मुंबई के पलाश दत्ता हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेता, मॉडल, निर्माता, थिएटर कलाकार और कास्टिंग डायरेक्टर हैं. अभिनेता पलाश दत्ता ने फिल्म मोहब्बतें में गुरुकुल बॉय के रूप में शुरुआत की, जो वर्ष 2000 में रिलीज़ हुई थी. इसके अलावा उन्होंने तेरे नाम, धूम, गुड बॉय बैड बॉय, एक आदत, गुड लक, ग्रांडमस्ती, और ग्रेट ग्रैंड मस्ती जैसी अन्य कई फिल्मों में अभिनय किया है.
पलाशदत्त का अंग्रेजी नाटक ‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ कई शो पूरे कर चुका है और अब भी दमदार चल रहा है. पलाश ने कुमार भूटानी के पास अभिनय की ट्रेनिंग ली है. इसके अलावा वे लगातार वर्कशॉप करते रहते है, क्योंकि एक्टिंग में खुद को पॉलिश करना बहुत जरुरी होता है. पलाश को अतरंगी कपडे पहनना पसंद है, जिसकी डिजाईनिंग वे खुद करते है. फिल्मों के अलावा उन्होंने कई विज्ञापनों में भी काम किये है. 13 साल बाद उन्होंने टीवी पर शो ‘इश्कबाज’ से वपसी की. इसमें उन्होंने इंटरनेट सेंसेशन लड़के की भूमिका निभाई है. उन्होंने नेटफ्लिक्स वेब सीरीज ‘टाइपराइटर’ में श्री बनर्जी, एक कडक पिता की भूमिका निभाई है, जिसे आलोचकों ने काफी प्रसंशा की. उनकी प्रोडक्शन कंपनी पलाश दत्ता क्लासिक प्रोडक्शन कंपनी खोली है.
जिसमे पलाश ने पुरस्कार विजेता लघु फिल्म ‘साइलेंट टाईज’ का निर्माण किया, जो भाई-बहन के बंधन के बारे में एक संवेदनशील कहानी है. इस फिल्म को कई फेस्टिवल्स में दिखाया जा चुका है और इस फिल्म ने कई अवॉर्ड जीते हैं. उन्होंने खास गृहशोभा से अपनी जर्नी के बारें में बात की, जो रोचक रही. कुछ खास अंश इस प्रकार है. इन दिनों की व्यस्तता के बारें में पूछने पर पलाश कहते है कि अभी मैं दो वेब सीरीज कर रहा हूँ, एक वेब सीरीज ‘अविनाश’ में मैं किन्नर अंगूरी की केमियों भूमिका निभा रहा हूँ. ‘शोस्टॉपर’ शो में ब्रा फिटर की भूमिका निभा रहा हूँ. ये एक अलग और इंटरेस्टिंग कहानी है, जो 8 एपिसोड में चलती है, जिसमे कई लोग मिलकर एक फैशन हाउस चलाते है.
प्रेरणा कहाँ से मिली?
अभिनय में आने की प्रेरणा कहाँ से मिली? मैं बचपन से ही डांस, सिंगिंग, इलोक्युशन में भाग लेता रहता था. स्कूल और कॉलेज से ही मेरा परफोर्मेंस जारी था. मेरे परिवार में कोई भी हिंदी फिल्मों में काम नहीं किया, लेकिन मेरे रिलेटिव का जुड़ाव क्रिएटिव वर्क से हमेशा रहा है. मेरे पेरेंट्स ने पहले पढ़ाई पूरी कर काम करने की सलाह दिया.
मैंने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने एक एडवरटाइजिंग कंपनी में काम करना शुरू किया, काम करते-करते मुझे लगा कि मुझे इसमें ख़ुशी नहीं मिल रही है. फिर बिनाघर वालों से पूछे, मैंने मॉडलिंग में अप्लाई करना शुरू कर दिया. एक दिन एक अखबार में विज्ञापन देखकर अपना पोर्टफोलियों जमा कर दिया. मेरे पिता पृथ्वेश रंजन दत्ता बहुत स्ट्रिक्ट है, इसलिए मैंने उन्हें बताया नहीं.
इसलिए रोज पिता के ऑफिस जाने के साथ-साथ मैं भी टिफिन लेकर बाहर निकल जाता था, और पिता के ऑफिस जाने के बाद वापस घर आ जाता था, जबकि मैं जॉब छोड़ चुका था और ये बात सिर्फ माँ पापड़ी दत्ता को पता था, क्योंकि मैंने उन्हें अपनी इच्छा बता दिया था. घर आने के बाद मैं अपने सपनों को पूरा करने के लिए चेम्बूर से महालक्ष्मी स्टूडियों में ऑडिशन देने बस से चला जाता था. पहला विज्ञापन मिलने के बाद ही पिता को पता चल पाया था कि मैं मॉडलिंग कर रह हूँ.
