रेटिंगः साढ़े तीन स्टार
निर्माताः फौक्स स्टार स्टूडियो
निर्देशकः अश्विनी अय्यर तिवारी
कलाकारः कंगना रनौत, जस्सी गिल, यज्ञ भसीन,रिचा चड्डा, नीना गुप्ता
अवधिः दो घंटे ग्यारह मिनट
‘निल बटे सन्नाटा’ और ‘बरेली की बर्फी’ के बाद फिल्मकार अश्विनी अय्यर तिवारी अपनी तीसरी फिल्म‘‘पंगा’’में परिवार और स्पोटर्स का बेहतरीन समन्वय दिखाया है. हमसे बातचीत के दौरान अश्विनी अय्र तिवारी ने कहा था कि उनकी फिल्म में ‘ओमन इम्पॉवरमेट’का कोई मसला नही है. यह एक नारी की कहानी है. मगर इसमें ओमन इम्पावरमेंट भी है. फिल्म‘‘पंगा’’में कहीं न कहीं स्त्री के अस्तित्व की लड़ाई भी है. यह कहानी है उन महिलाओं की जो शादी के बाद अपने परिवार, पति और बच्चे के लिए अपना कैरियर, अपने सपनों को तिलांजली दे देती हैं, मगर एक चिंगारी उनके मन में रहती है और जब पति स्वयं उस चिंगारी को हवा दे, तो फिर वह महिला किस तरह अपने सपनों को पूरा करने के लिए जद्दो जेहाद करती है.
कहानीः
यह कहानी है मशहूर और भारतीय कबड्डी टीम की कैप्टन रह चुकी जया निगम (कंगना रनौत) की. कबड्डी प्लेअर होने के ही चलते उन्हे रेलवे में नौकरी मिली हुई है. पर एक दिन जया अपने प्रेमी और रेलवे में इंजीनियर के रूप में कार्यरत प्रशांत (जस्सी गिल) से शादी कर ली. वह एशिया कप में भारतीय कबड्डी टीम की कैप्टन के रूप में हिस्सा लेने वाली थी. पर अचानक एक बेटे की मां बनने के चलते वह खुद को कबड्डी के खेल से हमेशा के लिए अलग कर लेती हैं.
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वह कहती हैं-‘मैं एक मां हूं और मां के कोई सपने नहीं ह¨ते’तो अब जया निगम 7 साल के बेटे आदित्य उर्फ आदि (यज्ञ भसीन) की मां और प्रशांत (जस्सी गिल)की पत्नी हैं. जया अपनी छोटी-सी दुनिया में खुश है. उसकी जिंदगी घर, बच्चे और नौकरी की जिम्मेदारियों के बीच गुजर रही है. फिर एक दिन घर में एक ऐसी घटना घटती है कि जया का बेटा आदि उसे 32 साल की उम्र में कबड्डी में वापसी करने के लिए प्रेरित करता है. बेटे की खुशी के लिए पहले जया अपने पति प्रशांत के साथ मिलकर कबड्डी के खेल में वापसी के लिए प्रैक्टिस का झूठा नाटक करती है, मगर इस प्रक्रिया में उसके दबे हुए सपने फिर सिर उठाने लगते हैं.अब वह वाकई भारत की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बनकर स्वर्णिमदर को दोबारा जीना चाहती है. इसमें उसके साथ कबड्डी खेलती रही और इन दिनों कबड्डी की खिलाड़ी के साथ कोच के रूप में कार्यरत उसकी दोस्त मीनू (रिचा चड्ढा), उसके पति और बेटे आदित्य के साथ उसकी मां (नीना गुप्ता) उसका हौसला बढ़ाती है. मीनू उसकी काफी मदद करती है.
