फिल्म ‘रंगदे बसंती’ और ‘कमीने’ सेहिंदीफिल्मों में अभिनय करने वाले अभिनेता चन्दन रॉय सान्याल (Chandan Roy Sanyal) ने हिंदी फिल्मों के अलावा बांग्ला फिल्मों में भी बहुत काम किया है. अभी उनकी वेब सीरीज ढीठ पतंगे रिलीज हो चुकी है, जिसे सभी पसंद कर रहे है. मुंबई में अपने घर में इन दिनों लॉकडाउन को वे अकेले एन्जॉय कर रहे है. वे इन दिनों घर पर साफसफाई से लेकर सारा काम और अपने पसंदीदा खाना बना रहे है. यूं तो उन्होंने कभी खाना नहीं बनाया, पर लॉकडाउन ने उन्हें इस ओर रूचि बढ़ाई है. यूट्यूब के ज़रिये उन्होंने डोसा बनाया और बात की. पेश है खास अंश.

सवाल- अभिनय में आने की प्रेरणा कहा से मिली ?

मैं करोलबाग केमध्यम वर्गीयबंगालीपरिवार से हूँ. जहाँ सिनेमा केवल देखा जाता था. कभी-कभी मेरे एकमामा मुझे फिल्म देखने ले जाया करते थे.फिल्में देखना पसंद था.वही से शौक पैदा हुआ. कभी अभिनय के बारें में सोचा नहीं था.कॉलेज जाने के बाद ड्रामा सोसाइटी में ज्वाइन किया और नाटकों में काम करने का अवसर जब-जब मिला, करता गया. कब ये शौक पैशन में बदल गया पता नहीं चला. एक जूनून हो गया, उसी में रच बस गया. 17 साल की उम्र में मैंनेथिएटर में अभिनय करना शुरू कर दिया था.

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सवाल- परिवार की प्रतिक्रिया कैसी रही?

परिवार वाले गुस्सा हो गये. रिश्तेदारों ने माता-पिता से कहा कि पूरी जिंदगी फटी जींस, कोल्हापुरी चप्पल और झोला लटकाकर मैं घूमूँगा.उन्हें भी ख़राब लग रहा था. मेरे साथ उनकी कहासुनी हुई और मैं घर छोड़कर आ गया. कॉलेज के दौरान ट्यूशन कर मैंने कुछ पैसे इकट्ठा किये थे. उस सात हज़ार रुपये लेकर मैं मुंबई साल 2003-04 में आ गया.

सवाल-  मुंबई में कितना संघर्ष रहा?

यहाँ बहुत संघर्ष था, 5 लड़के मीरा रोड के एक कमरे में रहते थे. वहां से मुझे अँधेरी आकर सब काम करना पड़ता था. अपनी तस्वीर लेकर हर प्रोडक्शन ऑफिस में डालता था. इस दौरान अलीक पद्मसी के साथ कुछ नाटकों में काम किया. इसके साथ-साथ मैंने कॉलेज में कुछ दिनों तक बच्चों को पढ़ाया भी करता था, जिससे मुझे कुछ पैसे मिल जाते थे. इसके अलावा अलीक के बेटे क्वासर ठाकोर पदमसी ‘थेस्पो’ नामक थिएटर फेस्टिवल करते है, उसमें मैंने उन्हें एसिस्ट किया, जिसमें प्रोडक्शन की सारी बारीकियों को नजदीक से जान पाया. इससे थोड़े पैसे भी मुझे मिल जाया करता था, जिससेमेरे घर का  खर्चा चल जाता था.

सवाल-  हिंदी फिल्मों में पहला ऑफर कैसे मिला?

मैंने नाटकों में अभिनय के द्वारा लोगों के बीच में काफी नाम कमा लिया था. विदेश में भी कई थिएटर में कामकिया, करीब तीन साल के बाद भारत आया और फिल्म‘कमीने’ के लिए ऑडिशन दिया और चुन लिया गया.

सवाल-  फिल्मों में कम दिखाई पड़ने की वजह क्या है?

जैसे काम आता है मैं करता जाता हूँ. लगातार दिखना मुश्किल होता है. ये आर्ट है जिसे अगर आपका दिल न चाहे तो नहीं कर सकते. आज के दर्शक भी बहुत जागरूक है, सही फिल्म करने पर सिर पर जितनी जल्दी उठाती है, गलतफिल्म करने पर उतनी ही जल्दी उतार भी देती है. इसलिए मैं धीरे-धीरे सही काम करता हूँ.

सवाल-  आपने बांग्ला फिल्में की है और बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में एक सफल हीरो की कमी है, इसे कैसे देखते है?

बांग्लाफिल्में बाहर की फिल्मोंसे अधिक प्रेरित हो चुकी है. वे अपने कला और साहित्यको भूलकर रास्ते भटक चुकी है, क्योंकिवे हिंदी और दक्षिण की फिल्मों से प्रभावित हो रही है. कहानी से लेकर संगीत सब वे दूसरों की कॉपी कर रही है. प्रेरित होना गलत नहीं है, पर उसमें अपनी संस्कृति को भूल जाना सही नहीं. दक्षिण की कई फिल्में ऐसी है, जो आज भी बहुत अच्छी बनती है और पूरे विश्व में उसे देखी जाती है. मैं भी बांग्ला फिल्में करता हूँ और अच्छी स्तर की कहानियों को हमेशा तलाशता रहता हूँ.

सवाल-  अभिनय के इस दौर को कैसे देखते है?

ये छोटे बड़े सभी कलाकारों के लिए अच्छा दौर है. नए और पुराने सभी कलाकारों को काम करने का मौका मिला है. केवल नामचीन ही नहीं सभी काम कर पा रहे है. मुझे एक सप्ताह में 9 शो के ऑफर मिले है, जो बड़ी बात है. अभी कोई आपके साथ दांव नहीं लगा रहा है. मुझे‘मन्मर्जियाँ’ फिल्म में अभिषेक बच्चन की भूमिका बहुत पसंद आई थी, वैसी भूमिका मुझे करने की इच्छा है.

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सवाल-  इनदिनों अभी आप क्या कर रहे है?

मैं घर की साफसफाई, बिल्लियों की देखभाल, पौधों को पानी देना और खाना पका रहा हूँ. मुझे लगता है कि मैं बिपासना के दौर से जा रहा हूँ. सुकून की जिंदगी बिता रहा हूँ.

सवाल-  आगे की योजनायें क्या है?

आगे एक वेब सीरीज ‘आश्रम’ तैयार है. इसके अलावा बांग्ला फिल्म और वेब सीरीज की है, जो रिलीज होने वाली है.

सवाल- यूथ को क्या मेसेज देना चाहते है?

ये मुश्किल घड़ी है, धैर्यऔर संयम बनायें रखे जब भी जरुरत हो, किसी की सेवा करें.

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