सेक्स रैकेट, बाल यौन शोषण और वूमन ट्रैफीकिंग पर कई फिल्में बन चुकी हैं. 2014 में मशहूर फिल्मकार नागेश कुकनूर भी इसी विषय पर फिल्म ‘‘लक्ष्मी’’ लेकर आए थे. अब इसी विषय पर ‘‘लाइफ आफ पाई’’ जैसी आस्कर अवार्ड विजेता फिल्म के निर्माता तबरेज नूरानी बतौर निर्माता व निर्देशक फिल्म ‘‘लव सोनिया’’ लेकर आए हैं. जिसमें उन्होंने दो बहनों के अगाध प्यार की कहानी के बहाने वूमन ट्रैफीकिंग व देह व्यापार की बदसूरत दुनिया की उस क्रूर व निर्मम सच का चित्रण किया है, जिसे देख इंसान विचलित हो जाता है. यह एक अति डार्क फिल्म है. मगर फिल्मकार तबरेज नूरानी को सारी गंदगी व गरीबी महज भारत में ही क्यों नजर आयी?
फिल्म की कहानी महाराष्ट् के एक गांव से शुरू होती है, जहां कर्ज तले दबा किसान शिवा (आदिल हुसेन) की दो बेटियां हैं, बेटा नहीं है. वह अपनी बड़ी बेटी सोनिया (मृणाल ठाकुर) से सांड़ की तरह खेत में मेहनत करवाता है. छोटी बेटी प्रीति (रिया सिसोदिया) उतनी मेहनत नहीं कर पाती है. इसलिए शिवा अक्सर उसे पीटता रहता है और कोसता रहता है कि ईश्वर ने बेटे के जगह बेटियां क्यों दे दी. पर सोनिया और प्रीति के बीच अगाध प्यार है. सोनिया के बनिस्बत प्रीति काफी खूबसूरत भी है.
एक दिन शिवा अपना कर्ज चुकाने के लिए काका ठाकुर (अनुपम खेर) के हाथों चंद रूपयों में प्रीति का सौदा कर लेता है. जब वह पैसे लेकर प्रीति को दादा ठाकुर के पास सौंपने जाता है, तो वहां सोनिया भी पहुंच जाती है और वह उसका विरोध करती है. पर सोनिया की एक नहीं चलती. दादा ठाकुर, प्रीति को अंजली (साई ताम्हणकर) के हवाले करते हैं. अंजली, प्रीति को लेकर मुंबई में फैजल उर्फ बाबू (मनोज बाजपेयी) के वेश्यागृह में पहुंचा देती है.
कई दिन बीत जाने पर भी जब प्रीति की कोई खबर नहीं मिलती है, तो सोनिया, दादा ठाकुर के पास पहुंचकर कहती है कि वह उसे भी प्रीति के पास मुंबई पहुंचा दें. वह भी मुंबई में काम करेगी. अंजली, सोनिया को लेकर बाबू के पास पहुंचती है. यानी प्रीति की तलाश में सोनिया भी देह व्यापार के घिनौने धंधे में पहुंच जाती है. सोनिया वहां भी प्रीति से मिलने की बात करती है. बाबू और उसकी सहयोगी माधुरी (रिचा चड्ढा) कई तरह से सोनिया को टार्चर करते हैं. यहीं पर सोनिया की मुलाकात रश्मि (फ्रीडी पिंटो) से होती है. इन्हे भी किसी न किसी मजबूरी के तहत देह व्यापार में जबरन ढकेला गया था. पर एक दिन सोनिया को उसकी बहन प्रीति से मिलवाया जाता है.
ड्रग्स के नशे की आदी हो चुकी प्रीति, सोनिया को बहन मानने से इंकार कर देती है. उधर सोनिया को इस दलदल से निकालने के लिए समाज सेवक मनीष (राज कुमार राव) अपनी जान की बाजी लगा देता है. पर अपनी बहन प्रीति को बचाने के लिए वह जिस्मफरोशी के उस दलदल से निकलने के लिए राजी नहीं होती. कहानी में कई मोड़ आते हैं. एक दिन बाबू, सोनिया का सौदा किसी विदेशी ग्राहक से करता है और फिर कंटेनर के अंदर बंद कर समुद्री रास्ते से माधुरी व सोनिया को दुबई और वहां से लास एंजेल्स भेज दिया जाता है.
जहां एक दिन सोनिया भागने में सफल होती है और उसे एक एनजीओ की मदद मिलती है. जिसकी मदद से उसका संपर्क भारत में मनीष से होता है. पता चलता है कि मनीष के ही एनजीओ में दूसरी लड़कियों के साथ प्रीति भी रह रही है. अंततः सोनिया भारत आकर मनीष के एनजीओ में रहना शुरू करती है. पर उसकी बहन प्रीति तब तक पुनः देह व्यापार के दलदल में जा चुकी होती है.
तबरेज नूरानी की फिल्म काफी विचलित करती है और कई जगह पर वह बहुत सतही स्तर पर कहानी को बयां कर गए हैं. पर उन्होंने डार्क पक्ष को ही ज्यादा महत्व दिया है. उन्होंने इंसानियत के काले पक्ष को भी उजागर किया है. फिल्म में इस बात का बड़ी बेबाकी से चित्रण है कि यहां इंसान महज अपने स्वार्थ लिप्तता के चलते संवेदनहीन हो गया है. फिल्म में देह व्यापार के साथ पुलिस प्रशासन की मिली भगत की ओर भी इंगित किया गया है. अफसोस फिल्मकार ने फिल्म को अधूरा ही छोड़ा है.
फिल्मकार का दावा है कि यह फिल्म कई सत्य घटनाओं पर आधारित है, पर फिल्म देखकर यह अहसास भी होता है कि यह फिल्म उन दर्शकों के लिए है, जो प्रेम कहानी के नाम पर उत्तेजित होना चाहते हैं. इतना ही नहीं फिल्मकार ने भारत में ही ज्यादा गंदगी व प्रताड़ना आदि का चित्रण किया है. जबकि दुबई व लास एजेंल्स को काफी अच्छा दिखा दिया है.
मगर हम सभी इस हकीकत से वाकिफ हैं कि पूरे विश्व में देह व्यापार और वूमन ट्रैफीकिंग के अनैतिक धंधे में अमरीका का लास एंजेल्स शहर नंबर वन है. फिल्म में ‘मुंह से सेक्स’ ‘बैक डोर एंट्री, ‘सील’ जैसे संवाद फिल्म का स्तर घटाते है. बहरहाल, आम दर्शक इस फिल्म को पसंद करेगा, ऐसी उम्मीद कम नजर आती है.
अफसोस की बात यह है कि देह व्यापार के धंधे में सोनिया के पहुंचते ही शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व मौखिक दुव्र्यवहार आदि हवा में उड़ जाता है. सिर्फ देह व्यापार की स्याह दुनिया ही रह जाती है. पर फिल्म के निर्देशक तबरेज नूरानी को प्रतिभाशाली कलाकारों का अच्छा साथ मिला है. फिल्म का पार्श्व संगीत उम्दा है.
जहां तक अभिनय का सवाल है तो प्रीति के किरदार में रिया सिसोदिया ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर सोनिया के किरदार में मृणाल ठाकुर ने जबरदस्त परफार्मेंस दी है. उनके अभिनय के ही चलते उनकी पीड़ा दर्शकों को भी कचोटती है. रिचा चड्डा तो बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नहीं. वेश्याग्रह के मालिक के किरदार में मनोज बाजपेयी भी जमे हैं. अपने छोटे किरदार में राज कुमार राव भी अपनी छाप छोड़ ही जाते हैं. फ्रीडा पिंटो की प्रतिभा को जाया किया गया है. डेमी मूर, अनुपम खेर, आदिल हुसेन आदि ने भी अच्छा अभिनय किया है.
दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘लव सोनिया” का निर्माण डेविड वोमार्क और तबरेज नूरानी ने किया है. निर्देशक तबरेज नूरानी, लेखक अल्केश वजा व तेड कप्लान, संगीतकार नील्स बाय नेल्सन और कलाकार हैं – मनोज बाजपेयी, राज कुमार राव, रिचा चड्ढा, डेमी मूर, फ्रीडा पिंटो, मृणाल ठाकुर, रिया सिसोदिया, आदिल हुसेन, अनुपम खेर, साई ताम्हणकर, सनी पवार, मार्क डुप्ल व अन्य.