एक लड़का, एक लड़की और उनके प्यार का दुखद अंत, ‘सैराट’ फिल्म में हम सबने देखा ही है. इसी कथासूत्र पर आधारित है भाऊसाहेब कर्हाड़े निर्देशित फिल्म‘बबन’.
बबन (भाऊसाहेब शिंदे) दूध बेचकर कौलेज की पढाई करता है और एक दिन अमीर बनने का सपना देखता है. इसके लिए वह गांव में घर-घर से दूध इकठ्ठा कर कंपनी में बेचता है. उसके क्लास में पढने वाली कोमल (गायत्री जाधव) एक अमीर घर की लड़की है और बबन से प्यार करती है. साथ पढ़ने वाले अभ्या (अभय चव्हाण) को बबन की प्रगति देखी नहीं जाती है. साथ ही दोनों का रिश्ता उसके आंखों में खटकता है. इसलिए वह बबन को परेशान करना शुरू कर देता है. उसकी बाइक और दूध की केतली तोड़ देते हैं. इस बात से गुस्सा बबन अभ्या और उसके साथियों के साथ मारपीट करता है.
बबन दूध का धंधा फिर से शुरू करता है और टेम्पो से दूध ले जाने लगता है. बबन को मन लगाकर काम करते देख अभ्या और उसके साथी एक बार फिर अटैक करते है और उसका टेम्पो जला देते है. एक दिन अभ्या कोमल के साथ छेड़खानी करता है जिसे देखकर बबन फिर से उससे उलझ जाता है. पुलिस से बचाने के लिए बबन के दोस्त उसे तीन दिन के लिए गायब कर देते है. एक स्थानीय नेता की पहचान से बबन छूट जाता है और वह उसे एक पिस्टल देता है. जेल से छूटने के बाद बबन फिर से काम जमाने का प्रयास करता है.
बबन और कोमल को एक साथ देख, अभ्या का साथी विक्रम उनके साथ मारपीट करता है. इस दौरान कोमल बबन के पॉकेट से पिस्टल निकालकर विक्रम को मार देती है और दोनों वहां से भाग जाते हैं. कोमल को उसके घर छोड़कर बबन चला जाता है. बाइक पर जा रहे बबन का एक्सीडेंट होता है और उसकी मौत हो जाती है. बदले की भावना से ग्रस्त विक्रम के साथी कोमल का बलात्कार करते है. प्रेग्नेंट कोमल पागलों की तरह गांव में भटकती रहती है और बच्चे के जन्म लेते ही दीवार पर पटक कर मार देती है.