फिल्म ‘मसान’ में एक बनारसी लड़के की भूमिका निभा चुके अभिनेता विक्की कौशल को इस फिल्म के लिए इंटरनेशनलइंडियन फिल्म अकेडमी अवार्ड्स के तहत बेस्ट मेल डेब्यू का पुरस्कार मिला है.विक्की के पिता श्याम कौशल एक एक्शन एंड स्टंट डायरेक्टर है,उन्होंने क्रिश 2, बजरंगी भाईजान,स्लमडॉग मिलेनियर, 3 इडियट्स आदि कई फिल्मों में एक्शन दिया है. विक्की को हमेशा से अभिनय की इच्छा रही. मेकेनिकल इंजिनीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक्टिंग की ट्रेनिंग ली और अभिनय के क्षेत्र में उतरे. इससे पहले उन्होंने फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ में निर्देशक अनुराग कश्यप के साथ सहायक निर्देशक के रूप मेंकाम किया और कुछ फिल्मों में छोटी-छोटी भूमिका निभाई, जिससे उन्हें अभिनय की बारीकियों को सीखने का मौका मिला. विक्की स्पष्टभाषी और हँसमुख स्वभाव के है. उनकी फिल्म ‘सरदार उधम’ अमेजन प्राइम विडियो पर रिलीज हो चुकी है, जो सरदार उधम सिंह के जीवनी पर बनी है, जिसमें विक्की के अभिनय की बहुत प्रसंशा की जा रही है. विक्की से ज़ूम कॉल पर बात हुई. आइये जाने विक्की से उनकी कुछ खास बातें.
सवाल-ये फिल्म आपके लिए बहुत खास है, क्या इसकी शूटिंग करते हुए कभी ऐसा एहसास हुआ?
हां, कई बार मेरे साथ हुआ है, क्योंकि जलियांवाला बाग़ को रिक्रिएट करना बहुत ही मुश्किल था. स्क्रिप्ट मुझे हिलाकर रख देता था और कई बार आँखे नम हो जाती थी. कहानी पता होती थी, लेकिन जब इसे रियल में शूट करना होता है, तो वही भाव मेरे अंदर आ जाता था. इसके अलावा निर्देशक शूजित सरकार का सेट हमेशा ही दृश्य के अनुसार रियल और गंभीर होता था. मेरा खून सूख जाता था. हर रात को मैं सोचता रहा कि आज से सौ साल पहले 20 हजार की भीड़ ने एक मैदान में इस दृश्य को देखा है, जहाँ से उन्हें भागने का कोई रास्ता नहीं था. सिर्फ एक रास्ता था, जिससे फौजी लगातार निहत्थे लोगों पर गोलियां चला रहे थे. उस भीड़ में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी थे. इस दृश्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया था.
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सवाल-इस फिल्म को इरफ़ान खान करने वाले थे, लेकिन उनकी अचानक मृत्यु से ये फिल्म आपको मिली, क्या आपको लगता है कि इरफ़ान आपसे अच्छा अभिनय कर पाते?
अभिनेता इरफ़ान खान एक प्रतिभाशाली कलाकार थे और पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे. उन्होंने कई सफल फिल्में की है और मुझसे अच्छा अभिनय अवश्य कर पाते. मैं अगर उनके जैसे एक प्रतिशत भी काम करने में सफल हुआ, तो ये मेरे लिए बड़ी बात होगी.यहाँ मेरा सौभाग्य के साथ-साथ दायित्व भी है कि मैं इस भूमिका को अच्छी तरह से निभाऊँ. ये फिल्म मेरी तरफ से उनके लिए एक छोटा सा ट्रिब्यूट है.
सवाल-निर्देशक शुजित सरकार के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
अनुभव बहुत ही अच्छा रहा, क्योंकि मैंने उनके साथ काम कर कई चीजे सीखी है. उनके साथ काम करने से पहले मुझे खुद को एक खाली कप की तरह पेश करना पड़ा, ताकि उनके निर्देश को मैं अपने अंदर पूरी तरह भर सकूँ. शुजित सरकार ने इस फिल्म की कल्पना आज से 20 साल पहले की थी और इसकी वजह से वे दिल्ली से मुंबई आये थे, लेकिन यहाँ भी उन्हें कोई प्रोड्युसर नहीं मिला था, क्योंकि तब वे नए थे और इस तरह की फिल्मों का चलन नहीं था. आज ये बायोपिक फिल्म बन दर्शकों तक पहुंची है और सबको पसंद आ रही है.
