स्पष्टभाषी और साहसी अभिनेत्री स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) अक्सर ही अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. यूजर्स उनको ट्रोल करने का कोई मौका भी अपने हाथ से जाने नहीं देते. उन्होंने हिंदी सिनेमा जगत से लेकर देश-दुनिया से जुड़े हर मु्द्दे पर अपनी बेबाक राय रखी हैं. हाल में उन्होंने ‘बायकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड पर काफी सारे ट्वीट्स किए थे.स्वरा ने आम लोगों को ही इसका जिम्मेदार ठहराया है.जो उसकी सत्यता को जाने बिना ही ट्रोल करते है. कंट्रोवर्सी के बारें में स्वरा का कहना है कि मैं कंट्रोवर्सी में ही पली-बड़ी हुई हूँ. मुझे ‘कंट्रोवर्सी चाइल्ड’ कहलाना ही ठीक रहेगा. ये सही है कि पब्लिक लाइफ में कंट्रोवर्सी होती है. उसे झेलना पड़ेगा, उससे बचपाना संभव नहीं. मगर मैंने कोई फूहड़ बात नहीं कही है और बातों की नियत और आदर्श सही है, तो किसी भी गलत बात के लिए मैं अवश्य खड़ी रहूंगी और लडूंगी भी. जिसपर मेरा विश्वास होता है, मैं उसके लिए सामने खड़ी हूँ,मेरी बातें सालों बाद उन्हें सही लगेगा. मैं वैसे ही कंट्रोवर्सी को लेती हूँ और देखा जाय तो कंट्रोवर्सी केवल 3 दिन तक चलती है.
किया संघर्ष
यहाँ तक पहुँचने में स्वरा ने बहुत मेहनत करनी पड़ी. वह कहती है कि अगर कोई जानने वाला इंडस्ट्री से नहीं है, तो संघर्ष करना ही पड़ता है, पर मुझे काम जल्दी मिल गया और अभी भी कर रही हूँ. मुझमें मेहनत और धीरज की कोई कमी नहीं, दर्शकों का साथ ही मेरी प्रेरणा है.
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एक्टिंग पर किया फोकस
‘निल बट्टे सन्नाटा’ फिल्म से चर्चित होने वाली अभिनेत्री स्वराभास्कर, तेलुगु परिवार में जन्मी और उनका पालनपोषण दिल्ली में हुआ. वहां से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त कर अभिनय करने मुंबई आईं और कुछ दिनों के संघर्ष के बाद फिल्मों में काम मिलने लगा. उन की पहली फिल्म कुछ खास नहीं रही, पर ‘तनु वैड्स मनु’ में कंगना रनौत की सहेली पायल की भूमिका निभा कर उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया.स्वरा भास्कर के पिता उदय भास्कर नेवी में औफिसर थे. अब वे रक्षा विशेषज्ञ हैं और मां इरा भास्कर प्रोफेसर हैं.
है चुनौती अभिनय में
इन दिनों स्वरा फिल्म ‘जहाँ चार यार’ में एक सहमी हुई गृहणी की भूमिका निभा रही है, जो उसके रियल लाइफ के चरित्र से बहुत अलग है, लेकिन उन्होंने इसे एक चुनौती की तरह लिया है और अपनी नानी की चरित्र से प्रेरित होकर इस भूमिका को निभाई है.उनकी नानी रमा सिन्हा की शादी 15 साल में हुई थी और इतनी कम उम्र में उन्होंने पूरे परिवार को सम्हाला था. इससे स्वरा बहुत प्रेरित हुई. स्वरा कहती है कि दोस्ती और रोड ट्रिप पर कई फिल्में बनी है, लेकिन शादी-शुदा महिलाओं को मुख्य किरदार में और उनकी दोस्ती को लेकर ऐसी फिल्में निर्माता, निर्देशक कम बनाते है. अधिकतर फिल्मों या टीवी में महिलाओं को प्रताड़ित और दुखी दिखाया जाता है, जिसे आज तक दर्शक देखते आ रहे है. ये सही भी है कि हमारे घर के चाची, मामी, नानी, दादी, माँ आदि के सपनों, उनकी खुशियों का ख्याल बहुत कम रखा जाता है. उनके जीवन में कुछ मजे या कुछ दिन चूल्हा- चौके से मुक्ति होकर खुद पर ध्यान दे सकती हो, क्योंकि उन्हें देखने, समझने वाला कोई नहीं होता. कही जाना हो, तो महिलाएं नहा-धोकर पसीने से तर-बतर होकर टिफिन पैक करती है, उनके परिश्रम को किसी ने आजतक महसूस नहीं किया है. ऐसे में निर्देशक कमल पांडे इस कहानी को लेकर आये है, जो शादी-शुदा महिलाओं की कहानी है, जिसमे उनकेसपने, दोस्ती,मौज मस्ती, ट्रिप आदि को दर्शाने की कोशिश की गयी है.
