्री में नहीं होता. इसलिए पहले पढ़ाई पूरी करो. उसके बाद सोचना. आम बच्चों की तरह मेरे दिमाग में भी आया कि माता पिता को सब कुछ कठिन लगता है. पर मुझे कुछ करके दिखाना है. मैने अंग्रेजी और मनोविज्ञान विषय के साथ स्नातक की पढ़ाई पूरी की. उसी दौरान मैने अनुपम खेर के एक्टिंग स्कूल से तीन माह का अभिनय में डिप्लोमा कोर्स किया. फिर मैने अनुभव लेने के लिए सहायक निर्देशक बनी. तब मुझे मम्मी की बात याद आ गयी कि फिल्म इंडस्ट्री में कैरियर बनाना कितना कठिन है. मम्मी कहती थी कि ऐसे तो सुबह दस बजे से पहले सोकर नहीं उठती, देखती हूं कि छह बजे सेट पर कैसे पहुॅचेगी? सच कहूं तो मेरी मम्मी ने मुझे बदलते हुए देखा ओर उन्हे अहसास हुआ कि यह अपने कैरियर को लेकर गंभीर है, इसलिए कर लेगी.
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