सवाल-इस फिल्म में आपने एक फ्रीडम फाइटर सरदार उधम सिंह की भूमिका निभाई है, कितना चुनौतीपूर्ण था और किस भाग को करना बहुत कठिन था?
इसमें मैंने शारीरिक रूप से खुद की तैयारी कर ली थी, क्योंकि इसमें एक बार 20 साल के सरदार उधम तो कही 40 वर्ष के सरदार उधम की भूमिका निभानी पड़ी, जो बहुत चुनौतीपूर्ण रही. दो दिन में मुझे 14 से 15 किलो घटाने थे, जो बहुत कठिन था. उस भाग को शूट करने के बाद दुबारा 25 दिनों में फिर से 14, 15 किलो बढ़ाने थे. इसके लिए मुझे कुछ फोटो सोशल मीडिया पर मिले तो कुछ पुरानी किताबों से पता चला है कि सरदार उधम सिंह बहुत ही बलशाली और मजबूत इंसान थे. इसलिए खुद को थोडा वजनी, चेहरे की भारीपन को लाना पड़ा. इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग देशों में अलग लुक्स और नाम को बदलते थे. ऐसे में मुझे भी लुक्स के साथ जीना सीखना पड़ा. इसके लिए प्रोस्थेटिक का सहारा लिया गया, जिसके लिए रूस, सर्बिया और यहाँ की टीम ने मिलकर काम किया, क्योंकि टीम उस दौर की सभी चीजों को वास्तविक दिखाने की कोशिश की है, ताकि दर्शक को दृश्य रियल लगे. उस इन्सान का दर्द और दुःख जैसे मानसिक भाव को चेहरे पर लाने के लिए शुजित सरकार ने काफी मदद की है.
सवाल-इस तरह की गहन चरित्र निभाने के बाद क्या आप में कुछ परिवर्तन आया?
थोडा संयम और धीरज मेरे अंदर आया है, क्योंकि एक इंसान ने जलियांवाला बाग़ के दर्द को 21 साल तक अपने अंदर रखा और 21 साल बाद उसका बदला लंदन जाकर लिया था. इसमें धैर्य की बहुत जरुरत होती है और मुझमे भी धैर्य का कुछ भाव अवश्य आया होगा.
सवाल-क्या आप सरदार उधम सिंह की जीवनी से परिचित थे, क्योंकि स्कूल में बहुत कम सरदार उधम सिंह के बारें में लिखी गयी है,क्या आप मानते है कि इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारें में और अधिक पढ़ी और सुनी जानी चाहिए?
मुझे सरदार उधम सिंह के बारें में पता है, क्योंकि पंजाब में मेरा गांव होशियारपुर से जलियांवालाबाग़ केवल 2 घंटे की दूरी पर है और इतिहास की किताब में इसका जिक्र होने पर मैं अपने पेरेंट्स से इसकी जानकारी लेता था, क्योंकि उस ज़माने में फ्रीडम और इक्वलिटी, बार-बार भेष बदलकर पूरे विश्व में घूमना आदि बातें फिल्म के दौरान पता चली.
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इन स्वतंत्रता सेनानियों के बारें में किताबो, फिल्मों और संगीत के माध्यम से याद किये जाने की आवशयकता है, क्योंकि ये डेमोक्रेसी जो हमें मिली है, वह ऐसे बहुतों के त्याग और बलिदान के फलस्वरूप मिली है. इसे बचाकर रखना बहुत जरुरी है, क्योंकि उस ज़माने में 200 साल तक राज कर रहे अंग्रेजों को हटाना आसान नहीं था. शुजित सरकार ने इसी वजह से इस फिल्म को बनाने के लिए 20 साल तक इन्तजार किया है.
सवाल-आप को किस बात से गुस्सा आता है और गुस्सा आने पर इसे मैनेज कैसे करते है?
जब मैं बहुत थका हुआ महसूस करता हूँ या तेज भूख लगी हो, तो मैं गुस्सा हो जाता हूँ. इसे मैं खुद को अकेला रखकर या खाना खाकर शांत कर लेता हूँ. किसी से बात नहीं करता, क्योंकि तब किसी के कुछ कहने पर मैं एकदम से फूट पड़ता हूँ.