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कठिन था शूट करना
एक दृश्य को शूट करते हुए स्वरा बहुत परेशान हुई . वह हंसती हुई कहती है कि मुझे पानी में भीगना एकदम पसंद नहीं. एक दृश्य में मुझे पानी में शूट करना पड़ा. मैं पूरी तरह से भींग चुकी थी. मुझे गीला होना पसंद नहीं. मुझे तैरना भी बहुत कम आता है. इसके अलावा इसकी शूटिंग कोविड 19 की दूसरी वेव के दौरान गोवा में हुई जहाँ हम सब फंस चुके थे. एक एक्ट्रेस को कोविड भी हुआ, शूट कैंसिल करना पड़ा. 8 से 10 महीने देर हुई. इसके बाद फिर से गोवा जाकर उसे शूट किया गया.
चरित्र में स्ट्रेंथ है जरुरी
अभिनेत्री स्वरा कहती है कि मैंने हमेशा एक अलग भूमिका निभाने की कोशिश की है,फिर चाहे वह नील बटे सन्नाटा’ हो या राँझना, तनु वेड्स मनु, प्रेम रतन धन पायों आदि सभी में मैंने अपनी भूमिका की स्ट्रेंथ को देखा है. इस बार भी मैंने बेचारी यानि दब्बू महिला की भूमिका निभाई है, जो मेरे लाइफ के विपरीत है. हर बात को वह अपने पति से पूछ लेती है, जो उसकी टैग लाइन भी है. उसे जिंदगी में डर है कि पति से बिना पूछे वह कुछ करना गलत होगा. मुझे एक कलाकार के रूप में इसे नया लगा और मैंने किया, क्योंकि सोशल मीडिया, ट्विटर, फेसबुक पर मेरी एक अलग इमेज है, जिसे मैं काम के द्वारा ब्रेक कर सकूँ. यही मेरा उद्देश्य रहा. मुझे हंसी आती है कि मैं एक अकेली लड़की होकर शादी-शुदा महिलाओं की भूमिका निभा रही हूँ.
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अलग किरदार निभाना जरुरी
स्वरा आगे कहती है कि कलाकार को हमेशा खुद से अलग भूमिका निभानी चाहिए. मुझे मेरी भूमिका से बस एक चीज ऐसी ढूंढ़नी होती है, जो मुझे समझ में आये या फिर किसी करीबी इंसान में वो गुण हो, जिससे मैं रिलेट कर सकूँ. फिल्म राँझना में मेरे और बिंदिया में बहुत फर्क था, पर मैंने उनमे पाया कि बिंदियाँ दिल से नहीं दिमाग से सोचती है, जो मुझसे मेल खाती थी. ‘नील बटे सन्नाटा’फिल्म में मैंने माँ के तरीके को सोचकर ढालने की कोशिश की फिल्म ‘अनारकली ऑफ़ आरा’ में अन्याय के खिलाफ लड़ाई, जो मुझसे काफी मेल खाता हुआ रहा है. इस फिल्म की चरित्र में मैंने नानी को अपने जीवन में उतारा है, क्योंकि उनकी शादी 15 साल में हो गयी थी. बनारस में रहती थी, उन्हें अंग्रेजी बोलना नहीं आता था, जबकि मेरे नाना बिहार के जमींदार थे और इंग्लैंड में अपनी पढाई पूरी की थी. वे बहुत आधुनिक तरीके से जीवन-यापन करते थे. नानी उस समय बहुत डरी हुई रहती थी कि उनसे कोई गलती न हो जाय. ये सारी कहानियां उन्होंने अपने जीवन की मुझे सुनाया करती थी. उन्होंने पूरी जिंदगी बच्चों और परिवार के लिए जिया है. कई कहानियाँ बताया करती थी. मैं उन्हें बहुत मिस करती हूँ, क्योंकि कैंसर से उनकी मृत्यु कुछ साल पहले हो चुकी है.
रखे बनाए शादी से पहले की फ्रेंडशिप को
स्वरा के साथ सभी को स्टार ने बहुत अच्छा काम किया है. दोस्तों की केमिस्ट्री को निर्देशक ने अच्छी तरह से फिल्माया है. महिलाओं की दोस्ती शादी के बाद ख़त्म होने की वजह पूछने पर स्वरा स्पष्ट रूप में कहती है कि कोई महिला दोस्ती को बनाएं रखने के बारें में नहीं सोचती, वे घर गृहस्थी में इतना घुस जाती है कि वे अपने बारें में कुछ नहीं सोचती. समय बचता ही नहीं, जबकि वह दूसरों की सेवा करने में व्यस्त है. दोस्ती महिलाओं के लिए उतना ही जरुरी है, जितना पुरुषों को है, क्योंकि सबके पास अपने जीवन की किसी समस्या को कहने के लिए किसी का होना आवश्यक है. उनके अनुभव भी आपके जैसे ही कुछ है. इसे कौन समझेगा? वही व्यक्ति समझ सकता है, जिनके जीवन में पति, बच्चे सास-ससुर आदि हो. मेरा नानी को उनकी सहेलियों के साथ 40 से 50 साल तक साथ निभाते हुए देखना मेरे लिए बड़ी बात है. मैं जब शूटिंग के दौरान मुंबई आती थी, तो नानी को मुंबई में उनके दोस्तों के साथ कुछ दिनों के लिए छोडती थी. मैंने हमेशा उनकी लाइफ में एक्साइटमेंट को देखा है.