निर्देशनः
मनोरंजक फिल्म ‘‘पंगा’’ में जिस तरह से निर्देशक अश्विनी अय्यर तिवारी ने परिवार,कबड्डी के खेल और स्त्री के सपनों का समन्वय बैठाकर कहानी गढ़ी और उसे परदे पर उकेरा है, उसके लिए वह बधाई की पात्र हैं. फिल्म की पटकथा व संवाद अश्विनी अय्यर तिवारी ने निखिल मेहरोत्रा के साथ लिखे हैं. फिल्म में उत्तर भारतीय परिवारों में जिस तरह की नोकझोक होती रहती है, उसका अहसास दिलाने वाले संवादों में नितीश तिवारी का भी योगदान है, क्योंकि उन्होंने फिल्म की एडीशनल पटकथा व संवाद लिखे हैं.
छोटे शहरों के मध्यम वर्गीय परिवारों को उनकी जीवन शैली ,आव भाव आदि के साथ परदे पर पेश करने में अश्विनी अय्यर तिवारी को महारत हासिल है,यह बात वह अपनी पिछली फिल्मों मंे साबित कर चुकी हैं. इस फिल्म में उन्होने इसी बात को भोपाल शहर की कामकाजी औरत और मध्यमवर्गीय परिवार को बारीकी से पेश कर पुख्ता किया है.इससे फिल्म न सिर्फ जीवंत होकर उभरती है,बल्कि हर इंसान फिल्म की कहानी व किरदारों के साथ खुद को रिलेट करता है. फिल्म निर्देशक ने मानवीय रिश्ते के साथ कबड्डी जैसे खेल के रोमांच का बेहतरीन चित्रण किया है.
तमाम खूबियों के बावजूद फिल्मकार कहीं न कहीं द्विविधा में नजर आती है.वह इस बात को रेखांकित नही कर पायी कि कौन हीरोइन है? शादी करके परिवार के लिए कबड्डी को बाय बाय कर देने वाली जया निगम या कबड्डी के खेल के प्रति समर्पण के चलते शादी के लए वक्त न निकाल पाने वाली जया निगम की सहेली मीनू?
अश्विनी ने हमसे बातचीत करते हुए भले ही कहा था कि उनकी फिल्म में ओमन इंम्पावरमेंट की बात नही है, मगर यह फिल्म जया,मीनू और जया की मां (नीना गुप्ता) के किरदारों के माध्यम से ‘ओमन इम्पावरमेट’की बात करती है. मगर उनकी खूबी है है कि यह बात उपदेशात्मक नही है. इंटरवल से पहले फिल्म कुछ ज्यादा ही लंबी और ढीली है,मगर इंटरवल के बाद फिल्म सरपट दौड़ती है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.
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संवादः
फिल्म के संवाद काफी बेहतर बन पड़े हैं.मासूम सात वर्षीय बालक आदी के संवाद तो कुछ ज्यादा ही बेहतर बने हैं और कुछ संवादों पर दर्शक अपनी हंसी नहीं रोक पाता.
अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो कंगना रनौत और रिचा चड्डा दोनों बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नही हैं.इस बात को दोनों ने इस फिल्म में भी साबित किया है.एक गृहिणी व कामकाजी औरत के साथ कबड्डी खिलाड़ी, इन दोनों पहलुओं को कंगना रनौत ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. जज्बाती दृश्यों को भी उन्होने मैलोड्रामैटिक नहीं होने दिया.मीनू के किरदार में रिचा चड्डा ने कमाल का अभिनय किया है. रिचा ने अपने अभिनय से साबित किया है कि मीनू के किरदार के लिए उनसे ज्यादा उपयुक्त कलाकार कोई नहीं हो सकता था. फिल्म देखकर अहसास होता है कि मीनू के बिना जया की कहानी संभव नहीं थी. प्रशांत के किरदार में जस्सी गिल का अभिनय ठीक ठाक है. बाल कलाकार यज्ञ भसीन की यह पहली फिल्म है, पर उसके अभिनय से इस बात का अहसास नही होता. मां के छोटे किरदार में भी नीना गुप्ता अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं.