हिंदी धारावाहिक लेडीज स्पेशल में अमर की भूमिका निभाकर चर्चित होने वाले अभिनेता ओजस रावल गुजराती फिल्म इंडस्ट्री के जाने माने कलाकार है. ओजस ने हिंदी धारावाहिक ‘सरगम की साढ़ेसाती’ में भी काम किया है. इंडस्ट्री में गॉडफादर न होने के बावजूद उन्होंने कई ब्लॉकबस्टर गुजराती फिल्में देकरअवार्ड लिए है. उनके सहज अभिनय को दर्शक बहुत पसंद करते है. बचपन से अभिनय की इच्छा रखने वाले ओजस ने मेहनत और लगन से अपनी राह तय किया है. उनकी गुजराती फिल्म ‘स्वागतम’पहली बार ओटीटी प्लेटफॉर्म शेमारूमी पर रिलीज हो चुकी है, जिसमें उनके काम को बहुत सराहना मिल रहा है.स्पष्टभाषी ओजस से उनकी जर्नी के बारें में बात हुई, पेश है, कुछ खास अंश.
सवाल-इस फिल्म में काम करने की खास वजह क्या है, इससे आप खुद को कितना रिलेट कर पाते है?
ये एक थ्रिलर कॉमेडी है और इसकी कहानी बहुत अलग है. ये अलमारी में सहेज कर रखने योग्य फिल्म है. इसमें मैंने नकारात्मक भूमिका निभाई है, जो अधिक मैंने किये नहीं है. मुझे विलेन की ये चरित्र बहुत अलग लगी. इसलिए मैने हाँ कहा. कोविड के समय जब सभी लोग घर पर है, ये फिल्म सबको हंसने के लिए मजबूर करती है. इसका चरित्र दूर-दूर तक मुझसे मेल नहीं खाता, इसलिए मुझे इस भूमिका के लिए मेहनत अधिक करनी पड़ी.
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सवाल-एक्टिंग में आना एक इत्तफाक था या बचपन से सोचा था?
बचपन से मुझे अभिनय का शौक था, स्कूल और कॉलेजों में मैं एक्टिंग करता रहा, लेकिन प्रोफेशनल क्षेत्र में आने में समय लगा, क्योंकि मैं एक बायोमेडिकल साइंस का छात्र था और कई साल अमेरिका में कॉमर्स का प्रोफेसर रहा. इसके बाद मैं अभिनयमें आया. मेडिकल की पढाई करते वक्त मैंने लोकल थिएटर में अभिनय करना जारी रखा. भारत लौटने के बाद नामचीन निर्देशक कुंदन शाह के साथ मेरा परिचय हुआ. वहां मैं एसिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम करने लगा. इससे मुझे अभिनय, लेखन और निर्देशन में अच्छी जानकारी हो गयी.
सवाल-आपके इस काम में पेरेंट्स ने कितना सहयोग दिया?
शो बिजनेस से मेरे परिवार के किसी सदस्य का कोई नाता नहीं था. इसलिए मैं हमेशा न्यू-कमर ही रहा. मेरे परिवार का सहयोग हमेशा ही रहा. मैं हमेशा से सेल्फ मेड एक्टर हूं, क्योंकि उसका आनंद अलग होता है,क्योंकि संघर्ष के बिना आज के दौर में सफलता मिलना संभव नहीं. आज सोशल मीडिया काफी बढ़ चुका है. जिसमे हर छोटी या बड़ी बातें लिखी जाती है. अगर एक एक्टर की साधना अच्छा अभिनय करने की नहीं है, तो कोई भी उसे आगे नहीं ले जा सकता.
सवाल-आज लोग संयुक्त परिवार में नहीं एकाकी परिवार में रहना चाहते है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?