इसे देख उन्होंने मुझ पर गुस्सा किया और डांटने लगे, पर मैंने नहीं माना और आगे बढ़ता गया. ये सही है कि मेरे परिवार में कोई इंडस्ट्री से नहीं है, इसलिए मेरे शुरूआती दिन काफी संघर्षपूर्ण रहे. पेरेंट्स को लगता था कि हिंदी सिनेमा में गन्दगी है, सुरक्षा नहीं है, अच्छे लोग यहाँ काम नहीं करते.
बना मॉडल कोर्डिनेटर
इसके आगे वे कहते है कि वर्ष 1995-96 में मैंने मॉडल कोर्डिनेटर का काम शुरू किया. मैंने विज्ञापनों के लिए बहुत अधिक मॉडल दिए है और ये अच्छा चल रहा था, लेकिन वर्ष 2000 में मैंने फिल्म ‘मोहब्बतें’ में एक होनहार छात्र की भूमिका के लिए ऑडिशन दिया और 3 राउंड की ऑडिशन के बाद मैं चुनलिया गया. इसमें बहुत सारे बड़े-बड़े चरित्र थे, जिससे मुझे उनसे मिलना और काम करने का सौभाग्य मिला. इसके अलावा मोहब्बतें के सेट पर करण जौहर से मुलाकात हुई और उन्होंने फिल्म ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ में कास्टिंग का काम करने के लिए बुलाया.
तब कास्टिंग डायरेक्टर का जमाना नहीं था. कुछ आर्टिस्ट मसलन, रिमालागू, फरिदाजलाल, स्मिताजयकर आदि कुछ गिने चुने कलाकार ही माँ की भूमिका निभाते थे. मैंने उनका काम किया, जो उन्हें काफी पसंद आया, इसके बाद मैंने फिल्म ‘कल हो न हो’ के लिए भी कास्टिंग का काम किया.
इसके बाद कई फिल्मों में अभिनय भी किया. मैं 27-28 साल से कास्टिंग का काम करता हूँ. मैंने फिल्मों और वेब सीरीज के लिए हमेशा कास्टिंग डायरेक्टर का काम किया है. इसके साथ-साथ मैंने भरत दाभोलकर की नाट्य कम्पनी में अभिनय करना शुरू कर दिया. इस कंपनी की पहली अंग्रेजी शो ‘मंकी बिज़नेस’ थी और मैं दो महीने के लिए लंदन गया था. अभी दूसरी प्ले ‘ब्लेम इट ऑन यशराज’ में काम कर रहा हूँ. पिछले 4 से 5 साल से इस प्ले को पूरे विश्व में परफॉर्म किया जा रहा है. इसमें मैं वेडिंग प्लानर की भूमिका निभा रहा हूँ. ये मजेदार और कॉमेडी वाली शो है.
तीन साल पहले मैंने अपनी एक शोर्ट फिल्म ‘आई एम् फाइन’ प्रोड्यूस किया है, जो मेंटल हेल्थ कंडीशन को लेकर है. अभी मैंने शोर्ट फिल्म ‘साइलेंटाइज’ जो LGBT पर आधारित भाई-बहन की कहानी है. इसे कई अवार्ड भी मिले है. इसके लिए मुझे बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड भी मिला है.
किये संघर्ष
पलाश संघर्ष के बारें में कहते है कि मैंने हर काम में सफलता के लिए बहुत संघर्ष किये है, फिर चाहे वह अभिनेता हो या कास्टिंग का काम. उस समय कास्टिंग का काम करने वाले को कोई दूसरा काम करने नहीं दिया जाता था. मुझे काफी लोगों ने ओपोज भी किया, पर मैंने रिबेल होकर अपना काम जारी रखा. मैंने कई बड़े- बड़े कलाकारों को कास्ट किया है. दिन में मैं 300 से 400 फ़ोन कॉल करता था, कलाकारों को ऑडिशन पर भेजने के लिए और मेरा गला तक सूख जाता था. कई बार स्क्रिप्ट भी उन्हें देना पड़ता था. आज काफी बदलाव हो चुका है, जो अच्छी बात है. असल में कास्टिंग के काम में बड़े-बड़े निर्देशकों के साथ उठना-बैठना होता है, इससे कई बार उन्हें एक्टिंग का मौका भी मिल जाता है.
