खाना बनाना एक ऐसी कला है जो हर किसी को नहीं जमती है. लेकिन जिनके पास यह कला होती है वह व्यक्ति कभी भी भूखा नहीं रहता है. उसके हाथ का बना खाना खानेवाले प्रत्येक व्यक्ति का पेट और मन हमेशा भरा हुआ रहता है, क्योंकि उसमें बनाने वाले का प्यार मिला होता है. ऐसे ही पाककला से प्यार करने वाली राधा आगरकर (सोनाली कुलकर्णी) हमें गुलाब जाम फिल्म में देखने को मिलती है.

पुणे में नौकरीपेशा वर्ग के लिए सुबह डिब्बा बनाने वाली राधा हमेशा अकेली और परेशान रहती है. अपने हाथों के बने खाने से संतुष्ट चेहरों को उसने कभी देखा तो नहीं, फिर भी हर सुबह बड़े उत्साह से डिब्बे बनाती हैं. दूसरी तरफ पाककला में निपुण होने की इच्छा रखने वाला आदित्य नाईक (सिद्धार्थ चांदेकर) लंदन से अच्छी सैलरी की नौकरी छोड़कर वापस घर आ जाता है. परन्तु उसे दाल-चावल, सब्जी और चपाती बनाने के अलावा कुछ नहीं आता है और वो सभी तरह के मराठी व्यंजन सीखकर लन्दन में मराठी होटल शुरू करना चाहता है. लेकिन घरवाले उसकी इच्छा को नहीं समझते हैं.

इसलिए वह लन्दन जा रहा है कहकर पुणे में एक फ्रेंड के पास जाता है. जहां आने वाले डिब्बे में से एक गुलाब जामुन अपने मुंह में डालता है और उसे बनाने वाले को ही अपना गुरू मान लेता है. किसी तरह तलाश करने के बाद वह राधा के घर पहुंच जाता है. पहले तो राधा अकेले रहने की आदत के कारण उसे घर में लेने से इंकार कर देती है. लेकिन आदित्य बार-बार उसके यहां जाता है और अंत में राधा उसे पाककला सिखाने के लिए तैयार हो जाती है.

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