मैं बचपन से संयुक्त परिवार में रहा और मेरी फिल्म स्वागतम की कहानी भी इस कांसेप्ट पर आधारित है. मेरा सोचना है कि जॉइंट फॅमिली में बच्चे कब बड़े हो जाते है, पता नहीं चलता. घर के बुजुर्ग को भी परिवार का सहारा मिल जाता है. मैं अमेरिका के फ्लोरिडा में कई सालों तक अकेला था और कई कड़े अनुभव हुए. तब परिवार के मूल्य को समझ पाया. एक कम्बल, जो प्यार, सुरक्षा, अपनेपन की होती है, वह अकेले रहने पर नहीं मिलता. जॉइंट फॅमिली के कांसेप्ट के टूटने की वजह पाश्चात्य संस्कृति है, जिसके आने से एकता बिखरने लगी है. इसके अलावा कई बार किसी व्यक्ति को कमाने के लिए बाहर जाना पड़ता है, क्योंकि कोई दूसरा उपाय नहीं है. मैं सूरत शूटिंग करने जाता हूं, वहाँ मेरे जानकार 30 से 40 लोग एक साथ परिवार में रहते है.
सवाल-कोविड हमारे देश में काफी फैला और तक़रीबन हर परिवार ने अपने किसी प्रियजन को खोया है, इससे देश के नागरिकों को क्या सीख मिली?
मेरे हिसाब से सभी को एक भयानक दौर देखने को मिला है, जिसमें लोग अपने लिए नहीं दूसरों के लिए भी खतरा पैदा कर रहे है. भारत में बाकी देशों की तुलना में सिविक सेन्स बहुत कम है. हर नागरिक का ये नैतिक कर्तव्य है कि वे अपने लिए नहीं, परिवार ,समाज और पड़ोसियों को ध्यान में रखते हुए कोरोना के गाइडलाइन्स को फोलो करें. मैंने देखा है कि अभी भी लोग बिना मास्क लगाये या गले में मास्क पहने घूमते है, जो गलत है. इसके अलावा मैंने ‘कोविड एसिस्ट’ नाम से एक ग्रुप बनाया है. इसमें जरुरत मंद व्यक्ति की सहायता करते है, जिसमें व्यक्ति को मरीज से सम्बंधित दवाएं, ऑक्सीजन, भोजन आदि की व्यवस्था और गाइडेंस दिया जाता है. इसमें मुंबई, दिल्ली, बंगलुरु, मद्रास आदि जगहों से लोग जमा हुए है. किसी भी नागरिक को पब्लिक हेल्थ को असुरक्षित करने का हक नहीं है. मुझे इस बात से आश्चर्य होता है, जब कुछ लोग कोरोना बीमारी को मानते ही नहीं. उन्हें मैं अंधश्रध्दा की श्रेणी में रखता हूं.
सवाल-किस प्रकार की कहानियां आपको अभिनय के लिए उत्साहित करती है?
मैं उन फिल्मों में काम करना पसंद करता हूं, जिसकी कैसेट लोग सहेज कर अपने अलमारी में रखें और जब भी इच्छा फिल्म देखने की हो, उसे निकाल कर अपने पोते-पोती के साथ देख सकें. मैं वैसी ही फिल्में करना चाहता हूं.
सवाल-किस कलाकार से प्रेरित होकर आपने अभिनय को अपना कैरियर माना?
मेरे प्रेरणास्रोत बलराज साहनी, गुरुदत्त, दिलीपकुमार आदि है. कॉमेडी में जॉनी लिवर, रोबिन विलियम्स इन सब कलाकारों के काम से मैं बहुत प्रभावित हुआ. आज के कलाकारों में पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, कमल हासन आदि बहुत अच्छा काम कर रहे है.
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सवाल-आपको कोई सुपर पॉवर मिलने पर क्या बदलना चाहेंगे?
मैं सुपर हीरो डॉक्टर स्ट्रेंज बनना चाहता हूं, जिससे लोगों की माइंड में घुसकर चित्त पलट कर सकूँ,ताकि लोग सही ट्रैक पर आ जाय.
सवाल-समय मिलने पर क्या करते है?
मेरी रूचि बागवानी की तरफ अधिक है और मैं उसे करता हूं. ये बहुत शांतिदायक लगती है. लॉकडाउन में मैंने अपने सारे पौधों को गिना है, जो 42 है. इसके अलावा संगीत सुनना और पेंटिंग करता हूं.