परिवार का सहयोग
परिवार के सहयोग के बारें में पूछने पर पलाश हँसते हुए कहते है कि पिता की स्वीकृति मिलना आज भी कठिन है, क्योंकि आज भी वे मेरे काम को पसंद नहीं करते. मैंने जो भी फिल्में की है, उन्होंने देखा है और प्राउड भी फील करते है, क्योंकि मैंने बिना किसी गोड्फादर के इंडस्ट्री में अपनी साख जमाई. ये सही है कि मेरे समय में पेरेंट्स या बच्चे अधिक एक्सप्रेसिव नहीं होते थे. तब शोअप और सोशल मीडिया नहीं थी. कुछ भी हम सामने बोलकर या गिफ्ट देकर जताते थे, लेकिन मेरे काम को वे पसंद करते है, क्योंकि मुझे कई अवार्ड मिले, आलोचकों ने मेरे काम की तारीफे की.
ईमानदारी से किये काम
पलाश कहते है कि मैं बांग्ला कल्चर में पला-बड़ा हुआ हूँ और मेरे पिता के बहुत स्ट्रिक्ट होने की वजह से मैंने कभी कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में कुछ गलत काम नहीं किया और न ही कोई महिला कलाकार मेरे पास आने से कतराई, क्योंकि मैंने अपने काम की ईमानदारी और सम्मान को बनाए रखा.
कास्टिंग काउच की घटनाएं पहले थी और आज भी है और ये बड़े लेवल पर है, ये एक प्रकार का दलदल है. मैं भी इन परिस्थितियों से गुजरा और इसमें फंस भी सकता था, लेकिन मैं इसमें से निकल गया, क्योंकि मुझे किसी प्रकार का नशा या ड्रग लेने की आदत नहीं है, पार्टी में मैं जाता नहीं.
मुझे लोग इंडस्ट्री का कलंक कहते है. मैं एक परफोर्म करने वाला आर्टिस्ट हूँ, मैंने 45 साल की उम्र में कथक सीखना शुरू किया है. इसके अलावा सुरेश वाडेकर के यहाँ क्लासिकल हिन्दुस्तानी सोंग भी सीख रहा हूँ. बचपन में मैं रविन्द्र संगीत सीख चुका हूँ.
सोच के विपरीत किये अभिनय
अभिनेता पलाश का कहना है कि ये सब सीखते हुए मैं खुद को सम्पूर्ण फील करता हूँ. मुझे शुरू से कॉमिक एड्स जैसे चम्पू, नोर्डी, पढ़ाकू आदि चरित्र मिलते थे. तब स्लैपस्टिक कॉमेडी ही चलती थी और मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इससे निकलना है, थिएटर में सिर्फ अलग भूमिका करने को मिलता था. मैंने अधिकतर कॉमेडी शो ही किये है, लेकिन एक वेब शो मिस्टर बनर्जी में मैंने एक बहुत स्ट्रिक्ट बंगाली पिता की भूमिका की है.
उस भूमिका के बाद मेरा शिफ्ट कॉमेडी से सीरियस भूमिका की तरफ हुआ है, मेरा इंडस्ट्री से कहना है कि अगर किसी को मौका कुछ अलग करने को नहीं मिलेगा, तो वह खुद को कैसे प्रूव करेगा. कास्टिंग डायरेक्टर रौशनी बैनर्जी ने मेरे अंदर से 9 साल के पिता की स्ट्रिक्ट पिता की भूमिका निकलवाई. डायरेक्टर सुजोय घोष खुद भी विश्वास नहीं कर पा रहे थे, कि मैं एक 9 साल के बच्चे का पिता बन सकता हूँ, लेकिन सही लुक के लिए कॉस्टयूम डायरेक्टर ने केवल एक मूंछ के प्रयोग किया, जिससे डायरेक्टर को भी मैं परफेक्ट लगा.
सेफ गेम खेलती है इंडस्ट्री मेरा एटरटेनमेंट इंडस्ट्री से कहना है कि व्यक्ति कैसा भी हो उसे हर तरह की भूमिका मिलनी चाहिए. इमेज के आधार पर नहीं. कॉमेडियन जोनी लीवर भी निगेटिव या सीरियस रोल कर सकते है, पर उन्हें वह मौका नहीं मिला. इंडस्ट्री में लोग केवल बड़ी बाते करते है. नयापन के नाम पर कुछ नहीं होता. ऐसे कई एक्टर भरे पड़े है, जो दीखते कुछ है, पर वे कुछ और एक्टिंग कर सकते है. मैंने अधिकतर कॉमेडी फिल्में की है. फिल्म आई एम् फाइन में मैंने जो भूमिका निभाई है, वैसा मैंने कभी नहीं किया है. ओटीटी की वजह से थोड़े बदलाव इंडस्ट्री में आई है, पर अभी बहुत बदलाव होना बाकी है. यहाँ वर्क कल्चर बहुत ख़राब है, आर्टिस्ट की वैल्यू नहीं है.